Parabhav - 14 in Hindi Fiction Stories by Madhudeep books and stories PDF | पराभव - भाग 14

Featured Books
Categories
Share

पराभव - भाग 14

पराभव

मधुदीप

भाग - चौदह

दो मास बाद जब मनोरमा ने अपनी सास को बताया कि वह गर्भवती है तो सुनकर उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने आसमान से चाँद तोड़कर उसकी झोली में डाल दिया हो | छह वर्ष बाद आखिर भगवान ने उसकी प्रार्थना सुन ली थी | खुशी के कारण उसके चेहरे की झुर्रियाँ और भी अधिक गहरी हो गई |

"क्या सच कह रही है बहू तू?" अपनी खुशी को दबाते हुए वह पूछ उठी |

"हाँ माँजी |" मनोरमा सिर्फ इतना ही कह सकी |

"है प्रभु! आखिर तुमने मेरी सुन ही ली |" कहते हुए सास ने मनोरमा को स्नेह से अपने सीने से लगा लिया |

मनोरमा ने एक लम्बे समय के पश्चात् अपनी सास का यह प्रेम भरा रूप देखा था | पिछ्ले पाँच वार्षों में तो उसने अपनी सास के ताने और झिड़कियाँ ही सुनी थीं | वह अपनी सास की छाती से लगी सुख अनुभव कर रही थी |

"जा, तू जाकर अपने कमरे में जाकर आराम कर | आज से तू किसी काम को हाथ मत लगाना |" सास मनोरमा को प्यार से झिड़कते हुए कह रही थी | मनोरमा को इस झिड़की में भी सुख अनुभव हो रहा था |

"नहीं माँजी, यह कैसे हो सकता है कि आप काम करें और मैं आराम करूँ |" मनोरमा ने चाहे भावनावश कहा था मगर यह कहकर उसने अपना कर्तव्य पूरा कर दिया था |

"जा...जा...ज्यादा बातें न कर! जैसा मैं कहती हूँ वैसा ही कर |" सास ने उसे एक बार फिर प्यार से झिड़क दिया |

इस बार मनोरमा अपनी सास से कुछ न कह सकी और चुपचाप अपने कमरे में लौट गई | माँ का प्यार उससे बचपन में ही छीन गया था मगर आज उसे सास के व्यवहार से अपनी माँ की याद आ गई थी | एक क्षण के लिए वह भूल गई कि इस सुख को प्राप्त करने के लिए उसे कितना बड़ा मूल्य चुकाना पड़ा है | सब-कुछ भूलकर वह आत्मविभोर हो गई |

सास बाहर के कमरे में बैठकर चर्खा कातने लगी थी | चर्खे की घर्र...घर्र के साथ आज उसके मुँह से गीत के स्वर भी फूट रहे थे | इसी बीच जो भी उनके घर के सामने से गुजरा, उसने सब को रोक-रोक कर किसी-न-किसी बहाने से अपनी बहू के पाँव भारी होने का समाचार सुना दिया |

शाम को विद्यालय से लौटने पर श्रद्धा बाबू को भी माँ ने यह खुशी का समाचार सुना दिया | इस समाचार को सुनकर उस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई | वह एकाएक खामोश हो गया | माँ की खुशी पर उसे सन्तोष था मगर वह कैसे खुश होता! आखिर वह एक मनुष्य ही तो था |

"बेटा, भगवान ने मेरी सुन ली | मरने से पहले मेरी बस यही एक इच्छा थी |" माँ की आवाज से खुशी झलक रही थी और उसकी बूढ़ी आँखों में चमक आ गई थी |

श्रद्धा बाबू कुछ न कहकर चुपचाप अन्दर कमरे में चला गया |

समाज को यदि मनोरमा के विषय में ज्ञात होता तो एक तरफ तो वह उसे चरित्रहीन और कलंकिनी ठहराता और दूसरी तरफ उसे पति की आज्ञा पालन करने के लिए आदर्श मानता | यदि समाज उसे न्याय की तराजू पर चढ़ाता तो निश्चित रूप से ही तराजू के दोनों पलड़े डगमगा कर रह जाते | मनोरमा जैसी नारी को शायद यह समाज कभी भुला नहीं पाएगा, जिसने पति आज्ञा का पालन करने के लिए अपने संस्कारों को भी तोड़ दिया |

श्रद्धा बाबू और मनोरमा जब से शहर से वापस लौटे थे, तब से ही पत्नी के प्रति श्रद्धा बाबू की अपेक्षा बढ़ती जा रही थी | वह लाख प्रयास करता कि पत्नी को वही प्यार दे परन्तु वह चाहकर भी इस बात को नहीं भुला पाता था कि उसकी पत्नी किसी पर-पुरुष से सम्बन्ध स्थापित कर चुकी है | सब-कुछ उसी की इच्छा से हुआ था परन्तु उस समय तो उसने आदर्श में बहकर और पत्नी के समक्ष ऊँचा उठने के भावना से रंजन से पत्नी का सम्बन्ध करा दिया था मगर अब वह इसे सहन नहीं कर पा रहा था | इस दो महीनों में वह एक बार भी तो पत्नी से नहीं जुड़ पाया था |

मनोरमा अपने पति की उपेक्षा से दुखी थी | वही घटित हो रहा था, जिसकी उसे आशंका थी मगर उसे कहीं यह विश्वास था कि शायद बच्चा होने के बाद पति का व्यवहार उसके प्रति फिर मधुर हो जाएगा | उसे सास का स्नेह मिल रहा था और घर में भी शान्ति थी |

जैसे-तैसे समय व्यतीत हो रहा था | पहले वह सास द्वारा अपमानित होती थी, अब पति द्वारा उपेक्षित हो गई थी |

मनोरमा को लड़का हुआ था | समाज के सामने श्रद्धा बाबू ने खुशी मनाई, मिठाई बाँटी; मगर वह पिता बन गया है, इस भावना को अपने अन्दर न ला सका |

श्रद्धा बाबू की माँ ने गाँव भर में मिठाई बाँटी | सात दिन से गीत गाए जा रहे थे, घर में खुशियाँ मनाई जा रही थीं मगर इन सब खुशियों के मध्य श्रद्धा बाबू का मन खिन्न था |

श्रद्धा बाबू किसी काम से अन्दर जा रहा था | बच्चे और माँ को कुछ स्त्रियों ने घेर रखा था |

"अपने बाप से तो इसकी शक्ल नहीं मिलती |" पास से गुजरते हुए जब श्रद्धा बाबू ने उस बूढ़ी औरत की बात सुनी तो उसके मन को एक जोर से धक्का लगा |

"अपनी माँ पर गया है |" श्रद्धा बाबू की माँ उस औरत से कह रही थी |

एक पल को वहाँ ठिठककर वह सोच उठा-‘बाप पर कैसे, माँ पर ही तो जाएगा या फिर...| ’ सोचकर उसका मन घृणा से भर गया और वह एक झटके के साथ वहाँ से हट गया |

सास ने बच्चे का नाम कृष्ण रखा था | घर में बच्चे के लिए पालना डाल दिया गया | वह घंटो बैठी उसे झुलाती रहती और जागने पर उस अबोध से बतियाने लगती | उसकी दिनचर्या बच्चे की देख-भाल में सिमट गई | मनोरमा के पास तो वह बच्चे को सिर्फ दूध पीने अथवा रात को सोने के लिए ही जाने देती |

रात्रि को श्रद्धा बाबू देर तक बाहर घूमकर घर लौटा | मनोरमा अपने कमरे में बैठी हुई बच्चे को खिला रही थी |

"देख बेटा अपने पापा को |" पति के आने पर बच्चे का मुँह उनकी ओर करते हुए मनोरमा ने कहा |

"पापा...|" सुनकर श्रद्धा बाबू के एक झटका-सा लगा |

"मैं कपड़े ठीक कर देती हूँ, आप तनिक मुन्ने को पकड़ लें |" मनोरमा ने बच्चे को उसकी ओर बढ़ाया तो बेमन से झिझकते हुए श्रद्धा बाबू ने उसे ले लिया | मनोरमा बिस्तर ठीक करने लगी |

"लो इसको पकड़ो, मैं बिस्तर स्वयं ठीक कर लूँगा |" दोनों हाथों से पकड़कर बच्चे को स्वयं से अलग करते हुए श्रद्धा बाबू ने कहा |

"पेशाब कर दिया क्या?" कहते हुए मनोरमा ने बच्चे को ले लिया तो श्रद्धा बाबू बिस्तर ठीक करने लगा |

"चल शैतान, पापा पर पेशाब कर दिया |" हँसते हुए बच्चे को दुलारकर मनोरमा ने कहा |

श्रद्धा बाबू को पत्नी का बार-बार उसे ‘पापा’ पुकारा जाना अच्छा नहीं लग रहा था | उसका मन हुआ कि चिल्लाकर कह दे कि वह किसी का पापा नहीं है लेकिन कुछ न कह, वह अपने बिस्तर पर लेट गया |

साथ के बिस्तर पर मनोरमा बच्चे के साथ लेटी हुई सोने का प्रयास कर रही थी | दोनों ही जाग रहे थे मगर एक-दुसरे को सोने का धोखा दिए हुए, आँख बन्द कर लेटे हुए थे |

कुछ देर पश्चात् बालक रोने लगा | मनोरमा उसे चुप कराने लगी मगर उसकी काफी कोशिश के बाद भी वह चुप न हुआ |

"मनोरमा इसे चुप कराओ, यह तो हमें सोने भी नहीं देगा |" खीझकर श्रद्धा बाबू ने कहा |

"बच्चे के साथ तो यह सब होता ही है | मैं क्या करूँ, चुप ही नहीं होता | तनिक आप उठकर टहला लें |" मनोरमा ने सहज भाव से कहा |

"तुमसे ही चुप नहीं होता तो मुझसे कैसे होगा?" कहकर वह चुप हो गया | बच्चा कुछ देर यूँ ही रोता रहा |

"अरे, इसने तो टट्टी कर रखी है!" बिस्तर से उठते हुए मनोरमा ने कहा, "आप उठकर थोड़ा-सा पानी डाल दें, इसने तो सारा शरीर गन्दा कर रखा है |"

"मुझे नींद आ रही है |" झुँझलाते हुए श्रद्धा बाबू ने कहा |

सुनकर मनोरमा को एक धक्का-सा लगा | वह सिर्फ उस अकेली का बच्चा था इसीलिए तो उसका पति यह कह रहा था | वह पति की बौखलाहट और उपेक्षा को समझ गई थी | वही घट रहा था, जिसकी उसे आशंका थी मगर वह विवश आँसू पीने के और क्या कर सकती थी!

"प्लीज, एक बार उठ जाओ ना |" मनोरमा ने एक बार फिर धीमी आवाज में अनुरोध किया |

श्रद्धा बाबू उठ गया | उसने पानी भी डाल दिया मगर इसके बाद मनोरमा देर तक बिस्तरे पर पड़ी सोचती रही कि इस बच्चे का और उसका स्वयं का भविष्य क्या होगा!