Aaina in Hindi Short Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | आइना

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आइना

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आशीष कुमार त्रिवेदी

गौतम देश के माने हुए चित्रकारों में था। देश विदेश की जानी मानी आर्ट गैलरियों में उसकी कलाकृतियों का प्रदर्शन होता था। बड़े बड़े उद्योगपति, राजनेता, फ़िल्मी हस्तियां एवं अन्य गणमान्य लोग उसकी पेंटिंग्स बड़े चाव से खरीदते थे। कला के क्षेत्र में उसका बहुत सम्मान था। इस स्थान पर पहुँचने के लिए उसने कड़ी मेहनत की थी।

उसका जन्म एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। माता पिता दोनों स्कूल टीचर थे। साधारण कमाई में घर का खर्च बहुत मुश्किल से चलता था। तीन भाइयों में गौतम सबसे बड़ा था। अतः उनकी इच्छा उसे इंजीनियर बनाने की थी। ताकि एक अच्छी नौकरी कर वह घर की बदहाली दूर कर सके। किंतु उसका झुकाव तो बचपन से ही कला की तरफ था। वह एक पेंटर बनना चाहता था। अतः सबकी नाराज़गी के बावजूद उसने फाइन आर्ट्स में दाखिला लिया।

कॉलेज से निकलने के बाद अपनी जगह बनाने के लिए वह कड़ी मेहनत करने लगा। उसके विचारों में एक ताज़गी थी। जो उसकी पेंटिंग्स में भी झलकती थी। इसलिए हर कोई उन्हें पसंद करता था। वह भी पूरी मेहनत और लगन के साथ काम करता था। जल्द ही उसकी बनाई पेंटिंग्स का प्रदर्शन आर्ट गैलरियों में होने लगा। वह सफलता की सीढ़ियां चढने लगा।

दौलत और शोहरत उसके कदम चूमने लगी। बहुत से कलाकारों के लिए वह एक आदर्श था। अक्सर कई उभरते चित्रकार उससे मिलने आते थे। सभी के लिए उसके दरवाज़े खुले थे। वह उन सभी को आवश्यक परामर्श देकर उनका उत्साहवर्धन करता रहता था।

इन्हीं दिनों उसकी मुलाकात रेहान से हुई। रेहान एक गरीब घर का लड़का था। वह कला का पुजारी था। दूसरों की तरह वह भी गौतम को अपना आदर्श मानता था। रेहान एक बहुत अच्छा चित्रकार था। किंतु परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी ना होने के कारण वह अपने सपने को सच करने में असमर्थ था। गौतम ने उसकी आगे बढ़ने में सहायता की। उसे देश के प्रतिष्ठित फाइन आर्ट्स कॉलेज में प्रवेश दिलाया। रेहान भी अपनी मेहनत और लगन से आगे बढ़ने लगा।

गौतम जिस मकाम पर था वहां बड़े बड़े प्रतिष्ठित लोगों तक उसकी पहुँच थी। महिलाओं में वह बहुत लोकप्रिय था। हर बड़ी पार्टी में उसकी उपस्तिथि अवश्य होती थी। अब अक्सर उसे किसी नए कलाकार की प्रदर्शनी के उद्घाटन के लिए बुलाया जाता था। देश में जब विश्व के माने हुए चित्रकारों द्वारा चित्रकला पर एक सेमीनार का आयोजन हुआ तो उसने भारत का प्रतिनिधित्व किया। दिन पर दिन उसकी प्रतिष्ठा में वृद्धि हो रही थी। अतः धीरे धीरे उसमें अहंकार आ गया। अब वह पहले की तरह अपनी पेंटिंग्स पर मेहनत नहीं करता था। उसे गुमान था की वह जो भी बनाएगा वह लोकप्रिय हो जाएगा। अब उसकी पेंटिंग्स में वह बात नही होती थी जिसके लिए वह जाना जाता था। अतः धीरे धीरे लोगों में उसके काम की लोकप्रियता घटने लगी।

रेहान जब कॉलेज से बहार आया उसने अपना स्थान बनाने के लिए कड़ा परिश्रम किया। उसके काम में लोगों को एक नवीनता का बोध होता था जैसा वो कभी गौतम के काम में देखते थे। रेहान की लोकप्रियता दिनों दिन बढ़ने लगी। हर तरफ उसके काम की चर्चा होने लगी। रेहान गौतम की बहुत इज्ज़त करता था। वह जानता था कि जिस मकाम पर वह है उसका श्रेय गौतम को ही जाता है। यदि गौतम ने उसकी सहायता ना की होती तो प्रतिभा होते हुए भी वह यह सब कुछ हासिल ना कर पाता।

गौतम ऊपर से तो कुछ नहीं कहता था लेकिन रेहान की ये तरक्की उससे बर्दाश्त नहीं हो रही थी। वह स्वयं को उस वट वृक्ष की भांति देखता था जिसके साये में छोटे पेड़ पनपते तो हैं किंतु उससे अधिक ऊंचाई नहीं प्राप्त करते हैं। लेकिन रेहान अपनी मेहनत व प्रतिभा के दम पर अब उसकी छाया से बाहर आ गया था। अब उसकी अपनी एक अलग पहचान थी। लोग उसे पलकों पर बैठाने लगे थे।

गौतम का अहंकार अपने आगे रेहान की इस तरक्की को देख नहीं पा रहा था। अहम् ईर्ष्या को जन्म देता है जो क्रोध में बदल जाता है। क्रोध में व्यक्ति अपने सोंचने की शक्ति खो देता है। गौतम के साथ भी ऐसा ही हुआ। रेहान की बढ़ती हैसियत उसके दिल में खंजर की तरह चुभती थी। रात दिन वह रेहान को पीछे ढकेलने के बारे में ही सोचता रहता था। रेहान से बदला लेने के लिए उसने जुर्म की दुनिया के लोगों से संपर्क साधा। एक बार रेहान जब घर लौट रहा था कुछ लोगों ने उस पर हमला किया जिसमे रेहान का दाहिना हाथ कलाई से कट गया। वह दुःख के सागर डूब गया।

गौतम रेहान को रास्ते हटाने में सफल हो गया था। वह खुश था कि अब उसे चुनौती देने वाला कोई नही था। किंतु यह प्रसन्नता अधिक समय तक नही रही। धीरे धीरे एक अजीब से खौफ ने उसे घेर लिया था। अक्सर उसे ऐसा लगता था जैसे कोई उसके पीछे है। जैसे कोई उससे कह रहा हो 'तुमने ठीक नही किया। भरी महफ़िल में वह डर जाता था और कुछ ऐसा कर देता था जो हास्यास्पद होता था। उसने पार्टियों में जाना बंद कर दिया। अब वह घर में ही रहता था। अकेलेपन से वह और घबरा उठा। उसकी स्तिथि और बिगड़ गई। उसका अंतरमन उसे कचोटने लगा। वह इस स्तिथि से छुटकारा पाना चाहता था।

उसने बहुत दिनों से कोई पेंटिंग नहीं बनाई थी। अतः उसने ईज़ल पर कैनवास चढ़ाया। किंतु जैसे वह किसी सम्मोहन की गिरफ्त में आ गया हो। उसके हाथ तेज़ी से चलने लगे। लगभग दो घंटों तक बिना रुके वह काम करता रहा। जब उसका सम्मोहन टूटा तो उसने देखा कि कैनवास पर एक बहुत वीभत्स चेहरा बना है। वह डर गया। यह बिल्कुल उस व्यक्ति का चेहरा था जो उसका पीछा करता था। उसे लगा जैसे कैनवास आइना बन गया हो और उसी के ह्रदय की कुरूपता दर्शा रहा हो। अपना यह रूप उससे देखा नही जा रहा था। उसकी धमनियों में रक्त तेज़ी से बहने लगा। वह मूर्क्षित होकर गिर गया।

जब वह होश में आया तो अस्पताल में था। उसे पक्षघात हुआ था।

कुछ दिन अपने दुःख से लड़ने के बाद रेहान ने उस पर विजय पा ली। अब वह अपने बाएं हाथ से कैनवास पर सुंदर रंग भरता था।

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