Chandragupt - 38 in Hindi Fiction Stories by Jayshankar Prasad books and stories PDF | चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 38

Featured Books
Categories
Share

चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 38

चन्द्रगुप्त

जयशंकर प्रसाद


© COPYRIGHTS

This book is copyrighted content of the concerned author as well as Matrubharti.

Matrubharti has exclusive digital publishing rights of this book.

Any illegal copies in physical or digital format are strictly prohibited.

Matrubharti can challenge such illegal distribution / copies / usage in court.


(पथ में चन्द्रगुप्त और सैनिक)

चन्द्रगुप्तः पंचनद का नायक कहाँ है?

एक सैनिकः वह आ रहे हैं, देव!

(नायक का प्रवेश)

नायकः जय हो देव!

चन्द्रगुप्तः सिंहरण कहाँ है?

(नायक विनम्र होकर पत्र देता है, पत्र पढ़कर उसे फाड़ते हुए)

चन्द्रगुप्तः हूँ! सिंहरण इस प्रतीक्षा में है कि कोई बलाधिकृत जायतो वे अपना अधिकार सौंप दें। नायक! तुम खड्‌ग पकड़ सकते हो, औरउसे हाथ में लिए सत्य से विचलित तो नहीं हो सकते? बोलो, चन्द्रगुप्तके नाम से प्राण दे सकते हो? मैंने प्राण देनेवाले वीरों को देखा है।चन्द्रगुप्त युद्ध करना जानता है। और विश्वास रक्खो, उसके नाम काजयघोष विजयलक्ष्मी का मंगल-गान है। आज से मैं ही बलाधिकृत हूँ,मैं आज सम्राट नहीं, सैनिक हूँ। चिन्ता क्या? सिंहरण और गुरुदेव नसाथ दें, डर क्या! सैनिकों! सुन लो, आज से मैं केवल सेनापति हूँ,और कुछ नहीं। जाओ, यह लो मुद्रा और सिंहरण को छुट्टी दो। कहदेना कि तुम दूर खड़े होकर देख लो सिंहरण! चन्द्रगुप्त कायर नहीं है।जाओ।

(नायक जाने लगता है।)

चन्द्रगुप्तः ठहरो। आम्भीक की क्या लीला है?

नायकः आम्भीक ने यवनों से कहा है कि ग्रीक-सेना मेरे राज्यसे जा सकती है, परन्तु युद्ध के लिए सैनिक न दूँगा, क्योंकि मैं उन परस्वयं विश्वास नहीं करता।

चन्द्रगुप्तः और वह कर भी क्या सकता था, कायर! अच्छाजाओ, देखो, वितस्ता के उस पार हम लोगों को शीघ्र पहुँचना चाहिए।तुम सैन्य लेकर मुझसे वहीं मिलो।

(नायक का प्रस्थान)

एक सैनिकः मुझे क्या आज्ञा है, मगध जाना होगा?

चन्द्रगुप्तः आर्य शकटार को पत्र देना, और सब समाचार सुनादेना। मैंने लिख तो दिया है, परन्तु तुम भी उनसे इतना कह देना किइस समय मुझे सैनिक और शस्त्र तथा अन्न चाहिए। देश में डौंडी फेरदें कि आर्यावर्त में शस्त्र ग्रहण करने में जो समर्थ हैं, सैनिक हैं औरजितनी सम्पपि है, युद्ध-विभाग की है। जाओ।

(सैनिक का प्रस्थान)

दूसरा सैनिकः शिविर आज कहाँ रहेगा देव?

चन्द्रगुप्तः अश्व की पीठ पर सैनिक! कुछ खिला दो, और अश्वबदलो। एक क्षण विश्राम नहीं। हाँ ठहरो तो, सब सेना-निवेशों में आज्ञा-पत्र भेज दिये गये?

दूसरा सैनिकः हाँ देव!

चन्द्रगुप्तः तो अब मैं बिजली से भी शीघ्र पहुँचना चाहता हूँ।चलो, शीघ्र प्रस्तुत हो।

(सबका प्रस्थान)

चन्द्रगुप्तः (आकाश की ओर देखकर) अदृष्ट! खेल न करना!चन्द्रगुप्त मरण से अधिक भयानक को आलिंगन करने के लिए प्रस्तुत है!विजय - मेरे चिर सहचर!

(हँसते हुए प्रस्थान)