इशारा
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" माँ, अपना जड़ाउ हार दीजिएगा, शादी में वही पहन कर जाउंगी ।" -बड़ी बहू ने सासू माँ से फरमाइश की ।" बहु, मैं अभी निकालती हूँ ।"" ओह, बहु देखो इसका तो धागा टूटा हुआ है । "" हाँ, माँ, कोई बात नहीं मैं कोई और पहन लूंगी ।"" छोटी बहू के पास भी तो ऐसा ही जड़ाऊ हार है । जाओ उससे ले लो ।" " जी, माँ ।"" अरे, तुम पुराना हार पहन कर जा रही हो ? छोटी से हार न लिया क्या ?"बहु का गला जड़ाऊ हार से वंचित देख सास की त्यौरी चढ़ गयी ।" माँ, छोटी ने कहा -हार तो लॉकर में है । "" चलो होगा, मेरे ही दिमाग से उतर गया होगा । अच्छा तुम निकलो देर हो रही है ।"मन में उठी उथल -पुथल को संभालते हुए सास ने पर्दा डाल दिया ।" माँ, ये देखो, शांति कितने गन्दे बर्तन धोती है ! सारा गिलास बाहर से चमका दिया पर अंदर से कितना गन्दा है ।"छोटी बहू की शिकायत पर सास ने गिलास देखा ।" बहु, कल उसे समझाऊंगी ।हाँ, एक ओर बात -- जैसे बर्तन की उपयोगिता तभी है, जब वो अंदर से बिल्कुल साफ हो ! वैसे ही इंसान की कद्र भी तभी होती है, जब वो अंदर से साफ दिल हो ! उसके मन में कोई मैल न हो ।"सास का इशारा जान छोटी बहु की नजरें झुक गयीं थीं ।..सोशल मीडिया
“साहब, पैसा बहुत लगेगा पर काम हो जायेगा ।ऐसे लोग ढूंढ कर लाया हूँ की आपके दल को सोशल मीडिया पर चमका देंगे ।”“पैसे की चिंता न करो । ऐसा जबर्दस्त प्रचार होना चाहिए की विरोधी स्वर कहीं भी सुनाई न दे । हर तरफ बस हमारा ही दल छाया हो ।”“हो जायेगा ! हमारे लोग किसी को आवाज़ न उठाने देंगे, एक एक दमी दस -दस नकली आई डी बना कर तैयार है । हर पेज, ग्रुप में शामिल है ।ट्विटर पर ट्रोल्स मुस्तैद हैं | वाटसअप्प पर खबरें, विडिओ क्रिएट करने की पूरी तैयारी है !एक स्वर उठते ही विरोध और गालियों की ऐसी बौछार करेंगे की सामने वाला सोशल मीडिया छोड़ देगा ।”“बस ऐसा ही हो ।”“साहब, मेरी बात भी सुन लीजिये !”“दस साल से पार्टी का कार्यकर्त्ता हूँ ।हर चुनाव, रैली में नारे लगाने, दरी बिछाने का काम करता हूँ ।अब तो मेरी सुध लीजिये, कुछ काम का प्रबंध कर दीजिए । ““क्या काम करेगा ? बेटा, ये ज़माना सोशल मीडिया का है ! दरी बिछा के अब पैसे न मिलते ! सोशल मीडिया पर खबरें बनाना, गालियां देना, फोटो शॉप करना आता है, ट्रोलिंग कर पायेगा ! तो बोल, अभी तुझे काम मिल जायेगा “।“हम तो सीधे - साधे कार्यकर्त्ता हैं, नीतियों से चलने वाले, विचारधारा पर चलते हैं । ““हा हा --- विचारधारा ! किस युग का प्राणी है ! तेरा कुछ नहीं हो सकता “!
शांत मौत ------------"ये पांच नम्बर वाले बेड के बाबा बहुत परेशान करते हैं ।"ड्यूटी पर आई नई नर्स ने हेड नर्स से कहा ।"वो बिल्कुल अकेले हैं ।कैंसर की आखिरी स्टेज है ।पता नहीं कब ....!""उनके पास कभी किसी को नहीं देखा ।""परिवार के लोग यहाँ सरकारी अस्पताल में फेंक कर चले गए ।रजिस्टर में पता भी गलत दर्ज कराया ।बाबा से शायद छुटकारा पाना चाहते थे। पिछले दो महीने से बाबा यहीं हैं ।बचने की कोई उम्मीद नहीं ।बस दिन -रात यही पूछते हैं -मुझे कोई मिलने नहीं आया !"हेड नर्स ने गहरी सांस लेकर बाबा का दर्द बयान किया ।
“दीदी आप जब बाबा को एक खत पढ़ कर सुना रहीं थीं” ---------नई नर्स ने ख़त की बातें दोहरायीं ---" पिताजी, आप कैसे हैं ? हम सब ठीक हैं ।काम में बहुत व्यस्त हैं ।जल्दी ही आपसे फिर मिलने आएंगे ।आप जल्दी ठीक हो जाएंगे ।हम सब आपको बहुत याद करते हैं ।""लो बाबा, आपके बच्चे जल्दी आएंगे ।अब दवा खा लो ।"“वो कागज खाली था न !” नयी नर्स ने हेड नर्स से कहा ।" मरते हुए इंसान को कुछ पल सुकून दे पाऊँ इसलिए झूठ बोला ।कोई ख़त नहीं था ।ऐसे ही कई बहानों से बाबा को बहला कर दवा खिलाती हूँ ।"
हेड नर्स ने गहरी साँस लेते हुए कहा ।आगे फिर अपनी संवेदना को शब्द देते हुए कहा -----"अपनों की बेरुखी व्यक्ति को जीते जी मार देती है ।मौत से पहले ये बेरुखी की मौत अगर एक झूठ से टल जाए तो क्या बुरा है ।""चलो बाकी मरीज देख लें ।"" सिस्टर, पांच नंबर वाले बाबा .." वार्ड बॉय ने आकर वाक्य पूरा भी न किया था कि नर्स दौड़ कर वार्ड में गयी ।------" बेटी, कोई नहीं आया ? " बाबा की सांसें तेज चल रहीं थीं ।आंखें पथराई सी दरवाज़े पर लगीं थीं ।" बाबा, आपको बताना भूल गयी आपके घर से फ़ोन आया था ।वो जल्दी ही आपसे मिलने आएंगे ।"" नहीं, कोई नहीं आता ! "बाबा की सांस उखड़ रही ।वेंटिलेटर पर डालने की तैयारी होने लगी ।बाबा चिल्ला रहे थे --" कोई नहीं आता ।"नर्स ने वार्ड बॉय के कान में कुछ कहा !" बाबा, देखो आपका फोन ! लो बात करो ।"नर्स ने अपना फोन बाबा के कान पर लगा दिया ।" पिताजी, आप कैसे हो ? मैं आपसे मिलने आ रहा हूँ ।"बाबा के चेहरे पर सन्तोष था ।आंखें बंद हो रहीं थीं ।एक शांत मुस्कान होंठों पर ठहर गयी थी ।वार्ड बॉय ने फोन बंद कर दिया ।बाबा के जाने का दुख सबकी आंखों के कोनो से झलक रहा था । पर उनके चेहरे का सन्तोष व शांत ठहरी मुस्कान वातावरण को स्निग्ध कर रही थी ।
निचुड़ती आज़ादी ---------- -15 अगस्त 1947 की सुबह ।दिल्ली के पुराने किले में लगे शरणार्थी कैम्प में एक छोटी 4 महीने की बच्ची बिलख रही है ।" बिटिया, चुप हो जा ।मैं जानता हूँ, तू भूखी है ।जल्दी दूध का इंतज़ाम करता हुँ ।"दीनानाथ से अपनी पोती का रोना देखा नहीं जा रहा था ।बच्ची को चुप कराने का असफल प्रयास करते हुए बार बार उसकी स्वयं की रुलाई छूट रही थी ।" बहनजी, कुछ देर मेरी पोती को रख लीजिए ।भूखी है ! मैं इसके लिए दूध लेकर आता हूँ ।"दीनानाथ ने हाथ जोड़ कर पास के टैंट में बैठी अधेड़ महिला से कहा ।" न बाबा न ! क्या पता जान छुड़ा कर भाग रहे हो !बच्ची हमारे गले पड़ जाएगी ।"महिला ने टका सा जवाब दिया ।विभाजन की विभीषिका ने लोगों के अंदर की सम्वेदना को कलुषित कर दिया था ।दीनानाथ को याद आया कुछ दिन पहले वो लाहौर का एक बड़ा लाला था ।अपनी इसी पोती के जन्म पर उसने कितना दान दिया था!" लो बाबा लड्डू ।"एक सफेद खादी का कुर्ता पहने आदमी ने आ कर दीनानाथ को कहा ।" किस खुशी में ?"--दीनानाथ की शून्य से निकलती आवाज़ ने पूछा ।" बाबा, हमारा देश आज़ाद हो गया ।इससे बड़ी खुशी क्या होगी ।"" अच्छा ! "व्यंग्य मिश्रित स्वर में दीनानाथ ने कहा " तो भाई ! दो -तीन लड्डू दे दो ।"दीनानाथ भूखी बच्ची के मुंह में लड्डू के छोटे छोटे दाने डालने लगा !बच्ची चुप हो गयी ।बचे हुए लड्डू दीनानाथ की हथेली पर थे ।वह गौर से उन्हें देख रहा था ।उसके बेटे, भाई, पत्नी की चीखें उन लड्डुओं से छन छन कर आ रहीं थीं ।बेटियों, बहुओं के बलात्कार के दृश्य लड्डुओं में साकार हो गए थे ।उनकी सिसकियां लड्डुओं केदानों में गूंज रहीं थीं ।दीनानाथ ने अपनी हथेली कस कर भींच ली । उसे लगा ----उसकी मुठी में बन्द लड्डुओं से खून निचुड़ कर भारत की धरती पर फैल रहा है !
खाली पेट हरसू आज़ाद मैदान के पास की बस्ती का वासी था ।बस्ती के दूसरे छोर पर बनी सोसायटी में कूड़ा उठाने का काम करता था ।दो दिन से बुखार के कारण काम पर न जा सका ।ठेकेदार महीने के पैसे काट लेगा ।ये सोच आज काम पर चला आया ।दो ब्लॉक का कूड़ा उठा चुका था ।अभी चार ब्लॉक बाकी थे ।शरीर जवाब दे रहा था ।दो दिन से दो सूखी रोटी के सिवा पेट ने कुछ ओर महसूस नहीं किया था। आंतें किलस रहीं थीं ।थक कर कुछ देर सुस्ताने को सोसायटी के बाहर बने चबूतरे पर बैठ गया ।आज़ाद मैदान में रैली शुरू होने वाली थी ।“बैठ जाइए, सब बैठ जाइए ।थोड़ी देर में नेता जी का भाषण शुरू होगा ।दलित, पिछड़ों के कल्याण के लिए नेता जी बहुत सी नयी योजनाएं घोषित करेंगे ।”“ भाषण के बाद आप सबके लिए पूरी -भाजी की व्यवस्था है ।शांति बनाए रखें ।”चुनाव से पहले आजाद मैदान में नेता जी की बड़ी चुनावी रैली थी ।दूर दूर से गरीब, पिछड़े, आदिवासी बसों में भर भर कर लाये गए थे।भेड़ -बकरियों की तरह मैदान में ठूंसे लोग ! मीडिया, इन लोगों के चेहरों पर कैमरे मार कर सामाजिक न्याय की इबारतें फ्लैश कर रहा था !नेता जी आ गए ।भाषण शुरू हुआ ।“ हमारी पार्टी दबे, कुचले, पिछड़ों की आवाज़ है ।”“सामाजिक न्याय हमारा लक्ष्य है ।”“हम आपके लिए नए पक्के घर, रोज़गार की योजना ला रहे हैं ।हर बस्ती में खाने के स्टॉल लगवाएंगे, जहां मात्र 5 रुपये में खाना मिलेगा । कोई अब खाली पेट नहीं रहेगा ।”नेता जी जिंदाबाद के नारे गूंजने लगे ।मीडिया में जयजयकार हुई ।खाना बंटने लगा ।किसी ने चबूतरे पर बैठे हरसू को देखा ।उसके पास दो पूरियां ओर सब्जी रख दी ।आवाज़ दी “ बाबा, खा लो ।”कोई उत्तर नहीं मिला ।रखने वाला चला गया ।घुटनों में सिर दबाए निढाल कंकाल सा सामाजिक न्याय! दो दिन का बीमार खाली पेट लिए लुढ़क चुका था !
योग -भोग " मालकिन, ये छोटे बाबू रोज सुबह कैसा व्यायाम करते हैं ?"" धनिया, इसे योग कहते हैं ।इन आसनों से शरीर निरोगी रहता है ।मन में भी नयी ऊर्जा आती है ।"" मालकिन, मेरी बब्बी बहुत कमज़ोर है ।बीमार रहती है ।ये आसन करने से ठीक हो जाएगी ?"" हाँ, क्यों नहीं, जरूर हो जाएगी ।"अच्छा, मैं बेटे को ये फल व दूध दे कर आती हूँ । योग, व्यायाम के साथ इस पौष्टिक आहार की भी जरूरत होती है । तू जल्दी से बर्तन धो कर, रसोई साफ कर दे ।"" जी मालकिन ""योग से मेरी बब्बी भी निरोगी हो जाएगी पर मैं ये फल - दूध के भोग कहाँ से लाऊंगी ?" रसोई साफ करते हुए धनिया बड़बड़ा रही थी ।
खेलते खिलौने" बहु, देख ये समर ने फिर सारे खिलौने फैला दिए ।"" कोई बात नहीं माँ, उसे खेलने दो ।मैं समेट लूंगी । "सासु माँ रोज़ बड़बड़ाती और दीप्ति हँस कर टाल देती ।पाँच साल के समर को दीप्ति ने कभी रोका -टोका नहीं ।उसका मानना था कि खिलौने बच्चे के विकास के लिए होते हैं ।सजा कर रखने के लिए नहीं ।" बहु, तुम्हारे मायके से फोन है ।"दीप्ति की भाभी का फोन था --" दीदी, कितना समय हो गया ! आप मायके नहीं आईं ।हम लोगों की याद नहीं आती क्या ?"" जरूर आऊंगी ।समय मिलते ही आऊंगी ।"दीप्ति ने बात टाल दी ।कुछ इधर उधर की बात की ओर फोन रख दिया ।मन में उथल -पुथल थी ।उथल -पुथल का तूफान उड़ा कर कई बरस पीछे ले गया । 7 साल की दीप्ति को दादी ने बहुत सुंदर पलक झपकने वाली गुड़िया ला कर दी थी ।माँ ने पॉलीथिन चढ़ी वो गुड़िया शो केस में सजा दी ।" इतनी महंगी गुड़िया ! टूट जाएगी !"माँ का कठोर स्वभाव, गहन अनुशासन -दीप्ति थर थर कांपती थी ।दीप्ति क्या ! दादी, पिताजी, भाई बहन सब डरते थे ।जब घर बदला सामान ढोने के दौरान गुड़िया टूट गयी ।कूड़े में फेंक दी गयी ।कभी दीप्ति खेल नहीं पाई और गुड़िया कूड़े में चली गयी !माँ के प्रति एक वितृष्णा दीप्ति के मन में स्थायी हो गयी ।समर आकर दीप्ति से लिपट गया ।बड़े प्यार से दीप्ति का चेहरा चूमने लगा ।दीप्ति की अतीत से तन्द्रा टूटी ।मुस्कुराते हुए बोली -" मेरे प्यारे बेटे, तुम जितना चाहो खिलौनों से खेलो ।"" खिलौने सम्भालने नहीं खेलने के लिए होते हैं ।"
एक नियति ।-------" माँ, देखो एक बार फिर सोच लो ।ये वृद्धाश्रम में रहने का निर्णय आपका है, हमारा नहीं ।"" अब कुछ नहीं सोचना ! बेटा, तुम्हारे घर में मुझे किसी चीज़ की कमी नहीं पर ...." कहते कहते माँ के शब्द मूक हो गए ।" पर ! क्या माँ ?"" एक अकेली बुढ़िया दिन भर कमरे में अकेली पड़ी रहे !नोकर आकर खाना -पानी दे जाए बस !"" तो माँ और क्या करें आपके लिए, समय से सब कुछ मिलता है न !"" दो रोटियां तो वृद्धाश्रम में भी मिल जाएंगी ।हाँ यहाँ साथ बात करने वाले लोग भी होंगे ।"" घर में सब अपना काम करें या आपके साथ गप्पे लगाएं !"बेटे ने चिढ़ कर कहा ।" बेटा तुम्हारे घर में कुत्ते को दो बार बाहर घुमाने का सबके पास समय है ! अम्मा से दो बोल बोलने का नहीं !"" ठीक है, जो आपकी मर्जी ।"“आप यहाँ बैठो, मैं अंदर जाकर सारी प्रक्रिया पूरी करता हूँ ।”
वृद्धाश्रम का संचालक --" तो शर्मा जी आप क्या करते हैं ?"" एक बड़े प्रतिष्ठान में हिंदी अधिकारी हूँ ।"" जी बहुत खूब । हिंदी की जो दशा है, उस विषय में आप क्या सोचते हैं शर्मा जी ?"संचालक ने कागजी कार्यवाही करते शर्मा जी से पूछा ।" जी, देश में भले हिंदी का सम्मान कम हो पर मैं तो मानता हूँ कि हिंदी हमारी माँ है ।"संचालक ज़ोर से हँसा फिर व्यंग्यभेदी दृष्टि शर्मा जी पर उछालते हुए बोला ---" हाँ जी, आजकल असली माँ हो या भाषा दोनों की नियति वृद्धाश्रम है ! घर में दोनों का सम्मान नहीं !"शर्मा जी की आँखें झुक चुकीं थीं ।
भिखारिनें---------"जब से तूने यहाँ बैठना शुरू किया है, मेरा धंधा ख़राब कर दिया है !”
" तो क्या ये मंदिर तेरा खरीदा हुआ है ?” चिकचिक का यह दृश्य मंदिर के बाहर चल रहा था ।
मंदिर की सीढ़ियों पर पहले एक बूढ़ी अम्मा भीख मांगा करती थी ।अब एक अन्य भिखारिन भी वहाँ आकर बैठ गयी ।भीख दोनों में बंटने लगी तो अम्मा का क्रोध बढ़ने लगा ।
"देख कैसे सारा माल बटोर रही है !”-अम्मा ने भड़ास निकाली ।
" तुमसे तो कुछ न लिया !"--दूसरी भिखारिन भी कम न थी । आज अम्मा कुछ ज्यादा ही गर्म तवे पर पड़ी बून्द की उछल रही थी ।दूसरी भिखारन को ज्यादा भीख मिल रही थी ।अम्मा सुबह से भूखी थी ।उसे चंद सिक्के ही नसीब हुए थे ।दूसरी का कटोरा मिठाई, सिक्कों व फलों से भरा था ।अम्मा गुस्से में तमतमा तो रही थी पर साथ ही बड़ी हसरत से फलों को देख रही थी ।मंदिर में भीड़ छंट चुकी थी ।भूख से अम्मा की आंतें कुलबुलाने लगीं। दूसरी भिखारिन कनखियों से अम्मा के हाव- भावों को पढ़ने का प्रयास करने लगी ।दोनों के बीच भले ही ईर्ष्या का भाव प्रबल हो पर भूख की भाषा दोनों ही बखूबी जानती थीं ।“अम्मा लो फल खा लो ।”" तेरे से लेकर खाऊँगी ! कभी नहीं ।”"अम्मा, ले लो, चेहरे पर भूख की लकीरें साफ दिख रही हैं ।”
दूसरी भिखारन ने फल अम्मा को दिए । दोनों की आंखें मिलीं ! कुछ देर पहले जिनमें से आग बरस रही थी, अब स्नेह व करुणा की धारा बह निकली ।“अम्मा अकेली हो क्या ? “"हां ! यहाँ से भीख मांग रात को पुल के नीचे सो जाती हूँ ।कोई नहीं है मेरा !”
अम्मा का दर्द आंसुओं में छलक आया था ।" मेरा भी कोई नहीं है ।पास ही मेरी झोंपड़ी है ।मेरे साथ रहोगी ?”अम्मा ने काँपते हाथों से उसका हाथ थाम लिया । अम्मा रेहड़ी के सहारे चल रही थी पर अब वो अकेली नहीं थी !
कंधे पर किसी ओर का हाथ भी था ।भूख और अकेलेपन ने स्नेह और अपनत्व के सहारे खोज लिए थे।
गोलगप्पे वाला लड़का ----------- --- -----" तुम्हें कुछ दिन से देख रही हूं ।यहां रोज गोलगप्पे की रेहड़ी लगाते हो ।स्कूल क्यों नहीं जाते ?"शिवानी ने सड़क किनारे रेहड़ी लगाए 15-16 साल के लड़के से कहा । "बस दीदी, अपनी हालत कुछ ऐसी ही है ...!"" मैं एक संस्था चलाती हूँ । यहाँ गरीब बच्चों के लिए कक्षाएं चलाई जाती हैं ।तुम भी आ सकते हो ।"" दीदी, फिर गोलगप्पे कौन बेचेगा ? घर कैसे चलेगा ?""क्यों, तुम्हारे माता -पिता नहीं हैं क्या ?” "हैं दीदी, भाई, बहन भी है ।पर घर की जिम्मेदारी मुझ पर है ।वैसे भी पढ़ -लिख कर क्या करूँगा ?”"पढ़ - लिख कर तुम्हारे हालात सुधर सकते है ।"सुनिए दीदी --" मेरे बापू चपरासी थे ।मामूली तनख्वाह थी । हम दो भाई, एक बहन हैं ।"लड़के ने गहरी सांस लेते हुए आगे कहा -"बापू ने बड़ी मेहनत से भाई, बहन को पढ़ाया ।कर्ज़ा लिया ।"लड़का फुर्ती से गोलगप्पे की प्लेट परोसते हुए आगे बोला -- "दीदी, भाई अफसर बन पत्नी को साथ ले विदेश निकल गया ।बहन बड़े स्कूल की प्रिंसिपल हो गयी।"" क्या वो लोग, तुम्हें व माता -पिता को नहीं पूछते ?"शिवानी की जिज्ञासा बढ़ रही थी । " भाई ने कभी पलट कर न देखा ।बहन व उसके पति को चपरासी पिता, अनपढ़ मां और सिर्फ छठी पास भाई धब्बा लगते हैं ।कभी मिलने न आती । "" अब बापू का काम नहीं रहा ।मां बीमार रहती है ।मैं घर चलाउ या पढ़ूँ ?”" लेकिन बिना पढ़ाई -लिखाई के जीवन भर गोलगप्पे ही बेचते रह जाओगे ।""क्या, तुम्हारी इच्छा न होती कि बड़ा आदमी बनो ?"शिवानी ने आख़िरी दलील दी ।लड़का ज़ोर से हँसा " क्या दीदी ! बड़ा आदमी कौन ?"" वो सूट- बूट वाला ! जो पढ़ - लिख कर माँ -बाप से किनारा कर लेता है !"
परिचय-
डॉ संगीता गांधी ।
शिक्षिका व लेखिका
पति .. श्री विनोद गांधी ।
WZ 76, फर्स्ट फ्लोर, लेन 4, शिव नगर, नई दिल्ली 58 .
फोन व् वाट्सएप्प no-9716936354 .
ईमेल --rozybeta@gmail.com
जन्म तिथि -17 .8 .70 .
शिक्षा - बी ए ऑनर्स, एम् ए हिंदी ।
एम् फिल, पी एच डी ।
शोध कार्य --1 पाली -सम्वेदना और शिल्प ।
2 अमृतलाल नागर जी के उपन्यासों में सांस्कृतिक बोध ।
प्रकाशन --
शैल सूत्र, निकट, ककसाड़, शेषप्रश्न, अट्टहास, पर्तों की पड़ताल, सत्य की मशाल, बुन्देलखण्ड कनेक्ट, नारी तू कल्याणी, प्रयास, अनुभव, अनुगुंजन, सन्तुष्टि सेवा, पर्यटन प्रणाम, सलाम दुनिया आदि पत्रिकाओं में कविता, लघुकथा, व्यंग्य, लेख प्रकाशित ।
नए पल्लव 2 संग्रह में लघुकथाएं प्रकाशित
मुसाफिर साझा काव्य संग्रह
सहोदरी सोपान 4 काव्य संग्रह
सहोदरी सोपान 4 लघुकथा संग्रह ।
धन्यवाद।