Lambe balo vali ladki in Hindi Love Stories by Qais Jaunpuri books and stories PDF | लम्बे बालों वाली लड़की

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लम्बे बालों वाली लड़की

लम्बे बालों वाली लड़की

क़ैस जौनपुरी

उसकी ज़ुल्फ़ें हमेशा लहराती रहती थीं... जब वो चलती थी तो, “आह...! क्या बात है...!” लोगों के दिलों से यही निकलता था... उसकी ज़ुल्फ़ें हमेशा उसके बायें कन्धे से होते हुए उसके सीने पे एक तरफ़ फैली रहती थीं...

जब वो दूर से चलके आती थी, तो सबकी नज़र उसकी ज़ुल्फ़ों पे ही टिकी रहती थी... ऐसा लगता था, जैसे पुराने ज़माने की कोई गणिका चली आ रही हो... या जैसे स्वर्ग से कोई अप्सरा आ रही हो... अपनी ज़ुल्फ़ों को लहराते हुए...

उसकी मुस्कुराहट से ही लोग घायल हो जाते थे... उसकी आँखों में हमेशा कुछ रहता था... मगर वो बोलती बहुत कम थी... सिर्फ़ मुस्कुरा के अपना काम कर जाती थी...

कभी-कभी वो हँसती भी थी... उस वक़्त ऐसा लगता था, ज़रूर किसी ने उससे कुछ कहा है... ज़रूर कोई उसके हुस्न से घायल हुआ है... जिसकी बात वो अपनी सहेलियों से कर रही है... उसकी आँखों में हमेशा एक नशा सा छाया रहता था... ऐसा लगता था, जैसे उसकी आँखों से शराब छलक रही हो और वो ख़ुद नशे में झूम रही हो.

चाहे कुछ भी हो, उसकी चाल में कभी कोई फ़र्क़ नहीं आया... वो हमेशा उसी मदमस्त चाल से चला करती थी... जैसे उसे किसी बात की फ़िक्र न हो... और हो भी क्यूँ...? ऊपरवाले ने हुस्न के साथ इतनी तो तरजीह दी ही है कि उसे कुछ करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी... लोग ख़ुद उसके पास खिंचे चले आयेंगे... इसीलिये तो ‘अबला नारी’ कहलाने वाली ये हुस्न की परियाँ अपनी ज़िन्दगी अपने हुस्न के सहारे आराम से जी लेती हैं... उनके हुस्न की कोई क़ीमत तो होती नहीं है... जैसा क़द्र-दान, उतना मेहरबान...

वो तो फिर भी आज के ज़माने का हुस्न थी... ऑफ़िस में नौकरी करती थी...... मगर उसे देखके कभी नहीं लगता था कि इसकी शादी भी हुई होगी... लोग हमेशा उसकी बातें किया करते थे... जिसको पता होता था, वो बता देता था कि, “अरे इसकी तो शादी हो चुकी है...” फिर लोग अपने-अपने दिलों पे पत्थर रख लेते थे... मन मसोस कर रह जाते थे... कुछ सिर-फिरे फिर भी नहीं मानते थे... उसे घूरते रहते थे... मगर उस लड़की को जैसे कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ता था... और पड़े भी क्यूँ...? उसकी क्या ग़लती थी, अगर वो इतनी ख़ूबसूरत थी...? उसकी क्या ग़लती थी, जो उसकी ज़ुल्फ़ें लहराती रहती थीं...? इसमें क्या बुराई थी, अगर वो हमेशा मुस्कुराती रहती थी....? क्या बुरा था, जो वो हमेशा ख़ुश रहती थी...? कुछ भी तो नहीं...

लेकिन एक बात थी, उसकी लहराती ज़ुल्फ़ों की वजह से बहुत सारे लोगों के दिलों पे साँप लोट जाता था... बहुतों के दिलों पे इसलिये कि वो उनकी नहीं थी... बहुतों के दिलों पे इसलिये कि वो बहुत ख़ूबसूरत थी मगर उन्हें घास नहीं डालती थी... बहुत से लोग अब भी इस कोशिश में लगे थे कि, “काश... ये हमसे दोस्ती कर लेती तो बहुत अच्छा रहता... काश, ये हमें अपने क़रीब आने देती तो अच्छा रहता... और काश, इसे हम छू सकते...”

बड़े-बड़े लोगों ने बड़े-बड़े सपने सजाये, मगर किसी के सपने पूरे नहीं हुए... क्यूँकि वो एक सपना नहीं थी... वो एक हक़ीक़त थी... ये बात अलग है कि हक़ीक़त में भी वो बड़ी ख़ूबसूरत थी... यही एक चीज़ थी जो उसके पास बेश-क़ीमती थी... बाक़ी सब तो वैसा ही था, जैसा सबके पास होता है... एक पति... एक सास... एक ससुर... एक देवर... एक ननद... और सबकुछ वैसा ही, जैसा सबके पास होता है... एक साधारण सी ज़िन्दगी थी उसकी भी... मगर उसे देखके ऐसा लगता था, जैसे उसने दुबारा जनम लिया हो... और पिछले जनम में ज़रूर किसी राजघराने में पैदा हुई रही होगी...

लोग तरह-तरह के ख़याल बनाते और बिगाड़ते रहते थे... कोई कहता, “ये लड़की ठीक नहीं है... देखो कैसे चलती है...!” तो यही बात किसी-किसी के दिल को इतनी भा जाती थी कि वो कहता था, “वाह... क्या मस्त चाल है...! हम तो फ़िदा हो गये... जी करता है... इसके क़दमों के नीचे अपना दिल रख दें... और ये हुस्न एक बार हमारे दिल पे अपने क़दम रख दे... और हम मर जाएँ... और दुनिया वहीं ख़त्म हो जाए...” ऐसे-ऐसे भी ख़याल बनाने वाले थे... लेकिन जब कभी ग़लती से उसका सामना हो जाता था, तब लोग उससे नज़र भी नहीं मिला पाते थे... फिर वो मुस्कुरा के चली जाती थी.

उसकी एक सहेली थी, जो हमेशा उसके साथ रहती थी. वो कभी भी अकेली नहीं देखी गयी. जब भी देखी गयी, अपनी उसी सहेली के साथ.

एक दिन ऐसा आया, जब वो किसी को नहीं दिखी. अब सब हैरान...! कहाँ गयी...? क्यूँ नहीं आयी...? आज का दिन ख़राब हो गया... वग़ैरा-वग़ैरा... मगर किसी की भी हिम्मत न हुई कि कुछ पता कर सके. उसकी सहेली तो आयी थी, मगर लोग उससे भी क्या पूछते...? और उसे कारण क्या बताते...? जब वो पूछती कि “क्या काम है...?” लोग कैसे बताते कि क्या काम है... लोग कैसे बताते कि उसे देखा नहीं, इसलिये दिल नहीं लग रहा है... लोग कैसे बताते कि दिन ख़राब हो गया आज...

उसकी सहेली ने देखा और महसूस किया कि, “लोग आज मुझे कुछ ज़्यादा ही घूर रहे हैं...” फिर बड़ी जल्दी ही उसे ये अहसास हो गया कि लोग किसे ढूँढ़ रहे हैं.... फिर वो भी मुस्कुराने लगी...

और अगले दिन, जब लोगों को वो ज़ुल्फ़ें एक बार फिर दिख गयीं... तब लोगों की जान में जान आयी... अब लोगों को लगा कि “क़यामत आने में अभी देर है... अभी ज़िन्दा रहने के कुछ दिन और बाक़ी हैं... अभी कुछ दिन और इन ज़ुल्फ़ों को देखना नसीब में है....”

इधर लोगों ने राहत की साँस ली... उधर वो ज़ुल्फ़ों वाली कुछ ख़ामोश सी दिखायी दे रही थी... मुस्कुरा तो रही थी, मगर आज वो बात नहीं थी...

फिर दोपहर के बाद वो मुस्कुराहट वापस आ गयी. तब लोगों को तसल्ली हो गयी कि, “सब ठीक है...”

और फिर वही सिलसिला शुरू हो गया. वो आती थी... वो जाती थी... लोग उसे देखके आहें भरते रहते थे.

धीरे-धीरे कुछ लोगों ने हिम्मत करके उससे बात करना शुरू किया... तब लोगों ने पाया कि “अरे...! ये तो बात करती है...! हम बिला-वजह घबरा रहे थे.”

इस तरह कुछ लोगों के लिये आसानी हो गयी. दिन में एक-दो बार उसका सामना हो जाता था, तो मुस्कुरा के बातें हो जाया करती थीं. क्यूँकि लोग कहते तो क्या कहते. और लोग कुछ कहते नहीं थे, इसलिये वो भी सिर्फ़ मुस्कुरा के ही रह जाती थी.

रिज़वान ने थोड़ी हिम्मत दिखायी, तो उसका फ़ायदा भी हुआ. वो अप्सरा जैसी दिखने वाली लड़की, कुछ-कुछ उसपे फ़िदा जैसी हो गयी. अब एक नया सिलसिला शुरू हुआ. रिज़वान और उस ज़ुल्फ़ों वाली के बीच नैन-मटक्का शुरू हो गया. दोनों छिप-छिप के एक दूसरे को देखते रहते और फिर से देखने की कोशिश करते रहते.

जब रिज़वान की नज़र अचानक उससे मिलती थी, तो वो मुस्कुरा देती थी. तब रिज़वान बड़ी हैरत में पड़ जाता था कि, “इस मुस्कुराहट का क्या मतलब है...?” फिर वो कोई भी राय न बनाकर सिर्फ़ मुस्कुराने में ही भला समझता था. और इस तरह एक जान-पहचान बन चुकी थी.

ये बात बाक़ी चाहने वालों को अच्छी न लगी. मगर वो करते भी तो क्या...? उनके अन्दर इतनी हिम्मत तो थी नहीं कि जाके उस लड़की से बात करते. रिज़वान ने वो हिम्मत दिखायी थी, इसलिये ही उसे ये नज़दीकी हासिल हुई थी. बाक़ी लोग तो सोचते थे कि कोई उस लड़की को उनके लिये थाली में परोस के लाएगा. और वो उसे ख़याली पुलाव समझ के खा लेंगे.

लेकिन वो तो एक जीती-जागती लड़की थी. लोगों को जब कोई रास्ता न दिखा तो वो रिज़वान के आस-पास मँडराने लगे. इसी बहाने उन्हें वो लड़की मुस्कुराती हुई दिख जाती थी.

मगर कुछ लोगों को ये भी अच्छा नहीं लगता था कि वो रिज़वान के लिये मुस्कुराती थी. इसलिये उन लोगों ने रिज़वान को भड़काना शुरू कर दिया.

कुछ ने तो रिज़वान से दोस्ती कर ली. ऐसे लोग जब रिज़वान से मिलते तो पहले ज़ुल्फ़ों वाली का हाल पूछते.

अब उन्हें एक ठिकाना मिल गया था. जिस दिन वो दिखायी नहीं देती थी, उस दिन रिज़वान से पूछा जाता था.

अब रिज़वान एक तरह से मशहूर होने लगा. हालाँकि, रिज़वान के लिये ये कोई ख़ुशी की बात नहीं थी. उसकी तो बस एक-दो बार बातें हुई थीं. और लोगों ने समझा कि “बात कुछ और है...”

लोगों ने रिज़वान को भड़काया कि “वो हिन्दू है...” तब रिज़वान कहता, “कोई बात नहीं, मुझे तो बस इतना दिखता है कि वो ख़ूबसूरत है...”

लोग जब देखते कि रिज़वान उनकी बातों में नहीं आ रहा है, तब वो दूसरी तरह की बातें करना शुरू कर देते. जैसे, “अरे, ये लड़की ठीक नहीं है... देखो, अगर किसी अच्छे ख़ानदान से होती तो यूँ मटक-मटक के चलती भला...?” तो रिज़वान के पास इसका भी जवाब होता था, “अरे मियाँ, अब वो लड़की है... ख़ूबसूरत है... वो नहीं मटकेगी तो क्या आप मटकेंगे...?”

फिर सब हँसने लगते थे. और रिज़वान उस ज़ुल्फ़ों वाली की ख़ूबसूरती को एक बार फिर ग़ौर से देख लेता था. और मन में कहता था, “ख़ूबसूरत तो हैं आप... और अदा भी है... इतना मुस्कुराती हो... इरादा क्या है...?”

उधर दूसरी तरफ़ से मुस्कुरा के ही ख़ामोश जवाब मिलता था, “क्या बतायें साहब... आपकी इस हौसले भरी नज़र का असर हो गया है हमपे... वरना लोग तो नज़रें चुरा के मिलते हैं हमसे... एक आप ही हैं, जिसने इतनी हिम्मत दिखायी है... बस इतनी सी बात है...”

और फिर दोनों मुस्कुरा देते थे.

इस तरह सब ठीक चल रहा था. दुनिया समझती थी कि रिज़वान और उस लड़की के बीच कुछ है. मगर ऐसा था नहीं. ये रिज़वान को भी पता था और उस ख़ूबसूरत ज़ुल्फ़ों वाली को भी पता था.

मगर एक बात थी, कि दोनों एक-दूसरे को देखके मुस्कुराते जरूर थे. यही बात लोगों को सोचने पे मजबूर कर देती थी. जबकि रिज़वान इसी बात से ख़ुश था कि, “चलो, जिस लड़की से लोग नज़र मिलाने से डरते हैं. वो लड़की मुझे देखके मुस्कुराती तो है. इतना क्या कम है...?”

उधर वो लड़की ये सोचके ख़ुश होती थी कि, “चलो, इन डरपोक, नज़र चुरा के देखने वालों के बीच, कोई तो हिम्मत वाला है... और देखता भी है तो मुझे ही मुस्कुराना पड़ता है वरना ये तो देखता ही जाए.”

बाक़ी जो कुछ था, रिज़वान और उस ज़ुल्फ़ों वाली की नज़रों के बीच ही था. नज़र के इस खेल में जब तक नज़र न मिले तो चैन कहाँ...? इसलिये दोनों एक-दूसरे से नज़र मिला ही लेते थे. और अब तो ये नौबत आ गयी थी कि उन्हें बाक़ी लोगों की नज़रों का ख़याल रखना पड़ता था. क्यूँकि जब इन दोनों की नज़र आपस में मिलती थी, तब कई लोगों की नज़र, इन दोनों पे टिकी होती थी.

मगर ये दोनों अगर दुनिया को देखते तो एक-दूसरे को कब देखते...? इसलिये दोनों दुनिया की परवाह किये बिना, एक-दूसरे को देखते रहते और मुस्कुराते रहते थे. हालाँकि उनके बीच ऐसा कुछ नहीं था. सिर्फ़ मुस्कुराहट का रिश्ता था. वो भी सिर्फ़ इतना कि दोनों एक दूसरे को देखके मुस्कुरा देते थे, बस.

अब दोनों की नज़र जब भी मिलती, तो दोनों को पता चल जाता था कि दोनों ही एक-दूसरे को देख रहे थे. फिर मुस्कुराहट का आना तो लाज़मी है.

सब अच्छा-अच्छा चल रहा था. अब तो वो लड़की हँसने भी लगी थी. अब जब वो चलती थी तो अपनी सहेली से बातें करते हुए हँसती रहती थी. फिर रिज़वान की तरफ़ पलट के देखती थी और रिज़वान को भी मुस्कुराने की वजह दे देती थी. दोनों को ख़ुश रहने का एक बहाना मिल गया था.

फिर दो दिन बीत गये, वो नहीं दिखी. इस बार उसकी सहेली भी नहीं दिख रही थी. अब सब परेशान. सब रिज़वान से पूछते, “कहाँ है वो...?” रिज़वान कहता, “नहीं पता...” फिर तीसरे दिन उसकी सहेली दिखी. अब रिज़वान से न रहा गया. उसने जाकर उसकी सहेली से पूछ ही लिया. उसकी सहेली रिज़वान को देखते ही रो पड़ी. रोने की वजह पूछने पर पता चला कि “वो लड़की अस्पताल में है...”

अब रिज़वान ने अस्पताल पहुँचने की वजह पूछने की ज़रूरत न समझी... बस इतना पूछ लिया कि, “किस अस्पताल में है...?” और सीधा उस अस्पताल में पहुँच गया.

रिज़वान को डर तो था कि उसके घरवाले देखेंगे तो सवाल करेंगे. मगर दूसरों के सवालों के डर से, उसके अस्पताल में पड़े होने पर भी, न जाना तो ठीक नहीं था न. इसलिये वो अन्दर चला ही गया.

मगर अस्पताल का नज़ारा तो कुछ और ही कह रहा था. वहाँ पुलिस भी थी. लोग भी जमा थे. मामला गम्भीर लग रहा था. रिज़वान भी वहाँ पहुँच गया.

रिज़वान ने उसे दूर से ही देख लिया. वो अस्पताल की सफ़ेद चादर में लिपटी हुई थी. सिर्फ़ चेहरा दिख रहा था उसका. बाक़ी सब कुछ सफ़ेद था. उसका सिर भी सफ़ेद पट्टियों से लपेटा गया था.

रिज़वान को देखके वो एक बार फिर से मुस्कुराना चाह रही थी. मगर इस कोशिश में उसकी आँखों से आँसू निकल पड़े. रिज़वान उसके पास जाकर उससे बात करना चाह रहा था मगर तभी पुलिस और लोगों ने उसे रोक दिया.

ये देखकर उस ख़ूबसूरत लड़की के चेहरे पे आँसुओं की धार बहने लगी.

रिज़वान को लोगों से पता चला कि उस लड़की को दहेज़ की लालच में जलाकर मारने की कोशिश की गयी थी. मगर बदनसीब बच गयी.

रिज़वान इजाज़त लेकर उसके पास गया. रिज़वान उसे ऊपर से नीचे तक देख रहा था. वो सफ़ेद चादर में लिपटी, बेबस सी, अस्पताल के बिस्तर पे पड़ी थी. उसके माथे से ऊपर उसका पूरा सिर पट्टियों से लिपटा हुआ था.

आज उसकी आँखें मुस्कुरा नहीं पा रही थीं. वो बस बह जाना चाह रही थीं. उसे भी महसूस हुआ कि रिज़वान उसकी ज़ुल्फ़ों को ढूँढ़ रहा है. ये ख़याल आते ही उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ़ कर लिया, जैसे वो जी भर के रो लेना चाह रही थी क्योंकि आग की लपटों ने उसकी ख़ूबसूरत और लहराती ज़ुल्फ़ों को जला दिया था.

उस ख़ूबसूरत लड़की की ख़ूबसूरत ज़ुल्फ़ों को दहेज़ की नज़र लग गयी थी… और अब वो रिज़वान से नज़र नहीं मिला पा रही थी.

तब रिज़वान ने पुलिस और बाक़ी लोगों की परवाह किये बग़ैर उसका हाथ अपने हाथ में लिया और कहा, “परेशान मत हो! तुम मेरी नज़र में अभी भी उतनी ही ख़ूबसूरत हो.”

तब उसकी नज़र रिज़वान से कुछ इस तरह मिली, जैसे वो पूछ रही हो, “लेकिन मेरे बाल...?”

तब रिज़वान की आँखें भी छलक आयीं और फिर उसने, उसके हाथ को कुछ इस तरह दबाया, जैसे वो उसे भरोसा दिलाना चाह रहा था कि, “तुम्हारे बाल फिर से आ जाएँगे.”

***