Antar jaatiy sambandh - 2 in Hindi Love Stories by Lakshmi Narayan Panna books and stories PDF | अंतर जातीय सम्बन्ध - 2

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अंतर जातीय सम्बन्ध - 2

अंतरजातीय सम्बंध

( एक अमर प्रेम )

भाग-2

भाग-1 का कुछ अंश .....

जब तक सौम्या उन्हें खुद तैयार नही कर लेती तब तक अपनी तरफ से उन लोगों से कोई बात मत करना । हो सकता है बेटी का प्यार उनको बदल दे और वे उसकी भलाई के लिए भेदभाव मिटा कर इस रिश्ते के लिए तैयार हो जाएं । लेकिन मेरा मन घबरा रहा है । सावधान रहना कहीं उन लोगों को समझाने से पहले इस रिश्ते की जनकारी न होने पाए ।

***

इस तरह उन दोनों की मोहब्बत पर संकट के बादल मंडरा रहे थे । प्यार को भुला देना उनके लिए आसान नही था और न ही रूढ़िवादी समाज से टकराने की ताकत थी । मगर उन लोगों ने तय कर लिया था कि कुछ भी हो एक दूजे का साथ नही छोड़ेंगे, भले ही उन्हें जान की बाजी ही क्यों न लगानी पड़े । उनके हौसले इतने बुलन्द थे कि बड़े से बड़ा तूफान भी उन्हें रास्ता देने पर मजबूर हो जाता। अब एक बात तो तय हो चुकी कि हो कुछ भी उनकी मोहब्बत जिंदा रहेगी । उन्होंने ठान लिया था कि किसी भी कीमत में वे एक दूसरे का हाथ नही छोड़ेंगे । इसी आत्मविश्वास के कारण उनके दिल के चमन में मोहब्बत की कलियाँ मुस्करा रहीं थीं । वे मोहब्बत के चमन में तितलियों की तरह मस्त उड़ाने भर रहे थे, कि फिर वही हुआ जो नही होना चाहिए था । जिस प्रकार फूलों पर मंडराती सुंदर तितलियों की सुंदरता को देख कुछ मनचले बालक जन्हें कैद करने में अपनी खुशी समझते हैं । और बेचारी तितलियाँ को अपनी जान तक गवानी पड़ती है । ऐसा ही कुछ सौम्या और प्रकाश के साथ भी हुआ, उनके प्यार को किसी की नजर लग गई । उनके साथ एक जीत नाम का लड़का भी पढ़ता था । जीत पड़ोसी गाँव के ठाकुर का एकलौता बेटा था । ठाकुर साहब का रसूख कई गाँवों तक था, मजाल कि कोई उनके खिलाफ आवाज उठाए अपनी शान के खिलाफ उठी हर आवाज वह दबा देते थे । सौम्या के पापा अमर बहादुर के सबसे अच्छे दोस्तों में से एक थे जीत के पिता सूर्यभान ।

जीत और प्रकाश में कभी ठीक से नही बनती थी । वह हमेशा ही प्रकाश की उपलब्धि देखकर चिढ़ता था । एक रोज उसको कहीं से प्रकाश और सौम्या के प्यार के बारे में पता चल गया । वह बहुत ही जिद्दी और अमीर बाप की बिगड़ी औलाद था । उसे सौम्या और प्रकाश का प्यार रास नही आया । वह नही चाहता था कि सौम्या और प्रकाश कभी एक हो सकें । इसलिए उसने अपने पिता से बोलकर सौम्या के घर शादी का प्रस्ताव भिवजवा दिया । अमर बहादुर के दोस्त के घर से रिश्ता तो उनको नापसन्द होने का सवाल ही नही । अपनी लड़की की मर्जी जाने बगैर ही रिश्ते की हामी भर दी । सौम्या की माता जी जब तक कुछ कहतीं तब तक देर हो चूकि थी । फिर भी बेटी की जिंदगी का सवाल था उनको जाति धर्म से ज्यादा अपनी बेटी की चिंता थी, इसलिए उनसे रहा न गया । जब देखा कि सौम्या के पापा फुर्सत से और अच्छे मूड में हैं, तो बोल पड़ीं "अजी कई दिनों से एक बात कहना चाहती थी क्या इजाजत है"।

सौम्या के पापा काफी खुश थे उस वक़्त तो कहा "ऐसा क्या हुआ कि इजाजत मांगनी पड़ रही है", बोलो इतने वर्षों से तो तुम्हारी ही सुनता आया हूँ । तुम बोलो और मैं न सुनूँ कहीं ऐसा हो सकता है ? सौम्या की माँ -अजी हटिये आपको हमेशा मजाक ही सूझती है । कभी -कभी कुछ बातें गम्भीर भी होती हैं ।

अमर बहादुर -अब कहो भी तो ।

सौम्या की माँ ने प्रकाश और सौम्या के प्यार के बारे में समझाते हुए बताया । पहले वे पूरी बात ध्यान से सुनते रहे फिर अचानक बड़ी जोर से चिल्लाए (सौम्या की माँ के कान झन्ना उठे ऐसा लगा कि जैसे कोई बम फटा हो ) । बोले तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऐसी बात करने की ? तुम चाहती हो हम अपनी आन मान सब बेच दें, उस नीच के घर अपनी बेटी व्याह दें । उसकी औकात ही क्या है कल तक जिसके पुरखे हमारे यहाँ बेगारी करते थे, आज वे हमारे घर रिश्ता करने की उम्मीद लगाए हैं । यह कभी नही हो सकता, हम किसी नीच जात के साथ रिश्ता नही कर सकते । कब से चल रहा है यह सब ? सौम्या की माँ इससे ज्यादा क्या करती, वह चुपचाप अहम का तांडव देखती रही, बलवान के सामने निर्बल की क्या बिसात ।

सौम्या के पापा ने उसे तुरंत घर बुलाया । जब वह घर आई तो वहाँ हमेशा की तरह हलचल नही बल्कि अजीब सा सन्नाटे का माहौल था । जैसे कि कोई अनहोनी हो गई हो । उसको देखते ही अमर बहादुर ने पहली बार अपना असली रूप अपनी बेटी को दिखाया । बोले तुम्हरी हिम्मत कैसे हुई उस नीच के साथ रिश्ते के लिए सोंचने की, जान से मार डालूंगा तुझे और उसको भी । फिलहाल मैं तेरा बाप हूँ इसलिए समझा रहा हूँ, समझ जा तो अच्छा है । वह बाप जिसने सौम्या से ऊँचा बोलकर इस कदर कभी भी नही डाँटा था आखिर वह इतना खौफनाक कैसे हो सकता है ? वह सोंच ही रही थी कि अमर बहादुर कुछ नरम होकर बोले बिटिया हम तुमको कष्ट नही देना चाहते लेकिन तुमने हमारी इज्जत का जरा भी खयाल नही रखा । तुमने कैसे सोंच लिया की हम उस छोटी जात से तुम्हारे रिश्ते के लिए तैयार हो जाएंगे ? अच्छा होगा उसे भूल जाओ और फिर उससे कभी बात भी मत करना । आज तक जो हमारे सामने झुक कर नमस्कार करते थे, हमारे सामने बैठने की जिनकी हिम्मत नही होती थी । आज हम उनसे रिश्ता कर लें, नही, यह हरगिज नही होगा ।

अब वक़्त आ गया था असली परीक्षा का सौम्या ने आज तक जो भी पढ़ा लिखा, जिसकी बदौलत उसने नौकरी पाई, उस शिक्षा का सही इस्तेमाल करने का और तर्क करने का । उसने कहा पापा तो क्या आज तक हमे गलत पढ़ाया जाता रहा कि सभी इन्शान एक समान हैं ?

अगर इंशानों में जातियाँ अलग-अलग हैं तो, कोई पहचान का निशान क्यों नही ? जैसे के हमसे भिन्न दूसरे जानवरों और हममे साफ अंतर दिखता है । आखिर हम कैसे कह सकते हैं कि फला व्यक्ति छोटी जात का है । किसने बनाई ये जात ?

लेकिन सौम्या के पिता तो समझने या तर्क करने के बजाय और आग बबूला हो गए, बोले तुम्हे कुछ होश भी है या नही , किससे बात कर रही हो । अंग्रेजी की किताबें पढ़कर तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है । कभी शास्त्रों पुराणों को हाथ तो लगाया नही तो क्या जानो जात किसने बनाई और क्या अंतर है । कह दे रहा हूँ मैंने तुम्हारा रिश्ता सूर्यभान जी के बेटे से तय कर दिया है, तुम्हारा व्याह अब उससे ही होगा । सबसे अच्छी बात वह भी तो तुम्हारे बचपन का दोस्त है । ध्यान रहे कोई ऐसी हरकत न करना जो मेरी शान में गुस्ताखी करे मुझे बर्दास्त नही होगा । उस लौंडे को तो मैं देख लूँगा, उसने सोंचा भी कैसे की वह हमारे घर की इज्जत से खेलेगा ।

फिर कुछ देर बाद अचानक जोर से हँसें और कहा क्या, क्या हुआ ? सबके पैरों तले से जमीन खिसक गई क्या ? अरे ! मैं तो मजाक कर रहा था । भला अपनी बिटिया की मर्जी के खिलाफ कुछ किया है आज तक । कल सुबह उस लड़के से कहो कि अपने पिता को मुझसे बात करने के लिए कहे । अपने पिता की इन बातों से सौम्या आश्चर्यचकित थी । फिर उसे लगा पिता जी उसके प्यार की परीक्षा ले रहे होंगे । वह खुशी से फूले न समा रही थी । जैसे कि उसने पूरा आसमां जीत लिया हो । उसे क्या पता यह खुशी बहुत बड़े तूफान का संकेत हो सकती है । मगर उसकी माँ को समझ में आ रहा था कि कुछ गलत होने जा रहा है ।

उसने सौम्या से कहा बेटी तुम प्रकाश से प्यार करती हो तो उसे भूल जाओ । समझ लो वह तुम्हारी जिंदगी में आया ही नही , नही तो वह बेवजह मारा जाएगा । सौम्या को समझ नही आ रहा था, माँ तो उसके लिए मान गई थी, अब क्या हुआ ? उसने माँ की बात पर ध्यान नही दिया । अगले दिन जब प्रकाश के पिता जी सौम्या के घर के लिए निकले तो फिर न तो वहाँ पहुँचे और न ही वापस घर । सौम्या इंतजार करती रही । जब देर बहुत हो गई और वे नही आये तो उसके पापा बोले बेटा छोटे लोग ऐसे ही होते हैं । इधर प्रकाश के घर पर भी इंतजार होता रहा । फिर सोंचा शायद लौटते वक्त किसी परिचित के यहाँ रुक गए होंगे । यह सोंचकर सब निश्चिंत हो गए । दो दिन बाद भी जब प्रकाश के पिता सेवाराम जी की कोई खबर नही मिली तो सबको चिंता होने लगी । सौम्या घर पता किया तो मालूम चला वहाँ पहुंचे ही नही । प्रकाश ने पुलिस में गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाने के साथ-साथ रिश्ते नाते में भी पता किया । सेवाराम का कहीं कुछ पता नही चल रहा था । अचानक कहाँ चले गए या उनके साथ क्या हुआ कुछ भी नही पता हो पा रहा था । फिर एक दिन उसे एक पत्र मिला उसमें लिखा था आगर अपने पिता को जिंदा देखना चाहते हो तो, खोजबीन बन्द करके अपनी बिरादरी की कोई लड़की देखकर अपनी शादी कर लो और सौम्या को भूल जाओ । शादी होते ही तुम्हारा बाप तुम्हारे घर पहुंच जाएगा । प्रकाश को समझ नही आया उसने सौम्या को उस पत्र के बारे में बताया । सौम्या उस पत्र को देखते ही समझ गई कि यह तो जीत है । अब जब सबूत के साथ पुलिस को नामजद रिपोर्ट की तो पुलिस भी उसे हिरासत में लेने को मजबूर हो गई । वरना जीत पर हाथ डालना इतना आसान नही था सूर्यभान की पहुँच बड़ी दूर तक थी । पूंछताछ पर पता चला कि सेवाराम जी अमर बहादुर के फार्महाउस में नजरबंद हैं । खैर सेवाराम जी तो मुक्त हो गए । सौम्या प्रकाश की खुशी का ठिकाना ही न रहा । दोनों बहुत खुश थे पर सेवाराम जी कुछ बोल ही नही रहे थे । क्या बोलें उनको तो दोनों बच्चों की खुशी के सिवा कुछ और नही चाहिए था । फिर भी वे कुछ छुपा रहे थे । फिर अचानक रोने लगे बोले बेटी मेरा प्रकाश ही एकमात्र सहारा है । इसे कुछ हो गया तो मैं कैसे जिऊंगा, शादी व्याह तो सब ऊपरवाले की मर्जी से होता है । उसकी मर्जी नही है कि तुम्हारी और प्रकाश की शादी हो । तभी तो हमारी जात अलग-अलग है । यहाँ लोग इन्शान को नही जाति को महत्व देते हैं । लोगों ने तो भगवान की भी जातियाँ बना रखी हैं । बिटिया संसार में आदमी अपनी जात पात की कंठी नही छोड़ सकता । तुमको नही पता मुझे जीत ने नही तुम्हारे पिता ने कैद किया था । वे किसी भी हालत में तुम्हारे और प्रकाश के रिश्ते को स्वीकार नही करेंगे ।

सौम्या ने कहा तब तो यह व्याह होकर रहेगा । हम जियें या मरें इस रूढ़िवादी परम्परा के आगे सर नही झुकायेंगे । इस जाति-धर्म की रूढ़िवादी विचारधारा के खिलाफ किसी न किसी को तो कदम उठाना ही पड़ेगा । समय बदल रहा है लोगों को भी तो बदलना चाहिए । वह सेवाराम जी की बात मानने को तैयार नही हुई । फिर एक दिन वही हुआ जिसका डर था सौम्या और प्रकाश ऑफिस से लौट रहे थे कि एक मोड़ पर जहाँ से दोनों अपने-अपने घर के लिए मुड़ते थे वहीं मुड़ने के बाद कुछ दश कदम बढ़े होंगें । अचानक एक तेज रफ्तार ट्रक प्रकाश को रौंदता हुआ चला गया । सौम्या प्रकाश की तरफ दौड़े की इससे पहले सोंचा ट्रक का नम्बर नोट कर ले तो देखती है बिना नम्बर प्लेट का ट्रक है । वह कुछ सोंचे की तब तक उसे प्रकाश का ध्यान आया वह बदहवास उसकी तरफ दौड़ी । खून से लथपथ प्रकाश दर्द से छटपटा रहा था । उधर से गुजरने वाले वाहन जल्दी-जल्दी निकल जा रहे थे मदद को कोई तैयार नही था । उसे कुछ समझ नही आ रहा था कि फिर किसी ने आकर गाड़ी रोकी उसने प्रकाश को हस्पताल पहुंचाया और उसे एडमिट करवाया । सौम्या ने कहा मुझे माफ़ कर दो मैं तुम्हे कितना गलत समझती थी जीत, आज अगर तुम न आते तो न जाने क्या होता । जीत ने कहा माफी तो मुझे मांगनी चाहिए अगर मैं थोड़ा जल्दी पहुंच जाता तो यह सब न होता । अभी तुम्हे बहुत कुछ बताना है । उसने कहा दरअसल मैं कभी नही चाहता था कि तुम्हारी और प्रकाश की शादी हो । इसलिए मैंने और तुम्हारे पिता ने सेवाराम जी को किडनैप कर लिया । फिर जब पुलिस ने मुझे पकड़ा लिया तब सेवाराम जी पुलिस स्टेशन आये उन्होंने कहा साहब इसे छोड़ दो, कोई केस न बनाना, नही तो पूरी जिंदगी खराब हो जाएगी इसकी । मुझे बड़ा अजीब लग रहा था कि मैं तो वैसे भी छूट जाता, पैसे फेंक कर बेल करवा लेता, तब यह मुझपर कौन सा एहशान करने चले आये । लेकिन यह बात मुझे चैन नह लेने दे रही थी । बहुत सोंचने पर समझ आया कि उन्होंने यह भी कहा था की यह भी तो मेरे बेटे के ही समान है । मैं समझ गया जिन लोगों में इतनी मोहब्बत है उनसे भला कौन नही प्यार करेगा । मैं तो जिसे छोटी जाति वाला कहकर हेय दृष्टि से देखता था वह तो बहुत बड़े दिलवाला निकला । वैसे भी मैं तो केवल प्रकाश से नफरत करता था तुम तो मेरी दोस्त थी और मैं भी तुम्हारे खिलाफ ! एक दोस्त का तो फर्ज होता है कि वह अपने दोस्त की मदद करे । तब मैंने तुम्हरे पापा को समझाने का प्रयास किया लेकिन वे नही माने । कुछ समय पहले जब मैं तुम्हारे घर गया तो तुम्हारे पापा किसी से बात कर रहे थे । वे किसी से कह रहे थे कि उड़ा दो साले को उसी मोड़ के आगे । मुझे समझने में देर नही लगी कि वे किसे उड़ाने की बात कर रगे हैं । मैंने समय से पहले पहुंचने की पूरी कोशिश की मगर देर हो गई ।

प्रकाश की हालत काफी नाजुक थी डॉक्टरों ने जवाब दे दिया, बोले बचने के बहुत कम चांस है । सौम्या पूरी तरह टूट चुकी थी जिस पिता पर उसे इतना भरोसा था वही उसके प्यार का दुश्मन बन गया । उसने तय कर लिया अगर प्रकाश नही रहेगा तो वह जी कर क्या करेगी । कुछ समय बाद प्रकाश के घरवाले भी आ गए । प्रकाश के परिवार वालों का दुःख उससे देखा न जा रहा था । इसलिए वह अपने घर चली आई । घर पहुँच कर किसी कुछ कहे बगैर ही खुद को अपने कमरे में बंद कर लिया । उसकी माँ ने समझा बेचारी परेशान है इस वक़्त कुछ बोलना ठीक न होगा । अगली सुबह जब वह कमरे से बाहर नही आई तो उसके घरवालों को चिंता हुई । उसकी माँ ने सोचा खुद जाकर उसे बुला लाती हूँ । जब उसकी माँ काफी देर तक कोशिस करने के बाद भी दरवाजा नही खुला, नही कोई आहट मिली तो वह डर गई । उसके पापा को बुलाया तब उन्होंने दरवाजा तोड़कर अंदर जाते हैं । अंदर का दृश्य देखकर उसकी माँ तो बेशुध होकर गिर पड़ती है । सौम्या बिस्तर पर पड़ी आखरी साँसे भर रही थी । अमर बहादुर की शान जीत चुकी थी, उनका मान सम्मान इज्जत आबरू सब बच गए थे, जाति जीत गई मोहब्बत हार गई थी । वह दौड़कर सौम्या के सर को गोद में उठा लेते हैं । फिर भर्राई आवाज में कहते हैं, ये क्या किया बिटिया ? मुझे माफ़ कर दो । सौम्या कुछ बोलने की स्थिति में नही थी, बस उसके मुंह से एक शब्द निकला, वह था "पापा" । फिर वह एक बेजान शरीर हो गई । अमर बहादुर चीखते, बिलखते रहे लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी । दूसरी तरफ हस्पताल में प्रकाश भी सौम्या के साथ ही अंतिम सफर पर चल पड़ा था । डॉक्टरों ने शरीर को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया था । बुजुर्ग माता पिता छाती पीट पीटकर रो रहे थे ।

अमर बहादुर पश्चाताप के आँसू बहा रहे थे । तभी उनकी नजर सौम्या के हाथ में दबे एक कागज पर गई । वह एक पत्र था जिसमें लिखा था,

प्यारे पापा,

मैंने हमेशा आप से कुछ अच्छा सीखा । आप तो मेरे सबसे अच्छे हीरो रहे । फिर भी आज मुझे आप से डर लगने लगा । आपको तो मैं न्यायप्रिय समझती थी, पर आप वैसे नही हैं । आप बहुत स्वार्थी इन्शान हैं । मैंने आपको हमेशा एक बुद्धिमान व्यक्ति समझा, परन्तु आप को तो इतना भी नही पता इन्शान को व्यक्तिगत फायदे के लिए जाति और धर्म का भर्म फैलाकर बाँटा गया है । आप भी इस जाति धर्म के दलदल में फंसे हैं और उससे बाहर निकलने की कोशिस भी नही करते । आप खुद को ऊँची जाति वाला समझते हैं लेकिन आपकी सोंच बहुत नीची हो गई है । इसलिए सबसे छोटी जात तो आपकी हुई । प्रकाश ने मुझे प्यार किया तो आपने उसकी गलती के लिए मौत की सजा दे दी । मगर प्यार सिर्फ उसने ही नही किया, मैंने भी तो उससे किया, फिर सजा उसे ही क्यों ? यहाँ भी आप स्वार्थी बन गए । जरा सोंचिये की आप जिस जाति की बात करते हैं, क्या किसी को देखकर या मेडिकल जाँच पड़ताल से आप उसकी जाति बता सकते हैं ? क्या अलग-अलग जातियों में आज तक कोई शारीरिक या रासायनिक अंतर देखा गया । अगर नही तो फिर किस आधार पर आपने जातियाँ बनाई । अलग-अलग जातियों में कुछ न कुछ अंतर होना चाहिए जो कि विभिन्न जानवरों और मनुष्य के बीच स्पष्ट दिखता है । क्या यही आपका बड़प्पन है कि किसी को धोखे से मार दो, किसी को अगवा करने अपनी शान समझते हो ? तो पापा यह आपका भर्म है जो आप जैसे लोगो का अत्याचार सहकर भी चुप हैं । वे आपका सम्मान नही करते बल्कि गरीबी के कारण मजबूर हैं और इसलिए डरते हैं । आज तो मैं भी आप से डर गई, फिर तो मेरी जाति भी छोटी हुई । मैं आपके घमंड के का सामना करने में असमर्थ हूँ । इतना कुछ कह पाना मेरे लिए मुश्किल था, इसलिए लिख रही हूँ । मैंने जिससे प्यार किया आप उससे मेरा व्याह होने नही देंगे क्योंकि आपकी जाति का सम्मान घट जाएगा ? आप अपनी जाति से जितना प्यार करते हैं उससे कहीं अधिक प्यार मैं अपने माता-पिता और प्रकाश से करती हूँ । शायद जाति के अंधेरे कुंए में मेरे पापा कहीं खो गए हैं, नही तो मेरे पापा के होते मुझे कभी भी डर नही लगता । आज मैं डर रही हूँ कि कहीं मेरे कारण ही प्रकाश को खो न दूँ । उसके बिना मैं जी कर क्या करूंगी । मैं उसे भुला नही सकती क्योंकि इस प्यार में गलती अकेले सिर्फ प्रकाश की नही है । प्रकाश आज अस्पताल में अंतिम साँसे ले रहा है, अगर उसे कुछ हो गया तो जिंदगीभर उसकी मौत का कारण बनकर कैसे जी सकती हूँ ? इसलिए आपके मान-सम्मान के खातिर मैं खुद ही जा रही हूँ । हो सके तो मुझे माफ़ कर देना । अगर प्रकाश ठीक हो जाये तो उसकी जान बख्श देना । मैं अपनी मर्जी से आपकी की ऊंची जाति को छोड़कर इस दुनिया से जा रही हूँ । इसमें उस निर्दोष का कोई दोष नही है । अपने जैसे अपने आप को बड़ी जाति का समझने वालों से कहना कि अगर खुद को अलग जाति समझना हो तो दूसरों जैसे बच्चे न पैदा करें, अपने खून का रंग बदल दें, अपने शरीर का आकार बदल दें क्योंकि यह सब लक्षण प्रकाश में हैं जिसे आप छोटी जाति का कहते हैं । अगर यह सम्भव नही है तो खुद किस घमंड में बड़ा समझते हैं ।

आपकी गुड़िया ।

चूंकि सौम्या की मौत साधरण नही थी इसलिए पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज करके उसे भी पोस्टमार्टम के लिये भेज दिया । प्रकाश और सौम्या जीते जी तो नही मिल पाए । परन्तु पोस्टमार्टम के बाद संयोगवश दोनों के दिलों को एक ही साथ रक्खा गया ।

जाति के नाम पर फिर दो प्यार करने वाले शहीद हो गए थे । पता नही उनकी शहादत कुछ बदलाव ला पाएगी या नही पर इतना तो समझ में आ गया । मनुष्य जातियों के जाल में अपना खुद का वजूद खो चुका है । सन्त शिरोमणि रविदास जी महाराज ने बहुत पहले ही यह बात कही थी जो आज भी चरित्रार्थ होती दिखती है । रविदास जी कहते हैं ---

" जाति जाति में जाति हैं जो केतन के पात ।

रैदास मनुष्य कैसे जुड़े जब तक जाति न जात ।। "