Vyang in Hindi Comedy stories by Sangeeta Gandhi books and stories PDF | व्यंग्य

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व्यंग्य

व्यंग्य रचनाएँ

डॉ संगीता गांधी

न्यूज

“धनिया ओ धनिया !”

भैरो ने दरवाजे से ही आवाज़ लगाई ।

“आ रही हूं, काहे चिल्लाते हो !

हाँ बोलो, क्यों पुकार रहे थे ?”

“धनिया तू तो चौथी कक्षा तक पढ़ी है, तो कुछ बातों का जवाब दे । हम ठहरे अनपढ़, हमें इन बातों का मतलब जानना है । ”

“पूछो --का पूछना है ?”

“हम पंचायत घर गए थे, वहां के बड़े टीवी पर न्यूज़ वाला बाबू बोल रहा था “ अब इमरजेंसी “ आने वाली है ! इ इमरजेंसी का होता है ? “

“ बब्बी के बापू इमरजेंसी कुछ भी होता हो ! पर हम कहे देते हैं कि इस बार हम घर मा किसी को न रखेंगे । ”

“का कह रही है ? घर में रखने की बात कहां से आई ?”

“तो सुनो, पिछली बार वो तुम्हरा न्यूज वाला बाबू बोला था “ बाढ़ “ आयेगी ! “

“तब पड़ोस के गांव में बाढ़ आई थी । तुम्हरी मौसी एक महीना आ कर रही थी यहां । ”

“इस बार ई ‘ इमरजेंसी ‘ आयी तो हम किसी को न रखेंगे, कहे देते हैं । ”

“अच्छा न रखना । तो ई का मतलब की इमरजेंसी कौनो बिपदा होती है “ !

हाँ ओर नहीं तो का --” इ न्यूज वाले बिपदा ही तो खड़ी करते हैं “ दूसर कोई काम तो है न इनको ! “

“अच्छा धनिया तू बहुत समझदार है । अब इ बता -- ये अभिव्यक्ति की आजादी के होवे ?”

“अरे बब्बी के बापू ये भी न पता --अरे पिछले सावन तुम हमको उ सिनेमा दिखाए थे न, जिसमें उ हीरोइन का नाम होता है --अभिव्यक्ति ! उ जो मटक मटक के नाचती रही, कम कम कपड़ा में ठुमकती रही --वही तो उसकी आजादी थी ! मतलब --- अभिव्यक्ति की आजादी !”

“वाह ! धनिया बहुत बढ़िया, इ का मतलब है उस हीरोइन अभिव्यक्ति का आजादी खतरे में है । ”

न्यूज वाला कह रहा था कि “ अभिव्यक्ति की आजादी खतरे में है !”

हां तो सही तो कह रहा --” अब इतना कम कम कपड़ा में नाचेगी मटकेगी तो लोग तो ऊंगली उठाएंगे न ! तो आजादी तो खतरे में होगी ही “ ।

“अच्छा ----

मैं जरा फिर पंचायत घर जाता हूँ --देखता हूँ “ अब न्यूज वाला बाबू क्या बोल रहा है !”

***

स्वभाव

"महाराज, मैं अब इन आत्माओं को नहीं सम्भाल सकता !"बहुत बवाल करती हैं । क्या हुआ ? -- स्वर्ग में आत्माओं का विभाग देखने वाले प्रधान सेवक ने यमराज से कहा । एक किसी वामपंथी की आत्मा है --"सारा दिन क्रांति -क्रांति करती है ! उससे प्रभावित हो कर सारी आत्माएं धरने पर बैठ रही थीं । बड़ी मुश्किल से समझाया । "किसी दक्षिण पंथी की आत्मा है -" खुद को बड़ा राष्टवादी कहती है ! कोई ज़रा सा कुछ कह दे तो उसे पाकिस्तान भेजने को उतावली हो उठती है !"कुछ स्त्रियों की आत्माएं हैं ! इन्हें मर कर भी चैन नहीं । ज़रा देखिए इनकी बातें ----" हाय नीली ड्रेस बड़ी हॉट लगती है । उस सीरियल में हीरोइन की नीली साड़ी गज़ब थी । "" हां हां ठीक थी । मैं वो सीरियल कम देखती थी । मेरी सास का फ़ेवरिट था !इसलिए मेरा तो हो नहीं सका !"" अरे मेरी सास हर चीज़ की नकल करती थी । मेरी नेलपॉलिश, मेकअप, पर्स सब पर नज़र थी उसकी !""मेरी सास तो मुझसे भी ज़्यादा पार्लर जाती थी !"सासों की आत्माएं कहाँ पीछे हैं ----" मैं तो बहुत पूजा पाठ करती थी, हर दूसरे दिन व्रत मेरा नियम था । किसी को कुछ न कहती थी । न कभी बहु से दहेज मांगा, न उसे बेटा पैदा करने को कहा !"" रहने दो गीता की आत्मा --मैं तुम्हारे ही मोहल्ले में रहती थी । सब जानती हूं तुम्हारी करतूतें ! सत्संग में सबकी चुगलियां करना तुम्हारी पूजा थी ! व्रत में ठूस ठूस कर फल खाना सब पता है । और जो बहु को लम्बी गाड़ी के लिए एक बार घर से निकाला था ! एक पोती के बाद चुपचाप दूसरे शहर जा कर बहु का गर्भपात कराया !---सारा मोहल्ला जानता था तुम्हारे कर्म !""हां हां तुम तो शुरू से ही मुझसे जलती थी " " दे मुक्का, बाल पकड़ कर गुथमगुथा " --महाराज बड़ी मुश्किल से इन सास आत्माओं को अलग किया।इनके अलावा और नमूने देखिए ---" सरकारी अफसर की आत्मा है - जब तक किसी चीज़ पर वजन न रखो ! सीधे मुंह बात न करती !"" वकील की आत्मा आप पर ही केस करने को उतावली है " " ट्रक ड्राइवर की आत्मा ज़ोर ज़ोर से कान फाडू पंजाबी गाने बजाती है "!" ठेकेदार, सी ए, इंजीनियर इन सबकी आत्माएं रिश्वत, भ्र्ष्टाचार के अलावा और किसी मुद्दे पर बात ही न करतीं "!" एक पत्रकार जी की आत्मा तो जहां फायदा देखती है -उस पक्ष का गुणगान गाने लगती है !"" कुछ शिक्षकों की आत्माओं को तो ट्यूशन की महिमा गाने से फुर्सत नहीं है । हां एक हिंदी शिक्षक की आत्मा एक कोने में पड़ी रहती है, उसे कोई नहीं पूछता । "" कुछ प्रकाशको की आत्माएं यहां भी सहयोग राशि पा जाने का सपना देख रही हैं । साहित्यकारों की आत्माएं फंसती दिख रही हैं । ये बात ओर है कि उनकी रचनाएँ क्या है ? ये वो स्वयम्भू लेखक भी न समझ पाएंगे "!महाराज ने सारी रामकहानी सुनी --" सुनो सेवक, एक नेता जी मर कर आ रहे हैं । शायद वो स्थिति सम्भाल पाए "। आइए नेता जी आपकी आत्मा का स्वागत है -- "क्या आप सभी आत्माओं को कंट्रोल कर पाएंगे ?"हा हा !नेता जी ज़ोर से हंसे " मेरी आत्मा ! वो तो मैंने कबकी बेच दी "!!!

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आदमी की यात्रा

एक दिन स्वर्ग में एक प्रतियोगिता हुई । विजयी व्यक्ति को दो दिन के लिए धरती घूमने का पुरस्कार मिलना था । 17 शताब्दी का एक व्यक्ति विजयी हुआ । उसने अपनी यात्रा में अपना देश भारत देखने का निश्चय किया । किसी से उसने पूछा यहां के राजा कहाँ बैठते हैं । जवाब मिला --" संसद " !आदमी अपनी यात्रा के पहले पड़ाव पर संसद पहुंचा ...उसके समय में राजाओं के दरबार होते थे -जहां बस राजा की वाह वाह होती थी । कोई बोला तो सर धड़ से अलग ! अब के राजा कैसे होते हैं ? वो ये देखना चाहता था इसलिए संसद पहुंचा । संसद पहुंचा देखा ---भांति भांति के दलों के भांति के लोग । एक नेता ...तू भरष्ट है!!दूसरा ..चल तूने भी तो " पुल निर्माण " में पैसा खाया !हमारा "भरष्टाचार "हजारों का था ! तेरा करोड़ों का है !!!दूसरा नेता ....तुम साम्प्रदायिक हो !तीसरा ...तुम जातिवादी हो !बीच बीच में आवाज़ आ रही थी ..."कृपया बैठ जाइये "बैठ कोई नहीं रहा था .....सब चिल्ला रहे थे .......आदमी देख रहा था ! सोच रहा था ....."इंसान बंदर से विकसित हुआ था ! दुबारा बन्दर कैसे बन गया !!"..वो सोच रहा था कि स्वर्ग में सब कहते थे 17 शताब्दी से 21वीं शताब्दी आ गयी है । धरती पर बड़ा विकास हुआ है । हिन्दुस्तान विश्व का सबसे बड़ा "लोकतंत्र " बन गया है । ये "विकास है "? कल भी राजा लड़ते थे, तब लड़ाई मैदानों में होती थी । आज तो "लोकतंत्र के मंदिर " में हो रही है । "गालियों से " ? आदमी यात्रा पर आगे बढ़ा ---रात हो चुकी है । "संसद " अब बन्द है । आदमी ने नया दृश्य देखा -------...."....सुबह जो नेता एक दूसरे को गालियां दे रहे थे, लड़ रहे थे .......एक साथ बैठे है ! " आदमी देख कर हैरान है "...सब मस्त है ...खा पी रहे है ......जोर जोर से हंस रहे हैं .....'किस पर' ?? ----देश की जनता पर ---- जो इन नेताओं के कारण लड़ती है ! इनकी बातों को " सिद्धान्त" की लड़ाई मानती है .."..!..नेता हंस रहे है ....हाहाहाहा ..कहते है ...." हम सब मस्त है !ऐशपरस्त हैं और जनता जबरदस्त 'कम्बख्त ‘ है !”आदमी अपनी यात्रा छोड़ वापिस स्वर्ग लौट गया -- वो सोच रहा है क्या "अब हिंदुस्तान कम्बख़्त है ?"

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