Majhab juda sahi, magar hum ek hai in Hindi Drama by vineet kumar srivastava books and stories PDF | मज़हब ज़ुदा सही, मगर हम एक हैं

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मज़हब ज़ुदा सही, मगर हम एक हैं

मज़हब ज़ुदा सही, मगर हम एक हैं |

मंच का पर्दा बंद है | पीछे से गाड़ियों के आने-जाने की ध्वनि, गाड़ी के सीटी देने की आवाज तथा गार्ड के सीटी देने की आवाज क्रमशः सुनाई देती है | इसके साथ ही पर्दा खुलता है |

पर्दा खुलते ही दर्शकों को मंच पर किसी प्लेटफॉर्म के दृश्य वाला चित्र दिखाई देता है | प्लेटफॉर्म के पास ही एक रेल का डिब्बा है जिसमें दो सीटें पड़ी हैं | एक सीट पर एक लाला जी अपना बिस्तर तथा सामान फैलाए आराम से लेटे हैं | सामने की सीट पूरी तरह खाली है | वातावरण में दर्शकों को किसी रेलवे प्लेटफॉर्म का एहसास होता है | पर्दे के पीछे से चाय-गरम, बीकानेरी भुजिया, गरम समोसे आदि बेचने वालों का स्वर गूंजता है | इतने में पर्दे के पीछे से ही उद्घोषक की तेज आवाज माइक पर सुनाई देती है-"यात्रीगण कृपया ध्यान दें | लखनऊ से दिल्ली जाने वाली राजधानी एक्सप्रेस प्लेटफॉर्म नंबर दो पर खड़ी है और अपने निश्चित समय से जाएगी | (दो बार) कुछ रुक कर-लखनऊ से दिल्ली जाने वाली राजधानी एक्सप्रेस प्लेटफॉर्म छोड़ रही है |"

यह उद्घोषणा सुनकर लोगों में लगभग भगदड़ सी मच जाती है | सब एक-दूसरे को धक्का देते हुए आगे बढ़ते हैं | (गाड़ी के सीटी देते हुए आगे बढ़ने की ध्वनि ) ट्रेन के डिब्बे के पास तेज कदमों से चलते हुए एक ईसाई और मुल्ला जी का डिब्बे के अंदर प्रवेश होता है | दोनों ही लाला जी के सामने वाली सीट के ऊपर अपना सामान रख दते हैं और वहीँ बैठ जाते हैं |

मुल्ला जी-या अल्लाह ! कितनी उमस हो रही है |

ईसाई-यस, इट्स वेरी हॉट ! बाई द वे, आप कहाँ तक जा रहे हैं ?

मुल्ला जी-मुरादाबाद | अपनी फूफी के पास |

ईसाई-(हाथ से हवा करते हुए )लाला जी, आप कहाँ तक जाएंगे ?

लाला जी-(चश्मा ठीक करते हुए )मैं अपने लड़के के पास जा रहा हूँ |

मुल्ला जी - (मुस्कुराते हुए) लड़के के पास ! मेरे ख़्याल से इस नाम का कोई स्टेशन इधर नहीं पड़ता | अमां, सीधे से बतलाइये कि आपको मुरादाबाद, रामपुर, दिल्ली कहाँ जाना है ? (मुल्ला जी हँसते हुए कहते हैं )

नेपथ्य में गाड़ी के सीटी देने और चलने की ध्वनि सुनाई देती है | डिब्बे के बाहर कई आदमी भीड़ लगाकर अंदर चढ़ने की कोशिश कर रहे हैं | इसमें एक सरदार जी और एक बिहारी भी है | सरदार जी डिब्बे के दरवाजे का हैंडल पकड़ लेते हैं और कुछ तेज एवं हड़बड़ाहट की आवाज में कहते हैं-

सरदार जी-ओए, परां हट्ट ! मैनू अंदर जाणे दे |अबे ओए , सुनदा नई है कबूतर दी औलाद ! (धक्का देते हुए) ओधर हट्ट (सरदार जी धक्का-मुक्की करते हुए ट्रेन के डिब्बे में प्रविष्ट हो जाते हैं )

बिहारी अभी भी डिब्बे के दरवाजे का हैंडल पकड़े प्लेटफॉर्म पर ही खड़ा है और भीतर आने का पूरा प्रयास कर रहा है | वह एक हाथ से हैंडल पकड़े हुए ही दूसरे हाथ से अपने झोले को उठाकर डिब्बे में अंदर की ओर लोगों को धक्का देते हुए कहता है-

बिहारी-आरे भाई, तू लोग रस्तवा काहे का छेकेलबा | (वह दूसरे व्यक्तियों को ठेलते हुए डिब्बे के अंदर प्रविष्ट हो जाता है | बिहारी के साथ ही एक ग्रामीण भी भीड़ को चीरता हुआ अंदर पहुँच जाता है | अंदर पहुंचकर वे दोनों तरफ की सीट को घिरा हुआ पाते हैं |)

सरदार जी-अरे लाला जी, अपना सामान परे करां | मैनू बी बैठण दे |

लाला जी एक ओर थोड़ी सी जगह दे देते हैं और कहते हैं-बेटा यह सीट हमने पूरी ही रिजर्व कराई है | खैर, एक तरफ तुम भी बैठ लो |

इधर बिहारी ईसाई और मुल्ला जी की ओर मुखातिब होकर-"आरे भाई, तू लोग जगहबा काहे का घेरेलबा ? हमका भी बइठे दा |

मुल्ला जी-अरे मियाँ, यहॉं कहाँ जगह है ?

ईसाई-इधर में इतना स्पेस नहीं है | हम तो ....

बिहारी - (ईसाई की बात को काटते हुए) इस पेस विस् पेस ना करल | हमका भी बैठे दा, समझा की नाहीं | आरे , हम भी टिकिट लिया हूँ |

मुल्ला जी-अमां उखड़ क्यूँ रहे हो ? सीधी सी बात तुम्हारे भेजे में नहीं आती |कश्मकश में ना तुम ही इत्मीनान से बैठ पाओगे और ना ही हमारा सफ़र सुकून से कट पाएगा |

ग्रामीण-सीधे से अपन अल्ली-बल्ली एक लई कई लेव नहीं अबहें एक रहपटा देइब |

बिहारी-आरे भाई, हमहूँ सीधे कहत बा | सामान हटावा | (यह कहकर बिहारी मुल्ला जी का सामान एक ओर ठेलकर जबरदस्ती बैठने की कोशिश करता है परन्तु मुल्ला जी जल्दी से अपना सामान फिर उसी स्थान पर खिसका लेते हैं और दूसरे हाथ से बिहारी की पीठ को ठेलते हैं | इससे बिहारी लड़खड़ा जाता है | वह गुस्से से मुल्ला जी के हाथ को झिड़क देता है और तेज आवाज में कहता है-

"ई का तोहरे बाप की गड़िया बा ? सामान हटावा | का जाने कहाँ से आए जात हैं रेलगड़िया मा सफ़र करे ख़ातिर | बइठे का भी सऊर नाय |"

ग्रामीण मुल्लाजी और ईसाई का सामान उठाकर सीट के नीचे रख देता है और जबरदस्ती बैठ जाता है तथा बिहारी को भी बैठा लेता है | मुल्ला जी और ईसाई दोनों इस अनहोनी से विचलित होकर ग्रामीण को गुस्से से घूरते हैं |

ईसाई-ओ गॉड ! ही हैज़ नो मैनर टू बिहैव बिद ...

ग्रामीण-ई गिटिर-पिटिर हमसे किहेव ना | चियाएँ के बैठव |

मुल्ला जी-(दोनों हाथ नमाज की मुद्रा में करके ऊपर की ओर देखते हुए )या अल्लाह !क्या जमाना आ गया है |तहज़ीब और शराफ़त नाम की चीज़ ही नहीं रह गई |

ग्रामीण-ज्यादा तीन-पांच करौ नाही | अबहें बक्सा समेत खाले फेंकि देइब | तुम ...

ग्रामीण कुछ और कहने जा रहा था कि सामने से आते टीटी को देखकर चुप हो गया |

टीटी- टिकट दिखाइए | (इतना कहकर वह डायरी पर पेन से कुछ लिखने लगता है | कोई टिकट नहीं निकालता, सबके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही हैं | टीटी तेज आवाज में कहता है |)

टीटी-लाइए, लाइए, टिकट दिखाइए ...क्या बात है ? आपने सुना नहीं, मैं क्या कह रहा हूँ ?

बिहारी-(याचना के स्वर में) टीटी बाबू, हमरे पास तो टिकट नइके बा | जल्दी-जल्दी मा हम टिकटवा लेब भूल गइली |

टीटी(चिढ़कर) - हाँ-हाँ टिकट लेब भूल गइली अऊर गड़िया मा चढ़ल नाहिन भूल गइली ? चलो, जुर्माना भरो |

बिहारी(अपने में बड़बड़ाते हुए ) - हे राम !अब का करी | जाने कउन गिरह-लगन मा हम रेलवा मा बइठल बा के ई जमदूत आई गइली |

दूसरी तरफ सरदार जी कनखियों से टीटी की तरफ देखकर अपने में ही कुछ बड़बड़ाए जा रहे हैं |

सरदार जी (बहुत ही धीमे स्वर में)-सच्चे बादशाह ! अब तेरा ही भरोसा है | हुण मैं कीं करां, मैं तो टिकट भी नई ली |

अब टीटी ग्रामीण से टिकट के लिए कहता है |

ग्रामीण-साहेब , दक्खिन मुँह बइठ हैन, आपसे झूठ नाय बोलिब | गाड़ी छूटी जात रहै, तबहिं हम दौरि केर चढ़ि लिहेन | साहेब, टिकटु तो हमरे पासौ नाही है |

टीटी-चलो ढाई सौ रुपया जुरमाना भरो |

ग्रामीण-साहेब हम गरीब मनई, इत्ता पैसा कहाँ से देइब ?

इधर बिहारी मन ही मन भगवान को याद कर रहा है-हे भगवान, अब तो हम तोहरे ही भरोसे बा |हमका ई झन्झटवा से बचावा |

ईसाई खड़े होकर बड़ी शराफत के साथ टीटी को अपने टिकट न ले पाने का कारण बताता है-

ईसाई-सर, अनफॉर्चुनेट्ली आई मिस द टिकट | बाई द वे, व्हाट शुड आई पे फॉर दैट....

टीटी झुंझलाकर सरदार जी की ओर मुखातिब होता है-"और सरदार जी, आपका टिकट कहाँ है ? मुल्ला जी, आप भी टिकट निकालिये |

सरदार जी (खड़े होकर, बड़ी दयनीय मुख-मुद्रा बनाकर) - प्राजी, गड्डी टेशन नाल आ गई सी | मैनूं वेखा और टिकट खिड़की नाल गया बी लेकिन देखता क्या हूँ गड्डी चल पड़ी | बस मैं आव न देखा ताव, झट से गड्डी की ओर भागा और चढ़ गया | तुस्सी मेरी गल दा यकीन करां |

अब टीटी मुल्ला जी की ओर मुड़ा-"और मुल्ला जी, आप की क्या कहानी है ?"

मुल्ला जी-ज़नाब, अब मैं क्या बताऊं | मुझे तो क़िबला स्टेशन पर ही आने में देर हो गई थी | वह क्या है कि बेगम ने गिलौरी बनाने में ज़रा देर कर दी और बस ज़नाब उसी का खमियाज़ा भुगतना पड़ रहा है | ज़नाब, गलती तो हो ही गई है | क़िबला आप जो जुर्माना कहेंगे, मुझे कबूल है |

टीटी लाला जी की तरफ बढ़ता है और लाला जी का टिकट देखकर उन्हें वापस कर देता है | फिर सबकी ओर मुखातिब होकर कहता है-"आप सभी लोग ढाई-ढाई सौ रुपया जुर्माना निकालिये |

ईसाई, मुल्लाजी, ग्रामीण, बिहारी और सरदार जी, सभी लोग अपनी-अपनी जेबें टटोलने लगते हैं | किसी के पास पूरे पैसे नहीं निकलते | यह देखकर टीटी बौखला जाता है और गुस्से में भरकर कहता है-"तुम लोगों ने आख़िर समझा क्या है ? क्या तुम्हें नहीं पता कि ट्रेन में बिना टिकट सफ़र करना कानूनी अपराध है ?"

ग्रामीण गिड़गिड़ाते हुए कहता है- साहेब जी, हम तो गरीब मनई हैन | ढाई सौ रुपिया हमरे तीर नाही हैं |

बिहारी-टिकिट बाबू, जुर्माना हमरे के पास पूरा नाहिन होईले | हमका माफ़ करा | आज से कसम खाइत हैं कि बिना टिकटवा कभी गड़िया मा ना बैठिब |

टीटी तेज आवाज में कहता है-"सरकारी गाड़ी को अपने बाप की गाड़ी समझ ली है ! आने दो अगला स्टेशन, सबको अंदर कर दूँगा |

अब लाला जी बोलते हैं - अरे साहब, अब बस भी करो | गलती तो इन सबसे हुई ही है | जो कुछ जिसके पास हो, ले के मामला रफ़ा-दफ़ा करो |

टीटी-अरे वाह लाला जी, पढ़े-लिखे होकर आप भी क्या बात करते हैं ! नियम सबके लिए बराबर है | जुर्माना नहीं भरेंगे तो अंदर जाएँगे ही |

लाला जी(सब लोगों से मुख़ातिब होकर) - आप लोगों के पास कितने-कितने पैसे कम हैं ?

ईसाई-लाला जी, मेरे पास पैसे तो पूरे हैं लेकिन आगे के कन्वेन्स के लिए प्रॉब्लम हो जाएगी |

लाला जी-चिंता मत कीजिये | आगे के कन्वेन्स के लिए मैं हेल्प कर दूँगा, आप जुर्माना भर दीजिये |

ईसाई जुर्माना भर देता है |

अब लाला जी मुल्ला जी से पूछते हैं-ज़नाब, आपके पास कितने पैसे कम हैं ?

मुल्ला जी-मियाँ, हमारे पास यही कोई पिचहत्तर रूपए कम हैं |

लाला जी मुल्ला जी के पिचहत्तर रूपए टीटी को दे देते हैं |

बिहारी सौ रूपए कम होने की बात कहता है और ग्रामीण तो बस चालीस रूपए ही पास होने की बात कहता है | लाला जी उन दोनों को आश्वस्त करते हैं | बिहारी के सौ रूपए और ग्रामीण के पूरे पैसे लाला जी टीटी को दे देते हैं |

टीटी-लाला जी, आप किसी को जानते नहीं फिर भी आपने ऐसा क्यों किया ?

लाला जी-मैंने कोई बहुत बड़ा काम नहीं क्या है | कुछ पैसों की ही तो मदद की है | रही बात इनके अपरिचित होने की, तो लखनऊ से दिल्ली के इस सफ़र में जो भी इस कम्पार्टमेंट में आ गया, वह कुछ समय के लिए ही सही, मेरा हमसफ़र हो गया | कहते हैं न कि किसी के भी साथ दो क़दम चलने से ही मित्रता हो जाती है | तो इस तरह से ये सब लोग मेरे मित्र हो गए हैं | मित्रों को संकट से उबारना ही एक अच्छे मित्र का धर्म है |

टीटी -लेकिन लाला जी, आप ठहरे तिलकधारी हिन्दू और यह ईसाई, वह मुसलमान और यह बिहारी और वह गंवार | दो कदम की मित्रता की बात तो चलिए ठीक है लेकिन आपने धर्म से ऊपर उठकर अलग-अलग धर्मों को मानने वालों की मदद की ? क्या धर्म -मज़हब जैसी भेदभाव की बात आपके मन में ज़रा भी नहीं आई ?

लाला जी (मुस्कुराते हुए) - अरे साहब, कौन सिख और कौन ईसाई ? कहाँ के बिहारी और कहाँ के मुसलमान? हैं तो सब इसी देश के ही | मैं तो बस इतना जानता हूँ कि हम सब भारतीय हैं और इस नाते से हम सबका एक ही मज़हब हुआ, वह है-भारतीय | हममे धार्मिक अलगाव की भावना के स्थान पर भारतीयता की भावना कूट-कूटकर भरी होनी चाहिए | क्या बिहार, पंजाब या यूपी भारत से अलग है ?नहीं न |तो फिर भाषा-प्रांत या जाति के आधार पर मनुष्यों का वर्गीकरण करने वाले हम कौन होते हैं ? हमें तो बस इतना जानना चाहिए कि इस पृथ्वी और इस देश के वासी होने के नाते हम सब भाई-भाई हैं | भले ही हम सबका मज़हब ज़ुदा है मगर हम एक ही ईश्वर की संतान होने के नाते एक हैं | लेकिन आप सब लोग प्रतिज्ञा कीजिये कि अब कभी बिना टिकट यात्रा नहीं करेंगे | रेल भी आप की सम्पत्ति है | इसके रख-रखाव के लिए और आपको मंज़िल तक पहुँचाने के लिए अगर सरकार टिकट लेती है तो आपको इसमें सहयोग करना चाहिए | बिना कीमत चुकाए किसी भी वस्तु का उपयोग करना पाप है, अपराध है |

सभी लोग एक साथ कहते हैं - हम प्रतिज्ञा करते हैं कि आज के बाद हम लोग कभी भी बिना टिकट यात्रा नहीं करेंगे | टीटी इस कम्पार्टमेंट से अगले कम्पार्टमेंट की ओर बढ़ जाता है और सभी यात्री आपस में फिर बातें करने लगते हैं | सीटी की आवाज सुनाई देती है और रेलगाड़ी अपनी मंज़िल की ओर बढ़ती रहती है |