रामेश्वरी
(भाग – 1)
रामेश्वरी बार-बार अपना बक्सा खोलती और फिर बंद कर देती | वह बहुत असमंजस में थी | क्या करे और क्या न करे, कुछ समझ में नहीं आ रहा था | अंत में उसने फैसला कर ही लिया | उसने एक बार फिर बक्से को खोला और हार को बाहर निकाला | बरसों से संजोकर रखी हुई अपनी सास की आख़िरी निशानी को आज वह अपने बच्चों के लिए बेचने जा रही थी | आख़िर वह करती भी तो क्या | मज़बूरी में इंसान को वह भी करना पड़ जाता है जिसे करने के बारे में वह कभी सोंच भी नहीं सकता | उसके पास अब कोई रास्ता भी नहीं था | नागेंद्र तो अब किसी भी काम के लायक ही नहीं रहा था |
हार लेकर वह सीधे सेठ पन्नालाल की दुकान पर जा पहुंची | पोटली से हार निकालकर सेठ की ओर बढ़ा दिया | सेठ भी अपने धंधे में निपुण था | उड़ते पक्षी के पर गिन लेता था | रामेश्वरी को देखते ही भांप गया कि उसे क्या काम है | उसने पूछा- कहो, फिर कोई गहना बेचना है ?
रामेश्वरी ने मुँह बना लिया | उसने सोंचा कि सब कुछ तो बिक ही चुका है और अब बचा ही क्या है | यही हार ले-दे के बचा था, वह भी आज बेचने पर मज़बूर होना पड़ा | लेकिन उसने सेठ से कुछ नहीं कहा, चुप ही रही | सेठ ने हार को हाथ में लेकर उसके वज़न का अंदाज लिया और कहा कि बीस हजार रूपए ले जाओ और अगर फिर ज़रूरत पड़ी तो कुछ और भी दे दूँगा | आखिर इंसानियत भी तो कोई चीज़ होती है |
रामेश्वरी ने कहा - मैं तो बस हार को एकदम बेचने आई हूँ, बताओ पूरा दाम क्या दोगे ? सेठ ने हार को हाथ में उछालते हुए और रामेश्वरी की ओर देखते हुए कहा - पचास हजार रुपया दूँगा | कहो तो अभी पूरा दे दूँ | रामेश्वरी ने सोंचा कि यही हार अगर नया लेने जाओ तो सत्तर-अस्सी हजार का तो मिलेगा ही | उसने हिम्मत करके कहा - सेठ, साठ हजार देने हो तो कहो, नहीं तो मैं कल शहर जा कर किसी और के यहाँ बेच लूँगी |
सेठ ने थोड़ी देर इधर-उधर की बातें करके रामेश्वरी को फुसलाने की कोशिश की लेकिन कुछ ही देर में वह समझ गया कि आज मुर्गा हलाल होने वाला नहीं है | उसने बिना कुछ और कहे साठ हजार रूपए रामेश्वरी को पकड़ा दिए |
रूपए लेकर वह सीधे रामपाल चाचा के घर पहुंची | रामपाल जी शहर में नौकरी करते थे | गाँव में हर कोई उनको मानता था | उन्हीं के प्रयास से गाँव में प्रौढ़ शिक्षा केंद्र खुला था | गाँव के अनपढ़ प्रौढ़ उस केंद्र में पढ़ने आते थे | गाँव की महिलाओं को भी इस केंद्र में उनके दैनिक जीवन से सम्बन्धित बातों की जानकारी देने के लिए मास्टरनी दीदी भी आती थीं | रामेश्वरी को आया हुआ देखकर रामपाल ने पूछा – “कहो बेटी, कैसे आना हुआ ? क्या शहर से कुछ मंगवाना है ?”
रामेश्वरी ने नमस्ते करते हुए कहा - "हाँ चाचा, कुछ मंगवाना ही है |"
रामपाल - "अच्छा जल्दी से बता, क्या लाना है ?"
रामेश्वरी - "ऐसे आप को याद नहीं रहेगा चाचा, थोड़ा सामान नहीं है | कई चीजें मंगवानी थीं | अगर आप कागज पर लिख लेते तो ...."
रामपाल - "अच्छा चल, जल्दी से बोल, लिख ही लेता हूँ |"
रामेश्वरी एक - एक कर के सामान लिखवाने लगी और सचमुच उसने एक लम्बी-चौड़ी सूची ही बनवा दी | रामपाल जी ने सारा सामान लिख लिया फिर पूछा - "क्या कोई दावत-तवाजा है या फिर माला बिटिया की शादी पक्की कर दी है ? इतना सामान किसलिए मंगवा रही हो, जरा मुझे भी तो कुछ पता चले ? "
रामेश्वरी ने कहा - "चाचा आप तो जानते ही हैं, माला के पिता जी से अब कुछ होता नहीं | एक्सीडेंट के बाद से तो वह बिलकुल लाचार हो गए हैं | घर का खर्च चलता नहीं | केंद्र में दीदी ने मुझसे कहा कि अगर मैं घर पर रोजमर्रा की चीजें रखकर बेचने लगूँ तो चार पैसों की आमदनी हो जाएगी | बस इसीलिए ..."
रामपाल ने कहा - "यह तो बहुत ही नेक सलाह दी है | अच्छा यह बताओ,क्या तुमने लिखना-पढ़ना भी शुरू किया कि नहीं ?"
रामेश्वरी सकुचाकर बोली - "चाचा, यह उमर भी कोई पढ़ने की है ? पढ़लिखकर अब करना भी क्या है ? अब तो बस बच्चों को ही देखना है | घर-गृहस्थी में पढ़ने की फुरसत ही कहाँ है ? "
रामपाल - " नहीं बेटी, ऐसा नहीं है | पढ़ना-लिखना केवल बच्चों का ही काम नहीं है | इंसान तो सारी ज़िंदगी सीखता ही रहता है | पढ़ाई का महत्त्व शायद तुम्हें मालूम नहीं | एक तुम्हारे पढ़-लिख जाने से तुम्हारे बच्चों का भी जीवन सुधर जाएगा | तुम अपने बच्चों का पालन-पोषण तब कहीं और बेहतर तरीके से कर पाओगी | बच्चों के सामने जब तुम खुद ही एक मिसाल होगी तो तुम्हारे बच्चे भी आगे बढ़ने का पूरा प्रयत्न करेंगे और फिर यही शिक्षा वह अपने बच्चों को भी देंगे | तुम कल ही प्रौढ़ शिक्षा केंद्र जाओ और अपना नाम लिखवा लो | वहाँ तुम्हे पढ़ाई के साथ ही मास्टरनी दीदी घर-गृहस्थी से सम्बन्धित तरह-तरह की और भी जानकारी देंगीं | "
रामेश्वरी ने रामपाल चाचा की बातें बड़े ध्यान से सुनीं और उसने तुरंत निर्णय ले लिया कि वह कल ही केंद्र जाकर दीदी से मिलेगी | रामपाल चाचा ने उसे आशीर्वाद दिया और शहर के लिए चल दिए |
रामेश्वरी घर आई तो यहाँ बच्चे और नागेंद्र उसकी राह देख रहे थे | नागेंद्र ने पूछा - कहाँ चली गई थीं |"
रामेश्वरी कुछ न बोली | घर के भीतर आकर वह रसोई में लग गई | उसने चूल्हे में लकड़ी जला दी और आटा गूंथकर रोटी सेंकने लगी | तवे पर रोटी डालकर वह पुरानी यादों में खो गई |
वह सोंचने लगी कितने अच्छे थे वो दिन | कितना सुख-चैन था, कितनी शांति थी | उस समय अनूप का जन्म हुआ था | सास-ससुर सभी खुश थे | उसके ससुर गाँव भर में कहते फिरते - मेरे पोता हुआ है | अब मैं बाबा बन गया हूँ | खूब बाजे बजे थे | पटाखे छुड़ाए गए थे | खूब धूम-धड़क्का हुआ था | इस ख़ुशी के मौके पर नागेंद्र ने पूरे गाँव को दावत दी थी | उसके दोस्त भी उसकी इस ख़ुशी में शरीक हुए थे | दोस्तों के आग्रह पर उसने गाँव में ही एक नज़दीकी रिश्तेदार के घर पर अपने दोस्तों के लिए शराब की व्यवस्था भी की थी | नागेंद्र तो शराब पीता नहीं था लेकिन दोस्तों ने उसे पीने के लिए काफी उकसाया | उसके रिश्ते के चाचा ने भी कहा कि बेटा,आज तो ख़ुशी का दिन है | आज नहीं पियोगे तो फिर कब पियोगे ? आज के दिन तो पूरी छूट है | नागेंद्र के बहुत ना-नुकर करने पर भी वे लोग नहीं माने और जबरदस्ती उसके मुँह से गिलास लगा ही दिया |
नशा एक ऐसी चीज़ है कि इसकी लत अगर एक बार लग गई तो फिर जल्दी नहीं छूटती | नागेंद्र ने उस दिन दोस्तों के कहने पर शराब क्या पी कि अपने पैरों पर कुल्हाड़ी ही मार ली | उस दिन के बाद उसे शराब की ऐसी लत लगी कि उसे एक दिन भी शराब के बिना रहना भारी लगने लगा | वह रोज शराब के अड्डे पर जाता और दोस्तों के साथ जी-भर के पीता | कभी-कभी तो स्थिति इतनी बिगड़ जाती कि उसके साथी उसे अपने कन्धों पर लादकर घर छोड़ने आते |
रामेश्वरी उसे समझाती कि शराब अच्छे-अच्छे लोगों का घर तबाह कर देती है | लोगों के घर के बर्तन-गहने यहाँ तक कि खेत-पात तक इस शराब की भेंट चढ़ जाते हैं | पास-पड़ोस और रिश्तेदारी में भी शराबी व्यक्ति का कोई भी आदर-सम्मान नहीं होता | रामेश्वरी की बातें सुनकर वह कसम खाता कि आगे से वह शराब को कभी मुँह भी नहीं लगाएगा लेकिन अगले दिन से वह सब-कुछ भूलकर फिर से अपनी मनमानी करने लगता | रात को लिया गया निर्णय भोर होते ही न जाने कहा गुम हो जाता और सब कुछ भूलकर नागेंद्र फिर से अपने दोस्तों की मंडली में जा पहुँचता | शाम को जब घर आता तो रामेश्वरी को गले लगाकर उससे माफ़ी मांग लेता | रामेश्वरी उसकी इस हरकत से बहुत परेशान थी | उसका यह बर्ताव अब उसके लिए असहनीय होता जा रहा था | अम्मा और बाबूजी ने भी उसे समझाने की भरसक कोशिश की लेकिन उसके कान पर तनिक भी जूँ न रेंगी |
उस दिन गाँव में मुन्नीबाई की नौटंकी थी | उसकी मित्र-मंडली ने सुबह से ही उसके घर पर डेरा जमा लिया था | सभी मुन्नीबाई की तारीफ़ कर रहे थे | नागेंद्र भी काफी उत्साह में था | उसने उस दिन बड़ी देर तक दाढ़ी बनाई और आईने में अपने चेहरे को कई बार देखा | यह देखकर रामेश्वरी जल-भुनकर रह गई | वह जानती थी कि इतनी तैयारी मुन्नीबाई के लिए की जा रही थी | वह अच्छी तरह जानती थी कि आज सभी लोग जी भर के शराब पिएंगे और मुन्नीबाई पर रुपए भी लुटाएंगे |
मुन्नीबाई का डेरा नागेंद्र की बगिया में ही लगा था | गाँव के रईसों में शुमार होने के नाते मुन्नीबाई की नौटंकी की सारी व्यवस्था की देखरेख नागेंद्र और उसके कुछ मित्रों के जिम्मे थी | मुन्नीबाई के साथ में उसकी तीन सहायक लड़कियां भी गाँव आई थीं | शाम हुई और नौटंकी शुरू हो गई | नागेंद्र अपने दोस्तों के साथ नौटंकी देखने जा चुका था
| पंडाल में नागेंद्र और उसके साथियों के बैठने के लिए सबसे आगे ही व्यवस्था थी | मुन्नीबाई की एक-एक अदा पर गाँव के नई उम्र के लड़के कुर्बान हो रहे थे | नागेंद्र भी अपने साथियों के साथ मुन्नीबाई के जलवे देख-देखकर अपने होश गवां बैठा था | सबने जमकर शराब पी और नशे में धुत होकर स्टेज पर चढ़ आए | मुन्नी जब तक कुछ समझती, नागेंद्र ने उसका हाथ पकड़ लिया और उससे जबरदस्ती करने की कोशिश करने लगा | उसके साथी उसकी इस हरकत पर नशे में हो-हल्ला करके उसे और उकसाने लगे | मुन्नी के साथ की दोनों लड़कियों को उसके साथी छेड़ने लगे | उनके इस अप्रत्याशित व्यवहार से मुन्नी हतप्रभ थी | मुन्नी ने नागेंद्र से अपना हाथ छुड़ाने की काफी कोशिश की लेकिन छुड़ा न सकी | नागेंद्र ने कहा - "अब तो यह हाथ कभी नहीं छूटेगा | आज भरी महफ़िल में मैंने तुम्हारा हाथ पकड़ा है | मुझे किसी का कोई डर नहीं, कोई परवाह नहीं |" वह नशे में बके जा रहा था | मुन्नी जानती थी कि यह सब नशे का ही परिणाम है | तब तक किसी ने नागेंद्र के पिता गिरधारीलाल जी को इस बात की खबर कर दी थी | थोड़ी ही देर में गिरधारीलाल वहाँ आ गए और उन्होंने एक जबरदस्त थपप्पड़ उसके गाल पर जड़ दिया | नागेंद्र अपने पिता के इस अप्रत्याशित व्यवहार से बौखला उठा | उसका नशा एक ही झटके में रफूचक्कर हो गया | वह तीर की तरह से वहाँ से सीधे अपने घर आया और अपने कमरे में न जाकर घर के पिछवाड़े के बरामदे में जा कर चारपाई पर पड़ गया | सुबह जब उसकी आँख खुली तो दिन काफी चढ़ आया था | उसके सिर में दर्द हो रहा था | रात की घटना के बारे में सोंचकर वह शर्म से पानी-पानी हो रहा था | वह सोंच रहा था कि पिताजी और माता जी से वह अब कैसे नज़र मिला पाएगा | रामेश्वरी उसे जगाने के लिए दो बार आ चुकी थी लेकिन वह गहरी नींद का बहाना करके चारपाई पर पड़ा रहा | सच तो यह था कि आज रामेश्वरी से भी नज़र मिलाने में उसे शर्मिंदगी महसूस हो रही थी |
काफी दिन चढ़ आने पर वह उठा और नज़रें चुराते हुए घर के भीतर जाकर किसी तरह हिम्मत जुटाकर रामेश्वरी के सामने जाकर अपनी कल की हरकत के लिए माफ़ी मांगने का नाटक करने लगा | रामेश्वरी अच्छी तरह जानती थी कि यह सब और कुछ नहीं,नाटकबाजी है | कुछ वर्षों में ही नागेंद्र एक बेटे और एक बेटी का पिता बन चुका था लेकिन उसके व्यवहार में तनिक भी परिवर्तन नहीं आया था | उसकी शराब पीने की लत अब उसकी एक ज़रूरत बन चुकी थी | वह दिन-प्रतिदिन और भी बिगड़ता ही जा रहा था | दोस्तों की शह पाकर वह और भी बेशर्म हो गया था | दिन भर गांव के ही निठल्लों के साथ बगिया में जुआ खेलना और आए-दिन शराब पीना, बस अब यही उसका नित्यप्रति का नियम बन गया था | अपने पिता की गाढ़े पसीने की कमाई को वह जुआ और शराब में उड़ाने लगा | इतना ज़रूर था कि वह रामेश्वरी को कभी भी कुछ बुरा-भला नहीं कहता था नहीं तो उसके साथी अपनी पत्नियों के साथ गली-गलौज और मारपीट तक कर बैठते थे | रामेश्वरी ने रामपाल चाचा से भी उसे समझाने के लिए कहा लेकिन उनका प्रयास भी निरर्थक ही साबित हुआ |
एक दिन बगिया में इस मित्र मण्डली ने शहर जा कर फिल्म देखने की योजना बनाई | तय हुआ कि बारह बजे वाला शो देखा जाएगा और रात होने से पहले ही घर वापस आ जाएंगे | बस फिर क्या था | दूसरे ही दिन यह मित्र-मण्डली शहर के लिए रवाना हो गई | सभी अपनी-अपनी मोटरसाइकिल पर सवार थे | शहर जा कर फिल्म देखने के एहसास
से ही सबके दिल बल्लियों उछल रहे थे | शहर की चकाचौंध में सभी अपनी सुध-बुध खो बैठे थे | चमचमाती कारें सड़कों पर बेतहाशा दौड़ी जा रही थीं | लोग इस रफ़्तार में भागे जा रहे थे कि जैसे सबको बहुत जल्दी हो | सभी अपने में खोए और अपनी ही धुन में भागते नज़र आ रहे थे | नॉवेल्टी टाकीज़ पहुँचकर सबने टिकट लिया और फिल्म देखने अंदर चले गए | टाकीज़ के अंदर का नज़ारा कुछ और ही रंगीन था | जहाँ एक ओर अधेड़ लोग बैठे थे वहीं नई उम्र के लड़के अपनी-अपनी गर्लफ्रेंड के साथ फिल्म देखने आए थे | यहाँ गाँव की तरह किसी पर किसी भी प्रकार की कोई भी पाबंदी नहीं थी | लड़कियों के पहनावे भी एक से बढ़कर एक थे | तरह-तरह की आधुनिक पोशाकों में सजी-संवरी लड़कियां सबके दिलों की धड़कने बढ़ा रही थीं | एक ओर जहाँ अपनी-अपनी गर्लफ्रेंड के साथ बैठे लड़के अपने आप को काफी खुशकिस्मत समझ रहे थे वहीं लड़कियाँ भी अपने बॉयफ्रेंड के साथ बैठीं अपने आप को किसी से भी कम नहीं समझ रही थीं | फिल्म के किसी रोमांटिक दृश्य पर जब कोई लड़का या लड़की एक-दूसरे के हाथ को हलके से दबा देते तो वहाँ बैठे अधेड़ उम्र के लोग मुस्कुरा भर देते | यह सब देखकर नागेंद्र और उसके मित्र इशारों ही इशारों में काफी चुहलबाजी कर रहे थे | ख़ैर,फिल्म समाप्त हुई और सभी लोग टाकीज़ से बाहर आ गए | कुछ देर तक सभी टाकीज़ के बाहर खड़े आपस में बतियाते रहे और टाकीज़ से बाहर निकलने वाली जवान और खूबसूरत बालाओं को देख-देखकर अपनी आँखें सेंकते रहे | फिल्म देखकर सभी लोग वापस चल दिए | रास्ते में मॉडल-शॉप पड़ती थी | वहाँ पहुँचते ही सभी ने अपनी-अपनी मोटरसाइकिलें रोक दीं | सबने जी-भरके शराब पी और नशे में धुत होकर अपने होशोहवास खो बैठे | कुछ देर आराम करने के बाद सब अपनी-अपनी मोटरसाइकिलों पर फिर सवार हो गए और गाँव की ओर चल पड़े | सभी नशे में झूम रहे थे और शहर से बाहर निकलते ही सबने रफ्तार बढ़ा दी | हो-हल्ला करते हुए सभी एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ लगाने लगे | शाम गहराने लगी थी | सड़क पर चलते वाहनों की हेडलाइटें रह-रह कर चमक उठती थीं | सबने अपनी-अपनी मोटरसाइकिलों की लाइटें जला दीं और तेज रफ़्तार में गाँव की ओर चल पड़े |
सभी मोटरसाइकिलों की रफ़्तार बढ़ाते ही जा रहे थे | चालीस,पचास,साठ,सत्तर,अस्सी - और इस तरह रफ़्तार पर रफ़्तार बढ़ाते हुए सभी बेतहाशा भागे जा रहे थे कि तभी तेज रफ़्तार में आता एक ट्रक उनके सामने आ गया | ट्रक को देखकर नागेंद्र और उसके साथियों के होश उड़ गए | शराब का नशा न जाने कहाँ हिरन हो गया | ब्रेक लगाने की भरसक कोशिशों के बावजूद वे संभल न सके और ट्रक से जा टकराए | नागेंद्र और जुम्मन सबसे आगे थे | उन्हें बहुत चोटें आईं | नागेंद्र के पैर जैसे सुन्न हो गए थे | उसके एक पैर पर से होते हुए ट्रक का पहिया निकल गया था | जुम्मन के बायां हाथ ट्रक की चपेट में आ गया था और वह भयानक दर्द से कराह रहा था | संतुलन न रख पाने के कारण कन्हैया सड़क के किनारे लगे बिजली के खम्भे से जा टकराया और उसका सिर लहूलुहान हो गया | गनपत, सरजू और बिहारी पीछे होने के कारण बच गए | उन्हें थोड़ी सी खरोंच ही लगी |अचानक हुए इस हादसे से सभी स्तब्ध रह गए | तीनो जल्दी से नागेंद्र और जुम्मन के पास आ गए | नागेंद्र बेहोश हो गया था और जुम्मन को भी हलकी बेहोशी आ रही थी | सड़क पर जा रहे लोगों की काफी भीड़ इकठ्ठा हो गई | जब तक लोग ट्रक को रोकते तब तक वह तेज रफ़्तार से भाग निकला | वहाँ कुछ लोगों ने ट्रक का नंबर नोट कर लिया लेकिन जो होना था वह तो हो ही गया | नागेंद्र, जुम्मन और कन्हैया को उनके मित्रों और वहाँ उपस्थित लोगों ने अस्पताल पहुँचाया | एक्सीडेंट का केस
जानकर डॉक्टर ने पुलिस को खबर कर दी | कुछ ही देर में पुलिस वहाँ आ गई | गनपत, सरजू और बिहारी के साथ ही घटनास्थल पर उपस्थित लोगों का बयान लिया गया | डॉक्टर ने मुआयना करके बताया कि सभी नशे में थे और शायद इसी वजह से अपना होश खो बैठने के कारण ट्रक से टकरा गए | सरजू का बयान लिया जा चुका था | गनपत और बिहारी को वहीं रोककर सरजू गाँव में सबको खबर देने के लिए चल पड़ा |
एक्सीडेंट की खबर सुनकर नागेंद्र के पिताजी और उसकी माँ चीख पड़े | चीख सुनकर रामेश्वरी भी बाहर आ गई | नागेंद्र के एक्सीडेंट के बारे में सुनकर वह दहाड़ें मारकर रो पड़ी | इधर कन्हैया के घर पर भी यही आलम था | उसकी बीवी और उसकी विधवा माँ छाती पीट-पीटकर रो रहे थे | दोनों घरों का दृश्य बड़ा ही हृदय-विदारक था | गाँव भर के सभी लोग इन दोनों ही घरों के सामने एकत्र हो गए थे | भीड़ में सभी खुसुर-फुसुर कर रहे थे | कोई कह रहा था - बहुत ही बुरा हुआ | तो कोई कह रहा था - जब औलाद बिगड़ जाती है तो यही दिन दिखाती है | शराबी तो नंबर एक का है | और भी न जाने कैसी-कैसी बातें वहाँ उपस्थित लोग कर रहे थे |
कुछ संयत होने के बाद नागेंद्र के पिताजी सरजू और गाँव के ही कुछ लोगों के साथ अपने बेटे को देखने शहर चल दिए | कन्हैया की माँ को समझा-बुझाकर घर पर ही रोक दिया गया | अस्पताल में अपने बेटे को उस अवस्था में देखकर नागेंद्र के पिता अपने आप को संभाल न सके और बेहोश हो गए | किसी तरह उन्हें होश में लाया गया | रात भर अस्पताल में रहने के बाद सुबह होते ही गाँव के लोग गाँव वापस लौट गए | नागेंद्र और कन्हैया को ऑपरेशन थियेटर में ले जाया गया | नागेंद्र के दोनों पाँवों में गहरी चोट आई थी | लाख कोशिशों के बावजूद नागेंद्र का एक पैर बेकार हो गया | उसमें किसी भी प्रकार की कोई हरकत न होती थी | कन्हैया का एक हाथ काट दिया गया | डॉक्टर का कहना था कि यदि ऐसा नहीं किया गया तो ज़हर पूरे शरीर में फ़ैल जाएगा और कन्हैया को बचाना नामुमकिन हो जाएगा |
लगभग एक सप्ताह बाद नागेंद्र को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई | घर पहुँचकर जब रामेश्वरी और नागेंद्र की माँ ने उसे देखा तो सन्न रह गए | अपने पति को देखकर रामेश्वरी पर तो जैसे बिजली ही गिर पड़ी | वह दुःख से चीखकर बेहोश हो गई | इतने दिन तक उसे इस बात की जानकारी किसी ने नहीं दी थी कि नागेंद्र का एक पैर बेकार हो गया है | नागेन्द्र की माँ का रो-रो कर बुरा हाल था | जवान बेटे को इस अवस्था में देखकर उन्हें कुछ भी नहीं सूझ रहा था | आस-पड़ोस के लोगों ने उन्हें तरह-तरह से समझाया | रात काफी हो चुकी थी | सब लोग एक-एक कर वहां से चल दिए | पूरे घर में एक अजीब सा सन्नाटा छा गया था |
( क्रमशः )