बाजार बड़ ठगनी हम जानि
कौशलेंद्र प्रपन्न
वे कहते हैं मैं खूबसूरत हूं। वो कहते हैं आप जो जूते पहने रहे हैं वो सांस नहीं लेता। वो कहते हैं आपने टूथ पेस्ट में नमक है। आप यह इस्तमाल करें। ये वो कौन हैं? इस वो को हमें पहचानना होगा। यह हमारे पड़ोसी हैं। हमारे दोस्त, रिश्तेदार हैं। और सबसे ताकतवर बाजार है। जो हमें हमेशा यह एहसास कराने में अपनी पूरी रणनीति झोंक देता है कि आप नए नए प्रोडक्ट इस्तमाल करें। आप तो जनाब बड़े पिछड़े हैं। अभी भी आप कपड़े सिलवाकर पहनते हैं। अगर आपके पास स्मार्ट टीवी नहीं है तो सुनना पड़ सकता है कि डब्बा है डब्बा अंकल का टीवी डब्बा...। और अचानक आपको एहसास करा दिया जाएगा कि जो टीवी आप चाव से देखा करते थे वो रातों रात कबाड़ हो चुका है। आपके पास पैसे नहीं तो क्या हुआ बाजार लोन और किश्त में आपको पचास साठ हजार की टीवी मामूली से डाउन पेमेंट पर घर तक पहुंचा देने के लिए बैठी है।
बाजार बैठी ही है अपने सामान को बेचने के लिए। और वो पूरी तैयारी और रणनीति पर खर्च करती है। आपके पास गाड़ी है। उसमें आपका परिवार आराम से सफर करता है। लेकिन अचानक आपके पड़ोसी और बाजार आप पर दबाव बनाने लगेंगे कि आपको बड़ी और महंगी गाड़ी चाहिए। आप साल में एक या दो बार लंबी यात्रा पर अपनी गाड़ी का इस्तमाल करते हैं। लेकिन बाजार आपको एहसास करा देगी कि लंबी दूरी के लिए आपकी गाड़ी छोटी और माकूल नहीं है। आपको ये वाली गाड़ी लेनी चाहिए। और जहां आपने पैसे का बहाना बनाया तो बाजार अपने पंजे में कब ले लेगी मालूम तक नहीं चलेगा। आप लोन लेने न जाएं। आपके घर में बैंक लोन दे जाएगा। देखते ही देखते आप बड़ी गाड़ी के मालिक हो जाएंगे। बेशक आपके पास हर रात एक तनाव आयातीत हावी हो जाएगी कि इसे खड़ी कहां करें। पड़ोसी के पास भी दो दो गाड़ियां हैं। अपने मकान में खड़ी करने की बजाए बाहर ही खड़ी करते हैं। क्योंकि बेसमेंट को उन्होंने बैठकखाना बना रखा है। हर रोज हर रात गाड़ी खड़ी करने की चिंता पाल लेते हैं।
मकान की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। कभी वक्त था जब तीन कमरों के घर में पांच से छह परिवार रहा करते थे। आज चार से पांच कमरों में तीन सदस्य रहा करते हैं। बड़े घर की लालसा भी बाजार सृजित जरूरतां में गिनी जाती हैं। यही कारण है कि कभी चार कमरों के घर बनाने में लोगों को रिटायरमेंट तक का इंतजार करना पड़ता था। जैसे तैसे प्लास्टर, पक्का मकान रिटायरमेंट के बाद ही पूरा हो पाता था। इस मकान में पूरी जिंदगी की कमाई पेंशन झांकने पड़ते थे। लेकिन यह सौदा कितना सस्ता मालूम होता है जब आपको पता चलता है कि जिनके लिए आपने सारे जमा पूंजी लगा दी वो रहने तक नहीं आते। जब अपनी बुढ़ापे ही काटने हैं तो पांच छह कमरों के घर के सपने में हम अपना आज लोन की चिंता में झांक देते हैं। लेकिन बाजार और हमारे रिश्तेदार, परिजन, स्वजन आपको इतने दबाव में ला देते हैं कि एक पल के लिए महसूस होने लगता है कि हां आप तो अपना मकान ही नहीं खरीद रहे हैं। आपको तो भविष्य की चिंता ही नहीं। और आप आनन फानन में लोन लेकर अब अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा किश्तों में चुकाने लगते हैं।
महिलाओं के बीच इस बात को लेकर अधिक चिंता होती है कि वह कैसी दिख रही हैं। कॉस्मेटिक्स के इस्तमाल से अपनी जीवन शैली और उनसे जुड़े उत्पादों का अधिक महत्व होता है। वे उपभोक्तावाद को बढ़ावा देती हैं और आर्थिक संवृद्धि को प्रोत्साहित करती हैं। फिल्मों की कहानियां इसी से जुड़ी होती हैं। बहुत कुछ यही बात टेलीविजन कार्यक्रमों से जुड़ी होती है। कई बार लगता है कि वे मकानों, गाड़ियों, भोजन, यात्रा आदि का विज्ञापन कर रही हैं। खरीदारी को बढ़ावा देती हैं। लोग बड़े मकानों, गाड़ियों, बढ़िया घरेलू उपकरणों, महंगी पिरधानों, घड़ियों आदि के पीछे पागल हो जाते हैं। इस सनक को 1990 के दशक में विलासिता का बुखार कहा गया। तकरीबन सौ वर्ष पहले थोर्स्टीन वेबलेन ने इसे ध्यानकर्षी उपभोग शब्द दिया था। इसे प्रवृत्ति को उन्होंने कहा था कि यह आम जन धनवानों के आचरण को भय, ईर्ष्या और तिरस्कार मिश्रित दृष्टि से देखते हैं।
बाजार ने ख़ासकर महिलाओं के सौदर्य आकर्षण को अपना शिकार बनाया है। महिलाओं में सुंदर दिखने की सहज प्रवृत्ति को विभिन्न प्रोडक्ट से लुभाते हैं। इसकी का परिणाम है कि रेज दिन नई नई प्रोडक्ट बाजार में उतारी जाती हैं। आपने यह क्रीम इस्तमाल किया इसमें तो यह कमी है। इससे रंग तो साफ होगा लेकिन चमक तो इस नई क्रीम से ही आएगी। आप इस क्रीम का प्रयोग करें। यदि रंग में चमक नहीं आई तो पैसे वापस। आपके टूथ पेस्ट में नमक है? तो आप कहीं मुश्किल में न पड़ जाएं अब आप हमारा प्रोडक्ट इस्तमाल करें। पहले वाले प्रोडक्ट को नीचा और कमतर दिखा कर नई प्रोडक्ट बाजार में उतारी जाती हैं। इसका असर महिलाओं पर तो होता ही है साथ ही बच्चे और पुरूषों पर भी असरकारी होता है।
निश्चित ही हमारी जिंदगी का बडा हिस्सा बाजार की गोद में है। वो जैसे कहते हैं हम वही हू ब हू करने लगते हैं। हमें पैंट, शूज की जरूरत नहीं थी। लेकिन जब हम मॉल में घूमने चले ही गए तो सामानों पर नजर तो पडनी ही है।जैसे ही हम सामान देखते हैंहमें दिखाई देती हैसेल सेल और महा सेल। और मजाक मजाक में हम कुछ खरीद भी लेते हैं।बाजार का मकसद पूरा हुआ।
9/11 के बाद अमरिकी जनता डिप्रेशन में जानी लगी थी। तब जार्ज बुश ने कहा था कि आप लोग मॉल्स जाएं। खरीदारी करें। पैसे की चिंता न करें। बैकर्स हैं। औरे देखते ही देखते खरीदारी का संक्रमण फैलने लगा। लोग खरीदारी में इतने व्यस्त हो गए कि उनका घर तो सामानों से भर गया। लेकिन सिर पर कर्ज बढ़ता गया। 1960- 70 के दौर में भी फोड्स कंपनी ने उत्पाद और क्रय को बढ़ाने के लिए अपने उत्पाद की कीमत घटाई और कर्मचारियों के वेतन बढ़ाए। इसका परिणाम यह हुए कि बाजार में क्रेताओं की संख्या में इजाफा हुआ। दरअसल उच्च वर्ग की जीवन शैली को अपनाने की ललक में उच्च और मध्य वर्ग के बीच की विभाजक रेखा खत्म हो गई। मध्यम और निम्न वर्ग के लोगों ने येन केन प्रकारेण वो सामान खरीदने लगे जो उच्च वर्ग इस्तमाल करती थी। मॉल्स खरीदारी के लिए इतने चलन में आ गए कि हमारे जीवन से मेल जोल को भी खासा प्रभावित किया। हम घूमने के लिए मॉल्स जाने लगे। बाजार खरीदने के लिए इस कदर हमें कोंचने लगा कि इतनी खरीदारी करो कि थक कर चूर हो जाओ। थक जाओ तो वहीं खाना भी खाकर फिर खरीदारी में लग जाओ। लेकिन सोचना हमें हैकि हम घर को मॉल्स बनाना चाहते हैं या रहने और सकून की जगह? चुनाव हमारा हो न कि बाजार का।