ज़ेहाद
शायद दिल्ली के राजपथ पर गणतंत्रता दिवस पर होने वाले परेड की तैयारी भी उतनी जोर -शोर से नहीं चल रही होगी जीतनी तैयारी रेहाना बीबी गणतंत्रता दिवस के एक दिन पहले अपने घर पर कर रही थी | उनका एकमात्र बेटा अब्दुल्ला, दो वर्षों के पश्चात सऊदी अरब से कमा कर घर लौट रहा था | चौबीस जनवरी को ही वह मुम्बई एअरपोर्ट पर उतर चुका था | आज दोपहर तक वह आजमगढ़ स्थित अपने पैतृक गाँव पहुँचाने वाला था | माँ के ख़ुशी का ठिकाना ना था | माँ उसके स्वागत में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी | उसके कमरे को अच्छी तरह सजाया था | बिछावन के चददर, खिड़की -दरवाजे की परदे सभी बदल डाले थे |उसके लिए अपने हाथों से दो जोड़ी कुरता और पतलून बनाये थे | एक जोड़ी स्वेटर, एक मफ़लर और उन का ही हैण्ड ग्लव्स बनाकर पहले से ही रख लिए थे |सुबह से ही वह उसके पसंद कि अच्छी-अच्छी पकवान बना रही थी |
इनका परिवार आजमगढ़ के एक छोटे से गाँव में रहता था | गाँव में कुछ की मुश्लिम परिवार रहते थे |अधिकांश परिवार हिन्दू समुदाय के थे | लेकिन सब के सब इस तरह से मिलजुलकर रहते की कोई पहचान ना पाये की कौन हिन्दू है और कौन मुस्लमान | कोई भेद-भाव नहीं था | मुश्लिम जिस तरह दिवाली, दशहरा, होली में हिन्दुओं के साथ मिलकर खुशिया मनाते उसी तरह हिन्दू लोग भी मुश्लिमों के यहाँ ईद, बकरीद में शामिल होकर उन्हें मुबारकबाद देते और दावतें उड़ाते | अब्दुल्ला का परिवार गरीब था | हालाँकि अब्दुल्ला की माँ ने कुल चार बच्चो को जन्म दिया था लेकिन उसमे से तीन बच्चों का बीमारी से देहांत हो चुका था | उनके चारो संतानों में केवल अब्दुल्ला ही बचा था | परिवार में तब सिर्फ तीन ही लोग थे, माता-पिता और उनका एकमात्र पुत्र अब्दुल्ला | उसके पिता अफज़ल दूसरों के खेतों में मजदूरी करता तब जाकर इनका खर्च चलता | अब्दुल्ला देखने में बहुत सुन्दर था | पुरे गावं के लोग उसे बहुत प्यार करते | अधिकांश वह पड़ोशियों के घर में ही पड़ा रहता | पढ़ने लिखने में वह बचपन से ही होशियार था |
अचानक एक दिन इस परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा | अब्दुला के पिता का दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गया | घर में कमाने वाला अब कोई नहीं था | उसके माँ ने हिम्मत से काम लिया और परिवार की जिम्मेवारी अपने कंधे पर उठाने की ठान ली | कइयों ने तो उसे दूसरी शादी करने की सलाह दी | लेकिन पुत्र के भविष्य की चिंता कर उसने दूसर शादी से इंकार कर दिया था | दूसरों के खेत में मजदूरी करने लगी | और सिलाई -कढ़ाई कर अपना और अपने बेटे का पेट पालने लगी | अब्दुल्ला पढने -लिखने में बहुत होनहार था ही | पडोशी भी उसे पढ़ने में बहुत सहयोग करते थे | पड़ोसियों के सहयोग से उसने मैट्रिक तक की पढाई की | फिर लोगो की सलाह पर तकनीकी स्कुल से आईटीआई का कोर्स किया | फिर वह नौकरी तलाशने लगा | अब्दुल्ला के मामा सऊदी अरब में मजदूरी करते थे | उन्होंने अब्दुला के माँ से उसे अपने साथ अरब ले जाने का प्रस्ताव रखा | पहले तो माँ अपने बेटे को दूर भेजने से कतराती रही लेकिन एक दिन उसने अपने कलेजे के टुकड़े को दिल पर पत्थर रख कर उसके मामा के साथ सऊदी अरब में कमाने के लिए भेज दिया | दो बर्ष बीत चुके थे | आज वहाँ जाने के बाद वह पहली बार घर लौट रहा था | अपने पति के मृत्यु के पश्चात सदैव दुखी रहने वाली माँ आज बहुत खुश नज़र आ रही थी | वह बार-बार दरवाजे के बहार आकर रास्ता निहार रही थी | जैसे -जैसे घडी की सुइयां दोपहर की और घूम रही थी माँ के दिल की धड़कन खुशियों से बढ़ती जा रही थी | गाँव के किसी को देखते ही बिना पूछे बतला देती की आज उसका बेटा अब्दुल्ला घर आ रहा है | गाँव वाले भी यह सुनकर बड़े खुस होते |
ठीक साढ़े बारह बजे एक जीप उनके दरवाजे पर आकर रुकी | माँ फ़ौरन घर से बाहर निकली | जीप से पांच युवक अपने- अपने बैग लिए उतरे | माँ की नज़रे उन पांचों में से अपने लाडले को देखने के लिए इधर-उधर घूमने लगी | जीप से उतरते ही उनमे से एक युवक तेजी से तेजी से चलकर रेहाना बीबी को सलाम कर उसके गले से लिपट गया | रेहाना बीबी को भी उसे पहचानते देर ना लगी | यह और कोई नहीं, उसका लाडला अब्दुल्ला ही था जिसका वह सुबह से बेसब्री से इंतजार कर रही थी | माँ के आँखों से ख़ुशी के आंसूं निकल पड़े | अब्दुल्ला काफी बदला-बदला नज़र आ रहा था | वह शेरवानी पहन रखा था | उसने अपनी दाढ़ी भी बढ़ा ली थी |लेकिन मूछें गायब थी | सर पर टोकरीनुमा टोपी डाल रखा था |पतलून भी निचे से कुछ छोटा था | देखर किसी मस्जिद के इमाम की तरह नज़र आ रहा था | लेकिन रेहाना बीबी को उसे पहचाने में कोई दिक्क़त नहीं हुई | तब तक उसके चारों दोस्त भी उसके पास पहुँच गए |
अब्दुल्ला ने अपने साथ आये चारों मित्रों का परिचय करते हुए माँ से कहा - "अम्मी ये मेरे मित्र है | हमलोग एकसाथ ही रहते है | ये यहाँ मेरे साथ ही कुछ दिन ठहरेंगे |"
तभू चारों ने बढ़कर अब्दुल्ला के माँ को सलाम किया | माँ भी उन सभी को गले लगाकर दुआ दी | सभी को ले जाकर अब्दुल्ला के ही कमरे में बैठाया | पहले से ही तैयार गुलाब का शरबत पिने को दिया और कहा " तुमलोग काफी दूर से आये हो हाथ मुह धो कर तैयार हो जाओं मैं तुमलोगो के लिए गरमा-गरम नाश्ता ला रही हूँ |" हालांकि अब्दुल्ला के लिए माँ ने सिक कबाब और कॉफी की तैयारी कर ली थी लेकिन अब अब्दुल्ला अकेले तो था नहीं इसलिए माँ को फिर रसोईघर में जाना पड़ा | अब्दुल्ला भी अपने दोस्तों को घर में बैठाकर रसोईघर में अम्मी के पास पहुँच गया |
माँ ने एक कुर्सी लेकर दिया और उसे बैठ जाने को कहा | उसके कुर्शी पर बैठते ही वह पकौड़े तलने लगी और उससे कुशल-क्षेम पूछने लगी |
रेहाना बीबी- "बेटा तू तो एकदम दुबला हो गया है रे | ठीक से खाता-पिता नहीं क्या ?"
अब्दुल्ला -" दुबला कहाँ हुआ हूँ माँ | पुरे दस किलो वजन बढ़ गया है |"
रेहाना बीबी-" शायद दाढ़ी के कारण मुंह छोटा लग रहा है |"
अब्दुल्ला-"दाढ़ी रखना हम सभी मुसलमानो का कर्त्तव्य है माँ | इससे अल्लाह की दुआ मिलती है| हमारे पैगम्बर मुहम्मद साहब भी दाढ़ी रखते थे | हम उनका अनुसरण कर रहे है----- | "
अभी अब्दुला दाढ़ी पर कुछ और बोलता की उसकी माँ ने बीच में ही बात काट कर पूछा " नाश्ता -पानी करके दुबे जी के घर हो आना | जब से तू गया है रोज तुम्हारी समाचार लेते है | आज ही पूछ रहे थे की तू कितनी बजे पहुचेगा |"
अब्दुल्ला-" मुझे नहीं जाना किसी दुबे-चौबे के घर| "
रेहाना बीबी को शायद उसका नकारना पसंद नहीं आया इसलिए उसने समझने के अंदाज में बोली " नहीं बेटा ऐसा नहीं बोलते | जब तू छोटा था ना तो सारा दिन उन्ही के घर पर पड़ा रहता था | उनके बड़े बेटे के साथ खेलता | कभी कभी तो तू उनके घर ही खाकर सो जाता था |"
अब्दुल्ला-" तब कि बात कुछ और थी माँ | और तब मैं बहुत छोटा भी था कुछ नहीं जानता था | अब बड़ा हो गया हूँ और बहुत कुछ समझ चुका हूँ |"
रेहानाबीबी-" जानता है जब तुम्हारे अब्बू गुजर गए और पैसों कि दिक्क़त होने लगी तब दुबे जी ने ही मुझे हिम्म्त दिया और तुम्हारे पढाई के लिए हेडमास्टर साहब से कहकर तुम्हारी फ़ीस मांफ करवाई थी |"
अब्दुल्ला-" कोई अहसान नहीं किया |""
रेहाना बीबी-"यह अहसान नहीं तो क्या है बेटा?"
अब्दुल्ला -" अहसान तो तब होता जब मेरी फ़ीस अपने पैसे से चुका दिए होते |"
रेहानाबीबी-" उन्होंने ही शर्मा अंकल से कहकर उनके बच्चों कि पुरानी किताबें तुम्हे दिलवाई जिसे पढ़कर तुम मैट्रिक में पास हुए |"
अब्दुल्ला " मैंने सारे किताब पढाई के बाद शर्मा जी के बेटो को लौटा दिए थे |"
माँ की बातों का अब्दुल्ला पर कोई असर नहीं पड़ रहा था | वह अकड़ के साथ जबाब पर जबाब दिए जा रहा था |
रेहाना बीबी-" तू अहसान फरोस हो गया है रे | तू जानता है जीस आईटीआई के बदले तुझे नौकरी मिली है उसके लिए तुम्हारे सिंह अंकल ने कितने पापड बेलकर तुम्हे दाखिला दिलवाया था | तुम आज शाम जाकर सबसे मिलना उन्हें बहुत ख़ुशी होगी | गांव वालों का बड़ा अहसान है तुमपर | तुम लाख कुछ करके उनके अहसान का बदला नहीं चुका सकते | जिस दुर्दिन में इन लोगों ने हमारा साथ दिया था उसे नहीं भुलाया जा सकता | रिस्तेदारों ने तो खबर लेना तक छोड़ दिया था | उन्हें डर था कि कही कुछ मांग ना दे |"
अब्दुल्ला-" तू नहीं जानती अम्मी ये जितने दुबे, शर्मा, तिवारी, सिंह है सब के सब हत्यारे है | इनलोगों ने हमारे भाइयों का कत्लेआम किया है | हमारे माँ - बहनों के इज्ज्त के साथ खिलवाड़ किया है| इनसे मिलना तो दूर इनका चेहरा भी देख ले तो अल्लाह नाराज़ हो जाये | काफिर है सब |"
रेहानाबीबी-" तू ऐसी बहकी-बहकी बातें क्यों कर रहा है रे |"
अब्दुल्ला -" नहीं अम्मी | जब से मैं बाहर रहने लगा हूँ इनकी सच्चाई समझ में आ गई है |"
तू नहीं जानती कश्मीर में इन काफिरों ने हमारे मुश्लिम भाइयों को जबरन गुलाम बनाकर रखा है | उनकी रोज हत्याएं करते है | कश्मीरी महिलाओं के साथ बलात्कार किये जाते है | आज़ादी कि आवाज़ उठाने वालों को जबरन जेल में ठूस दिया जाता है या मार दिया जाता है | वे चाह कर भी अपनी बात नहीं रख पा रहे है |"
रेहाना बीबी-"लेकिन इनमे अपने गावं वालों का क्या दोस | वे तो मुझे अपनी बहन और तुम्हे अपने बेटे जैसा प्यार देते है | दूर कश्मीर के लोग तुम्हारे भाई -बहन और हमेशा तुम्हारा साथ देने वाले लोग काफिर कैसे हो सकते |"
अब्दुल्ला-" तू नहीं समझ सकती| तू तो जानती हैं ना कि दुबे जी ने अयोध्या में हुए कार सेवा में हिस्सा लिया था | इसी आंदोलन में वर्षों पुराने बाबरी मस्जिद को तोड़ दिया गया था | और सैकड़ो अपने कौम के लोग मारे गए थे | तब मैं छोटा था और कुछ नहीं समझ पाया था लेकिन नौकरी पर जाकर मेरी आँखे खुल गई | इन लोगों को ऐसा सबक सिखाना पडेगा कि फिर इनकों हमारे भाई -बंधुओं या मस्जिदों पर हाथ उठाने के नाम से रूह काँप जाये |"
रेहानाबीबी-" बाबरी-मस्जिद एक विवादित ढाचा था | मैं तो इतना जानती हूँ कि अपने गाँव के कच्चे ईदगाह को पक्का बनाने के लिए गाँव के हिंदुओं ने यदि मदद नहीं किया होता तो आज तक ये ईदगाह कच्चा ही रह जाता | शर्मा जी ने तो पुरे एक हज़ार ईटें दान में दी थी | सिंह जी अपने कबरस्तान को दीवाल से घिरवाने के लिए पुरे गाव वालों से चन्दा इकठा किये थे | दूर बैठे लोग जिनको तुमने कभी देखा नहीं जिनसे तुम्हे कभी कोई जरुरत नहीं पड़ी वो तुम्हारे भाई-बंधू कैसे बन गए और जो दिन-रात तुम्हारी मदद को तैयार रहता हो उसे तुम अपना दुश्मान मान कर सबक सिखाने की बात करते हो | जरुर तू किसी के बहकावे में आ गए हो | "
अब्दुल्ला -" इन्ही के भाई -बंधुओं ने गोधरा में अपने निर्दोष मुश्लिम भाइयों -बहनों, माताओं का कत्लेआम किया | और तुम कहती हो कि मैं उनसे मिलु और सलाम करूँ | ऐसे लोगों को सलाम करना हराम है |इन्हे तो ऐसा सबक सिखाऊंगा कि इतिहास गवाह बन जायेगा |"
रेहानाबीबी-" एक बात जान ले गोधरा में ना तो तुम्हारा कोई रहता है ना ही अपने गांव का कोई है | कश्मीर, अयोध्या गोधरा को अपने गांव में ना ला | अपने गांव के लोग जाती, धर्म के ऊपर एकसाथ मिलकर भाई-भाई जैसा अमन और भाईचारा के साथ रहते है | ईद, मुहरम में जीतनी संख्या में अपने कौम के लोग हिस्सा लेते है उससे ज्यादा दूसरे कौम के लोग भी इस पर्व में शामिल होते है | यहाँ हम होली और दीवाली में ऐसे घुल मिल मिल जाते हैं कि पता ही नहीं चलता कि कौन हिन्दू है या कौन मुसलमान | इसलिए बहकना छोड़ और ये ले गरमा -गरम कबाब तेरा सबसे पसंदीदा नाश्ता |" रेहाना बीबी ने कबाब का एक प्लेट अब्दुल्ला की और बढ़ाया |
अब्दुल्ला-" तू बहुत भोली है | लेकिन तेरा औलाद अब फौलाद बन गया है | काफिरों का सत्यानाश करके रहेगा |"
रेहानाबीबी को अपने बेटे के बात-चित से बहकने की बू आने लगी थी | उसका मन कुछ अनहोनी के डर से घबड़ाने लगा था|
उसने नास्ते का प्लेट सजाया और देने के लिए अब्दुल्ला के कमरे में गई जहाँ उसके चारो मित्र बैठकर किसी गम्भीर मंत्रणा में मशगूल थे |
रेहानाबीबी को आते देख सभी अचानक चुप हो गए | एक के हाथ में एक कागज़ का टुकड़ा था | कुछ सामग्रिया थी जिसे सभी ने मिलकर एक कपडे से ढक दिया |
एक मित्र-" अम्मी आपने कष्ट क्यों किया | हम खुद आ कर नास्ता ले लेते |"
रेहाना बीबी-" नहीं बेटे तुमलोग पहली बार मेरे घर आये हो | मेरे बेटे के दोस्त हो | मेरे बेटे समान हो | नाश्ता करों मैं तुमलोगों के लिए गरम-गरम कॉफी ला रही हूँ | भोजन में बिरियानी बना रही हूँ | तुमलोग नाश्ते के बाद नहा-धो लेना | मैं भोजन तैयार कर रही हूँ |
दूसरा मित्र-" अम्मी आज तो कुछ भी खिला दे | लेकिन कल शाम को कुछ स्पेशल होना चाहिए | कल हम लोगों के लिए बहुत स्पेशल दिन है |"
रेहाना बीबी-" हाँ बेटों कल गणतंत्रता दिवस है | मैं तुमलोगों के लिए कल स्पेशल खाना बनाउंगी|"
एक ने धीमे शब्दों में कहा " कल का गणतंत्रता दिवस स्पेशल होगा"
अब्दुल्ला ने सबको इशारों में आगे कुछ कहने से मना किया |
रेहानाबीबी को इन मित्रों के बात-चित, हाव -भाव और गतिबिधियां संदेहास्पद लग रही थी | वह कपड़ों में छिपाये चीजों को दूर से ही देखने का प्रयास कर रही थी |
उसने सबको कबाब खिलाने के बाद कॉफ़ी पिलाई | थोड़ी देर के बाद जब वे नहाने के लिए बाहर वाले तालाब पर गए तो उसने कमरे में जाकर जो कुछ देखा उसे देखकर वह दंग रह गई |
कुछ खिलौने, धातु के कुछ छड़, तार, बैटरी, घड़ीनुमा यंत्र, टिफिन बॉक्स एक कागज़ पर आजमगढ़ जिला मुख्यालय का मानचित्र |
" अरे !ये तो वही चीजें है जिन्हे कई दिनों से दूरदर्शन पर दिखाकर सावधान रहने को कहा जा रहा है |" रेहानाबीबी को समझते देर ना लगी कि उसका बेटा और उसके मित्र बहक चुके है और यहाँ आतंकवादी गतिबिधियों को अंजाम देने आये है | उसने निर्णय किया कि वह उनको उनके मकसद में सफल नहीं होने देगी और यह सब कुछ नष्ट कर देगी | लेकिन फिर ख्याल आया कि इससे क्या होगा | आज नहीं तो कल ये जरुर अपनी हरकत करेगें | अतः कुछ दूसरा उपाय सोचना होगा | उसे दूसरा उपाय सोचते देर नहीं लगी |
नहा-धोकर सभी खाने के मेज पर बैठे | रेहानाबीबी एक-एक कर सबकों खाना परोस रही थी | वह शांत थी | आँखों में आसूँ भरे थे लेकिन वह उसे टपकने के पहले ही पोछ दे रही थी | सभी खाने में मसगुल थे | किसी ने रेहानाबीबी की डरी सहमी और रोनी सूरत की ओर देखने की भी जरुरत नहीं समझ रहे थे | अभी खाना खाना शुरू हुए कुछ ही समय हुआ था कि सभी को नींद जैसा अनुभव होने लगा | जहर ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया था |
रेहाना बीबी के आंसू टपकने लगे थे | वह मन ही मन बोले जा रही थी " अल्लाह मुझे मांफ करना| अल्लाह मुझे मांफ करना"
थोड़ी ही देर में सब शांत हो गए थे, हमेशा के लिए | माँ ने अपने बेटे के निर्जीव शरीर को देखा और रोते हुए बोली " ज़ेहाद जिन्दावाद| मादरे वतन जिन्दावाद "