वो जेहादी लड़की
लाल बत्ती पर जब भी गाड़ी रुकती थी मैं अक्सर उसको देखता था, आँखों से अंधा, दोनों हाथ कंधे से कटे हुए और गले में एक डिब्बा लटकाए हुए, गाड़ियों के रुकते ही बारी-बारी से सबके पास जाकर बड़ी ही करुण आवाज में संबोधित करता और लोग उसके डिब्बे में 10-10 रुपए डालते चले जाते। उसके शरीर पर और पैरों पर कुछ घाव बने हुए थे जो खुले छोड़ रखे थे, शायद उनको हरा रखने के लिए खुरच दिया जाता होगा। उस दिन उसी रास्ते से मुझे दूसरी बार जाना पड़ा। लाल बत्ती के कारण मैंने गाड़ी रोक ली थी, तभी आवाज आई, ‘अल्लाह के नाम पर कुछ दे दो, खुदा तुम्हें खुश रखेगा, अपने बच्चों की खैरियत के लिए कुछ खैरात दे दो, बाबू जी बीबी जी अल्लाह तुम्हारी जोड़ी बनाए रखे, तुम्हारे बच्चों को सलामत रखे, इस अंधे अपाहिज भिखारी को कुछ तो दे दो, ये अंधा अपाहिज आपको दुआएं देगा।’
मैंने देखा उसका डिब्बा खाली था, जबकि दो घंटे पहले जब मैं इस रास्ते से गया था तब उसका डिब्बा दस दस रुपए के नोटो से भरा हुआ था। मैंने उससे पूछा, “भैया अभी दो घंटे पहले तो तुम्हारा डिब्बा पूरा भरा हुआ था, अब यह खाली कैसे हो गया?” मुझे उससे बात करते देख सड़क किनारे खड़ा एक हट्टा कट्टा व्यक्ति मेरे पास आकर बोला, “बाबू! आपको शर्म नहीं आती, एक अंधे अपाहिज भिखारी से इस तरह की बातें करते हो, आपने देना तो कुछ है नहीं, बेकार में उसका धंधे का समय क्यों खराब कर रहे हो।”
मैं समझ गया कि यह उस माफिया का आदमी है जो इनको भिखारी बनाकर इनसे भीख मँगवाता है। उसके सामने तो मैंने चुप रहने में ही भलाई समझी लेकिन मैंने पक्का इरादा कर लिया था, “मैं इस भिखारी का पीछा करके पूरा पता लगाऊँगा कि इस अंधे अपाहिज भिखारी का भीख में मिलने वाला इतना पैसा कहाँ जाता है, कौन है वे लोग जो इस तरह अपाहिजों का फायदा उठा रहें हैं।”
उस दिन मैं उसका पीछा करने के विचार से वहीं उसी चौराहे पर छुप कर उसका वहाँ से जाने का इंतज़ार करने लगा। वह भिखारी उसी चौराहे पर दस बजे तक भीख मांगता रहा, जब सड़क पर वाहनों की भीड़ कम हो गयी तो एक गाड़ी आकर वहाँ रुकी और उस भिखारी को उसमे चढ़ा लिया। इस गाड़ी मे और भी कई भिखारी थे जो सब अपाहिज और लाचार थे।
मैंने उस गाड़ी का पीछा किया, गाड़ी काफी देर बाद सुनसान जगह पर बने हुए एक मदरसे के अंदर चली गयी। मैंने अपनी गाड़ी वहाँ से थोड़ी दूर पेड़ों के पीछे छुपा कर खड़ी कर दी और किसी तरह मदरसे में जाने का प्रयत्न करने लगा। मैंने सोचा अगर मैं सामने के दरवाजे से अंदर गया है तो मेरे लिए खतरनाक हो सकता है, अतः मैं मदरसे का कोई गुप्त रास्ता ढूँढने लगा।
पीछे की दीवार फांद कर धीरे से मैं मदरसे के अंदर दाखिल हो गया, मदरसा क्या वह तो पूरा एक किला था, जहां पर सैंकड़ों लोग उस सफ़ेद दादी बिना मूंछ वाले, सिर मुंडे, सफ़ेद पोशाक धारी ऊंचे पाजामे वाले मौलवी की बात सुन रहे थे। बीच बीच में कोई कुछ पूछता था तो वह उस मौलवी को मसूद मियां कहकर पुकारता था। मसूद मियां ने सभी सरगनाओं को बैठक में बुलाया हुआ था और सभी को संबोधित करके कह रहा था, “तुम सब जिहाद के काम में लगे हो, जिहाद का काम अल्लाह का काम होता है, अगर जिहाद का काम करते वक़्त तुम्हें कुछ हो जाता है तो अल्लाह तुम्हें जन्नत देगा, जहां पर तुम्हें भोगने के लिए बहत्तर हूरें मिलेंगी एक से एक बढ़कर खूबसूरत और अल्लाह ताला तुम्हें उन हूरों को भोगने की ताक़त भी अता करेंगे।”
तभी वह अंधा अपाहिज भिखारी खड़े होकर पूछने लगा, “क्या मुझे भी मिलेंगी बहत्तर हूरें?” मसूद ने खुश होकर कहा, “हाँ इमरान, तुम एक सच्चे जिहाड़ी हो, तुमने आज तक भीख मांग कर काफिरों की जेब से काफी पैसा निकलवाया है। काफिरों को तो पता भी नहीं कि जो पैसा वो तुम पर दया दिखा कर तुम्हें देते हैं, उसी पैसे से हमने उनकी मौत का समान खरीदा है। तुम्हारे जैसे हजारों की तादात में हमारे जिहादी इस शहर के चप्पे चप्पे पर रहकर भीख भी मांग रहें हैं और पूरे शहर की गतिविधिओं के बारे में सूचना भी देते रहते हैं, हमारी तरफ से ऐसे सभी जेहादी भाइयों को शुक्रिया अदा करना।”
भिखारियों का शुक्रिया अदा करके मसूद मियां ने फल सब्जी वालों को खड़ा किया और उनके द्वारा जिहाद के लिए जमा किए गए पैसे का हिसाब लेकर उन्हे एक बोतल दवाई की दी। सबको दवाई की बोतल और एक एक इंजेक्शन मिल जाने के बाद मसूद ने एक बोतल अपने हाथ में लेकर उसका ढक्कन खोला और उसमे से एक इंजेक्शन में दवा भर ली। अब मसूद ने दाहिने हाथ में इंजेक्शन लिया एवं बाए हाथ मे एक सेब उठाया, सेब में इंजेक्शन की पूरी सुई घुसा कर थोड़ी सी दवा उसमे छोड़ दी और सबको बताया कि तुम सब देख लो, समझ न आए तो समझ लो, अब तुमने फल सब्जी बेचने से पहले उनमे ये दवा वाला इंजेक्शन लगाना है और इंजेक्शन लगे फल सब्जी काफिरों के मोहल्ले में बेचने हैं। यह दवाई फल सब्जी के साथ काफिरों के अंदर जाकर उन्हे नपुंसक बना देगी, जिससे वे आगे से बच्चे पैदा करने लायक ही नहीं रहेंगे, इस तरह काफिरों की जनसंख्या कम होती चली जाएगी, बाकी हमारे जवान उनकी लड़कियों को बरगलाने में लगे हैं, यह हमारा लव-जिहाद होगा। हमारे जवान लड़के काफिरों के मोहल्ले में कबाड़ी बनकर, फेरी वाले बनकर या स्कूल कॉलेज के बाहर खड़े होकर काफिर हिंदुओं की लड़कियों को बरगला रहे हैं, काफिरों में जब लड़कियां ही नहीं बचेंगी, फिर शादी किससे करेंगे और बच्चे कैसे पैदा करेंगे। लव जिहाद और नपुंसकता उनकी आबादी कम कर देगी।
“अनवर मियां ने तो कमाल ही कर दिया,” इतना कहने पर अनवर मियां खड़े हो गए, “मोहल्लों में कबाड़ी का काम करता था और अब तक पाँच हिन्दू लड़कियों को बरगला चुका है। पाँचवी लड़की को अपने साथ लेकर आया है उसको मानव बम बनाकर अफगानिस्तान भेज रहे हैं, जहां उसने भारतीय दूतावास में घुस कर खुद को बम से उड़ा देना है और वहाँ उपस्थित सभी काफिरों को दोज़ख में भेजना है।”
सरिता आज शाहीदा बनकर मानव बम के रूप में जिहादी की भीड़ के बीच खड़ी थी और मसूद कह रहा था, “देखो हमारे लड़ाको का कमाल जो उन्ही की लड़की मानव बम बनकर उन काफिरों को ही मौत के घाट उतार देगी।”
सरिता एक मध्यम वर्गीय परिवार की लड़की थी, माँ-बाप की इकलौती संतान। सुबह सरिता को स्कूल भेजकर माँ-बाप दोनों भी अपने अपने काम पर चले जाते थे। दोपहर बाद स्कूल से निकल सरिता सीधे घर पहुँचती थी। कच्ची उम्र की ग्यारहवी मे पढ़ने वाली सरिता जिसको राह भटकाना आसान था। अनवर, जो एक जिहादी था, सदैव अपने शिकार की तलाश में रहता था, माथे पर तिलक लगाकर स्कूल के सामने खड़ा रहता। सरिता उसे एक आसान शिकार लगी तो वह सरिता का पीछा करने लगा। अपनी रेहड़ी लेकर उसके पीछे पीछे उसकी गली तक आता, गली का फेरा लगाता फिर कुछ देर तक सरिता के घर के सामने खड़ा रहता। सरिता कई बार छज्जे पर आकर देखती और फिर अंदर चली जाती। अनवर अपना नाम राजू बताता था तो सब लोग उसे हिन्दू ही समझते थे। दोपहर में गली सुनसान होती थी, यह अनवर के लिए एक शुभ संकेत था।
एक दिन गली में जब कोई भी घर से बाहर नहीं था अनवर ने सरिता के घर का दरवाजा खटखटाया, सरिता ने छज्जे पर आकर देखा तो अनवर बोला पानी पीना है, सरिता ने नीचे आकर दरवाजा खोल दिया, बाहर आँगन में नल लगा था उसी तरफ इशारा करके दूर खड़ी हो गयी, लेकिन अनवर के इरादे तो कुछ और ही थे। मौका पाते ही अनवर ने सरिता को अपनी बाहों में भर लिया और उसके पूरे शरीर को अपने शरीर से चिपका कर ज़ोर से अपनी बाहों मे बीच भींच लिया, उसकी आँखों में आँखें डाली और अपने होठ उसके होठों पर रखे और क्षण भर ऐसे ही सरिता को अपने साथ चिपका कर खड़ा रहा।
अप्रत्याशित घटित होने वाली इस घटना से सरिता थोड़ी सकपका गयी और उसने स्वयं को अनवर यानि राजू के बंधन से मुक्त किया। अनवर अब जा चुका था लेकिन सरिता को एक ऐसी स्थिति में छोड़ गया था जिससे वह चाहकर भी निकल नहीं पा रही थी। अचानक प्रथम बार एक पुरुष का स्पर्श उसको बार बार बेचैन कर रहा था, वह पूरी रात सो न सकी, सुबह होने की प्रतीक्षा करती रही, स्कूल जाने की जल्दी थी और मन में इच्छा थी कि स्कूल के बाहर खड़ा राजू (अनवर) वहाँ मिलेगा, उससे मिलकर आज मैं अपने मन की बात कह दूँगी।
सुबह उठकर सरिता जल्दी जल्दी तैयार होकर स्कूल गयी लेकिन राजू नहीं आया, उदास मन से घर आई, खाना भी अच्छा नहीं लग रहा था, बिना खाये ही छज्जे पर खड़ी रही लेकिन राजू नहीं आया, शाम हो गयी, मम्मी पापा भी काम से वापस आ गए लेकिन सरिता को तो राजू की प्रतीक्षा थी जो कि नहीं आया। सरिता उदास होकर अपने कमरे में अंधेरा करके बैठ गयी और सोचती रही, आज उसे राजू के बिना अपना जीवन, अपना घर और यह पूरी दुनिया बेकार लग रहे थे। तीन चार दिन तक राजू न ही स्कूल के गेट पर आया और न ही गली में, सरिता रोज इंतज़ार करती और फिर उदास होकर अपने कमरे में जाकर बैठ जाती। अब उसका पढ़ाई में भी बिलकुल मन नहीं लग रहा था। टी वी भी नहीं देखती, मम्मी पापा अगर पूछते तो कह देती, “मैं पढ़ रही हूँ।”
पांचवे दिन राजू सुबह सुबह सरिता के स्कूल के गेट पर आया और छुट्टी के बाद मिलने को कह कर चला गया। सरिता को पूरा दिन काटना मुश्किल हो गया और वह छुट्टी होने से पहले ही स्कूल से बाहर आ गयी।
“राजू! तुम कहाँ चले गए थे, मेरा तो सोच सोच कर बुरा हाल हो गया, मुझे पता नहीं क्या हुआ है, मैं तुम्हारे बिना रह नहीं सकती।” सरिता ने राजू से मिलते ही कहा। राजू बोला”, “सरिता! मेरा भी यही हाल है, मैं तुम्हें हमेशा के लिए अपनी बनाने का प्रबंध करने गया था, तुम यह एक लाख रुपए संभालो और जल्दी यहाँ से दूर मेरे साथ चलो।” सरिता ने एक लाख रुपए की गडडी अपने स्कूल बैग में रखी और राजू (अनवर) के पीछे पीछे चल पड़ी। राजू उसे एक मस्जिद में ले गया और बोला, “देखो सरिता, हम धर्म बदलकर अभी शादी कर लेते हैं, तुम यहाँ बैठो, मैं मौलवी साहब को लेकर आता हूँ।” राजू सरिता को वहाँ बैठाकर मौलवी साहब से बातें करने चला गया, राजू ने मौलवी को सारी सच्चाई बता दी, मौलवी साहब बड़े खुश हुए और उन दोनों का निकाह करवा दिया। मौलवी ने कहा, “आज से तुम्हारा नाम अनवर और लड़की का नाम शाहीदा हो गया।”
सरिता को अब घर की याद आ रही थी, उसके मम्मी पापा का घर आने का समय निकट आ रहा था, उसने राजू से कहा, “राजू, अब मैं अपने घर जाऊँगी नहीं तो मेरे मम्मी पापा मुझे घर पर न पाकर परेशान हो जाएंगे।” अनवर बोला, “हाँ सरिता, बस थोड़ी देर के लिए चल कर मेरे माँ बाप से मिल लो, उन्होने ही मुझे ये पैसे दिये थे, वे हमारा इंतज़ार कर रहे होंगे।”
सरिता अनवर के साथ चल पड़ी, अभी शाम होने में दो घंटे बाकी थे। अनवर सरिता को लेकर सीधा मदरसे में पहुंचा और वहाँ के मौलवी के सामने सरिता को ले जाकर खड़ा कर दिया। सरिता को अब लाग्ने लगा था कि उसके साथ धोखा हुआ है। खतरा भाँप कर उसने अनवर को ज़ोर से धक्का दिया और वहाँ से भागने की कोशिश करने लगी। अनवर को जैसे इसी मौके की तलाश थी और उसने बढ़कर सरिता (शाहीदा) को कस कर पकड़ा, उसकी आँखों में आँखें डाल कर उसे बुरी तरह फटकारने लगा और बोला”, “तलाक तलाक तलाक”
सरिता ने सोचा। चलो यहीं तक पीछा छूटा लेकिन यह उसकी गलत फहमी थी, अनवर तो जा चुका था, सरिता को शाहीदा बनाकर, और उस शाहीदा को क़ैद कर लिया गया, मसूद मिया बोले, “अब तुम मुसलमान बन चुकी हो, अब तुम्हें काफिरों में नहीं जाने देंगे।”
उस दिन से सरिता को क़ैद कर लिया गया और रोजाना हलाला के नाम पर उसका यौन शोषण होने लगा, कुछ भी कहती थी तो बेतहाशा मार पड़ती थी।
उस दिन उसकी रिहाई तय कर दी गयी, उसके शरीर पर बम बांध कर अफगानिस्तान भेजने की तैयारी कर ली गयी, जहां स्थित भारतीय दूतावास में उसने मानव बम बनकर भयंकर विस्फोट से पूरे दूतावास को उड़ाने के लिए सरिता से शाहीदा और अब जिहादी लड़की बनी सरिता को मैं पहचान गया था। हमारे ही मोहल्ले के शर्माजी की लड़की, सबने सोच लिया था कि वह मर गयी होगी लेकिन वह तो यहाँ पर क़ैद थी। मैं उसके अकेले होने का इंतज़ार करने लगा। जब वह अकेली हुई तो मैं उससे मिला, थोड़ी ही देर में सरिता ने मुझे सारा किस्सा कह सुनाया। यह सब जानकार मैं वहाँ से बच कर भाग निकला।
वहाँ से भागने के बाद मैं सीधा पुलिस कमिशनर के घर पर गया और जबर्दस्ती घर में घुस गया और रात में ही उन्हे जगाकर सारी बात बताई। मैं पुलिस कमिशनर साहब का शुक्रगुजार हूँ कि उन्होने मेरी बात पर विश्वास किया और उसी रात उस मदरसे पर रेड करके सबको पकड़ लिया, लेकिन मसूद बच कर भाग गया था। इस दौरान मदरसे से बहुत से जिहादी, क़ैद की गयी लड़कियां और बम, बन्दूकें व आधुनिक हथियार बरामद हुए।
सरिता को भी छुड़ा लिया गया था और उसे नारी-निकेतन भेज दिया गया था, जहां से बाद में उसके माँ बाप उसे अपने साथ घर ले आए। वो जिहाड़ी लड़की जिहाद पर जाते जाते किस्मत से बच गयी और वापस आकर लव-जिहाद का जीता जागता सबूत बनी जिसके ब्यान के आधार पर अनवर को उम्र क़ैद की सजा हुई। और जिहादियों की घिनौनी हरकतों के बारे में लोगों को पता चल सका।