Parabhav - 11 in Hindi Fiction Stories by Madhudeep books and stories PDF | पराभव - भाग 11

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पराभव - भाग 11

पराभव

मधुदीप

भाग - ग्यारह

भास्कर क्लीनिक में बैठा हुआ श्रद्धा बाबू बहुत ही घबरा रहा था | रंजन उसके साथ था | पिछ्ले छह महीने से डॉक्टर भास्कर द्वारा उसका इलाज किया जा रहा था |

जब श्रद्धा बाबू प्रथम बार रंजन के साथ इस क्लीनिक में आया था तो स्वयं में बहुत ही लज्जित महसूस कर रहा था | उस समय सारी बातें अपने मित्र से कहते हुए वह शर्म से मर ही गया था | कितने दुख और घबराहट से वह कह पाया था कि उसे अपने पौरुष पर शक है और वह अपनी जाँच करवाना चाहता है | सब कुछ सुनकर रंजन उसे डॉक्टर भास्कर के पास ले आया था | डॉ. भास्कर शहर के ख्याति प्राप्त ‘पेथोलौजिस्ट’ थे |

श्रद्धा बाबू स्वयं तो डॉक्टर से कोई बात भी नहीं कर सका था | रंजन ने ही डॉक्टर भास्कर को सारी स्थिति बताई थी | डॉक्टर के कहने पर वीर्य देते हुए उसे बड़ी ही कठिनाई और लज्जा का सामना करना पड़ा था |

श्रद्धा बाबू का सन्देह सत्य में परिवर्तित हो गया था | उसके वीर्य की जाँच रिपोर्ट उसके सामने थी | साफ लिखा था कि उसके वीर्य में कोई कीटाणु नहीं है |

रिपोर्ट देखकर श्रद्धा बाबू को एक धक्का-सा लगा था |

"इसके लिए कोई इलाज?" रंजन ने ही यह पूछा था |

"है, लेकिन विश्वसनीय नहीं है | इन्जेक्शनों से कीटाणु बढ़ तो अवश्य सकते हैं लेकिन यह विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता कि इस स्थिति में पैदा भी अवश्य ही हो जाएँ |"

सुनकर एक पल को तो श्रद्धा बाबू पस्त ही हो गया था लेकिन रंजन ने उसे भरोसा देते हुए कहा था, "मुझे पूरा विश्वास है श्रद्धा भाई, आप बिलकुल ठीक हो जाएँगे |"

उस समय तो श्रद्धा बाबू घर लौट गया था मगर अगले सप्ताह ही आकर उसने इलाज प्रारम्भ करवा दिया | हर सप्ताह उसे इन्जेक्शन लगवाने और गोलियाँ लेने शहर आना पड़ता था |

रंजन के साथ बैठा श्रद्धा बाबू डॉक्टर भास्कर की अन्तिम रिपोर्ट की प्रतीक्षा कर रहा था | पिछ्ले छह महीनों से डॉक्टर को कोई सफलता नहीं मिली थी और उन्होंने कह दिया था कि इस रिपोर्ट में भी कुछ नहीं आता तो वे कुछ नहीं कर सकेंगे |

अन्दर लेबोरेटरी से डॉक्टर भास्कर निकले तो दोनों की निगाहें उधर को उठ गईं | उन्होंने हाथ में रिपोर्ट का कागज पकड़ा हुआ था | श्रद्धा बाबू ने उसकी झुकी और उदास आँखों से ही अनुमान लगा लिया कि वे असफल रहे हैं |

"मुझे अफसोस है श्रद्धा बाबू |" इतना कहकर वे कुर्सी पर बैठ गए |

"क्या कुछ भी नहीं हो सकता डॉक्टर साहब?" रंजन कह उठा |

"नहीं रंजन | मैं अपनी पूरी कोशिश कर चुका हूँ | अब इसका कोई इलाज नहीं है |" कहते हुए डाक्टर भास्कर की आँखें झुक गई |

श्रद्धा बाबू में वहाँ बैठे रहने का साहस नहीं रह गया था | वह दुखी मन से उठ खड़ा हुआ |

"निराश नहीं होते श्रद्धा बाबू! जिन्दगी हर इन्सान को हर चीज नहीं देती | आप कोई बच्चा गोद ले लें |" कहते हुए डॉक्टर भास्कर ने उसे आश्वासन देते हुए सुझाव दिया |

"सब अपना भाग्य है डॉक्टर?" कहकर श्रद्धा बाबू वहाँ से चल पड़ा | रंजन उसके पीछे-पीछे आ रहा था मगर उसे इसका भी ध्यान न था | उसके पाँव स्टेशन की ओर बढ़ चले |

"घर चलो श्रद्धा भाई!" कहते हुए रंजन ने उसका हाथ पकड़ लिया |

"नहीं रंजन, मुझे गाँव लौट जाने दो |"

"आज नहीं कल जाना |" कहकर रंजन उसे अपने साथ घर की ओर ले चला |

श्रद्धा बाबू टूटे कदमों से रंजन के साथ जा रहा था और रंजन सोच रहा था कि वह क्या कहकर श्रद्धा बाबू को आश्वासन दे | डॉक्टर साहब की रिपोर्ट ने सारी आशा ही तो समाप्त कर दी थी | वह दुखी मन से अपने पाँव श्रद्धा बाबू के बढ़ते पाँवों के साथ मिलाकर चलने का प्रयास कर रहा था |