लिफ्ट
खुशी सैफी
इस कहानी के पात्र व दर्शायी गयी घटनाएं काल्पनिक है। किसी भी प्रकार की वास्तविकता से मेल होना महज़ एक इत्तेफ़ाक़ हो सकता है। इस कहानी के ज़रिए लेखक किसी भी तरह से भूत प्रेत पर विश्वास करने के लिए बाध्य नही करता है, धन्यवाद।
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“टिक टिक.. टिक टिक.. टिक टिक..” बजते हुए अलार्म क्लॉक के बटन पर गहरी नींद से जागे अनिल ने जोर से हाथ मारा और करवट बदल कर फिर से सो गया। 7 बजे का वक़्त दिखती अलार्म क्लॉक हाथ लगने से टेबल पर औंधी जा गिरी और अपनी किस्मत समझ कर यूँ ही चुप पड़ी रही। रात देर से सोया अनिल नींद में ही अलार्म बंद कर के सो गया था। देर रात तक पूजा से फ़ोन पर झगड़ा होता रहा, रूठना मनना चलता रहा, और आखिर में अनिल ने पूजा को मना ही लिया था।
“ट्रिन ट्रिन” मोबाइल की घंटी से अनिल की आंखें खुली।
“हेलो”
“आज कम्पनी नही आ रहा क्या अनिल” दूसरी तरफ से आवाज़ आयी।
“आऊंगा.. क्यों” अनिल ने लेटे लेटे आंखें बन्द किये जवाब दिया।
“तो कब आएगा यार.. अभी तक सो रहा है क्या, मैं बस में बैठा तेरा इंतेज़ार कर रहा हूँ” अनिल की आवाज़ से शायद दूसरी तरफ अंदाज़ हो गया था कि अनिल अभी अभी नींद से जागा है।
“ओह शिट..” अनिल में घड़ी की तरफ देखा जो सवा 8 बजा रही थी तो आंखों में भरी नींद फ़ौरन धुवाँ हो गयी और छलांग मार कर उठ खड़ा हुआ “तू फ़ोन रख, मैं बस 15 मिनट में निकल रहा हूँ। अब तो दूसरी बस पकड़नी पड़ेगी” अनिल ने इतना कह कर मोबाइल बेड पर फेंका और बाथरूम में घुस गया। 15 मिनट के बाद वो अपने रूम को चाबी से लॉक कर के लिफ्ट की तरफ जा रहा था। लिफ्ट के पास पहुंच कर बटन दबाया पर लिफ्ट नही खुली।
“खुल जा यार.. अब क्या हो गया” अनिल खुद से बोलता बार बार ट्राय कर रहा था।
“लिफ्ट खराब हो गयी है” पास से गुजरते आदमी ने अनिल को बताया जो शायद इसी बिल्डिंग में रहता था।
“ओह.. ओके थैंक्स” अनिल ने सीढ़ियों की तरफ रुख किया। जल्दी जल्दी सीढ़ियां उतरता अनिल घड़ी की तरफ देख रहा था। पांचवीं मंज़िल से बिना लिफ्ट के नीचे जाना उसे थका दे रहा था। अभी तीसरी मंजिल की सीढ़ियों पर था कि उसे किसी के ज़ोर ज़ोर से खाँसने की आवाज़ आयी और सामने से एक 70 साल का बूढ़ा आदमी धीरे धीरे सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ आ रहा था।
“अंकल आप ठीक है” अनिल ने उस बूढ़े से पूछा जिसका खाँस खाँस कर बुरा हाल हो रहा था।
“हाँ बेटा मैं ठीक हूँ” बूढ़े ने थके थके लहज़े में कहा।
“कहाँ जाना है आपको, चलिये मैं आपके साथ चलता हूँ” अनिल उस आदमी की मदद के लिए आगे बढ़ा और ऑफिस भूल कर उसका हाथ पकड़ कर साथ चलने लगा।
“अरे बेटा, तुम कहाँ परेशान हो रहे हो.. बस चौथी मंजिल तक ही जाना है मैं चला जाऊंगा, ये तो रोज़ का काम है मेरा” बूढे आदमी ने चलते चलते कहा।
“आप रोज जाते हैं ?” अनिल ने सवाल किया।
“हाँ, रोज़ सुबह पार्क में बैठने जाता हूँ, इन बन्द घरों में मेरा दम घुटता है इसलिए ताज़ी हवा लेने रोज़ सुबह पार्क चला जाता हूँ, कितनी बार मैंने मिस्टर बंसल से कहा कि बिल्डिंग में लिफ्ट लगवा दें, पांच मंजिला है तो क्या हुआ हम जैसे बूढो को तो 4 सीढ़ी उतारना भी मुश्किल पड़ता है” उस आदमी में बिल्डिंग के मालिक नाम लेते हुए कहा।
“पर अंकल बिल्डिंग में लिफ्ट तो लगी हुई है, अभी 2 महीने पहले ही लगी है” अनिल ने बूढ़े आदमी की जानकारी बढ़ाई।
“लगी हुई है...???” बूढ़े आदमी ने चोंक कर पूछा।
“हाँ, वैसे मुझे आये तो अभी 1 महीना ही हुआ है पर मेरा दोस्त बता रहा था कि 2 महीने पहले ही लगी है लिफ्ट यहां” अनिल ने साथ चलते चलते कहा।
बूढ़ा आदमी अब चुप था और चौथी मंजिल आने पर बोला “शुक्रिया बेटा, मेरा घर आ गया, अब तुम जाओ.. तुम्हें देर हो रही होगी”
“हाँ आज मेरी आँख नही खुल पायी थी पर लेट होने का एक फायदा तो हुआ कि मैं आपसे मिला”
“हा हा हा.. बहुत अच्छा” बूढ़ा आदमी हँसने लगा जिस पर अनिल भी मुस्कुरा दिया।
अनिल उस आदमी को उसके फ्लैट के सामने छोड़ कर ऑफिस के लिए निकल गया।
अब रोज़ अनिल कुछ सवारे निकलता जिससे कि पार्क में उस बूढे आदमी से कुछ पल मिल सके। उस बूढ़े आदमी में अनिल को अपने दादा जी दिखते जो कुछ साल पहले गुज़र गए थे। बातों बातों में पता चला कि उनका नाम सुभाष है जो रिटायर्ड कर्नल है। एक बेटा है जो अपनी फैमिली के साथ अमेरिका में रहता है। बस ये दो बूढ़े पति पत्नी चौथी मंजिल पर अकेले रहते है और एक फुल टाइम काम वाली बाई साथ होती है।
रोज़ मिलते बातें करते 2 हफ्ते गुज़र गए। कर्नल साहब भी अनिल से खूब बातें बनाते और अनिल भी उन्हें अपने घर की और पूजा की बातें बताता और कुछ देर बातें कर के अनिल वक़्त पर ऑफिस के लिए निकल जाता। लिफ्ट ठीक हो जाने के बाद भी वो सीढ़ियों से ही आते जाते थे। जब अनिल लिफ्ट के चलने के लिए बोलता तो चुप हो जाते और चुप चाप सीढ़ियों से जाने लगते। अनिल को कुछ अजीब लगता पर उसने इस बारे में ज़्यादा बात करना सही नही समझा।
एक दिन अनिल रोज़ वाले वक्त पर पार्क पहुँचा तो वहां कर्नल साहब नही बैठे थे, कुछ देर अनिल ने वहीं बैठ कर इंतेज़ार किया कि हो सकता है किसी वजह लेट हो गए हो पर जब आधा घंटा गुज़र गया अनिल से रहा नही गया। वो सीधा उनके फ्लोर पर पहुंचा और डोर बैल बजायी “टिंग टोंग” दरवाज़ा एक बूढ़ी औरत ने खोला जो शायद कर्नल साहब की पत्नी थी।
“आंटी, कर्नल अंकल है ?” अनिल ने पूछा।
“बेटा वो...” बूढ़ी औरत कुछ चौकी।
“क्या नए रहने आये हो इस बिल्डिंग में” औरत ने सवाल किया।
“जी” अनिल ने छोटा सा जवाब दिया।
“बेटा.. कर्नल साहब को तो गुज़रे 3 महीने हो गए” बूढ़ी औरत ने दुखी होते हुए कहा।
“क्या.. पर.. ऐसा कैसे हो सकता है” अनिल बहुत ज़्यादा चोंक गया था।
“हाँ, 3 महीने पहले उन्हें हार्ट अटैक आया था जो जानलेवा साबित हुआ। कल उनका श्राद था, भगवान उनकी आत्मा को शांति दे” बूढ़ी औरत ने आंखों से बहते आँसू साफ किये।
“श्राद.. पर आपका बेटा तो अमेरिका में होता है” अनिल ने पूछा।
“कल वो अमेरिका से आया था अपने पिता के श्राद के लिए, अपने पिता की अचानक मौत का सुन कर उसका एक्सीडेंट हो गया था। काफी गहरी चोंटें आयी जिसकी वजह से उसे इंडिया आने में 3 महीने लग गये। पर बेटा तुम उन्हें कैसे जानते हो” बूढ़ी औरत ने पूछा।
“मैं..” अनिल को समझ नही आ रहा था कि पिछले दो हफ्ते की कहानी बताये या छुपाये।
“वो.. मेरे एक दोस्त ने बताया था कि कर्नल अंकल बहुत अच्छे आदमी है, तो इसलिए..” अनिल ने खोये खोये जवाब दिया।
“मैं चलता हूँ आंटी” अनिल कह कर मुड़ गया। सीढ़ियों से आया अनिल लिफ्ट की तरफ बढ़ रहा था।
उसके दिमाग मे उथल पुथल मची हुई थी। पिछले दो हफ्तों से वो एक भटकती आत्मा से बातें कर रहा था, एक आत्मा से रोज़ मिलता था। अपने दुख सुख बाँटता था पर अब उसे सीढ़ियों की तरफ देखने मे भी ख़ौफ़ आ रहा था। कुछ ही दिनों में उसने वो जगह छोड़ दी और दूसरी जगह जा कर रहने लगा पर जितने भी दिन अनिल इस बिल्डिंग में रह उसने सीढ़ियों की तरफ कभी रुख नही किया।
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