Rameshwari - 2 in Hindi Fiction Stories by vineet kumar srivastava books and stories PDF | रामेश्वरी ( भाग - २ )

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रामेश्वरी ( भाग - २ )

रामेश्वरी

(भाग - 2)

गतांक से आगे.....

दिन पंख लगाकर उड़ते जा रहे थे | चार महीने कब गुज़र गए, रामेश्वरी को इसका पता भी न चला | नागेंद्र के इलाज में काफी पैसा लग चुका था | कहते हैं न कि जब परेशानी आती है तो वह कुछ भी नहीं देखती | इधर नागेंद्र की यह हालत थी उधर उसकी माँ को हृदय का दौरा पड़ गया | वह नागेंद्र के अपाहिज पाँव को देखकर काफी दुखी रहती थीं और इसी दुःख का ही परिणाम था कि उन्हें यह दिल का दौरा पड़ा था | काफी पैसा खर्च करने और डॉक्टरों के काफी

प्रयास के बावजूद उन्हें बचाया न जा सका | कभी खुशियों से गुलज़ार रहने वाला यह घर आज मातम मनाता नज़र आता था | नागेंद्र बिस्तर पर लेटा अपनी गलतियों पर पश्चाताप करता रहता और रामेश्वरी से बार-बार अपनी गलतियों के लिए माफ़ी माँगता | उसके पिताजी ने तो उसके कमरे में ही आना छोड़ दिया | वह सारा-सारा दिन घर से बाहर बंगले में पलका डालकर वहीं पर पड़े रहते | जवान बेटे को अपाहिज देखकर उनमे जीने की कोई भी आस बाकी न बची थी | पत्नी के गुज़र जाने के बाद ऐसा कोई नहीं था जो उन्हें ढांढस बंधाता | रामेश्वरी खुद अपने ही दुःख से दुखी थी | वह ससुर को क्या सहारा देती | उसका तो अब घर के किसी भी काम में मन नहीं लगता था | एक-एक दिन पहाड़ की तरह लगता था | दोनों बच्चों अनूप और माला की परवरिश वह किसी तरह बेमन से कर रही थी | नागेंद्र के इलाज़ में पैसा पानी की तरह बहा जा रहा था | सब बैंक-बैलेंस नागेंद्र के इलाज की भेंट चढ़ चुका था | खेत तो माँ के इलाज में पहले ही गिरवी रखा जा चुका था | नागेंद्र अपने सोने की अँगूठी, चेन और रामेश्वरी के कंगन बेचकर शराब पी चुका था | उसने रामेश्वरी से झूठ ही कहा था कि वह कोई काम करना चाह रहा है | उसके इसी झांसे में आकर सीधी-सादी रामेश्वरी ने अपने कंगन बड़े उत्साह से दे दिए थे लेकिन बाद में असलियत पता चलने पर सिर पीटकर रह गई थी | कुल मिलाकर नागेंद्र की बदौलत घर की हालत बद से बदतर होती जा रही थी | लेकिन आज नागेंद्र के इलाज में रामेश्वरी को अपने गहनों के बिकने का तनिक भी मलाल न था | उसे तो बस नागेंद्र के ठीक हो जाने की फ़िक्र थी | नागेंद्र को जिन आँखों में कभी दोनों जहान नज़र आते थे आज उन्हीं आँखों में सिवाय सूनेपन के कुछ और नहीं दिखता था | रामेश्वरी अब एक पत्थर की मूर्ति बनकर रह गई थी | उसके हृदय की सारी भावनाएं,सारी उमंगें न जाने कहाँ लुप्त हो गई थीं | नागेंद्र अपाहिज क्या हुआ वह अपने आप को अपाहिज महसूस करने लगी | नागेंद्र से छुपकर वह अक्सर रो लेती और रोकर अपने गम को दूर करने का असफल प्रयास करती | उसे अब अपने बच्चों का भविष्य अंधकारमय नज़र आता | कैसे करेगी बच्चों की परवरिश ? कैसे चलेगा इस घर का खर्च ? उसके जीवन की नैया डावांडोल होती रहती | दुःख के भंवर में वह डूबती,उतराती रहती | नागेंद्र की इस हालत को देख-देख कर उसका कलेजा मुँह को आ जाता | पाँच प्राणियों के इस परिवार को कैसे संभाले ? क्या करे ? यही सब सोंच-सोंच कर वह दुखी हो जाती | अब सब-कुछ उसी पर निर्भर था | अनूप और माला अभी छोटे ही थे लेकिन रामेश्वरी जानती थी कि अभी कल जब बच्चे थोड़े और बड़े हो जाएंगे तो उन्हें स्कूल भी भेजना होगा | उनकी पढ़ाई-लिखाई का खर्च कहाँ से पूरा होगा ? दो साल की नन्ही माला अपने बाप को हर समय बिस्तर पर लेटा देखकर कुछ भी समझ सकने में असमर्थ थी | कभी-कभी नागेंद्र उसे पुचकार देता तो वह निहाल हो जाती | खिलखिलाकर हँस पड़ती और उसके हँसते ही नागेंद्र न जाने किस सोंच में डूब जाता | उसे ऐसा लगता कि उसके सीने में कोई छुरी घुप गई है | वह सोंचता कि जिस बाप को अपने बच्चों के भविष्य को बनाने के बारे में सोंचना चाहिए था वह खुद ही उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ कर बैठा | उसे अपने ऊपर बहुत ग्लानि होती |

ईश्वर जब परेशानी देता है तो उससे निबटने की शक्ति भी दे देता है | एक रास्ता जब बंद करता है तो दूसरा रास्ता खोल भी देता है | रामपाल चाचा के कहने पर ही वह कभी-कभार प्रौढ़ शिक्षा केंद्र चली जाती थी | मास्टरनी दीदी को उसकी हालत जानकर उससे काफी सहानभूति हो गई थी | वह उसे घर-परिवार को चलाने की काफी जानकारी देतीं

और उसके दुःख को हल्का करने का अपनी ओर से पूरा प्रयास करतीं | आज उन्हीं के प्रोत्साहन पर रामेश्वरी ने यह निर्णायक क़दम उठाया था | आज जब रामेश्वरी रामपाल चाचा के घर शहर से सामान मँगवाने के लिए गई और उन्होंने उसे लिखने-पढ़ने के लिए प्रेरित किया तो उसने तुरंत ही निर्णय ले लिया कि वह कामकाज के साथ ही थोड़ा-बहुत लिखना-पढ़ना भी ज़रूर सीखेगी | रामपाल चाचा की बात आज उसे अच्छी तरह समझ आ गई थी |

दूसरे दिन वह सुबह प्रौढ़ शिक्षा केंद्र खुलने पर मास्टरनी दीदी से जाकर मिली और उनसे पढ़ने की इच्छा जाहिर की | उसके इस निर्णय से दीदी बहुत खुश हुईं | रामेश्वरी में गज़ब का उत्साह देखकर वह काफी प्रसन्न हुईं | उन्होंने उसका नाम केंद्र के रजिस्टर में दर्ज कर लिया | रामेश्वरी ने मन लगाकर लिखने-पढ़ने का अभ्यास शुरू कर दिया |

रामपाल चाचा शहर से उसके द्वारा मँगवाया गया सारा सामान ले आए थे | रामेश्वरी ने घर के बाहर बरोठे में ही सारा सामान सजा दिया था | इक्का-दुक्का करके लोग उससे रोजमर्रा का सामान लेने आने लगे | रामेश्वरी पूरी तन्मयता के साथ घर के सारे काम निबटाने के बाद माला और अनूप को लेकर केंद्र भी जाती और दो घंटे वहाँ पढ़कर घर लौटकर आती तो दुकान पर बैठ जाती | उसके ससुर भी पत्नी और बेटे के दुःख को भुलाने का असफल प्रयास करने में दुकान पर कभी-कभार बैठ जाते |

रामेश्वरी की मेहनत रंग लाने लगी थी | उसने जल्द ही लिखना-पढ़ना सीख लिया था | दुकान भी अब काफी बढ़ा ली थी | लोगों को रोजमर्रा की ज़रूरत का हर सामान उसके यहाँ मिल जाता था | उन्हें अब इधर-उधर भटकने की कोई आवश्यकता नहीं थी | रामपाल चाचा के कहने पर ही अब वह भी उनके साथ शहर जाकर सामान खरीदने जाने लगी थी | रामपाल चाचा चाहते थे कि उसे भी इस बात की पूरी जानकारी होनी चाहिए कि सामान कैसे और कहाँ से खरीदना चाहिए | वह जब-तब उसे व्यापार करने के तौर-तरीकेों के बारे में बताते रहते | वह रामेश्वरी को पूरी तरह से आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे |

समय का पहिया अबाध गति से घूमता रहा | रामेश्वरी की दिन-रात की जीतोड़ मेहनत का ही परिणाम था कि अनूप अब शहर में बैंक की कोचिंग कर रहा था और माला इंटरमीडिएट पास कर के ग्रेजुएशन की तैयारी कर रही थी | घर की माली हालत अब काफी हद तक अच्छी हो गई थी | रामेश्वरी ने खेत को गिरवी से छुड़ाकर ठेके पर दे दिया था | उसके ससुर के मुरझाए चेहरे पर अब फिर से चमक लौटने लगी थी | रामेश्वरी की स्याह, निस्तेज आँखें अब फिर से चमक उठी थीं | उसकी आँखों में माला और अनूप के भविष्य के सुनहरे सपने अक्सर तैर उठते | दुकान के साथ ही उसने सिलाई का काम जो काफी पहले ही शुरू कर दिया था, आज अपने पूरे उठान पर था | सिलाई का यह हुनर भी उसने मास्टरनी दीदी के ही प्रोत्साहन पर प्राप्त किया था | गाँव के ही एक एन.जी.ओ.के माध्यम से उसने छह माह का सिलाई का प्रशिक्षण प्राप्त कर लिया था और आज वह स्वयं एक शिक्षक के रूप में गाँव की लड़कियों को सिलाई का प्रशिक्षण दे रही थी | माला को उसने पढ़ाने के साथ ही सिलाई में भी काफी दक्ष कर दिया था | दोनों माँ-बेटी दुकान और सिलाई का काम अच्छी तरह से संभाल रही थीं |

माला ने ब्यूटीशियन का भी कोर्स कर लिया था | घर के बाहर ही खाली पड़ी जमीन पर रामेश्वरी ने एक दुकान बनवा दी और उसमे माला ने अपना ब्यूटी पार्लर खोल लिया | धीरे-धीरे उसके ब्यूटी पार्लर में गाँव की लड़कियां और महिलाएं आने लगीं | वह उन्हें ब्यूटी पार्लर का प्रशिक्षण भी देने लगी | इस तरह माला की भी घर बैठे अच्छी आय होने लगी | इस काम में रामपाल चाचा और मास्टरनी दीदी ने उनकी काफी मदद की | बैंक से लोन लेकर रामेश्वरी ने अपने काम को काफी बढ़ा लिया था | इस तरह उसकी काफी अच्छी आमदनी होने लगी | धीरे-धीरे उसने बैंक का कर्ज भी उतार दिया | दुःख के गहरे काले साए अब उसके जीवन से दूर हो चुके थे और अब उसके सुख के दिन आ गए थे |

नागेंद्र रामेश्वरी के साहस को देखकर चकित था | उसे एक ओर जहाँ स्वयं पर शर्मिंदगी महसूस होती वहीं वह रामेश्वरी की हिम्मत और लगन देखकर अभिमान से भर उठता | उसे गर्व होता कि उसकी पत्नी ने आज वह कर दिखाया है जिसे करने के बारे में अच्छे-अच्छे लोग सोंच भी नहीं सकते |

रामेश्वरी के साहस के चर्चे आज उसके गाँव में ही नहीं, आस-पड़ोस के भी गाँवों में होने लगे थे | पड़ोस के ही एक गाँव के प्रधान सोमेश्वरदप्रसाद उससे काफी प्रभावित थे | वह उसके ससुर के बचपन के मित्र थे | वह कभी-कभार नागेंद्र के पिताजी से मिलने आया करते थे | रामेश्वरी ने जिस साहस और लगन से इस घर की डूबती नैया को संभाला था और उजड़ते घर को बसाने में दिन-रात एक कर दिया था, उसे देखकर सोमेश्वरप्रसाद उससे काफी प्रभावित थे | माला और अनूप को वह काफी चाहते थे | उन्होंने इन दोनों को गोद में खिलाया था |

एक दिन सोमेश्वरप्रसाद रामेश्वरी के ससुर से मिलने आए और बातों ही बातों में उन्होंने माला का ज़िक्र छेड़ दिया | उन्होंने अपने पोते रमेश के लिए माला का हाथ माँग लिया | उनका पोता रमेश शहर में एक बहुत ही अच्छी कम्पनी में काम करता था | रामेश्वरी के ससुर को भला क्या एतराज होता | घर बैठे लाखों में एक लड़का मिल रहा था | रामेश्वरी से इस बारे में जब सोमेश्वरप्रसाद ने बात की तो रामेश्वरी की आँखों में ख़ुशी के आँसू छलक आए | गदगद कंठ से वह सोमेश्वरप्रसाद से इतना ही कह पाई - " चाचा जी,आज आपने अपने बेटे रमेश के लिए माला का हाथ माँगकर मुझ पर एक बहुत बड़ा उपकार किया है | जब से माला बड़ी हुई है तब से मुझे उसके रिश्ते की फ़िक्र होने लगी थी | मेरा हर दिन इसी चिंता में बीतता था कि मेरी माला बिटिया के भाग्य में न जाने क्या लिखा है ? कहाँ और कैसे ढूँढ पाऊँगी कोई अच्छा लड़का ? आज आपने रमेश के लिए माला का हाथ मांगकर मुझ पर ही नहीं, इस परिवार पर बहुत बड़ी कृपा की है | मैं आपका एहसान ज़िंदगी भर नहीं भूल पाऊँगी |"

रामेश्वरी के ऐसा कहने पर सोमेश्वरप्रसाद की ऑंखें नम हो गईं | उन्होंने भरे गले से कहा - "बेटी, तुम ऐसा क्यों समझती हो कि मैंने तुम पर कोई एहसान किया है ? अरे, माला जैसी बेटी पाकर तो मैं धन्य हो गया | कहते हैं न कि हीरे की परख सिर्फ जौहरी ही कर सकता है तो आज मैंने इस हीरे को अपने घर में सजाने का संकल्प ले लिया है |” सोमेश्वरप्रसाद ऐसा कहकर चले गए |

रमेश से अपने ब्याह की बात जानकर माला मन ही मन काफी खुश थी | उसने आज तक रमेश को इस नज़रिये से नहीं देखा था | रमेश कभी-कभी अपने पिता और दादा जी के साथ माला के घर आया करता था | वह माला और अनूप का बचपन का साथी था | माला की ख़ुशी का पारावार न था कि उसके बचपन का साथी अब उसका जीवन-साथी बनने जा रहा था | भविष्य के सुनहरे-रंगीन सपने उसकी आँखों में तैरने लगे | घर में सभी लोग माला के विवाह की बात पर बहुत ही प्रसन्न थे | नागेंद्र के निर्बल शरीर में अब नई चेतना,नई उमंग और स्फूर्ति आ गई थी | रामेश्वरी रह-रह कर ईश्वर को धन्यवाद देती | माला के विवाह का मुहूर्त निकला जा चुका था | उसके विवाह की सारी तैयारियाँ रामेश्वरी ने पूरी कर लीं थीं | वह अपनी ओर से माला के विवाह में किसी भी प्रकार की कोई भी कसर नहीं रखना चाहती थी |

आखिर वह दिन भी आ पहुँचा, जिस दिन का इंतज़ार रामेश्वरी को वर्षों से था | आज माला का विवाह था | वर्षों बाद इस घर में ढोलक फिर बज उठी | गाँव की महिलाएँ एक बार फिर ख़ुशी से गीत गाने लगीं | रामेश्वरी के ससुर के बूढ़े शरीर में जैसे फिर से नया उत्साह उमड़ आया था | वह बड़े उत्साह से लोगों से मिल-जुल रहे थे | अनूप ने विवाह की सभी तैयारियों में रामेश्वरी का पूरा सहयोग दिया था | उसे एक ओर जहां अपनी लाड़ली बहन से बिछड़ने का दुःख था वहीं दूसरी ओर उसे इस बात की बहुत ख़ुशी भी थी कि उसकी बहन एक ऐसे घर में दुल्हन बनकर जा रही थी जो सिर्फ और सिर्फ भाग्यवानों को ही मिलता है | उसके बचपन का मित्र अब उसका बहनोई बनने जा रहा था | नागेंद्र को बाहर पंडाल में सबसे आगे बिठा दिया गया था | उसके मित्र भी उसके साथ ही बैठे थे | विवाह का पंडाल बहुत ही सुंदर ढंग से सजाया गया था | खाने-पीने की व्यवस्था में किसी भी प्रकार की कोई कमी न थी | सभी मेहमानों के स्वागत का पूरा इंतजाम किया गया था | कुल मिलाकर माला के विवाह की तैयारियों में किसी भी प्रकार की कोई कमी न थी |

रंगीन,चमचमाती झालरों और लाइटों ने एक अलग ही समां बाँध दिया था | डीजे पर छोटे-छोटे बच्चे थिरक रहे थे | नागेंद्र यह सब देखकर बहुत प्रसन्न था | उसे आज अपने अपाहिज होने का तनिक भी मलाल न था | नागेंद्र को तभी बैंड-बाजों के बजने की आवाज नज़दीक आती सुनाई पड़ी | वह समझ गया कि बरात आ गई है | बैंड-बाजों की आवाज सुनकर घर के भीतर बैठी माला का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा |आज के दिन का एहसास ही अलग था | आज के दिन वह रमेश के साथ एक ऐसे पवित्र बंधन में बंधने जा रही थी जिस बंधन को जन्म-जन्मांतर का बंधन कहते हैं | उसके बचपन का साथी आज उसका हमसफ़र, उसका हमक़दम बनने जा रहा था |

बरात दरवाजे पर आ गई | रमेश को अनूप और उसके मित्र ने अपने बाजुओं में उठाकर द्वाराचार के लिए नियत स्थान तक पहुँचा दिया | द्वाराचार के बाद जब रमेश को स्टेज पर बिठा दिया गया तब उसे देखकर नागेंद्र की ख़ुशी का ठिकाना ही न था | नागेंद्र के पिता और सोमेश्वरप्रसाद आपस में गले मिले और नागेंद्र के ही पास आकर बैठ गए | सुनहरी शेरवानी में रमेश काफी स्मार्ट और हैंडसम लग रहा था | उसके मित्र उसके साथ तरह-तरह से हंसी-मज़ाक कर रहे थे | रमेश को देखकर सभी लोग बहुत प्रसन्न थे | तभी गीत बज उठा - " बहारों फूल बरसाओ, मेरा महबूब आया है .."

नागेंद्र ने देखा कि पंडाल के द्वार के एक ओर से उसकी प्यारी, लाड़ली बेटी माला अपने हाथों में फूलों का सुंदर सा हार लेकर धीमे-धीमे कदमों से स्टेज की ओर आ रही है | उसके दोनों ओर चलती हुई कुछ लड़कियां अपने हाथों से फूलों को उसके मार्ग में बिछाती चल रही थीं | अपनी बेटी को आज दुल्हन के रूप में देखकर नागेंद्र की ख़ुशी का ठिकाना न था | रामेश्वरी और अनूप भी गदगद होकर माला को बड़े प्यार से निहार रहे थे |

अब जयमाल की रस्म होनी थी | माला और रमेश ने एक-दूसरे के गले में जयमाल डाल दी | यह देखकर सभी लोग ख़ुशी से तालियाँ बजाने लगे |

सोमेश्वरप्रसाद अपने पोते और पतोहू को देखकर निहाल हो रहे थे |

सोमेश्वरप्रसाद - गिरधारी, आज हमारे बचपन की दोस्ती अब और पक्की हो गई है | आज से हमारे-तुम्हारे रिश्ते को एक नया नाम मिल गया है और वह है संबंधी का रिश्ता | अब हम-तुम सिर्फ दोस्त ही नहीं रहे बल्कि सम्बन्धी हो गए हैं |

गिरधारी - सच कहते हो सोमेश्वर | आज हमारे बच्चों ने हमारे रिश्ते को और भी मज़बूत बना दिया है | रमेश जैसा लायक बेटा पाकर मैं धन्य हो गया | ज़रूर यह मेरे किसी पुण्य का ही परिणाम है कि आज मैं यह ख़ुशी का दिन देख पा रहा हूँ | माला की दादी के भाग्य में शायद यह दिन देखना लिखा ही न था | आज अगर वह जीवित होतीं तो कितनी खुश होतीं |

सोमेश्वरप्रसाद - कुछ नहीं गिरधारी, सब ईश्वर की मर्ज़ी है | किसके भाग्य में क्या लिखा है, यह तो बस ऊपर वाला ही जाने | हम तो बस अनहोनी को मानने के सिवाय कुछ भी नहीं कर सकते | होनी-अनहोनी क्या अपने हाथ में है ? रात भर पंडित जी विवाह की सभी रस्में पूरी करवाते रहे | सुबह लगभग ग्यारह बजे माला की विदाई हो गई |

कुछ मेहमान जा चुके थे और कुछ अभी रुके हुए थे | माला की विदाई के बाद घर में चहल-पहल तो थी लेकिन पहले जैसी रौनक न थी | रामेश्वरी को लग रहा था कि जैसे उसके शरीर से कुछ अलग कर दिया गया है | उसको एक अजीब सा खालीपन महसूस हो रहा था | उसकी सास के गुज़र जाने के बाद इस घर में एक माला ही थी जिससे वह जी-भरके बातें कर लेती थी | अपना दुःख-दर्द माला से कहकर वह अपने दिल का बोझ उतार लिया करती थी | रामेश्वरी माला के ख्यालों में खोई हुई थी कि तभी नागेंद्र ने धीरे से उसके हाथों को छूकर कहा - " कहाँ खोई हो रामेश्वरी ? "

रामेश्वरी की जैसे तन्द्रा टूटी | वह अचकचा गई | उसके पास व्हील चेयर पर नागेंद्र था | कुछ संयत होकर बोली - "कुछ नहीं, बस यूँ ही माला के बारे में सोंच रही थी |"

नागेंद्र - रामेश्वरी, आज हम एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी से मुक्त हो गए | माला का विवाह हो जाने से मेरे हृदय का एक बहुत बड़ा बोझ उतर गया है | धन्य हैं सोमेश्वर चाचा जी,जिन्होंने हम पर इतना बड़ा उपकार किया है | "

रामेश्वरी - "आप ठीक कहते हैं | अगर चाचा जी रमेश से माला के रिश्ते की बात न करते तो हम माला की ज़िम्मेदारी से न जाने कब मुक्त हो पाते | "

नागेंद्र - "रामेश्वरी, यह सब कुछ तुम्हारी दिन-रात की मेहनत का ही परिणाम है कि आज हम फिर से सुख की ज़िदगी बसर कर रहे हैं | मुझे तो यह सोंचकर अचम्भा होता है कि मैं कितना गिर गया था | शराब की बुरी लत और गलत-संगत के चलते मेरे दिमाग पर न जाने कौन सा शैतान सवार हो गया था कि मैं तुम सबको दुःख देने वाला एक ऐसा हैवान बन बैठा, जिसे ईश्वर भी माफ़ न करे | लेकिन मेरी सारी गलतियों को भुलाकर तुमने मुझे माफ़ कर दिया | मैं अपाहिज तुम्हारा उपकार कैसे चुका पाऊँगा ? "यह कहते-कहते नागेंद्र की आँखों में आँसू आ गए |

रामेश्वरी - " आप ऐसा क्यों कहते हैं ? मैंने आप पर कोई उपकार थोड़े ही किया है | यह तो मेरा फ़र्ज़ है | अपने पति की गलतियों को भुला देना और उसकी हर आपदा को ढाल बनकर अपने ऊपर ले लेना ही एक सच्ची भारतीय नारी का धर्म है | आप का साथ देकर और आपको दुःख के इस भंवर से निकाल कर मैंने आप पर नहीं,स्वयं पर उपकार किया है | भला पति के बिना किसी भी स्त्री का जीवन भी कोई जीवन है | "

नागेन्द्र - " कितने ऊँचे विचार हैं तुम्हारे | तुम जैसी देवी को दुःख देकर मैंने ईश्वर को दुःख दिया है | तुम महान हो रामेश्वरी |"

समाप्त