मम्मटियाया
By
धर्मेन्द्र राजमंगल
सुबह हुई. कमला बहुत जल्दी ही उठ गयी थी. शायद रात में नींद ही नही आई थी. आज कमला को घर से निकलने का मन नही करता था. कल आदिराज द्वारा दी गयी गालियाँ उसे अपना अपमान लगीं थी. सोचती थी पता नही मोहल्ले की औरतें उसे देख किस किस तरह की बातें करेंगी. कमला घर के काम निपटाने में लग गयी लेकिन मन घोर ग्लानी से भरा रहा.
छोटू ने माँ को काम करते देखा तो अपने लिफाफा लाने वाले प्लान में लग गया. उसने चुपके से खाने के गेहूँ वाली बोरी से दो ढाई रूपये के करीब के गेहूँ निकाले और चुपके से घर से निकल गया. दानपुर गाँव के बगल वाले गाँव में डाकखाना पड़ता था. जिसकी दूरी इस गाँव से एक किलोमीटर दूर थी.
छोटू पैदल पैदल ही उस गाँव के डाकखाने पर जा पहुंचा. एक बुड्ढा सा आदमी उस डाकखाने पर बैठा था. ये डाकखाना कम भैंसों का तबेला ज्यादा लग रहा था. लेटर बोक्स पर भैंस की गोबर से सनी पूंछो के धडाधड पड़ने के निशान बने हुए थे. उसी में अंदर एक तख़्त पड़ा था जिसपर डाकबाबू बुड्ढा बैठा हुआ था.
छोटू ने जाते ही उससे कहा, “बाबा जी एक पोस्टकार्ड दे दीजिये.” बुड्ढे ने बड़े गौर से छोटू को देखा. मैले कपड़े और नंगे पैर वाले खड़े लडके को बुड्ढे ने सबसे पहले पूंछा, “पैसे हैं. दो रूपये का आता है. ला पैसे दे.”
छोटू सहम कर बोला, “मुझ पर पैसे तो नही हैं लेकिन इतने से ज्यादा के गेहूँ लाया हूँ. गेहूँ तोल कर देख लो. फ़ालतू हो तो मुझे बाकी का पैसा दे देना.” बुड्ढा आँखे तरेर कर बोला, “ये कोई परचूनी की दूकान है जो गेहूँ ले चला आया. जा बगल की परचूनी की दुकान पर गेहूँ बेच कर पैसे लेकर आ. तब लेना लिफाफा.”
छोटू उस तबेले कम डाकखाने से निकल थोड़े आगे वाली परचूनी की दुकान पर जा पहुंचा. दुकानदार ने तुरंत गेंहूँ तोल कर देख लिए. बोला, “तीन रूपये के हैं भई. बता क्या सामान लेगा?” छोटू जल्दी से बोला, “रूपये दे दीजिये सामान नही लेना.” दुकानदार छोटे लडके पर हावी हो बोला, “पागल है क्या? खाली गेंहू बेच पैसा दूं तो मुझे क्या बचेगा? चल कम रूपये का सामन ले ले. बाकी का रुपया दे दूंगा.”
छोटू सोच में पड़ गया. घर में खाने के गेहूँ बड़ी मुश्किल से आते थे. इन्हें बेकार के सामान में बर्बाद करना छोटू को अच्छा नही लगता था लेकिन तभी उसे ध्यान आया कि चूल्हा जलाने के लिए दो माचिस ले ले. माचिस घर में सबसे जरूरी चीज होती है.
घर में सुबह चूल्हा जलाने से लेकर शाम का दीया जलाने तक माचिस ही काम आती थी. माचिस खत्म होने पर माँ पडोस से आग मंगा कर घर का चूल्हा सुलगाती थी. छोटू दुकानदार से बोला, “ऐसा कीजिये एक रूपये की दो माचिस दे दीजिये. बाकी के दो रूपये दे दीजिये. मुझे दो रूपये का पोस्टकार्ड लेना है.”
दुकानदार ने छोटू का नन्हा हिसाब सुन उससे विना बहस किये दो रूपये और एक रूपये की माचिस उसके हाथ पर रख दी. छोटू दौड़ कर डाकखाने में पहुंचा. उस बुड्ढे को दो रूपये दिए और लिफाफा ले अपने गाँव की तरफ चल दिया.
सारे रास्ते मन फूला न समाता था. पता नही छोटू के मन में चिट्ठी लिखने की ख़ुशी थी या भगवान से कुछ मिलने की उम्मीद, लेकिन ख़ुशी तो थी ही. घर पहुंचे छोटू को पता ही न पड़ा कि कब वो एक किलोमीटर के रास्ते को पार कर घर आ पहुंचा.
चुपके से घर की अलमारी में माचिस रख दी और भगवान के लिए चिट्ठी लिखने लगा. लिखते में कभी भावों में खोया तो कभी खूब रोया. कभी मन खुश हुआ तो निराशा भी खूब हुई. चिट्ठी पूरी कर लभेड़े के गोंद से उसे चिपका दिया लेकिन ऊपर के हिस्से पर पता लिखने की बारी आई तो छोटू का दिमाग चकरा गया.
उसे भगवान का पता तो मालूम ही नही था. माँ से कई बार पूंछा लेकिन माँ कहती तू क्या करेगा भगवान के पते का? अब छोटू माँ को ये तो न बता सकता था कि उसे भगवान को चिट्ठी लिखनी है. उसने घर में रखी रामायण उठाई. काफी देर पेज पलटे लेकिन भगवान का पता न मिल सका. हाँ बाहर के प्रष्ठ पर प्रकाशक का पता जरुर लिखा था लेकिन भगवान के पते का उसपर कोई भी जिक्र नही था.
छोटू उदास हो बैठ गया. उसने सुना था कि भगवान सातवें आसमान पर रहते हैं. जहाँ सिर्फ हवाई जहाज पहुंचता है या फिर डांकिया की भेजी हुई चिट्ठी. लेकिन तभी उसे ध्यान आया कि गाँव के मन्दिर पर रहने वाले महात्मा को भगवान का पता मालुम होगा.
वो झट से भाग गाँव के बाहर बने मन्दिर पर जा पहुंचा. यहाँ जो महात्मा रहता था वो नंगा ही रहता था. लडकियाँ और औरतें तो मन्दिर पर जाना ही छोड़ चुकीं थीं लेकिन लोग उसे बहुत ‘पहुंचा’ हुआ साधू मानते थे. शर्म तो छोटू को भी बहुत आ रही थी लेकिन उसे अपना काम भी तो निकालना था.
छोटू ने महात्मा के पास जा उसके पैर छुए. पैर छूते में छोटू को उस महात्मा के शरीर से बहुत बुरी दुर्गन्ध आई. लोग कहते थे ये अघोरी महात्मा है. नहाने धोने का काम इन लोगों का नही होता. छोटू ने महात्मा से सवाल किया, “बाबा आप को भगवान के बारे में मालुम है?”
अघोरी बाबा ने गांजे के नशे से लाल हुई आँखों को छोटू की तरफ निकाल कर कहा, “जानता है मैं कौन हूँ? मैं सिद्धि पाया हुआ अघोरी बाबा हूँ. मुझसे भगवान की सीधी बात होती है. ऐसी कौन सी बात है जो मैं भगवान के बारे में मुझे न पता हो. बता तू क्या जानना चाहता है?”
छोटू का मन खुश हो उठा. उसे जिस बात का पता चाहिए था वो अघोरी बाबा को पता था. छोटू बड़े अदब से बोला, “बाबा जी ये भगवान रहते कहाँ पर हैं? मतलब अगर उनको चिट्ठी लिखनी हो तो उनका पता क्या लिखना पड़ता है?”
अघोरी बाबा का अहंकार एकदम ठंडा पड़ गया. एक छोटे से लडके के गूढ़ सवाल का जबाब अघोरी बाबा के पास नही था. जबकि उनकी तो सीधी भगवान से बात होती थी. अघोरी बाबा छोटू का मुंह ताकते रह गये जबकि छोटू तो पहले से ही अपने सवाल का जबाब मांगने के लिए अघोरी बाबा का मुंह ताक रहा था.
अघोरी बाबा को ऐसा सवाल आजतक किसी ने नही पूंछा था और न ही वे भगवान के पते के बारे में कुछ जानते थे. अघोरी बाबा के गुरु ने भी उन्हें इस बात के बारे में कभी नही बताया था लेकिन एक छोटे से लडके के सामने निरुत्तर होना भी तो अघोरी बाबा को मंजूर नही था.
उन्होंने फीकी हंसी के साथ कहा, “बेटे अभी तुम्हारी उम्र बहुत कम है. भगवान का पता जानने के लिए सारी उम्र निकल जाती है और विरले ही संत होते हैं जो भगवान का ‘पता’ पता कर पाते हैं. नही तो सारी जिन्दगी के बाद भी विना पता करे ही मर जाते हैं. मेरी भी साधना अभी इतनी नही कि में भगवान का ‘पता’ पता कर पाता. लेकिन तुम भगवान के पते का क्या करोगे?”
छोटू अघोरी बाबा की बात बड़े ध्यान से सुन रहा था. उसने बाबा की बात पर आश्चर्य करते हुए कहा, “बाबा आप कभी स्कूल में पढ़े हैं? मेरा मतलब पढना लिखना आता है आपको?” अघोरी बाबा बड़े गर्व से बोले, “नही मैं स्कूल नही गया लेकिन मुझे पढने की जरूरत ही क्या है?” छोटू बाबा के पास से उठ खड़ा हुआ और बोला, “तभी आपको भगवान का पता नही मालुम. अगर भगवान का पता किसी ने बताया भी होगा तो आपने उसे लिखा नही होगा?”
इतना कह छोटू अघोरी बाबा के पास से घर की तरफ चल दिया. अघोरी बाबा उसे देखता ही रह गया. आज बाबा को एक छोटे से लडके ने घुमा कर रख दिया था. जबकि गाँव के किसी आदमी औरत से बाबा से इतनी हिमाकत न की थी.
लेकिन बाबा को इस बात से गुस्सा की जगह हैरत ज्यादा हुई. वो बैठा बैठा उस नन्हे लडके को देखता रह गया. अघोरी बाबा का सारा अघोरीपन धरा रह गया था. हकीकत ये थी कि खुद बाबा को भगवान का पता जानने की उत्सुकता हो उठी.
छोटू घर पहुंच चूका था. उसे भगवान का पता कहीं भी न मिला. मन थका सा हो गया था लेकिन फिर छोटू को ध्यान आया कि डाकखाने वाले के पास भगवान का पता जरुर होता होगा. सोचता था लोग वहां तो कभी न कभी भगवान को चिट्ठी लिखते ही होंगे. मन में फिर से उम्मीद जाग चुकी थी. छोटू ने दूसरे दिन डाकखाने जाने की सोच ली. चिट्ठी को छुपा कर रख दिया. जिससे किसी के हाथ वो चिट्ठी न लगने पाए.
***
दूसरे दिन छोटू अपने बड़े भाई जीतू के साथ पढने चला गया. दोपहर के बाद घर लौटा लेकिन दिन भर उसे उस चिट्ठी का ध्यान था जो भगवान के नाम लिखी थी. पांच किलोमीटर पैदल चलने के बाद छोटू को एक किलोमीटर और पैदल चलना था.
जिससे डाकखाने पहुंच चिट्ठी पर पता लिखे और उसे भगवान को भेज सके. माँ को बिना बताये आज फिर से छोटू घर से निकल गया. साँस फूल रही थी. भूख लग रही थी. शरीर भी थका सा था लेकिन मन की आशा रोके न रूकती थी और न थकने से थकती ही थी.
छोटू डाकखाने में पहुंच चुका था. पहले वाला बुड्ढा अभी भी बैठा हुआ था. छोटू ने जाते ही उससे कहा, “बाबा भगवान को एक चिट्ठी भेजनी थी तो उसका पता बता दीजिये?” बुड्ढे ने बड़े गौर से छोटू को देखा. बुड्ढा बहुत खूसट था. बोला, “तेरा दिमाग खराब है क्या? अरे चिट्ठी तुझे भेजनी है और पता मुझसे पूंछ रहा है. मुझे क्या पता तेरे भगवान सिंह कहाँ रहते हैं? घर से लिखवा कर नही लाया?”
छोटू बुड्ढे डांकिया की बात से थोडा आश्चर्य में पड़ गया. बोला, “अरे आपके यहाँ से तो चिट्ठी आती जाती होंगी. किसी में देखकर बता दीजिये. मेरे घर किसी को उनका पता नही मालुम.” डांकिया थोडा चकडा गया. वो बहुत गुस्सैल तो था ही उसने छोटू के करीब आकर पूंछा, “जब तेरे घर को तेरे रिश्तेदार का पता नही मालुम तो मुझे कैसे मालुम होगा. चल भाग यहाँ से. जब पता मिल जाए तब आना.”
छोटू थोडा मायूस तो हुआ लेकिन उम्मीद नही छोड़ी. बोला, “आप अपने यहाँ चीट्ठी देखिये तो सही. उनमें से जरुर कोई वहां के पते की चीट्ठी होगी. लोग लिखते हैं न. मैंने किताब में भी पढ़ा है.” डांकिया को जोरदार गुस्सा आ गया. उसने विना सोचे समझे छोटू के गाल पर एक तमांचा जड दिया और गुर्राते हुए बोला, “तुझे मूर्ख बनाने के लिए मैं ही मिला हूँ. चल भाग यहाँ से और दोबारा मुझे इधर दिखाई न दे जाना.”
छोटू की आँखों में जोरदार थप्पड़ की वजह से आंसू छलछला गये. उसने डांकिया को बड़े गुस्से से देखा और धीरे धीरे वहां से चल दिया. डांकिया क्रूर वेशक था लेकिन उसके सीने में भी दिल था. थप्पड़ मारने के बाद उसे छोटू पर दया आ गयी. बोला, “सुन लडके. इधर आ.” छोटू की गुस्सा थोड़े डर में बदल गयी. उसकी हिम्मत न हुई कि डांकिया के पास चला जाय लेकिन डांकिया ने फिर बड़े नर्म लहजे में पुकारा, “अरे भई आ तो सही. बता कहाँ चिट्ठी भेजनी है?”
चिट्ठी भेजने के नाम से छोटू का सारा गुस्सा और डर छूमंतर हो गया. वो जल्दी से डांकिया के पास जा पहुंचा और उसकी तरफ अपनी लिखी हुई चिट्ठी बढ़ा दी. बुड्ढे डांकिया ने चिट्ठी हाथ में ली और बोला, “अच्छा तुझे ये तो पता होगा कि तेरे ये रिश्तेदार कौन सी जगह या कौन से जिले में रहते है? जिससे में उस इलाके के डांकिया को लिखकर बता सकूँ. बाकी का वो ढूढ़ ही लेगा.”
छोटू सोच में पड़ गया. लोगों ने उसे बताया था कि भगवान तो सातवें आसमान में रहते हैं. फिर वहां कौन सा जिला पड़ता है ये कैसे बता पाता. बोला, “मुझे जिला तो पता नही लेकिन माँ और बाकी के सब लोग बताते हैं कि भगवान सातवें आसमान में रहते हैं. क्या आज तक आपके यहाँ उनके लिए कोई चिट्ठी नही आई?”
छोटू ये बात बड़ी मासूमियत से बोल गया लेकिन डांकीया का सर फिर से चकरा गया. बोला, “क्या तू सचमुच पागल हे रे. तू कौन से भगवान की बात कर रहा है? तेरा दिमाग खराब है. मूर्ख वहां कोई चिट्ठी भेज सकता है क्या?”
इतना कह डांकीया ने चीट्ठी को खोल पढना शुरू कर दिया, “आदरणीय भगवान जी. मैं छोटू हूँ. मैं दानपुर गाँव में रहता हूँ. भगवान मैं और मेरा परिवार बहुत गरीब है. हमारे यहाँ खाने के लिए वो सब नही होता जो हमारे पड़ोसियों के घर में होता है. भगवान कभी कभी तो हम लोग भूखे ही रह जाते हैं. भगवान मेरी माँ भी बहुत दुखी रहती है. वो दिन रात रोती ही रहती है.
भगवान जी अभी एक दिन पहले ही मेरे ताऊ ने मेरी माँ को विना बात बहुत बुरी बुरी गालियाँ दीं थीं. इतनी बुरी कि अगर वो गालियाँ ताऊ ने आपकी माँ को दीं होती तो आप उनको जान से मार डालते. भगवान मन तो मेरा भी कर रहा था कि ताऊ को मार डालूं लेकिन मैं बहुत छोटा हूँ और गरीब भी. एक बार को मेरा मन किया कि में डांकू बन जाऊं लेकिन माँ बोलती है कि मुझे सच्चाई के रास्ते पर चलना चाहिए.
ऐसा करने से आप खुश होते हो लेकिन भगवान जी जब आप इमानदार लोगों से खुश होते हो तो उन्हें दुःख क्यों देते हो? मेरी माँ तो मुझे धरती पर चलने वाली नन्ही चीटीं को भी मारने से भी मना करती है लेकिन इतने पर भी उसे दुःख ही दुःख मिलते हैं.
भगवान जी मेरा ताऊ बहुत बुरा आदमी है. मोहल्ले के लोग कहते हैं कि वो बहुत से गरीब लोगों को परेशान करता है. हो सके तो उसको थोडा सबक सिखा देना. भगवान मैं तुमसे पैसा नही मांगना चाहता. माँ कहती है कि हमें मेहनत से कमा कर खाना चाहिए लेकिन भगवान जी मेरी माँ के लिए कुछ ऐसा कर दीजिये कि वो कभी न तो रोये और न ही दुखी हो.
भगवान हो सके तो मेरे पिता को फिर से हमारे पास भेज दो. वो जब से मरे हैं तब से तो माँ बहुत रोती है. भगवान मेरे छोटे भाई ने तो उनका चेहरा तक नही देखा. कम से कम वो अपने पिता को देखने का अधिकार तो रखता है न और भगवान तुम तो सब जानते हो फिर जानबूझकर हमें क्यों इतना दुःख देते हो?
हम तो तुम्हारी पूजा भी करते हैं. माँ रामायण पढ़ती है. आपका हर ब्रहस्पतिवार को व्रत भी रखती है. क्या आप इस सब से खुश नही हो. भगवान तुमने मेरी बहन को भी मार दिया. भगवान वो तो किसी से लडती तक नही थी. माँ के साथ आपकी पूजा भी करती थी लेकिन फिर भी आपने उसे..?
भगवान जी हमारे गाँव में कोई स्कूल नही है. मैं और मेरा भाई बहुत दूर पढने जाते हैं. भगवान जी स्कूल वालों ने मेरा नाम रजिस्टर से काट दिया है. कहते हैं तुम्हारी फीस नही आती इसलिए नाम नही लिख सकते. भगवान सबकी हाजिरी बोली जाती है लेकिन कोई भी मास्टर मेरा नाम नही बोलता. मुझे इस बात से थोड़ी शर्म भी आती है लेकिन मुझे अपनी शर्म से ज्यादा इस बात का दुःख है कि मैं मुफ्त में पढ़ता हूँ.
माँ भी इस बात से दुखी होती है लेकिन भगवान जी माँ के पास फीस के रूपये होते ही कहाँ हैं. वो तो कई सालों से अपने लिए साड़ी भी खरीद कर नही लायी. भगवान जी मेरे घर में एक छोटा सा गिलास भरकर दूध आता है जबकि और लोगों के घर में जग भर भर के दूध लिया जाता है. भगवान जी मेरा और मेरे भाइयों का मन दूध पीने के लिए बहुत मचलता है.
भगवान जी जब आप छोटे थे तो आप का मन भी तो ऐसा ही करता होगा लेकिन आप के घर के लोग तो बहुत अमीर होंगे फिर आप को क्या पता होगा कि हमें कैसा लगता है? माँ ने मुझे बताया है कि सारी दुनिया का खजाना आपके पास होता है. फिर आप किसी गरीब का हाल कैसे जानोगे?
भगवान जितनी जल्दी हो सके कुछ कीजियेगा. कुछ ऐसा कीजियेगा कि हम लोग सुखी हो जाएँ. माँ से पंडित जी कहते हैं कि घर में सत्यनारायण की कथा करा दीजिये. इससे आप के दुःख दूर हो जायेंगे लेकिन माँ के पास हमारी फीस के पैसे नही तो आपकी कथा कैसे कराए? इस बात के लिए आप माँ को माफ़ कर देना.
भगवान जी लोग कहते हैं कि आप हर जगह हो लेकिन दिखाई क्यों नही देते और गाँव के लोग मेरे साथ पढने वाले उस हरिजन के लडके को मन्दिर में घुसने नही देते. भगवान जी क्या आप भी इसको सही मानते हो? किताबों में तो लिखा है कि सब बराबर होते हैं. मास्टर जी भी यही कहते हैं लेकिन अकेले में वो मुझको उस लडके से दूर रहने के लिए कहते हैं. भगवान जी वो लड़का भी बहुत गरीब है. हो सके तो उसके लिए भी कुछ कर देना.
भगवान जी में ये चिट्ठी आपको इस लिए लिख रहा हूँ क्योंकि आप इस दुनियां के मालिक हो. आपने मुझे गरीबी में पैदा किया है. आपने मेरे पिता की जान ली है. अगर आप ये सब न करते तो मुझे कोई दुःख न होता.
अच्छा है आप धरती पर नही रहते नही तो अदालत वाले जज साहब आपको जेल में डलवा देते. मेरे गाँव का एक आदमी आज भी जेल में बंद है क्योंकि उसने एक आदमी को मार दिया था लेकिन अगर आप धरती पर रहते तो ऐसा करते ही नही क्योंकि आपको पता होता कि जो लोग धरती पर रहते हैं उनकी कितनी परेशानियाँ होती हैं?
अब आप खुद ही सोचो कि सातवें आसमान से आपको कितना दिखाई देता होगा. हो सकता है आप मेरा घर न देख पाते हों. जब आप ये चिट्ठी पढो तो मेरा घर जरुर देखना. गाँव के बीचोंबीच सबसे बुरी हालत का घर मेरा ही है. इस घर में न तो एक भी भैंस है और न ही पक्की छत. साथ ही घर में टूटी फूटी साईकिल तक नही है.
ये चिठ्ठी डालने के लिए भी पैदल ही जाना पड़ता है और हो सकता है कि जब आप ऊपर से मेरे घर को देखें तो मेरी माँ आंगन में बैठी पुरानी साड़ी के पल्लू से मुंह छिपाए रोती हुई दिखाई दे जाए. भगवान जी अगर वो रोती हुई दिखाई दे तो एक बार अपनी शक्ति से उसके मन का दुःख जान लेना. शायद उस दुःख को महसूस कर आप जैसा संसार का सबसे सुखी आदमी भी फूट फूट कर रो पड़े.
भगवान जी मैं अब दोबारा आप को चिट्ठी नही लिखूंगा. चाहे आप हम लोगों को सुखी करो या मत करो लेकिन एक बार मेरे घर की हालत जरुर देख लेना. शायद आपको अपनी गलती का एहसास ही जाय. शायद आपको अपने फैसले पर थोड़ी लज्जा भी आ जाय. एक विधवा औरत और मासूम बच्चों को इतना दुःख देना भगवान का काम नही होता.
हो सकता है आप से छोटे भगवान भी हमारे गाँव के मुखिया की तरह से सोचते हों. भगवान जी आप की माँ जी अगर खेत खेत में घूम भरी दोपहरी काम करती घूमतीं तो आप क्या करते? मेरी माँ के लिए भी वही कर देना. आपको अपनी माता जी की कसम. लिखने में कोई गलती हो तो बच्चा जान माफ़ कर देना, आपका छोटा सा भक्त छोटू.”
चिट्ठी पूरी खत्म हो चुकी थी. डांकीया की आँखों में आंसू थे. बात बात पर लड़ने के लिए तैयार रहने वाला डांकिया भावुक हो गया था. उसने चिट्ठी को बंद किया. गमछे से अपने आंसू पोंछे और तख़्त पर बैठ गया. फिर छोटू की तरफ देखता हुआ बोला, “तख्त पर बैठ जा भई. तेरी चिट्ठी ने मेरा मन बैचेन करके रख दिया. क्या तूने खुद लिखी है ये चिट्ठी या किसी और से लिखवा कर लाया है?”
छोटू ने हाँ में सर हिलाते हुए कहा, “जी मैने ही लिखी है.” डांकीया छोटू को बड़े ध्यान से देखता हुआ बोला, “यार तू तो बहुत परेशान है लेकिन मैं तुझे एक बात सच सच बता दूँ कि भगवान को कोई चिट्ठी नही लिख सकता. वो कहाँ रहता है ये किसी को पता नही लेकिन संत महात्मा कहते हैं कि वो घट घट में रहता है. उसको कोई भी डांकीया चिट्ठी नही पहुंचा सकता.
इसलिए बेटा ये चीट्ठी भगवान के पास नही पहुंच सकती. तू ये सब भूल कर अपनी पढाई लिखाई में ध्यान लगा. जिससे तुझे कुछ मिल सके. ठीक है. अब ये चिट्ठी ले और घर जा. आज के बाद कभी ये काम मत करना. भगवान कभी ऐसे नही मिलते. उसके लिए भजन पूजा करनी पडती है. जिसके लिए अभी तेरी उम्र बहुत छोटी है.”
इतना कह डांकीया ने छोटू के हाथ में बड़े प्यार से उसका लिखा हुआ लिफाफा पकड़ा दिया. इस समय डांकीया को देख लगता नही था कि ये वही डांकीया है जिसने थोड़ी देर पहले इस लडके के गाल पर थप्पड़ मार दिया था. छोटू वहां से अपना बुझा मन ले बाहर निकल आया.
उसकी सारी उम्मीदें टूट गयीं थीं. दो दिन से जो उसका मन ख़ुशी से फूला न समाता था वो आज नाउम्मीद हो गया था. जिस भगवान को लेकर उसके मन में आशा जगी थी वो आज पल भर में खत्म हो गयी थी. आज उसे लगता था कि दुनियां में कोई ऐसा नही जो उसकी सुन सके और न ही कोई ऐसा है जो उसके दुःख दूर कर सके.
रास्ते में आ छोटू ने लिफाफे के टुकडे टुकड़े कर डाले. सोचता था जब भगवान का कोई अता पता ही नही तो उसकी समस्या क्या सुनेगा. उसे लिफाफे में खर्च हुए उन दो रुपयों का भी मलाल हो रहा था जो खाने वाले गेहूँ बेचकर लिए थे.
उसकी माँ ने दोपहरी भर काम कर कर के वो गेहूँ जोड़े थे. पूरे घर ने मिलकर खेतों से गेहूँ की बालें बीनी थीं तब वो अनाज घर में आया था और आज वही अनाज बेकार के काम में खर्च हो चुका था. शायद इतने अनाज से दो लोगों का एक समय के लिए पेट भर जाता.