Waisi Ladki in Hindi Short Stories by Qais Jaunpuri books and stories PDF | ‘वैसी’ लड़की

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‘वैसी’ लड़की

‘वैसी’ लड़की

क़ैस जौनपुरी

पुलिस को सड़क के किनारे एक लावारिस लाश मिली. लाश एक चादर में लिपटी हुई थी. चादर हटाने पे पता चला कि वो एक लड़की की लाश है, जिसे देखते ही ये कहा जा सकता था कि ये बलात्कार का मामला है. बलात्कार करने के बाद उसे जान से मारा गया और सड़क के किनारे फेंक दिया गया.

जिसने भी ये काम किया था, बल्कि जिन्होंने भी ये काम किया था, बड़ी जल्दीबाज़ी में किया था, जिससे ये पता चलता था कि जान से मारना उनका मक़सद नहीं रहा होगा. मगर वो कौन है, जो इस लावारिस लाश का ज़िम्मेदार है? ये एक बड़ा सवाल था, जिसका जवाब किसी के पास नहीं था. लड़की के कपड़ों को देखकर लगता था जैसे किसी पार्टी में गयी थी.

ख़ैर, अब तो पुलिस को अपना काम करना था. पुलिस ने लाश को कब्ज़े में लेकर मामले की छानबीन शुरू कर दी. इसकी तहक़ीक़ात का ज़िम्मा दिया गया, इन्स्पेक्टर ख़ान को. इन्स्पेक्टर ख़ान को कई दिनों बाद इतना पेचीदा केस मिला था. ख़ान ने कहा, “बिस्मिल्लाह!” और इस मामले को सुलझाने में जुट गया.

सबसे पहले उसने लाश का मुआयना किया. उसे लाश के जिस्म पे खरोंच के निशान दिखायी दिये. लाश के बाज़ूओं पर मज़बूत पकड़ के निशान बने हुए थे. इससे पता चलता था कि लाश को कम से कम दो लोगों ने पकड़ रखा था, और कम से कम तीन लोग होंगे, जिन्होंने इस घिनौने काम को अंजाम दिया था. ख़ान को लगा, “मज़ा आयेगा इस केस को सुलझाने में.”

लाश के पास बरामद सामानों में एक मोबाइल भी था. मोबाइल से मिली फ़ोन कॉल्स की डिटेल्स से ख़ान को बहुत मदद मिलने वाली थी. ख़ान ने कहा, “ये क्या? ये केस तो यहीं सुलझ गया. अब फ़ोन मिला है, तो फ़ोन करने वाले भी मिल जाएँगे.”

इन्स्पेक्टर ख़ान का काम करने का अपना अलग अन्दाज़ है. वो हर केस को मज़ा लेकर सुलझाता है.

ख़ान ने उस मोबाइल पे आये सबसे आख़िरी नम्बर पे फ़ोन मिलाया, तो वो बन्द था. तब ख़ान ने अपने एक सिपाही से मुस्कुराते हुए कहा, “निकालो भैया! नाम पता निकालो! ये बात करने को तैयार नहीं हैं. अब तो इनसे मिलना पड़ेगा.”

वो नम्बर किसी कामिनी नाम की लड़की का था. इसका पता चलते ही पुलिस कामिनी के घर पहुँच गयी. कामिनी पुलिस को देखकर घबरा गयी. ख़ान ने कहा, “मिलेगा! कुछ न कुछ ज़रूर मिलेगा!”

कामिनी से पूछताछ करने के बाद ख़ान ने कहा, “आपको हमारे साथ पुलिस थाने चलना पड़ेगा.” कामिनी ने कहा, “क्यों? मैंने क्या किया है?” ख़ान ने कहा, “अच्छा? आपको अभी से डर लग रहा है? हमने कब कहा कि आपने कुछ किया है?”

फिर ख़ान ने एक मोबाइल नम्बर कामिनी को दिखाया और कहा, “इस नम्बर को तो पहचानती होंगी आप?” कामिनी ने कहा, “ऐसे क्या पता? मोबाइल नम्बर याद थोड़े ही रहते हैं.” ख़ान ने कहा, “हमें ये पता लगाना है कि ये नम्बर किसका है? और इसके लिये आपको थाने चलना है. चलिए!”

पुलिस ने कामिनी को वो लावारिस लाश दिखायी. कामिनी ने लाश को पहचान लिया. वो लाश उसकी दोस्त नीतू की थी.

ख़ान ने कहा, “देखा, कामिनी जी! आपको यहाँ लाने से कितनी आसानी हो गयी! अब आप ये भी बता दीजिए कि इनका ये हाल कैसे हुआ?” कामिनी घबराकर बोली, “मुझे कुछ नहीं पता.” तब ख़ान ने अपनी आवाज़ कड़क करते हुए कहा, “कामिनी जी! आपका बार-बार ये कहना कि मुझे कुछ नहीं पता, मैंने कुछ नहीं किया, हमें आप के ऊपर शक करने पर मजबूर करता है. आप घबराइए मत! आप हमें बस इतना बताइए कि इनका ये हाल किसने किया हो सकता है? कोई शक? कोई अन्देशा? आख़िर आप इन्हें जानती हैं. आपने इनकी खोज-ख़बर क्यों नहीं ली? आजकल तो मोबाइल का ज़माना है. एसटीडी हो या लोकल, सिर्फ़ पचास पैसे. तो मिस. कामिनी जी! इस पचास पैसे के ज़माने में किसी का ख़ून हो जाता है, और आपलोग चैन से बैठे रहते हैं! कैसे?”

अब कामिनी ने अपनी घबराहट को दबाकर कहा, “देखिए! मैंने कह दिया, मुझे कुछ नहीं पता. इस लड़की का नाम नीतू है, और ये मेरे ऑफ़िस में काम करती थी, बस. बाक़ी इसकी ये हालत किसने की, मुझे क्या पता!”

ख़ान ने कहा, “बहुत-बहुत धन्यवाद आपका! आपने हमें अपना क़ीमती समय दिया. और हाँ, एक बात मैं गारण्टी के साथ कहे देता हूँ, आपको कुछ और भी पता है. आप बतायेंगी और मुझे ही बतायेंगी. अभी आप जा सकती हैं, मगर शहर छोड़कर जाने से पहले मुझे याद ज़रूर कीजिएगा. ख़ान नाम है मेरा, इन्स्पेक्टर ख़ान!”

कामिनी वापस अपने घर आ गयी. अब ख़ान के चेहरे पे एक विजयी मुस्कान तैर रही थी. ये ख़ान का अपना स्टाईल था. अब ख़ान ने अपनी तफ़्तीश और तेज़ कर दी. उसने अपने सिपाही बाबूलाल को कामिनी के ऊपर नज़र रखने को कहा. और ख़ुद कामिनी से मिली जानकारी के मुताबिक़, नीतू के घर गाज़ियाबाद आ गया.

नीतू के घरवालों को अब पता चला कि उनकी नवजवान बेटी, किसी की हवस का शिकार हो चुकी थी. ख़ान ने वहाँ से मिली जानकारियों को नोट कर लिया. अब बारी थी, नीतू के ऑफ़िस जाने की. इसलिये ख़ान, नीतू के ऑफ़िस, जो दिल्ली के कनॉट प्लेस में था, जा पहुँचा.

ऑफ़िस से पता चला कि नीतू कई दिनों से बिना बताये ग़ायब है. किसी को कुछ नहीं पता. मगर ख़ान को वहाँ एक ज़रूरी बात पता चली, वो ये कि नीतू अपने ऑफ़िस में सबसे ज़्यादा कामिनी से बात करती थी. और कामिनी इन दिनों छुट्टी पे चल रही थी.

ख़ान के चेहरे पे एक बार फिर मुस्कुराहट फैल गयी. वो बोला, “कामिनी जी! मैंने कहा था न कि आपको कुछ और भी पता है, जो आप अब बतायेंगी.” सिपाही बाबूलाल, अपने साहब इन्स्पेक्टर ख़ान की इस आदत से बड़ा परेशान रहता था. वो कभी भी, कहीं भी, अपने आप से बातें करने लगते थे. जब वो समझता था कि, “ख़ान सर अपने आप से बात कर रहे हैं, तभी गड़बड़ हो जाती थी. इस बार भी ऐसा ही हुआ था. ख़ान ने पूछा, “क्यों भई बाबूलाल? मैंने कहा था कि नहीं?”

बाबूलाल ने कहा, “जी सर? मुझसे कह रहे हैं?” ख़ान ने कहा, “जी, सर...कार! तुम्हारा ध्यान किधर है? इन्स्पेक्टर ख़ान इधर है. मुझे कामिनी के मोबाइल फ़ोन की कॉल डिटेल्स चाहिए! तुरन्त!”

सारी तफ़्तीश के बाद पुलिस इस नतीजे पे पहुँची.

नीतू नाम था उसका. शौक़ था नये-नये मर्दों का साथ. बस इसी शौक़ ने उसकी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी, वरना उसके जैसी हसीन लड़की पूरे मुहल्ले में नहीं थी. गाज़ियाबाद के पॉश इलाक़े, नज़ीरपुर में रहती थी. अभी दो ही महीने हुए थे, दिल्ली की एक कम्पनी में नौकरी लग गयी थी. नौकरी लगने के बाद तो जैसे उसके पंख निकल आये थे. बेरोक-टोक, जहाँ मर्ज़ी, वहाँ घूमती थी. घरवाले मजबूर थे क्योंकि घर का ख़र्चा वही चलाती थी. पहले तो घरवाले डाँट-डपट भी लेते थे. मगर अब तो जैसे उसे किसी बात का डर ही नहीं था.

घर से निकलते ही फ़ोन पे बात करना शुरू करती थी, तो ऑफ़िस आने पर ही उसकी बात ख़तम होती थी. ऑफ़िस में भी घण्टों-घण्टों फ़ोन पे पता नहीं किससे और क्या बात करती थी. और हर हफ़्ते नया ब्वॉयफ़्रेण्ड बदलती थी.

कम्पनी की गाड़ी से आती-जाती थी. कभी रास्ते में उतर जाती थी, तो पीछे से कोई कार लेकर आता था, फिर उसमें बैठकर पता नहीं कहाँ जाती थी.

धीरे-धीरे ये बात पूरी कम्पनी में फैल गयी कि नीतू ‘वैसी’ लड़की है.

उसके चाल-चलन को देखते हुए, उसके ऑफ़िस की ही एक लड़की कामिनी, एक दिन उसके पास आयी और बोली, “कितने ब्वॉयफ़्रेण्ड हैं तुम्हारे?”

पहले तो नीतू सकपका गयी. मगर कामिनी के आत्म-विश्‍वास के आगे, नीतू का आत्म-विश्‍वास डोल गया. इसलिये उसने कामिनी से दोस्ती कर ली. और फिर धीरे-धीरे नीतू को पता चला कि, “कामिनी मुझसे भी बड़ी खिलाड़ी है.”

नीतू तो सिर्फ़ शौक़ के लिये ब्वॉयफ़्रेण्ड बदलती थी, मगर कामिनी इस काम के पैसे भी लेती थी. उसने नीतू को भी अपने गैंग में शामिल कर लिया. अब नीतू का स्टेटस ऊँचा हो गया था. सबसे पहले उसने महँगा वाला फ़ोन ख़रीदा. फिर धीरे-धीरे उसके कपड़ों का हिसाब-किताब बदलने लगा. अब तो वो ऑफ़िस में भी स्कर्ट पहन के आने लगी थी.

कामिनी ने उसे जिस दलदल में फँसाया था, नीतू को उसमें मज़ा आ रहा था. बड़े शहर की चकाचौंध में उसे असलियत दिखायी नहीं दे रही थी. कभी-कभी उसका मन, उसे ये सब करने को रोकता भी था, लेकिन उसने अपनी ज़िन्दगी का एक लम्बा दौर ग़रीबी में जीया था, इसलिए अब वो ज़िन्दगी से एक तरह का बदला ले रही थी. लेकिन वो ये नहीं देख पा रही थी कि ज़िन्दगी से इस जंग में वही हार रही थी.

अब नीतू एक कॉलगर्ल बन चुकी थी. कामिनी का ये पार्ट-टाइम बिज़नेस था. उसे छोटे शहर से ढेर सारे सपने लेके बड़े शहर में आयी हुई, नीतू जैसी लड़कियाँ बड़ी आसानी से मिल जाती थीं, जो पैसे और फ़ैशन की लालच में, अपना सबकुछ दाँव पे लगाने को तैयार हो जाती थीं. मगर एक दिन आता है, जब बुरे काम का नतीजा मिलता है.

फिर एक दिन कामिनी का फ़ोन आया, और नीतू को ऑफ़िस से सीधे अपने कस्टमर के पास जाना था. कामिनी ने ख़ास हिदायत दी थी कि, “ये पार्टी बहुत बड़ी है. इस पार्टी से कभी रेट तय करने की ज़रूरत नहीं पड़ती है. जितना ख़ुश करोगी, उतना माल मिलेगा.”

नीतू पूरी एहतियात के साथ टाइम पे पहुँच गयी थी. शाम के सात ही बजे थे. गाड़ी रुकी तो उसने देखा कि एक फ़ार्म-हाउस था, जहाँ बहुत बड़े-बड़े लोग दिखायी दे रहे थे. नीतू को लगा जैसे वो जन्नत में आ गयी हो. उसने अपनी ज़िन्दगी में कभी इतनी बड़ी पार्टी नहीं देखी थी.

फिर थोड़ी ही देर में उसका फ़ोन बजा. उसका कस्टमर उससे मिलने के लिये बेताब था. और फिर एक पच्चीस साल का नवजवान नीतू के पास आया, और बोला, “तुम हो नीतू?”

नीतू मुस्कुरा दी. फिर क्या था, उस नवजवान ने तुरन्त नीतू की कमर में हाथ डाल दिया और बोला, “वेलकम टू द पार्टी!”

नीतू ने कहा, “थैंक्स!”

उस नवजवान ने अपना नाम समीर बताया.

फिर समीर नीतू को लेके एक कमरे में आ गया, जहाँ उसके कुछ दोस्त शराब की बोतलों के साथ बैठे हुए थे. उन्होंने नीतू को देखते ही कहा, “वॉव! क्या माल लाया है यार!” समीर ने पहले नीतू का सबसे परिचय करवाया. फिर वो उसे लेकर एक अलग कमरे में चला गया. वहाँ उसने नीतू से कहा, “नहा लो!”

नीतू ने कहा, “इस वक़्त?”

समीर ने कहा, “हाँ, नहा लो! ज़्यादा मज़ा आयेगा.”

नीतू ने कहा, “मेरे पास बदलने के लिये कपड़े नहीं हैं.”

समीर ने कहा, “कपड़े मिल जाएँगे.”

फिर नीतू बाथ-रूम में नहाने चली गयी. वो नहा ही रही थी, तभी पीछे से समीर आ गया. समीर ने उसे नहाते हुए ही पकड़ लिया.

नीतू ने कहा, “ये क्या? नहा तो लेने दो.”

समीर ने कुछ नहीं कहा और बस उसे चूमने लगा. शॉअर चालू था. पानी दोनों को भिगा रहा था, मगर दोनों एक-दूसरे से लिपट चुके थे. समीर नीतू के जिस्म पे पानी की बौछार को गिरते हुए देखके ख़ुश हो रहा था. वो उसके शरीर के साथ चिपका हुआ था. उसने पैसे देने थे, इसलिए पूरा मज़ा ले रहा था.

नीतू भी पूरा साथ दे रही थी. उसके भी जीवन का ये पहला अनुभव था, जब वो पानी में भीगते हुए शारीरिक-सम्बन्ध बना रही थी.

समीर का हाथ नीतू के पूरे जिस्म पे टहल रहा था. और अब शॉअर का पानी नीतू की पीठ पे गिर रहा था, और उसकी कमर से होते हुए नीचे जा रहा था. समीर अपने पूरे जोश में था. उसने थोड़ी ही देर में नीतू की हालत ख़राब कर दी थी. दर्द की वजह से नीतू रोने लगी, मगर समीर को मज़ा आ रहा था. फिर जब नीतू ने थककर हाथ जोड़ लिये, तब समीर को उसके ऊपर तरस आ गया. आज नीतू को पहली बार दिन में तारे नज़र आ रहे थे. दोनों थोड़ी देर उसी तरह पानी में ही खड़े रहे, और भीगते रहे. फिर जब दोनों के जिस्म की आग थोड़ी ठण्डी हुई तब दोनों बाहर आ गये.

अब नीतू ने अपने वही कपड़े पहन लिये, जिन कपड़ों में वो आयी थी. जब उसने समीर से नये कपड़ों के बारे में पूछा कि, “तुम तो कह रहे थे, नये कपड़े मिल जाएँगे!” तब समीर ने मुस्कुराते हुए कहा, “अरे वो तो तुम्हें बाथ-रूम में भेजने का एक बहाना था.”

नीतू बाथ-रूम का सीन दुबारा याद नहीं करना चाहती थी, इसलिये वो भी मुस्कुरा दी. फिर समीर ने भी अपने कपड़े पहनकर, अपना पर्स निकाला और हज़ार-हज़ार के पाँच नोट, नीतू के पर्स में डाल दिये.

नीतू ने कहा, “ये क्या?”

समीर ने मुस्कुराते हुए कहा “तुम्हारा ईनाम! अब मैं रात में आऊँगा. तब तक तुम आराम करो.”

इतना कहकर समीर बाहर चला गया.

नीतू बाथ-रूम का सीन याद करके अभी भी सिहर रही थी. वो सोच रही थी कि, “अगर समीर जैसा कोई मर्द मुझसे शादी करने को तैयार हो जाए, तो मैं ये धन्धा छोड़ दूँगी.”

उसे अपनी कमर के नीचे, आगे और पीछे, और अपनी जाँघों में अभी भी दर्द महसूस हो रहा था. उसे बार-बार ऐसा लग रहा था जैसे वो अभी भी बाथ-रूम में ही खड़ी है और समीर अभी भी उसके जिस्म से लिपटा हुआ है. और अब उसे पेशाब भी महसूस हो रहा था, इसलिए वो पेशाब करने के लिये बाथ-रूम में चली गयी.

वापस आने पर उसने देखा कि समीर के वही तीनों दोस्त, जो दूसरे कमरे में शराब पी रहे थे, अब उसके ही कमरे में खड़े थे.

नीतू ने उनसे कहा, “समीर बाहर गये हुए हैं.”

उन्होंने कहा, “हमें पता है. हमें समीर ने ही भेजा है.”

अब नीतू समझ गयी कि, “मैं फँस गयी हूँ.” इसलिए उसने तुरन्त भागने की कोशिश की, मगर उन तीनों ने उसे पकड़ लिया. और उन तीनों ने सबसे पहले उसके कपड़े उतार दिये ताकि वो फिर से भागने की कोशिश न करे. उसके बाद वो तीनों उसके ऊपर टूट पड़े. नीतू बेहाल और बेसहारा चीख़-चिल्ला रही थी, मगर उसकी आवाज़ कमरे की दीवारों से बाहर नहीं जा पा रही थी.

उन तीनों ने बारी-बारी से नीतू के साथ बलात्कार किया. नीतू चीख़ती रही, मगर उन्होंने उसकी एक नहीं सुनी. यहाँ तक कि नीतू बेहोश हो गयी, मगर वे उसे रौंदते ही रहे. शराब के नशे में उन्हें इस बात का पता ही नहीं चला कि वो अब एक लाश को नोंच-खँसोट रहे थे.

नीतू मर चुकी थी. अपने आप को बचाने की कोशिश में उसने बहुत हाथ-पैर मारे, लेकिन उन दरिन्दों ने शराब और हवस के नशे में उसे बिस्तर पर इस तरह दबाकर लिटा रखा था कि उसकी साँस कब रुकी, किसी को पता नहीं चला.

बहुत देर बाद उन्हें अहसास हुआ कि, “नीतू अब कोई हरकत नहीं कर रही है.”

वो उसे बिस्तर पे उल्टा लिटाकर उसका बलात्कार कर रहे थे और उन्होंने उसे पेट के बल दबा रखा था. साँस न ले पाने और ज़बर्दस्ती तीन बार बलात्कार के कारण उसकी जान चली गयी.

नीतू को बिस्तर पे मरा हुआ देखके अब उन तीनों का नशा काफ़ूर हो गया. इसके बाद वो तीनों उसे एक गाड़ी में डालकर, और एक सूनसान जगह पे छोड़कर भाग गये.

पुलिस की जाँच में सब पर्दा-फ़ाश हो गया.

कामिनी, समीर और उसके तीनों दोस्त गिरफ़्तार कर लिये गये.

***