रिश्तों का रेगिस्तान
अपने नगर के मध्य 12 बीघे में फैला सुंदर एवं शानदार बंगला सब का मन मोह लेता था, भावेश ने यह बंगला अपनी कड़ी मेहनत एवं बड़ी सूझ-बूझ से बनवाया था। सभी प्रकार के वृक्षों से सुसज्जित यह बंगला एक हरा-भरा उदयान ही था जिसमे बाहर वृक्षों को हरियाली और अंदर एक हरा भरा सुखी परिवार रह रहा था। नगर के मध्य में ही भावेश ने अपना बहुत बड़ा स्कूल बनवाया था जिसमे बच्चे दाखिला पाकर स्वयं को सौभाग्यशाली समझते थे एवं माता-पिता भी एक बार भावेश के स्कूल मे दाखिला दिलवाकर निश्चिंत हो जाते थे। प्रभु की बड़ी कृपा थी और लक्ष्मी तो जैसे उसके यहाँ कण कण में वास करती थी। भावेश के पास जितना धन था उससे कहीं ज्यादा उसके मन में गरीब और असहायों के लिए दर्द भी था और उसके दिल में बसने वाला गरीब और असहायों के लिए दर्द ही उसको उसके परिवार से दूर ले जा रहा था। भावेश के परिवार को यह बिलकुल भी पसंद नहीं था कि उनके स्कूल में किसी को भी मुफ्त शिक्षा दी जाए लेकिन भावेश ने गरीब असहायों की शिक्षा के लिए एक ट्रस्ट बनाने का निर्णय लिया और यही निर्णय उसके जीवन का रेगिस्तान बन गया।
भावेश चौंक कर नींद से जागा और सोचने लगा, “कैसा सपना था यह, बगीचे के सभी पेड़ दूर जा रहे हैं और भावेश रेगिस्तान में अकेला खड़ा रह गया।” भावेश ने एक बगीचा बनाया हुआ था जिसमे उसने सभी के नाम के अलग-अलग तरह के पेड़ लगा रखे थे। भावेश अभी अपने सपने के बारे में सोच ही रहा था कि उसने एक एबुलेंस के साइरन की आवाज सुनी, साइरन की आवाज और तेज होने लगी और ऐसे लग रहा था जैसे बंगले में ही आकर रुक गयी हो। भावेश एक अजीब से भय से अंदर ही अंदर काँप गया और सोचने लगा, “पता नहीं क्या हुआ होगा, सब ठीक तो होगा, बाहर चल कर देखता हूँ।” भावेश अपने कपड़े ठीक करके बाहर निकलने की सोच ही रहा था कि तब तक एक डॉ और उसके चार सहायक धड़धड़ाते हुए भावेश के कमरे में घुस आए। अचानक उनको देख कर भावेश अपने को संयमित भी नहीं कर पाया था कि डॉ के चारों सहायकों ने भावेश को जकड़ लिया, डॉ ने उसे एक इंजेक्शन लगा दिया जिससे थोड़ी ही देर में भावेश को नींद आ गयी। डॉ के चारों सहायकों ने उसे स्ट्रेचर पर लिटाया एवं एंबुलेंस में ले गए। भावेश के बेटे सर्वेश ने डॉ को नोटों की गडडी देकर कहा, “डॉ साहब अब पिताजी वहाँ से वापस नहीं आने चाहिए, पैसे जितना भी लगेगा मैं दूंगा लेकिन इनका जीवन उस पगलखाने की चारदीवारी में ही कटना चाहिए और आज ही मुझे इनके पागल होने का प्रमाण पत्र भी मिल जाना चाहिए जिसे मैं कल न्यायालय में प्रस्तुत करके इनको पागल घोषित करवा सकूँ, और बाद में सारी संपत्ति अपने नाम करवा सकूँ।
भावेश की आँख खुली तो उसने स्वयं को एक बिस्तर पर बंधे हुए पाया, मुंह पर टेप लगी थी, वो बोल भी नहीं सकता था। लेटे लेटे ही किसी के आने की प्रतीक्षा करने लगा तभी वहाँ पर एक नर्स आयी। नर्स इस कहानी से अनभिज्ञ थी अतः उसने पहले भावेश के मुंह से टेप हटाई एवं उसकी पूरी बात सुनी। नर्स को जब विश्वास हो गया कि ये पागल नहीं है तो नर्स ने भावेश को बंधन मुक्त कर दिया और कहीं न जाने की हिदायत देकर चली गयी। भावेश वहाँ से उठा और किसी तरह भाग निकला। भावेश को अपने मित्र राहुल की याद आई एवं यह सोच कर कि इस मुसीबत में वही साथ दे सकता है अतः उसके घर की तरफ चल पड़ा । राहुल का घर वहाँ से काफी दूर था लेकिन भावेश के पास और कोई चारा भी नहीं था, अतः पैदल ही कई किलोमीटर का फासला तय करके रात्री के तीसरे पहर में भावेश राहुल के घर पहुंच गया। राहुल गहरी नींद में था, भावेश ने कई बार घंटी बजाई और दरवाजा भी खटखटया, तब जाकर राहुल की नींद खुली, बिस्तर पर बैठे-बैठे ही आवाज लगाई , “अरे भाई आ रहा हूँ।” दरवाजे पर आकार राहुल ने दरवाजा खोलने से पहले पूछा, “कौन हो भाई” तब भावेश बड़े दुखी मन से इतना ही कह सका, “राहुल मेरे भाई दरवाजा खोलो और मुझे बचा लो।” राहुल ने आवाज़ पहचानकर तुरंत दरवाजा खोल दिया, भावेश तेजी से घर के अंदर आया और स्वयं ही दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। भावेश ने राहुल को समझाया कि कोई भी मुझे पूछे या ढूंढने आए तो बताना मत, नहीं तो मेरा जीवन खतरे में पड़ जाएगा। राहुल ने भावेश को बैठाकर पीने को पानी दिया एवं घर मे जो भी खाने का सामान था, सब उठा लाया और भावेश को खिलाया, खाने के थोड़ी देर बाद भावेश थोड़ा शांत हुआ।
भावेश के माँ-बाप एक ठेकेदार के पास मजदूरी का काम करते थे। उस समय भावेश सिर्फ 5 वर्ष का था कि वह हादसा हो गया जिसमें उसके माँ-बाप दोनों उस नई बन रही बिल्डिंग की दीवार के नीचे दब कर मर गए थे। भावेश के ताऊ-ताई उसको अपने साथ लेकर गए लेकिन उनका अपना परिवार काफी बड़ा था, और वे भी मेहनत मजदूरी करके ही अपना गुजारा करते थे। तब उसकी ताई ने उसे एक घर मे काम पर लगवा दिया था जहां वो उनके छोटे-मोटे काम कर दिया करता था एवं उनके बेटे को कंपनी देता था। उस घर में रहकर उनके बेटे के साथ भावेश भी पढ़ लिया करता था इस तरह पढ़ाई का सिलसिला शुरू हो गया और उस घर में रहकर ही भावेश ने दसवीं कक्षा प्राइवेट पास कर ली। पढ़ाई में भावेश अच्छा था तो आगे उसको अच्छे स्कूल में दाखिला मिल गया लेकिन पढ़ाई का और अपना खर्चा उठाने के लिए वह दूसरे बच्चों को ट्यूशन पढ़ने लगा। भावेश के पढ़ाने के ढंग को देख कर उसको काफी ट्यूशन मिल गयी अतः उसका खर्चा ठीक ठाक चलने लगा और इस तरह भावेश ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली थी। गणित में स्नातकोत्तर होने के कारण उसका ट्यूशन का काम काफी चल निकला और उसने कोचिंग सेंटर बना कर काफी पैसा कमाया, संपत्ति भी काफी बनाई। रहने को एक बड़ा बंगला बना लिया एवं एक बड़ा स्कूल भी बना लिया था। अब भावेश का समाज में काफी नाम और रुतबा था लेकिन जैसे ही उसने तय किया कि अपनी संपत्ति का आधा हिस्सा एक ट्रस्ट बना कर उन बच्चों के लिए दूँ जिनके माँ-बाप बिल्डिंग बनाने के काम मे मजदूरी करते हैं और किसी दुर्घटना में मर जाते हैं या अपाहिज हो जाते हैं। उसका ट्रस्ट ऐसे लोगों और उनके बच्चों की सहायता के लिए होगा। लेकिन भावेश का परिवार इसके लिए सहमत नहीं था। उसका बेटा पूरी संपत्ति अपने नाम पर करवाना चाहता था। मना करने पर उसने भावेश को पागल घोषित करवाने के लिए पागलखाने के एक डॉ को रिश्वत देकर बुलवा लिया और उसको पागलखाने भिजवा दिया, जहां से भावेश बड़ी मुश्किल से भाग कर पैदल ही राहुल के घर पहुँच गया और राहुल को सारी समस्या बताई।
राहुल ने परिस्थिति की गंभीरता को समझते हुए कोर्ट में केस डाल दिया एवं प्रत्येक कदम पर विजयी हुआ। राहुल ने अपने मित्र के लिये अपनी पूरी ताकत लगा दी क्यूंकी स्कूल में पढ़ते समय भावेश ही ट्यूशन पढ़ा कर अपनी और राहुल की फीस का प्रबंध किया करता था। आज रिश्तों के इस रेगिस्तान में राहुल वट-वृक्ष बन कर भावेश को रेगिस्तान की तपती हुई धूप से बचा रहा था।