Raksha in Hindi Short Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | रक्षा

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रक्षा

रक्षा

आशीष कुमार त्रिवेदी

संडे के मनपसंद लंच के बाद नितिन सोफे पर अलसाया हुआ लेटा टीवी देख रहा था। सर्दियां शुरू हो रही थीं। उसे हल्की हल्की ठंड लग रही थी। किंतु आलस के मारे वह उठ नही रहा था। टीवी पर एक पुरानी फिल्म आ रही थी। उसे देखते देखते ना जाने कब उसकी आँख लग गई।

वह ईसाइयों के कब्रिस्तान में खड़ा था। कुछ समझ नही पा रहा था कि वहाँ कैसे पहुँचा। उसकी निगाह एक कब्र पर पड़ी। देखने से लगता था जैसे कुछ ही दिनों पहले बनी हो। ना जाने कौन सी शक्ति थी जो उसे उस कब्र की ओर खींच रही थी। परेशान सा वह उस कब्र की ओर गया। वह कब्र पर लगे पत्थर पर मृतक का नाम पढ़ने ही वाला था कि तभी...

"नितिन उठो। सोफे पर क्यों सो रहे हो।" उसकी पत्नी धरा ने उसे उठा दिया।

आँख खोलने के बाद वह बौखलाया सा इधर उधर देखने लगा। कुछ क्षण लगे उसे यह समझने में कि वह कहाँ है। उसकी इस हरकत को देख धरा ने पूँछा "यह इधर उधर क्या देख रहे हो। सोना है तो बेडरूम में जाकर कंबल ओढ़ कर सो। बाहर अचानक मौसम खराब हो गया है। यहाँ ठंड लग जाएगी।" यह कह कर उसने टीवी बंद कर दिया।

"मैं कुछ देर बाहर टहल कर आता हूँ।"

"क्या...." धरा ने चौंकते हुए कहा। "बताया ना मौसम खराब है। बादल घिरे हैं और तेज़ हवा चल रही है।"

"अंदर दम घुट रहा है। कुछ देर खुली हवा में जाना चाहता हूँ।"

नितिन भीतर गया और जैकेट व जूते पहन कर बाहर आया "आधे पौन घंटे में वापस आ जाऊँगा।" जाते हुए उसने आवाज़ लगा कर कहा।

वह सपना उसके दिमाग में घूम रहा था। इसीलिए वह मौसम खराब होने के बावजूद टहलने निकला था ताकि मन उस सपने से हट सके।

अभी शाम के पाँच भी नही बजे थे किंतु अंधेरा गहरा हो गया था। ठंडी हवा तीर सी चुभ रही थी। उसने जैकेट की चेन ऊपर तक खींच ली। जेब में हाथ डाल कर वह तेज़ कदमों से चलने लगा। उसे कहीं जाना नही था। वह तो बस खुद को थका रहा था ताकि घर जाकर निढाल होकर सो जाए।

यह सपना उसने दूसरी बार देखा था। दो महीने पहले भी उसने यही सपना देखा था। वह कब्रिस्तान में खड़ा है। कोई शक्ति उसे उस कब्र की ओर ढकेल रही है। जैसे ही उसने पत्थर पर लिखे मृतक के नाम को पढ़ना चाहा अचानक तेज़ रौशनी से उसकी आँखें चुंधिया गईं। वह उठ कर बैठ गया था। मोबाइल पर समय देखा रात के 2 बज कर 28 मिनट हुए थे। उसने सोंचा कि आजकल रोज़ सोने से पहले वह हॉरर शो देखता है इसीलिए यह सपना आया होगा। उसके बाद वह सपना फिर नही आया। धीरे धीरे वह इस सपने को भूल गया था। लेकिन आज दोपहर उसने फिर वही सपना देखा। फ़र्क इतना था कि आज तेज़ रौशनी की जगह धरा ने उसे जगा दिया।

आखिर इस सपने का अर्थ क्या है। क्यों उसने यह सपना देखा। दो बार यह सपना आने का कोई कारण अवशय होगा। क्या इस सपने के माध्यम से कुदरत उसे कोई संकेत देना चाहती है। ऐसे कई सवाल उसके दिमाग में हलचल मचा रहे थे। इन सवालों से जूझता हुआ वह घर वापस लौट आया।

कई दिनों तक वह इन सवालों को लेकर उलझा रहा। जितना वह उस सपने के बारे में सोचता था उतना ही उलझता जाता था। धरा उसकी इस उलझन को देख कर बहुत परेशान थी। वह बार बार उससे इस परेशानी का कारण पूँछती रहती थी। पर वह धरा को यह सब बताना नही चाहता था। अतः उसे बहाने बना कर टाल देता था। लेकिन अब वह स्वयं इस स्थिति से बाहर निकलना चाहता था। वह जानता था कि इस प्रकार परेशान रहने से कोई भी हल नही निकलने वाला। यदि यह कुदरत का कोई संकेत है तो वह स्वयं ही सही समय पर इसका खुलासा करेगी। यह सोच कर उसने अपना मन इस उलझन से हटा कर दूसरी तरफ लगाने का प्रयास किया। समय के साथ साथ वह अपने इस प्रयास में सफल होने लगा।

नितिन अब फिर से पहले की तरह सामान्य हो गया था। उसे पुनः पहले जैसा पाकर धरा बहुत खुश थी। इसी बीच उसके घर से संदेश आया कि वह एक प्यारी सी बच्ची का चाचा बन गया है। इस शुभ अवसर पर वह और धरा अपने परिवार से मिलने गए। वहाँ बिताए हंसी खुशी के पलों ने उसे पूरी। तरह उस सपने के असर से मुक्त कर दिया।

भीषण गर्मी पड़ रही थी। नितिन और धरा ने कुछ दिन पहाड़ों पर छुट्टियां बिताने का प्लान बनाया। दोनों ही इस बात से बहुत उत्साहित थे। नितिन ने इंटरनेट पर कई हिलस्टेशनों के बारे में सर्च किया। वह दोनों किसी ऐसी जगह जाना चाहते थे जहाँ लोगों की अधिक भीड़ ना हो तथा कुदरत पूरी तरह से मेहरबान हो। जहाँ कुछ दिन सुकून से बिताए जा सकें।

उनकी यह खोज अरुणांचल प्रदेश के तवांग पर जाकर रुकी।

तवांग एक बहुत ही खूबसूरत हिलस्टेशन था। नितिन ने सारी आवश्यक औपचारिकताएं पूरी कर लीं। नेट के जरिए ही उन्होंने वहाँ एक कॉटेज में रहने की व्यवस्था कर ली थी। यह कॉटेज सारा भाटिया नाम की एक बुज़ुर्ग महिला की थी। सारा आइरिश मूल थीं। तीस साल पहले वह बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर भारत आई थीं। भारतीय सेना के एक कर्नल भाटिया से उन्हें प्रेम हो गया। विवाह के बाद दोनों ने यह कॉटेज खरीद लिया। सात साल पहले कर्नल साहब की मृत्यु के बाद से सारा तवांग आने वाले पर्यटकों को पेइंगगेस्ट के तौर पर कॉटेज में रखने लगीं।

नितिन और धरा सुबह के नौ बजे वहाँ पहुँचे। मिसेज़ भाटिया ने उन्हें उनका कमरा दिखाया। कमरा बहुत साफ सुथरा था। खिड़की खोलते ही बाहर कॉटेज के खूबसूरत गार्डन का नज़ारा दिखाई देता था। धरा बहुत खुश थी। मिसेज़ भाटिया उन्हें नाश्ते के लिए कह कर नीचे

चली गईं। मौका पाकर धरा ने नितिन को गले से लगा लिया "थैंक्यू नितिन इट इज़ सो ब्यूटीफुल।"

"तो तुम खुश हो।"

"बहुत"

"तो फिर फ्रेश हो जाओ। नाश्ते के बाद हम टहलने चलेंगे।" नितिन ने उसके चेहरे को दोनों हाथों में भरकर कहा।

नाश्ते के बाद नितिन और धरा चहलकदमी के लिए निकले। यहाँ ठंड थी। दोनों ने गर्म कपड़े पहन रखे थे। चारों ओर प्रकृति की अनुपम छटा बिखरी थी। वहाँ के माहौल में एक सुखद शांति थी। कुछ देर आसपास टहलने के बाद दोनों कॉटेज में वापस आ गए। मिसेज़ भाटिया लंच के लिए उनकी प्रतीक्षा कर रही थीं। लंच करते हुए वो लोग आपस में बात करने लगे।

"आंटी आपका कॉटेज बहुत सुंदर है।" धरा ने चारों तरफ नज़र दौड़ाते हुए कहा।

"मेरे पति ने खरीदा था यह कॉटेज। अब उनके ना रहने पर मैं इसे तुम जैसे घूमने आए जोड़ों को किराए पर देती हूँ। मेरा समय भी कट जाता है और कमाई भी हो जाती है।" मिसेज़ भाटिया ने उन्हें अपनी तथा कर्नल की प्रेम कहानी के बारे में भी बताया। वह बहुत ही मिलनसार थीं। जल्दी ही लोगों के साथ घुलमिल जाती थीं। धरा और नितिन आज सुबह ही आए थे किंतु वह उनसे इस प्रकार पेश आ रही थीं जैसे कई दिनों से उन्हें जानती हों। लंच के बाद नितिन और धरा आराम करने चले गए। नितिन और धरा को यहाँ बहुत अच्छा लग रहा था। मिसेज़ भाटिया उन्हें वहाँ के प्रसिद्ध बौद्ध विहार के दर्शन के लिए ले गईं। घूमने फिरने और आपस मे समय बिताते हुए एक हफ्ता कब बीत गया पता ही नही चला। अब सिर्फ तीन दिन ही बचे थे।

नाश्ते के बाद नितिन घूमने जाना चाहता था। लेकिन धरा थकी हुई थी। वह आराम करना चाहती थी। अतः नितिन अकेले ही निकल गया। टहलते हुए वह पहाड़ी पर चढ़ गया। वहाँ एक पत्थर पर बैठ गया। कान में इयरफोन लगा कर वह संगीत सुनते हुए वह कुदरत की सुंदरता का लुत्फ लेने लगा। वहाँ के मनोरम वातावरण में वह पूरी तरह डूबा हुआ था। तभी किसी ने उसे जोर से धक्का दिया। वह कुछ दूरी पर गिर पड़ा।

एक आदमी उसे संभालते हुए बोला "कहाँ खोए थे। अगर उस आदमी ने समय पर धक्का न दिया होता तो......" कहते हुए अचानक उसकी आँखें भय से फटी रह गईं।

नितिन ने भी उस तरफ देखा तो सन्न रह गया। उसे बचाने के चक्कर में वह आदमी खुद गिरते हुए पत्थर की चपेट में आ गया था। नितिन भाग कर उसके पास गया किंतु वह मर चुका था। पुलिस को इस हादसे की सूचना दी गई। नितिन को भी चोटें आई थीं। उसे इलाज के लिए अस्पताल भेज दिया गया। धरा मिसेज़ भाटिया के साथ अस्पताल पहुँची। इस हादसे के बारे में सुन कर वह बहुत घबरा गई थी।

अगले दिन ही नितिन को अस्पताल से छुट्टी मिल गई। घर जाने में केवल एक ही दिन बचा था लेकिन धरा का मन अब वहाँ नही लग रहा था। वह जल्द से जल्द वापस जाना चाहती थी। मिसेज़ भाटिया एक माँ की तरह उसे तसल्ली दे रही थीं।

नितिन पर भी इस हादसे का गहरा असर हुआ था। एक सवाल उसे परेशान कर रहा था। वह कौन था जिसने खुद के प्राण गंवा कर उसकी रक्षा की। जिसने उस पर आई मौत को अपने ऊपर ले लिया। पुलिस उसके बारे में कुछ पता लगा पाई है कि नही। उसके परिवार को पता चलेगा तो उन पर क्या बीतेगी। शाम को वापस जाना था। वह पुलिस स्टेशन जाने की तैयारी करने लगा।

"कहाँ जा रहे हो।" धरा परेशान थी।

"पुलिस स्टेशन जाकर उस फरिश्ते के बारे में पता करूँगा"

"मैं तुम्हें कहीं नही जाने दूंगी।" धरा ने उसे रोकना चाहा।

"अगर मैंने उस व्यक्ति के बारे में पता नही किया तो जी नही पाऊँगा।"

पुलिस स्टेशन पहुँच कर उसने संबंधित इंस्पेक्टर से उस व्यक्ति के विषय में पूंछाताछ की। इंस्पेक्टर ने उसे बैठने को कहा फिर बोला "अभी तक हमें उस व्यक्ति के बारे में कुछ पता नही चल पाया है। हम कोशिश कर रहे हैं। जल्दी ही उस व्यक्ति के बारे में पता चल जाएगा।"

"पर इंस्पेक्टर साहब आज शाम मैं घर वापस जा रहा हूँ। मेरे लिए उस व्यक्ति के बारे में जानना बहुत आवश्यक है।"

"ऐसा करिए अपना नंबर हमें दे दीजिए। जैसे ही कुछ पता चलेगा हम आपको बता देंगे।"

नितिन ने उन्हें अपना नंबर दे दिया। उनसे इस मामले में जल्दी करने को कह कर वह कॉटेज वापस आ गया।

नितिन और धरा को घर लौटे एक हफ्ता हो गया था। नितिन ने ऑफिस जाना शुरू कर दिया था। पर उस फरिश्ते के बारे में जानने की इच्छा उसे बेचैन किए थी।

नितिन ऑफिस से लौटा तो बहुत थका हुआ था। यह थकावट शरीर से अधिक मन की थी। बिना कुछ खाए पिए ही वह सोने चला गया।

वह फिर उसी कब्रिस्तान में था। वह उसी कब्र के सामने खड़ा था। वह पत्थर पर लिखे मृतक के नाम को पढ़ रहा था। उसके कानों में दूर से आती संगीत की आवाज़ सुनाई पड़ रही थी।

अचानक उसकी नींद खुल गई। उसका फोन बज रहा था। उसने फोन उठाया।

"हैलो मिस्टर नितिन। मैं तवांग से बोल रहा हूँ। उस फरिश्ते का नाम पता चल गया है।"

नितिन की नींद गायब हो गई। उत्सुकता से उसने पूंछा "क्या नाम है उसका। कहाँ का था वह।"

"जी वह कोलकाता का रहने वाला था। उसका नाम था पॉल मैथ्यू।"

नाम सुनते ही कब्र मे लगा पत्थर उसकी आँखों के सामने नाचने लगा।

'पॉल मैथ्यू'

जन्म 18 अगस्त 1972

मृत्यु 25 जून 2016

नितिन कुदरत के इस कारनामे को समझने में असमर्थ था।