Diya aur Bati in Hindi Short Stories by VIJAY KUMAR SHARMA books and stories PDF | दिया और बाती

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दिया और बाती

दिया और बाती

“इनको शल्य चिकित्सा की जरुरत है, एवं पहले से ही बहुत कमजोर है, इसलिए एहतियातन तुरंत २ यूनिट खून की व्यवस्था करनी होगी, उसके लिए किन्ही दो रक्त दाताओ की जरुरत होगी, जैसे ही २ यूनिट रक्त की व्यवस्था होती है तुरंत मुझसे आ कर मिले” कहकर डॉक्टर साहब अपने केबिन में चले जाते है |

ये सुनकर खुशखबरी के इंतजार में बैठे, सभी परिवार वाले एकबारगी तो नाखुश हो जाते है, पर जल्द ही सभी ने एक दुसरे को संभाला और दो यूनिट खून देने के लिए सुरेश और रमेश आगे जाकर डॉक्टर साहब से मिलते है |

डॉक्टर साहब तुरंत सिस्टर के साथ दोनों को ब्लड बैंक भेज देते है जो की अस्पताल परिसर में ही स्थित है | और रवि को दवाइयों की पर्ची थमा देते है | रवि ने पर्ची लेकर मेडिकल की तरफ भागता है ताकि जल्द से जल्द दवाइयां ला सके, आखिर उसकी नो माह की गर्भवती पत्नी की हालत नाजुक जो थी, जिससे वह आज भी, उतना ही प्रेम करता है जितना की २ वर्ष पूर्व, ‘प्रेम विवाह’ के वक्त | वैसे सरिता है भी इतनी प्यारी, मेहनती और संस्कारी, की घर में सब, उसे बहुत पसंद करते है, यहाँ तक की गुणगान करते नहीं थकते है, सिवाय दादी माँ के | दादी माँ नफरत करती भी कैसे नहीं, आखिर वो सरिता ही तो थी, जिसके लिए रवि ने पहली और आखिरी बार दादी के खिलाफ होकर उनकी पसंद की लड़की से शादी करने से इंकार जो किया था | तभी से सरिता दादी माँ को फूटी आँख नहीं सुहाती थी | वैसे ऐसा नहीं था की सरिता ने दादी की नाराजगी को दूर करने का प्रयास नहीं किया था, बल्कि उसने ऐसा कोई भी दिन और पल नहीं छोड़ा जब उसने दादी की नाराजगी को अपनी प्रेम भरी सेवा से दूर करने का प्रयास नहीं किया हो | वह अपना दिन दादी के पैर छु कर ही शुरू करती और ख़त्म भी | वह घर की अपनी जिम्मेदारियां समय पर निभाने के साथ ही, दादी माँ को समय पर दवाइयां देना और सेवा करना कभी नहीं भूलती | बावजूद इन सबके दादी माँ उससे मुहँ फेरे ही रहती है | दादी माँ के इसी व्यवहार से रवि भी दुखी रहने लगा था पर चाह कर भी, वह कुछ भी नहीं कर पा रहा था | बाकि दादी स्वाभाव से बहुत ही अच्छी है, दोनों बड़ी पोत्र वधुओ से, दादी माँ अच्छे से व्यवहार करती है, हालाँकि अभी प्रेगनेंसी के बाद से तो, दादी माँ का व्यवहार सरिता के प्रति बहुत बदला हुआ नजर आता देख, सभी परिवार वाले खुश हुए थे, लेकिन किसी को भी यह समझते देर नहीं लगी की यह दादी की वह इच्छा करवा रही है जो दोनों बड़ी पोत्र बहुए पूरा नहीं सकी थी, दरअसल दोनों बड़ी पोत्र वधुओ से दो–दो बेटियों ने जन्म लिया था, ऐसा नहीं था की दादी लड़कियों से नफरत अथवा कोई लगाव नहीं रखती थी, बल्कि दादी माँ हर दिन अपनी चारो पोतियों से खेला करती है, गलती से कोई भी किसी भी पोती को डाट भी दे तो उसकी खिचाई पक्का समझो | पर उम्र के इस आखिरी पड़ाव में मृत्यु को समीप देखकर दादी की पड़ पोत्र को देखने की इच्छा, कब उनकी हठ बन गयी, उन्हें खुद पता नहीं चला, उसी हठ का परिणाम है की दादी माँ, कल सुबह से ही अन्न त्याग कर, घर के मंदिर में ही बैठी है और पड़ पोत्र का चेहरा देख कर ही, अन्न ग्रहण करने का प्रण ले रखी है, दादी माँ की इस हठ को, जहाँ बाकि सभी ने कल सुबह जाना था, वहीँ सरिता ने इस हठ को बहुत पहले ही भांप लिया था, इसीलिए वह भी दादी माँ को, उनके कुल दीपक पाने की इच्छा, खुद भी पोत्र देकर पूरा करना चाहती थी, पर उसके हाथ में सिवाय प्राथना करने के कुछ भी न था | उसकी इसी बेबसी को अस्पताल ले जाते हुए रवि ने भांप लिया था और तभी उसने सरिता को, धीरज रखने और अपने आप को सँभालने को कहा था |

इधर रवि मेडिकल से दवाई लेकर आता है उधर से रमेश और सुरेश ब्लड देकर आ जाते है | रवि, डॉक्टर साहब के पास जाकर सुचना देता है, सुचना पाते ही डॉक्टर साहब ने नर्सिंग स्टाफ को बुलाकर शल्य चिकित्सा की तैयारियों के निर्देश देते है और सरिता को आई सी यू में ले जाया जाता है | सभी बाहर खुशखबरी के इंतजार में जच्चा - बच्चा स्वस्थ हो इसी कामना के साथ, बैठे रहते है |

आई.सी.यू. में संभवतया ओपरेशन प्रारंभ हो चूका था, इधर बाहर बैठा रवि, सरिता की फ़िक्र में गुमसुम रहता है | सोचता हुआ वह कब उन सब बातो को गहराई में आकलन करने लगता है जो उन्होंने कल रात में की थी, क्युकी ये तो रवि को पहले से ही पता था कि, दादी माँ की पसंद की लड़की से शादी नहीं करने का जो रवि ने फैसला लिया था, उसके लिए आज भी दादी माँ, सरिता को ही दोषी मानती है, पर उसे कल रात पहली बार सरिता से पता चला की, सरिता खुद भी दादी माँ की तरह, इन सब के लिए खुद और ‘खुद के प्रेम’ को ही दोषी मानती आ रही है | वो बात कुछ और थी की, उसने आज तक ये बात, रवि पर भी जाहिर नहीं होने दि, क्युकी वह ये महसूस कर चुकी थी की दादी माँ के सरिता के प्रति व्यवहार को देखकर, रवि पहले से ही अवसाद में था, क्यों की, चाह कर भी वो, कुछ नहीं कर पा रहा था, इसीलिए उसने ये बात रवि को जाहिर ही नहीं होने दि, वह अपने उस दोष को, अब दादी की, उस इच्छा को पूरा करके, क्षमा करवाना चाह रही थी, जो अब न केवल दादी की हठ बन चुकी थी, बल्कि वही हठ सरिता में भी कल रवि ने देखी थी | ऐसा नहीं था की, उसे पुत्र ही जनने के लिए दादी माँ समेत किसी भी सदस्य ने कोई फरमान सुनाया था, ये तो दादी माँ की क्षमा और प्रेम की भूखी, उस पोत्र वधु का अरमान था जिसने खुद और खुद के प्रेम को हो दादी माँ का गुनाहगार मान लिया था, वो ये ही चाह रही थी की भले ही रवि ने मेरे प्रेम के कारण दादी माँ के इच्छा अनुरूप उनकी बताई गयी लड़की से शादी नहीं की, पर अब ये इच्छा दादी माँ की पूरी होनी ही चाहिए | वह ये सोचकर भी डरती थी की, संभवतया दादी माँ की ये इच्छा, कब, अपूर्ण अंतिम इच्छा बन जाये, कौन जानता था ?,

इसी बेबसी और नजदीक आ रही तारीख और रह रह कर उठने वाले प्रसव पीड़ा के कारण सरिता बिलकुल टूट कर भिखर गयी थी, उसे यही चिन्ता खाए जा रही थी की, कहीं ऐसा न हो की वह लड़की को जन्म देदे, क्युकी अगर ऐसा हुआ तो वह दादी माँ से क्षमा पाने का न केवल आखिरी अवसर भी खो देगी, बल्कि अनजाने में ही सही, पर उन्हें नाराज करने के लिए, एक नया दोष और कर बैठेगी | रवि के लिए इतना सुनना ही उसकी पीड़ा और बेबसी को तो, समझने के लिए काफी था, अगर नाकाफी कुछ था तो यह की, रवि, समझ नहीं पा रहा था की, क्या ये वही सरिता है ? जो पहले मेरे मजाक में ही, लड़के होने की इच्छा रखने मात्र से नाराज हो जाया करती थी, और मुझे, लिंग आधारित फर्क से बचने की एक के बाद एक, कई नसीहते, दे दिया करती थी | और आज खुद, उसी दादी माँ का प्रेम और क्षमा पाने के लिए, खुद, यह जिद पकडे बैठी है, और वो भी उसी दादी माँ के लिए, जिसने, शादी से लेकर आज तक, कभी भी, इससे, सीधे मुहँ बात तक नहीं की |

हाँ दादी माँ, प्रेगनेंसी के बाद जरुर, खाने पिलाने के बहाने, सरिता से कुछ बोल लिया करती थी | पर दादी माँ के इस व्यवहार में जहाँ रवि को दादी माँ का स्वार्थी प्रेम, दिख रहा था, वहीँ दादी माँ के इस बदले व्यवहार में भी सरिता को दादी माँ से, अपने अनजाने में किये गए दोष के लिए, क्षमा मिलने की राह दिख रही थी, बच्चे की चाह में, दादी माँ से मिल रहे प्रेम में भी, सरिता, अपने लिए स्थान दूंढ रही थी | इन सब उधेड़बुन के बीच कल के दादी माँ के अनसन के बाद तो, उन्हें खोने का डर भी, कल रात रवि ने सरिता कि आँखों में, पढ़ लिया था | रवि तो अब ये सोच कर ही सिहर उठता है की, जो सरिता, अपने दिल और दिमाग से उत्पन्न प्रेम, क्षमा, और डर की भावनाओ से प्रेरित होकर, लड़की होने की आशंका मात्र से ही, टूटी चुकी थी, यदि वास्तव में ऐसा हो गया तो क्या होगा ?, उस पर खुद सरिता का, व्यवहार कैसे होगा?, और वहीँ, दादी माँ का, उस पर प्रतीकार कैसे होगा ?, इन सवालो का जबाब रवि को, खुद से मिलता, उससे पूर्व ही ओ.टी का दरवाजा खुल जाता है | डॉक्टर साहब ने जैसे ही, परिवार जनो को खुशखबरी सुनानी चाही, उससे पहले ही रवि ने बात काटते हुए, एक साँस में दो सवाल किये सरिता कैसी है अब, ठीक तो है न ?, और लड़का हुआ या लड़की ?,

डॉक्टर साहब, अधीरता समझते हुए संक्षेप में उत्तर देते हुए कहते है, मिस्टर रवि, जच्चा भी बिलकुल स्वस्थ है और लड़का भी | जच्चा, अभी, बेबी बॉय को गोदी में लिए, आपका ही इंतजार कर रही है, अधीर मत होइए, चिन्ता की कोई बात नहीं है, एक और खुशखबरी है आपके लिए, कि प्रसव साधारण शल्य से ही हुआ है, तत्कालीन आशंकानुरूप वृहद् शल्य चिकित्सा से नहीं | कहकर डॉक्टर साहब चले जाते है |

इतना सुनते ही सभी की आँखों में ख़ुशी नजर आती है | वही रवि को तो जैसे सुकून भरी साँस ही मिल जाती है | अब सिर्फ रवि के दिल दिमाग में पहली नजर बच्चे को देखने की अभिलाषा के आलावा, कोई शंका अथवा डर नहीं रहता है और इसी अभिलाषा के चलते, वह सरिता के वार्ड में स्थानांतरित होने का इंतजार कर रहा होता है | जैसे ही सरिता को वार्ड में स्थानांतरित किया जाता है, रवि जाते ही बच्चे को बड़ी ही नाजुकता से गोद में उठा कर चूम लेता है और सरिता को खुश देखकर प्रसन्न हो जाता है | तभी सरिता ने रवि से कहा कि, दादी माँ को, खबर दे दो कि, उनके कान्हा ने उनकी सुन ली है, उन्हें पोत्र रत्न प्राप्त हुआ है | सरिता से यह सुनकर रवि सीधा घर जाता है और दादी माँ को खुशखबरी सुनाता है, दादी माँ यह सुनते ही, बच्चे को देखने की जिद करती है, तो रवि उन्हें लेकर अस्पताल आ जाता है, दादी माँ आते ही बच्चे को चूम कर, सरिता के सर पर हाथ फेरते हुए कहती है, सरिता तूने मेरे कुल में रौशनी लाने का काम किया है, मेरे कुल में दीपक की ही कमी थी, बाती हमें मिल चुकी थी, ये कह कर दादी अपनी पोतियों को भी चूमने लगती है, आज मैं, सुकून से मर सकती हूँ, कि, अब मेरे घर में, ‘दिया’ भी है और ‘बाती’ भी | दादी माँ के मुहँ से ये सुनकर, सभी के आँखों में ख़ुशी से आंसू आ जाते है | रवि भी अपनी दादी माँ के शब्द सुनकर मन ही मन अपने आप को कोसता है, क्युकी उसने अपने मन में दादी माँ के प्रेम को, स्वार्थी जो समझा था, और आज उसे पता चला की, दादी माँ की इस इच्छा में कुल को रौशनी देने का स्वार्थ भले हो, पर वह भी परिवार के लिए उनके प्रेम से ज्यादा कभी नहीं था |

वहीँ सरिता भी प्रसन्न हो जाती है क्युकी आज पहली बार दादी माँ ने बड़े ही प्यार से उसके सर पर, हाथ फेर कर आशीर्वाद जो दिया था, जिनके प्यार और हटकार के लिए वह २ वर्ष तक तरसती आई थी |

विजय कुमार शर्मा