आपातकाल और सुंदर – प्रथम भाग
आपातकाल का समय था, प्रशासन और पुलिस को सभी तरह की मनमानी करने का अधिकार मिला हुआ था। देश के सभी गुंडे बदमाश राजनीति में आ गए थे, जिसने राजनीति में आने से मना कर दिया उसको पकड़ कर जेल में डाल दिया गया। गुंडे बदमाश जो राजनीति में आ गए थे वे अब नेता बन गए और स्वछंद होकर अपने सारे गलत काम कर रहे थे क्योंकि पुलिस और प्रशासन उनको पूरी तरह सहयोग कर रहा था। सभी नेताओं को चंदा वसूली और नसबंदी के टार्गेट दे दिये गए थे अतः वे पुलिस और प्रशासन की मदद से जवान, अविवाहितों की भी जबरन नसबंदी करवा रहे थे। पुलिस ने तो लोगों के मन में इतना आतंक पैदा कर दिया था कि कोई भी व्यक्ति नेताओं के विरुद्ध कुछ भी बोलने से डरता था।
सुजान पुर के थानेदार दुर्जन सिंह नाई से अपनी हजामत बनवा रहे थे। दुर्जन सिंह ने शीशे में देखा कि कोई व्यक्ति उसके पीछे वाली बेंच पर आकर बैठ गया। व्यक्ति ने सफ़ेद प्रैस वाला कुर्ता पहना हुआ था। गर्मी का मौसम था तो उसने कुर्ते की आस्तीन कोहनी तक चड़ा ली एवं बार बार अपनी मूछों पर हाथ फिराने लगा था। वास्तव में वह नाई के पास अपनी मूछें ही ठीक करवाने आया था। थानेदार साहब यह सब देख रहे थे और अंदर ही अंदर बिना वजह क्रोध मे सुलग रहे थे। हजामत बन चुकी तो थानेदार दुर्जन सिंह कुर्सी से उतर कर पीछे घूमे जहां वह व्यक्ति ठा. जोरावर सिंह बेंच पर बैठा अपने कुर्ते की आस्तीन चड़ा कर मूछों पर हाथ फिरा रहा था। ठा. जोरावर सिंह इस बात से अनभिज्ञ था कि जो व्यक्ति उसके सामने खड़ा है वह थानेदार दुर्जन सिंह है। थानेदार दुर्जन सिंह से सारा इलाका काँपता था और कोई उसके सामने आने की हिम्मत नहीं करता था लेकिन ठा. जोरावर सिंह अनजाने ही उस जगह आकर बैठ गया जहां दुर्जन सिंह बैठ कर हजामत बनवा रहा था, यह बात दुर्जन सिंह को हजम नहीं हुई, उसने जोरावर सिंह को सबक सिखाने की सोची, सबक भी ऐसा जिससे पूरे इलाके में भय का संदेश पहुंचे। दुर्जन सिंह ने जोरावर सिंह से पूछा, “हाँ भाई लगता है ससुराल जा रहा है, मूँछें ठीक करवाने आया है यहाँ और हाँ, ये आस्तीन क्यो चढ़ा रखी है?” जोरावर सिंह बोला, “हाँ भाई ससुराल ही जा रहा हूँ, सोचा कि मूंछे ठीक करवा लूँ बस इसलिए चला आया नाई की दुकान पर, अब आप तो जानते ही हो कि गर्मी कितनी ज्यादा पड़ रही है इसीलिए आस्तीन ऊपर चड़ा ली।” नाई भी सब वार्तालाप सुन रहा था और जोरावर सिंह को चुप रहने का इशारा भी कर रहा था लेकिन जोरावर सिंह ने उसकी तरफ देखा ही नहीं तभी दुर्जन सिंह बोला, “अरे कालू, इसकी आधी मूँछें काट दे और इसके बालों में दोनों तरफ मशीन फेर कर एक एक चौड़ी पट्टी बना दे, चल जल्दी कर अगले ने ससुराल जाना है।” नाई थोड़ा हिचकिचाया और जोरावर भी बोल पड़ा, “ये ऐसा कैसे कर देगा?” दुर्जन सिंह ने कहा, “हम बताते है कैसे करेगा।” और उसने बाहर खड़े हुए दोनों सिपाहियों को अंदर बुला कर जोरावर सिंह को कस कर पकड़ने का आदेश दिया।
आदेश मिलते ही दोनों सिपाहियों ने ठा. जोरावर सिंह को कस कर पकड़ लिया तो दुर्जन सिंह ने नाई को आदेश दिया कि इसकी आधी मूंछ काट दे और सिर पर चौड़ी पट्टियाँ निकाल दे, डर के कारण नाई ने काँपते हाथों से वैसा ही किया जैसा दुर्जन सिंह थानेदार ने कहा। अब दुर्जन सिंह ने नाई की कैंची उठाकर ठा. जोरावर सिंह के कुर्ते की दोनों आस्तीन काट दी और कहा, “ले अब तुझे गर्मी नहीं सताएगी।” इतना सब तो ठा. जोरावर सिंह की बर्दाश्त से बाहर था, अतः वह दुर्जन सिंह से भिड़ गया, दुर्जन सिंह थानेदार था, पूरा पुलिस बल उसके पास था एवं राजनीतिक प्रभाव था अतः दुर्जन सिंह ने ठा. जोरावर सिंह को गिरफ्तार कर लिया, हथकड़ी लगाकर रस्सा बांध कर और डंडों से पीटते हुए पूरे गाँव में जोरावर सिंह का जुलूस निकलते हुए थाने में ले जाकर हवालात में बंद कर दिया। ठा. जोरावर सिंह पर आरोप लगाया कि उसने थानेदार को जान से मारने की कोशिश की जिससे उसको जमानत भी नहीं मिली चूंकि आपातकाल लगा हुआ था अतः किसी को विरोध करने का हक भी नहीं था।
ठा. जोरावर सिंह को बिना किसी अपराध के कई दिनों तक हवालात में रख कर तरह तरह की यातनाएं देते रहे और एक दिन हवालात मे ही उसको मार डाला। जोरावर सिंह को मार कर थानेदार दुर्जन सिंह ने हवालात में ही फंदे से लटका दिया और घर वालों को बुलाकर बता दिया कि ठा. जोरावर सिंह ने अत्महत्या कर ली। मृतक का पोस्ट मार्टम करवा कर मृत शरीर घर वालों के सुपुर्द कर दिया, किसी तरह का बलवा न हो, इसलिए पुलिस की एक टुकड़ी उनके घर पर ही तैनात कर दी।
ठा. जोरावर सिंह का भतीजा सुंदर भारतीय सेना में तैनात था, 1971 के युद्ध मे सीमा पर उसे अपने जौहर दिखाने का मौका मिला तो उसने पूरी बहादुरी से दुश्मनों को परास्त किया था। सुंदर को जब चाचा की मृत्यु के बारे में पता चला तो सुंदर भी चाचा जोरावर सिंह के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए अपने गाँव सुजान पुर आ गया। चाचा की इस तरह मृत्यु का सुंदर को बड़ा दुख था लेकिन वह सेना के नियमों से बंधा होने के कारण कर कुछ नहीं सकता था वह चाचा के अंतिम संस्कार और बाकी रीतियाँ पूरी होने के बाद वापस अपनी ड्यूटि पर चला गया, जाने के बाद उसने यही सोचा था कि गाँव मे सब कुछ शांत ही होगा लेकिन गाँव में तो प्रतिदिन कोई न कोई नई मुसीबत आ ही जाती थी।
उन दिनों प्रशासन और पुलिस मिल कर ज्यादा से ज्यादा लोगों की नसबंदी करने में लगे थे क्योंकि ऐसा आदेश युवा नेता की तरफ से था। अपने गाँव के आंकड़े ज्यादा से ज्यादा बनाने के लिए दुर्जन सिंह जबर्दस्ती लोगों को पकड़-पकड़ कर छोटे-बड़े, जवान-कुँवारे सब की नसबंदी करवा रहा था। जितेंद्र गौना कर केआर अपनी पत्नी को विदा करवा कर लाया था कि उसी दिन नसबंदी वाली टीम ने उसको पकड़ लिया एवं जबर्दस्ती उसको नसबंदी के लिए ले जाने लगे। जितेंद्र ने कहा, “भाई मैं तो आज ही गौना कर के अपनी पत्नी को विदा करवा कर लाया हूँ, मेरे तो अभी तक कोई बच्चा भी नहीं है, अभी से मेरी नसबंदी क्यो कर रहे हो?” दुर्जन सिंह बोला, “कोई बात नहीं, तू आराम से नसबंदी करवा ले, बच्चे तो तेरी घरवाली के हम पैदा कर देंगे।” और जबर्दस्ती जितेंद्र को पकड़ कर नसबंदी के लिए ले गए। इधर दुर्जन सिंह और उसके कुछ और साथियों ने मिलकर जितेंद्र की घरवाली का सामूहिक बलात्कार किया, जिस कारण जितेंद्र की नई नवेली दुल्हन इतना बड़ा दुख सहन नहीं कर पाई और उसने अत्महत्या कर ली। जितेंद्र जब घर वापस आया तो सारी बातों को जानकार अपने होश-हवास खो बैठा और जाकर दुर्जन सिंह से भिड़ गया। दुर्जन सिंह ने जितेंद्र को पकड़वा कर हवालात में डाल दिया और उसकी भयंकर पिटाई की। जितेंद्र पर दहेज हत्या का मुकदमा लगा कर जबर्दस्ती यह बात उससे कबूल करवा कर उसे अदालत में पेश कर दिया, अदालत ने जितेंद्र को तीन महीने के लिए जेल भेज दिया। सुंदर को जब सारी बातों का पता लगा तो उसका खून खौल गया और वह अपनी नौकरी छोड़ कर गाँव वापस आ गया, गाँव आकर वह अपने बड़े भाई जितेंद्र को छुड़वाने को कोशिश कर ही रहा था. . . . .
इसके दूसरे भाग में आपको जानकारी मिलेगी कि सुंदर की बहन के साथ क्या हुआ और सुंदर डाकू क्यो बन गया।