बरसी
'जनाब ! सलाउद्दीन साहब को बोलो जरा सम्हाल कर बोलें. हम लोग सीमापार कर के कश्मीर में हैं. वो आज़ाद है... जो दिल में आता है बोलते हैं.'
'वो हमारा मेहमान है, हम उसको कैसे कह सकते हैं ?'
'साहब ! इधर हम अकेले पड़ गए हैं. इंटरनेट बंद है, व्हाट्सएप बंद है. हमको हिन्दुस्तान की फ़ौज कुत्ते के माफिक दौड़ाकर मारती है. मोबाइल बंद है... मदद नहीं मिलती..… आप हमको जहन्नुम में क्यों भेज दिया !'
'हमारे लड़के वहां हैं. हमने पैसा भेजा है... तुम फ़िक्र मत करो !'
'ओ ! जनाब, आप फ़िक्र का बात करते हैं, मैं बाहर नहीं निकल पा रहा हूँ. राशन ख़त्म हो गया है. अभी रात है तो बाहर निकला हूँ. कोई भी आदमी मदद को नहीं आया.'
'तुम लोनवुल्फ अटैक करो... वापिस आने पर तुमको इनाम मिलेगा.'
'इधर सड़क बंद है, चिड़िया भी पर मारती है तो गोली चलती है... ख़ुदा के वास्ते हमको यहाँ से निकालो !'
'मरोगे तो गाज़ी कहलाओगे.... जन्नत में हूरें मिलेंगी.... शराब मिलेगी.... सोचो.... और उड़ा दो अपने आप को किसी भी पुलिस चौकी में जाकर.'
'साले ! हरामी की औलाद.... हिन्दुस्तानी सही कहते हैं.... हम पाकिस्तानी कुत्ते ही होते हैं.... तभी तो ये हिन्दुस्तानी हमको गोली मार देते हैं... पागल समझकर.... .अबे ! ख़ुद आकर गाज़ी बन.... मरवा दिया हमको... साले ! कहता था बुरहान की बरसी पर जश्न होगा... तू मेरा जनाजा निकलवाकर ही मरेगा.... साले ! तेरी बीबी को सलाउद्दीन उठाकर ले जाए.... अल्लाह ! मुझे जन्नत में भेजा था मगर इन हरामी पाकिस्तानियों ने जहन्नुम में पहुंचा दिया.... बू... अ.... आ.'
शब्द मसीहा
सहानूभूति
'अरे! बेटी, क्यों इतना खर्च कर रही हो मुझ बूढ़े पर. मेरा क्या है.... आज नहीं तो कल... मुझे तो श्मशान जाना ही है.' उसने अपनी बहू से कहा.
'पापा ! ये पैसा तो फिर भी आ सकता है... मगर पापा के नहीं होने का दंश क्या होता है... कोई मुझ से पूछे !' उसने आँखों में आँसू भरे हुए कहा.
'कोई पुण्य किया होगा मैंने. बेटा विदेश में है, बेटियाँ अपने -अपने घर और तुम इस हालत में मेरे पास.... मुझे दुःख होता है अपने पोते को इस तरह तकलीफ देते.' उसने बहू से सर पर स्नेह से हाथ रखते हुए कहा.
'पापा ! राजन की जॉब नहीं रही और इस महीने शायद पैसे भी नहीं आ सकेंगे.... ' बहू ने झिझकते हुए कहा.
'बेटा ! हम इकॉनमी रूम ले लेते हैं. कुछ तो बचेगा... और फिर मैं ईलाज के लिए आया हूँ यहाँ... ऐश करने तो आया नहीं हूँ.'
वह देखकर आई थी कि इकॉनमी रूम को छः लोगों के लिए बनाकर कैसे अस्पताल सिंगल रूम के किराए से दोगुना कमा रहा था. सहानूभूति और मजबूरी ऊँचे दाम पर सेल पर थी.
शब्द मसीहा
आर्डर
'सर ! हमने आर्डर कर दिए हैं, जहाँ भी दंगा -फसाद हो गोली मार दी जाय.'
'यार ! भूख लगी है... सबको लगती है. कितनी गोलियां हैं.... .एक भूख को भी मारो !'
शब्द मसीहा
खीर-खराबा
यमराज के दरबार में किसानों की अलग कतार लगी थी. सभी के चेहरे उतरे हुए थे.
'इनका अपराध क्या है ? इन्हें क्यों नरक की लाइन में लगा रखा है ?
चित्रगुप्त ने अपनी पत्रा में लेखों को जांचना शुरू किया. और बोले -
'महाराज ! ये तो सभी कृषक है. ये अपने बुरे कर्मों से ज्यादा सजा मृत्यु लोक में पा चुके हैं. आदमी की हवस ने इनको गाय से भी गया गुजरा जीवन जीने पर मजबूर किया. मगर यहाँ भी अब पृथ्वी लोक के नेता और उनके चमचों ने पार्टी बना ली है और सेवकों पर दबाब है कि इन्हें नर्क में भेजा जाय.'
'गाय पर ही क्या, हर जीव पर अन्याय पाप है. परन्तु गरीबी के कारण इन पर पहले ही नेताओं का जुल्म बहुत हुआ है और यहाँ पर मृत्यु लोक की परिपाटी चलाने की कोशिश की गयी है, इसलिए सभी ऐसे समर्थकों को नर्क में भेजा जाना चाहिए न कि इन निरीह किसानों को.'
'महाराज ! आप जरा सोचकर निर्णय लें.... ये लोग नरक में भी उत्पात ही मचाएंगे. आप इन्हें स्वर्ग में भेज दीजिये. वहां के लोग सहनशील होते हैं... सह लेंगे... भगवान् की इच्छा मानकर.'
'चित्रगुप्त ! क्या तुम भी इस गलत लोगों के पक्ष में हो ? तुम धर्म से भ्रष्ट कैसे हो सकते हो ? क्या तुम्हें भी भगवान् की इच्छा का रोग लग गया है ?'
'महाराज ! बहुत हो गयी डांटडपट... अब यहाँ भी लोकतंत्र प्रणाली आएगी. और मैं आपकी जगह बैठूंगा.' चित्रगुप्त गुस्साते हुए बोलता है.
'अरे! तुम सदियों से सेवक हो, ऐसा कैसे कर सकते हो ?'
'मैं भी तो ये ही कह रहा हूँ, इन किसानों का काम है गाय पालना और हमारे लिए दूध उत्पादन कर व्यंजनों के निर्माण में अपनी भूमिका निभाना. गाय तो प्रभु की प्रिय है.... अगर उन्हें पता लगा कि आपने गाय रक्षकों को नरक में भेजा है और किसानों को स्वर्ग तो समझ लीजिये आप !'
यमराज बड़ी मुश्किल में पड़ जाते हैं. सोचते हैं फिर बोलते हैं -
'किसान का काम सेवा है. वह मरता हो तो भी गाय को बेचना और उसको चारा न देना दंडनीय अपराध है. मनुष्य का क्या है... मनुष्य तो अब धरती पर मशीन की तरह कोख उगल रहीं हैं. सेवा जारी रहनी चाहिए... किसानों को फाँसी खाने का कोई हक़ नहीं है... इनके अकाउंट से सद्कर्मों पर आत्म हत्या टैक्स लगाया जाय और इनको नरक में भेजा जाय.'
'महाराज ! ये अन्याय है.' सभी किसान एक स्वर में बोले.
'पागलो ! अन्याय नहीं है.... यह तो अन्य आय का साधन है. जब तक तुम मनुष्य, मनुष्य को दोषी करार देकर मारते रहोगे. आदमी को आदमी का दुश्मन बनाओगे... तब तक गाय तो क्या भगवान् भी वैतरणी पार नहीं करवा सकते.'
'सही कहा महाराज ! इनका यही दंड है.'
'चित्रगुप्त ! हम तुम्हें बर्खाश्त करते हैं और इन सभी नेताओं सहित इनके समर्थकों को घोर नरक में भेजते हैं. भगवान् से हमारी डील हो चुकी है. न्याय व्यवस्था और शासन में सुधार का नया विधेयक वे जल्द ला रहे हैं. ये यमराज का न्याय दरबार है मृत्यु लोक का उत्तम प्रदेश नहीं !'
'अजी सुनते हो ! खीर बनाई है, बच्चों ने नहीं खाई. सुबह तक खराब हो जायेगी. इसे खा कर पतीला साफ़ कर देना.'
मैं हडबडा कर उठा तो शाम के नौ बजे थे. काम की थकान से नींद लग गयी थी. अब खीर खाऊं या नहीं... यही सोच रहा हूँ... कहीं नए नियम..... गाय का दूध पीने वाले को भी नर्क में न भेज दें.... अजीब खीर-खराबा है.
शब्द मसीहा
छत ===
'कहाँ घूम रहे थे ? देखते नहीं हो बारिश हो रही है... बीमार पड़ गए तो कोई पूछने वाला भी नहीं है.आखिर तुम इस बुढापे में कर क्या रहे थे बाहर ?' पत्नी ने वर्षा में भीगे पति से पूछा.
'रात का इंतजाम कर रहा था. कल रात भर कैसे गुजारी थी मालूम है न. बर्तन कम पड़ गए थे पानी को सम्हालने में.'
'तुम तो खाली हाथ आ गए हो. क्या इंतजाम किया है ? बेकार भीग और रहे हो.'
'अरे! कर आया हूँ इंतजाम. साले ! नेताओं के जुमलों भरे पोस्टर होर्डिंग्स लगे हुए हैं सड़क पर. आज रात उन्हीं वादों से सर ढंकने का इंतजाम करूँगा... और तो वादे किसी काम आये नहीं हम गरीबों के.'
शब्द मसीहा
किट की किटकिट
'सर ! अब हम किसी को नहीं छोड़ेंगे. हमने गाय का मांस पहचानने की किट तैयार कर ली है. जहाँ भी गोश्त हम पकड़ लेंगे.'
'बंद करो ये किटकिट यार ! जिस तरफ से देखो... ऐसी ही खबरें आ रहीं हैं... बनानी है तो कोई आदमियत पहचानने की किट बनाओ !'
'साहब ! वो भी तैयार है.... घोषणा कर दी तो जनता.... सबको पहचान जाएगी और चुनाव आने वाले हैं.'
'धांय -धांय... धांय....… साला ! आदमियत पहचानने की किट जनता को देगा "
शब्द मसीहा
अमल
'हमने यहाँ बारिश का पानी इकठ्ठा करने के लिए तालाब बनवाया था. मंजूरी और पैसा भी भिजवाया था. फिर भी गाँव में ये बाढ़ की समस्या ! और वो घर कहाँ से आ गए तालाब की जमीन पर.'
'साहब ! सब आपका ही है.' उस सफ़ेद कुरता पहले मोटे से आदमी ने अपनी तोंद पर हाथ फिराते हुए कहा.
'तब ठीक है. योजनाओं पर अमल होना ही चाहिए.'
शब्द मसीहा
ई तो रांग नंबर है
'अजी ! ये कुल्हाड़ी उठाकर कहाँ चल दिए ?' पत्नी ने टोका.
'अनुसरण करने ! और कहाँ जा रहा रहा हूँ.'
'काहे का अनुसरण करने चल दिए ? काटोगे क्या किसी को ?'
'तुम भी बुड़बक जैसी बात करती हो. अरे! अपने योगी जी कहे हैं कि अंजीर का पेड़ अशुभ होता है. सो हम भी इसको काट रहे हैं.'
'भोलेराम जी ! अगर अंजीर अशुभ होता है तो क्या भोलेनाथ भगवान् पगला गए थे जो सृष्टि में इसको पैदा किये ? कैसे सोच लिया कि इस भगवान् के बनाए जीवनदायी वृक्ष से अशुभ होता है ? भगवान् से का डायरेक्ट कनेक्सन है.... .ई तो रांग नंबर है. चलिए... चाय बनाती हूँ.'
शब्द मसीहा
गई भैंस पानी में
'बॉस ! अब अपना क्या होगा ?'
'अबे! क्या हुआ ? जो ऐसे मुँह लटकाकर बोल रहा है.'
'बॉस ! वो एक्सपोर्ट लाइसेंस के लिए जो पैसा आपने खिलाया, वो जो बड़ा सा वेयर हाउस बनवाया सब बर्बाद हो गया.'
'क्या आतंकियों ने उड़ा दिया है... या कोई धमकी मिली है..या नेता जी और माँग रहे हैं ?'
'अरे! बॉस ये सब होते तो मैं मैनेज कर लेता.... .. '
'अबे! तो फिर और कौन तोप आ गयी हमसे टक्कर लेने ?'
'बॉस ! भारतीय सेना के जवान ख़ुद कह रहे हैं चीन के सामान का बहिष्कार करो !'
'हाय ! साला लुट गया मैं.... इन पर सब विश्वास करते हैं.... बिजनेस की गई भैंस पानी में.'
शब्द मसीहा
रुदाली
'अरी ! जमीला, कब तक मातम मनाएगी अपने बेटे की मौत का. अब ये आँसू बहाना बंद भी कर.'
'अम्मी जान ! सब्र नहीं होता मुझसे. बहुत उम्मीदें थीं कि पढ़ लिख जाएगा तो कुछ किस्मत बदलेगी. कहा भी था अपने बाप की पीठ के ज़ख्म देख ले... मगर ये जवान औलादें.... कहाँ सुनती हैं !'
'जमीला ! सब्र तो करना ही होगा, गया हुआ क्या रोने से लौटकर आता है ? बस अब इतना कर कि ये छोटा उसके नक्श-ए-कदम पर न चल निकले. बंदूकें हाथ में थामे जब इन औलादों को देखती हूँ तो कलेजा फटता है. कौन इन मासूमों को अपना शिकार बना रहा है. पाकिस्तान की हालत और हालात से ये न वाकिफ बच्चे... न जाने कौन-सी जन्नत के लालच में बह्शियों के शिकार हो रहे हैं ?'
'अम्मी जान ! मैं इसे यहाँ से दूर ले जाउंगी... जहाँ कोई इसके दिमाग में नफरत का जहर न भर सके. जिसे जीते जी जन्नत बनाना नहीं आता वो मरकर भी जन्नत नहीं जा सकता. इन हैवानों को हाय लगेगी.... हम माओं की... अगर ख़ुदा है तो... ये बहकाने वाले कभी सुकून नहीं पायेंगे.... ख़ुदा गारद करे इन नासपीटों को... जन्नत का सपना दिखाकर... कब्रों में सुला दिया... हमारी औलादों को.'
शब्द मसीहा