एक गिलास दर्द
वो घुटन वो तड़पन वो दर्द तुम क्या जानोगे | जो जाने कितने बर्षो से अपने अन्दर छुपा के रखी हूँ | और तुम कहते हो मुझे क्या मालूम मोहब्बत क्या होती है | वो जुदाई वो क़ुरबानी वो दिल के जख्म....जो अपनी मुस्कुराहट से मैं छिपाती रही | और खुद ही मरहम लगती रही....की कही फिर से वो जख्म ताजे न हो जाये | ये आँखे कभी किसी के सामने बरसी नहीं,न कभी हर किसी से अपने दर्द की दास्ताँ बयां की | इसलिये लोगो ने समझा हमे एहसास ही नही की मोहब्बत क्या होती है | दिल को पत्थर सा बना लिया की फिर कभी ये टूटे ना और कोई कभी इस पत्थर से टकराने की गुस्ताकी न करे | तुम क्या जानो किस तरह अपने दर्द को हमने अपनी मुस्कान से आजाद किया.… उन्हें आँसू बनके आँखों से हमने बहने ना दिया | क्योकि अगर वो बह जाते तो सारे दर्द वो कह जाते | और मेरा दिल किसी से अपना दर्द नही कहना चाहता | ये आँखे सुर्ख नही हुई थी | ये बरसती थी लेकिन रात के अंधेरो में | जब भी हाथ इबादत के लिए उठते थे | ये आँखे तब भी बरसाती थी | और तुम कहते हो मुझे क्या मालूम मोहब्बत की होती है |
तुम कहते हो वो तुम्हे छोड़ कर चली गयी, तुम्हे तोड़ कर चली गयी | तो तुम खुद को टूटने क्यों दिए |
“शायद तेरी मोहब्बत उसके लिए कम पड़ गयी,
इसलिए तेरी आँखे नम पड़ गयी |”
तो क्या तुम्हारे ऐसे रोने से वो तुम्हे मिल जाएगी? तुम कहते हो तुम उसके बिना जी नही सकते.. तुम्हारे मरने से वो तुम्हे मिल जाएगी? तुमने पूछा उससे वो तुम्हे छोड़ कर क्यों जा रही है | इस तरह बच्चो की तरह रोना बंद करो और पूरी बात बताओ हुआ क्या है | मैं गुस्से में आँसू पोछता हुआ शराब का बोतल उठाया और दो घुट अपने अन्दर उतार ली.… फिर सिगरेट को जला कर उसे दर्द दिया और फिर उसे भी अन्दर लिया.. फिर उसके धुएं ने थोडा मेरा दर्द बाहर उड़ाया और जैसे ही उसे दुबारा अपने होठो से लगाने वाला था उस लड़की ने मेरे हाथो से सिगरेट छीन ली | और अपने पैरो से उसे मसल दी | शराब की बोतल उठायी और उस बेचारे के हजार टुकड़े कर दी | वो हर टुकड़ा मुझे गौर से देख रहा था | और मैं भी उससे अपनी नजर नही हटा पा रहा था..ऐसा लग रहा था वो बोतल का नही मेरे दिल का टुकड़ा यू ज़मी पे बिखरा पड़ा है | जिसकी किसी को भी कोई कदर नही | उन टुकड़ो को देख मेरे अन्दर ज्वाला सी फटी और मैं गुस्से में सामानों को बिखेड़ने लगा | यू सिगरेट के धुएं से और शराब की घुट से ये यादें ये जलन ये दर्द ये तड़पन ये बेचैनी नही मिटेगी | उसकी आवाज में एक आक्रोश था | मैं पीछे पलट के देखा… वो मुझपे चिलाये जा रही थी | ऐसा लग रहा था जाने उसके अन्दर कितने बर्षो से कुछ दफ़न है | ऐसा दर्द जो कभी उसके दिल से बहार न आया हो | वो बोलती रही..… कुछ देर तुम्हे शायद ये भुलाने में मदद कर सकती है लेकिन जीने में नही | जिस शराब को तुम जीने का सहारा समझ रहे हो वो हर दिन तुम्हे मरती जाएगी | ये सिगरेट जो जल के राख हो जाता है..एक दिन इसी तरह तुम भी राख हो जाओगे इस धुएं से | उसकी बातें मेरे दिल को कुरेद रही थी | सारे दर्द जैसे उबलने लगे और आँखों से दर्द की बारिस होने लगी | मैं घुटनों पे बैठ कर रोता रहा | जाने क्यों वो बारिस थम नही रही थी | आखे बंद सर नीचे करके मैं रोता रहा और वो मुझे देखती रही | आँखे खुली तो सर के नीचे एक गिलास में पानी रखा था | मैं समझ नही पाया… मैं पूछा ये क्या है? मुझे प्यास नही लगी | वो धीरे से मुस्कुराई और बोली- ये पानी नही तेरा दर्द है दोस्त...जो तेरी आँखों से बहा है | मुझे यकीन नही हुआ.. मैं बोलता रहा तुम झूठ बोल रही हो | वो मेरा फ़ोन मेरे सामने रख दी और मेरे आसुओं की एक एक बूँद जो आँखों से गिलास में टपक रहे थे उसकी पूरी विडियो उसने मुझे दिखाई | वो दर्द गिलास से छलक रहे थे | शायद गिलास भी कम पड़ गया था | वो मेरे पास आई,मेरे हाथो को थामा और बोली – यू बिखड़ने न दो इन्हें.. समेट लो इस दर्द को और पी जाओ इन्हें | ये दर्द बहुत कीमती है और यही दर्द तुम्हे सोना बनाएगा | जिस दिन तुम दर्द सहना सीख जाओगे ..दर्द के साथ जीना सीख जाओगे | उस दिन तुम्हारे अन्दर इंसानियत जन्म लेगी और तुम लोगो के दर्द महसूस कर पाओगे | तुम जिंदगी का मतलब समझ जाओगे क्योकि सच्ची मोहब्बत जीना सिखाती है | अब तुमपे छोडती हु....तुम जीना चाहते हो या पीना चाहते हो | जीना चाहते हो तो इस दर्द को पी जाओ और पीना चाहते हो तो ये लो शराब और पूरी जिंदगी पीते रहो | मैं उसकी तरफ देखा.... उसकी आँखों में एक सच्चाई नजर आ रही थी | लग रहा था उसकी आँखे भी बोल रही है तुम पीना छोड़ दो | मैं गिलास उठाया आँखे बंद कर उन्हें पी गया | पीने के बाद जब आँखे खुली तो खुद को बिस्तर पे पाया | चारो तरफ आँखों को घुमाया तो कोई नजर ना आया | घर का हर एक समान अपने अपने जगहों पे था | ऐसा लग रहा था जैसे बहुत दिनों बाद किसी गहरी नींद से उठा हु | यकीन हो गया था की ये एक ख्वाब था | फिर जब खुद को मैंने तकिये पे सुलाया तो थोड़ी सर में ठंडक सी महसूस हुई | मैं हाथो से तकिय को छुआ तो तकिया गीला था और उसके बगल में एक गिलास में पानी था | बिल्कुल वैसे जैसे मेरे सपने में था | तब एहसास हुआ शायद ये मेरा दर्द ही है जो तकिये के रास्ते गिलास में खुद को संजोया था | फिर होठ मुस्कुराये और हाथो ने गिलास थाम लिया और एक जाम की तरह उसे पी गया | जितना नशा कभी किसी शराब से नही हुआ था उतना नशा.… उस अश्को की बूंदों से हुआ था | जिसे पीते ही मुझे फिर नींद आ गयी | रात के दो बजे थे | सुबह जब नींद खुली तो लगा जैसे आज फिर से मेरा जन्म हुआ है | एक नयी सुबह बाहें फैलाये मेरा इंतेजार कर रही थी | एक खूबसूरत मुस्कान के साथ वो मेरा स्वागत कर रही थी | मैं खुद में एक बदलाव सा महसूस कर रहा था | ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने जादू से मेरी जिंदगी बदल दी और वो भी एक रात में | मैं हमेशा खुश रहने लगा..मेरे देखने का नजरिया बदल गया | बस चाहत रहती कभी किसी को उदास न होने दू | सबके होठो पे मुस्कुराहट को सजाता रहू | जिसके जाने के गम में मैं अश्को को बर्बाद किया था...वो तो ख्वाबों में भी नही आती और जो ख्वाबों में आई थी.. वो आज भी आँखे खुलते ही याद आती है | हर जगह ढूंढता हूँ की शायद वो कही नजर आ जाये | मैं तो अपने ग़मों में इतना डूबा था की उसका नाम भी न पूछ सका | लेकिन जब भी पलकों को पलकों से गहरी नींद के लिए मिलाता हूँ तो इस उम्मीद से की… आज वो ख्वाबों में फिर से आएगी और मेरे अधूरे सवालों का वो जवाब दे जाएगी |
*कोहिनूर की कलम*
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