Mummatiya - 11 in Hindi Fiction Stories by Dharm books and stories PDF | मम्मटिया - 11

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मम्मटिया - 11

मम्मटियाया

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धर्मेन्द्र राजमंगल

आज दस तारीख थी. नौ तारीख की रात को कमला की आँख से आँख न लगी थी. सारी रात बस दिशा को सोच सोच कर रोती रही. सुबह होते ही शहर चलने की सारी तैयारी कर डालीं. कमला के साथ उसके दोनों छोटे लडके भी जा रहे थे लेकिन अंतिम समय पर कमला को ध्यान आया कि छोटे बच्चों पर पहनने के लिए कपड़े तो हैं ही नही.

आगरेवाली के लडके से पैसे तो ले लिए थे लेकिन पैसों से कपड़ा तो शहर जाकर ही मिलना था. अब दिक्कत ये थी कि बच्चे शहर तक क्या पहन कर जाएँ लेकिन छोटू बहुत फुर्ती से अपने साथ पढने वाले लडकों के पास गया और अपने और छोटे भाई के लिए एक एक जोड़ी ठीक ठाक से दिखने वाले कपड़ों का इतंजाम कर लाया.

दोनों लडकों ने कपड़े पहने. कपड़े तो नाप के थे लेकिन श्याम पर जूते नही थे और छोटू पर फटे हुए जूते थे जो किसी ने उसे दिए थे. श्याम ने चप्पल पहनी और छोटू ने फटे हुए जूते फिर माँ के साथ शहर की तरफ चल दिए.

जीतू को कमला साथ लेकर नही जा रही थी. जीतू खुद भी जाना नही चाहता था. उसे इस शादी में जाना ही रास न आया. कमला से कहता था कि मैं अपनी आँखों से अपनी बहन की दुर्गति होते नही देख सकता. कमला को जीतू का जिद्दीपना पता था. इसकारण वो उसे घर पर ही छोड़ कर जा रही थी.

कमला बच्चों को ले शहर पहुंच चुकी थी लेकिन बच्चों के लिए कुछ न लिया. न ही कपड़े और न श्याम के जूते. शोभराज का घर कमला कई सालों पहले जब बीमार रणवीर को ले कर आई थी तब देखा था. कमला शोभराज के घर पर पहुच गयी.

ज्यादा लोग तो नही आये थे लेकिन आसपास के दो चार रिश्तेदारों की भीड़ लगी हुई थी. कमला के पहुंचने पर शोभराज ने दो चार बातें कीं और फिर बाहर चला गया. शाम होने को आ रही थी. कमला दिशा से मिलकर बात करना चाहती थी.

लेकिन दिशा शोभराज के घर में किधर थी ये उसे नही पता था और जब पता पड़ा कि दिशा ऊपर छत पर है तो कमला विना कुछ समझे जाने छत पर पहुंच गयी. छत पर एक ही कमरा था. कमला ने कमरे का दरवाजा खटखटाया. कमरा खुला तो एक लडकी ने कमला को शहर की भाषा में पूंछा, “हाँ बताइए.”

कमला हड्वड़ा गयी. बोली, “वो दिशा है यहाँ पर? मुझे उससे मिलना था.” लडकी ने सपाट लहजे में उत्तर दिया, “वो अभी तैयार हो रही है थोड़ी देर बाद मिल लेना.” कमला इसके बाद जिद न कर सकी. कमरे के अंदर से किसी ने पूंछा, “कौन है लडकी दरवाजे पर?”

दरवाजे पर खड़ी लडकी ने कमला को पूंछना चाहा लेकिन कमला मुड़कर आगे बढ़ चुकी थी. लडकी ने बिना पूंछे ही बोल दिया, “शायद कोई काम वाली होगी?” कमला की साड़ी और चेहरा देख उस लडकी को कमला काम वाली ही लगी होगी. कमला को ज्यादा बुरा नही लगा. सोचती थी कि उस लडकी से ज्यादा उसकी किस्मत का दोष है.

कमला को दिशा का इतंजार देखते देखते काफी देर हो चुकी थी लेकिन दिशा ऊपर से नीचे न आ सकी. रात के समय किसी ने शोभराज के घर में आ बताया कि बारात आ चुकी है. बारात क्या थी सिर्फ चंद लोग थे.

लडके के घरवाले थे और दो तीन लोग और थे. कुलमिलाकर छह सात लोग के करीब हो सकते थे. शोभराज ने घर के आंगन में ही शादी की पूरी व्यवस्था करवा दी थी. वो बारातघर के किराये को बचना चाहता था.

पंडित ने आंगन में ही फेरों का प्रबंध कर डाला. दिशा को ऊपर से नीचे आंगन में लाया गया. कमला की नजर अपनी लाडली पर पड़ी तो उसका दिल तडप उठा. लगा जैसे किसी ने पत्थर के नीचे डाल कुचल दिया है. दिशा का मासूम चेहरा आंसुओं से लदा हुआ था. आँखें अब भी सूजी हुईं थीं.

दिशा ने कमला की तरफ देखा और गुस्से से नजरें फेर लीं. शायद वो कमला से नाराज़ थी. अपनी बिटिया की नाराज़गी का कारण कमला अच्छी तरह से जानती थी लेकिन मजबूर विधवा माँ की मजबूरी दिशा नही जानती थी.

पंडित ने शोभराज को आवाज दे कहा, “अरे शोभराज जी बर बधू को लाकर मंडप में बिठाइए.” शोभराज ने तुरंत एक आदमी भेज लडके वालों को मंडप में आने के लिए कहलवा दिया. मंडप का नाम मंडप था लेकिन बीच आंगन में जमीन पर हवनकुंड बनाकर शादी के साथ फेरे होने वाले थे. थोड़ी ही देर में लडके वाले आ गये. दिशा को भी मंडप में लाकर बिठा दिया गया. बगल में एक काला सा पच्चीस साल के करीब का लड़का भी बैठा दिया गया.

कमला का दिल उस लडके को देखते ही कुम्हला गया. आँखों में बेटी की सूरत बसी थी. जो गोरी चिट्टी और खुबसूरत थी. दूसरी सूरत उस लडके की जो दिशा को ब्याहने आया था. जो दिशा की शक्ल के मुकाबले देखने में किसी भयावह सपने जैसा था. साथ में बैठे लडके को देख कमला से खड़ा भी न हुआ गया. कमला इस लडके से अपनी लडकी की शादी भगवान के कहने पर भी नहीं करतीं. आखिर लडकी के मेल का लड़का तो होना ही चाहिए था.

आज कमला की समझ में आया कि शोभराज ने कभी इस लडके का फोटो उसे क्यों नही दिखाया था? क्यों वह एक भी बार यह न कह सका कि कमला तू भी लड़का देख ले? आखिर दिशा तेरी लडकी है. लेकिन आज कमला के हाथ में कुछ भी नही था. अपनी फूल सी बच्ची को नरक में जाते देख रही थी. हाथ से वक्त फिसलता जा रहा था. कमला साड़ी में अपना मुंह छिपाए सिसकती जा रही थी. दिशा के आंसू भी रुक नही रहे थे.

कमला जिस दिन से अपनी ससुराल आई थी तब से लेकर आज तक वो दुःख सह रही थी. आज उसकी बेटी की शादी उसके लिए एक ओर दुःख ले आई थी. शादी सम्पन्न हो चुकी थी. दिशा को आंगन के बगल वाले कमरे में ले जाया गया.

कमला का दिल हुआ कि जाकर एक बार दिशा से मिल ले. क्यों वो अपनी बेटी की शादी में वेगानी बनी घुमती रहे? लेकिन बेटी को क्या मुंह दिखाए? क्या उससे पूंछे और क्या उससे कहे. सब कुछ तो लुट गया था. परन्तु बेटी से न मिलना भी तो कमला को चैन से नही रहने दे रहा था.

कमला आंगन से उठी और बगल के कमरे में जा घुसी. इस कमरे में इस वक्त दिशा के साथ दो लडकियाँ और थीं. दोनों लडकियाँ गहरी नींद में सो रहीं थी. दिशा कमरे में पड़े बेड पर निढाल हो पड़ी थी. मानो उसमें जान ही बाकी न रही हो. कमला कमरे में पहुंच दिशा के बगल में बैठ गयी.

दिशा ने सर उठाकर ये भी न देखा कि कमरे में कौन आया है. कमला ने अपने ममता भरे हाथ से दिशा के सर को सहलाया. दुखी दिशा को ये स्पर्श बड़ा सुखदाई लगा. लगा जैसे इसी की जरूरत थी. जैसे पहले भी इस स्पर्श को कभी अनुभव कर चुकी है. उसने मुंह उठाकर देखा तो ये उसकी खुद की माँ कमला थी. दिशा को फिर से रोना आ गया. वो माँ से लिपट फफक फफक कर रो पड़ी.

माँ भी कब अपनी बेटी को रोते देख चुप रह सकती थी. वो भी फूट फूट कर रो पड़ी. दो दुखी स्त्रियों के मार्मिक रुदन से कमरे का वातावरण दुखों के धुंए से भर गया. दिशा माँ से लिपटी रो रही थी.

मुंह से सिर्फ एक बात निकलती थी, “माँ तुमने मेरे साथ ठीक नही किया. तुम चाहतीं तो आज मैं इस तरह न होती. माँ में बाकी की जिन्दगी कैसे जीऊँगी? इससे अच्छा तो तुम मुझे पैदा होते ही मार देतीं. मुझे जिन्दा रख नरक में धकेलने की क्या जरूरत थी? माँ मैं अब क्या करूं? तुम मुझे अपने पास ही क्यों न रख सकीं?”

कमला भी रो रही थी लेकिन उसका रोना दिशा से अलग था. शायद बार बार रोने से उसे चुप रहकर रोना आ गया था. कमला ने दिशा को कसकर अपने सीने से लगा लिया. शायद वो अपने ममत्व से दिशा को सहारा देना चाहती थी. एक माँ जो अपने बच्चे को हमेशा दुखों से दूर रखने की कोशिश करती है. जो बच्चे को हर परेशानी से निकालती है.

आज उसके पास ऐसा कोई तरीका नही था जिससे दिशा को राहत मिल सके. कमला बेटी को चुप करते हुए बोली, “बेटा अब जो है जैसा है उसे स्वीकार करो. चाहो तो मुझे जी भर कर गाली दे लो. मैं भी जिदगी भर तुम्हारे दुखों का बदला न चुका सकूंगी. जो दुःख तुमने सहे हैं वो मुझपर तुम्हारे एहसान बनकर रहेंगे.

तुम्हारे भाइयों पर भी एहसान बनकर रहेंगे. बेटी अब कोई ऐसा काम न करना जिससे कुछ भी गलत हो. जो तुम्हारी किस्मत में भगवान ने लिखा था वो तुम्हें मिल गया. मेरी किस्मत में तुम्हें दुखी देखना लिखा था सो देख लिया.

बेटा भगवान हम तुम जैसी स्त्रियों की सुनता ही नही है. अगर सुनता तो हम को इस भंवर में न फंसाता. लेकिन जब तुम किसी लडकी की माँ बनो तो किसी और को उस लडकी को न देना या तो उसे खुद पालना या उसका गला घोंट उसे मार डालना. क्योंकि मैंने तो तुम्हें बर्बाद होते देख लिया. शायद तुम अपनी लडकी को इस हालत में न देख सको.”

दिशा अपनी माँ की बात सुनती जा रही थी. अपनी माँ की मजबूरियां उसे पता थीं लेकिन शोभराज ने उसके दिमाग में कमला के खिलाफ जो जहर भर दिया था वो आज भी कायम था. लेकिन माँ को देख उसे लगता नही था कि उसकी माँ वैसी हो सकती है जैसी शोभराज ने बताई थी. दिशा अभी कुछ कहती उससे पहले ही शोभराज कमरे में आ पहुंचा. आते ही बोला, “चलो दिशा अब तुम्हारी विदाई होनी है. लडकियाँ सो गयी क्या? इन्हें भी जगा लो.”

दिशा के सीने में धुकधुकी दौड़ गयी. कमला का दिल भी कुम्हला गया. थोड़ी ही देर में दिशा की विदाई हो गयी. आंसू तो उसके थमते ही न थे. लोग समझते थे कि दिशा शोभराज के घर से जाने की वजह से रो रही है लेकिन दिशा अपनी किस्मत पर रोती थी. कमला खड़ी खड़ी अपनी बेटी को विदा होते देख रही थी. न गले मिलना और न शादी की ख़ुशी होना. बडा अजीब सा मंजर था. थोड़ी ही देर में दिशा वहां खड़े लोंगों की आँखों से ओझल हो गयी.

सुबह हो चुकी थी. कमला अपने दोनों लडकों को ले शोभराज के घर से अपने गाँव की तरफ चल दी. वो निर्दयी शोभराज से दिशा की शादी के बारे में एक शब्द भी न कह सकी. न कोई शिकवा करना और न कोई शिकायत करना. बस अपनी किस्मत पर रोना.

भगवान को जी भर कर याद करना और मन भर के कोसना. एक दुखी स्त्री इससे ज्यादा क्या करे? एक हिरनी किसी शेर से नही लड़ सकती. लड़ने की सोचे भी तो उसके बच्चे सामने पड़ जाएँ. हिरनी डर के पीछे हट जाती है. मन में आता है कि उसे कुछ हुआ तो बच्चों का क्या होगा?

***

कमला अपने गाँव में आ चुकी थी. लोग आ आ कर पूंछ रहे थे कि दिशा की शादी कैसी हुई. लड़का कैसा था. शोभराज ने बढिया शादी की या नही? क्या विदा होते समय दिशा रोई थी. कमला क्या कहती. लोगों से कहती रही सब ठीक हो गया. उसे पता था कि ये लोग उसकी बातों का ज्यादा यकीन नही करेंगे. फिर बताने से फायदा ही क्या है?

कुछ दिनों बाद दिशा कमला के पास घूमने आई तो उसने बताया कि जिस लडके से उसकी शादी हुई है वो एक दिहाड़ी मजदूर है. जो रोज कमाता और खाता है. ससुराल में घर भी ठीक से नही बना हुआ.

बस खाना पीना चल रहा है तथा शोभराज ने जो सामान उसकी ससुराल वालों को दिया था वो सब पुराना सामान था. जिसे शोभराज कवाडी को देने वाला था. शोभराज ने उसकी शादी इस घर में की ही इसलिए थी कि कुछ भी खर्च न करना पड़े और दिशा की जिन्दगी भी खराब हो जाए.

शोभराज और आदिराज आपस में खुश थे लेकिन इन लोगों को तनिक भी खबर नही थी कि इन लोगों ने अपनी चालों को कामयाब करने के लिए कितने जीवनों को खराब कर दिया था. कमला को बर्बाद करने के चक्कर में इन लोगों ने दिशा की बलि चढ़ा दी थी.

लेकिन इतने पर भी दिशा अपनी माँ कमला को हर बात का दोषी समझती थी और कमला अपनी किस्मत को. किन्तु ये कोई नही जानता था कि इस सब का असली दोषी कौन था? किसने इन दोनों स्त्रियों को तलवार की धार पर चलने के लिए मजबूर कर दिया था.

किसने कमला को विधवा और उसके बच्चों को अनाथ कर दिया था. क्योंकि लोग तो कहते थे कि ये सब भगवान ने पहले ही लिख दिया था. फिर तो शायद भगवान ही इस सब का दोषी था.

{समाप्त}