“इस कहानी के पात्र व घटना किसी व्यक्ति विशेष से सम्बंधित नही है, केवल आज कल के चलते माहौल को मद्देनज़र रखते हुए इस कहानी की रचना की गई है”
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आदाब दोस्तों, कैसे हैं आप सब। बहुत दिनों के बाद मैंने कोई कहानी मातृभारती पर अपलोड की है। कुछ दिनों से एक novel लिखने में बिजी थी जो लगभग पूरा हो गया है। जल्द ही किताब की शक्ल में वो आप लोगो के हाथों में होगा (In Sha ALLAH)। आप लोगो का प्यार और प्रोत्साहन मुझे अच्छा और नया लिखने पर आमादा करता है। जिसके लिए मैं आप लोगो की बहुत बहुत शुक्रगुज़ार हूँ। न्यू अप्डेट्स जानने और मुझसे जुड़ने के लिए आप मेरे फेसबुक पेज भी like कर सकते हैं जो आपको मेरी मातृभारती प्रोफाइल पर आसानी से मिल जायेगा। इस कहानी के बारे में अपने मन की बात comments में ज़रूर बताइयेगा। आपकी दुआओं की तलबगार खुशी सैफी।
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वो अकेली लड़की और रात
खुशी सैफी
मेघना ट्रेन में बैठी सुबक सुबक कर रो रही थी। बगल में बैग दबाये विंडो सीट पर बैठी खिड़की से बाहर रात के फैले साये अपने अंदर उतरता महसूस कर रही थी। बहते आँसूं छुपाने की कोशिश में चुपके चुपके साड़ी के पल्लू से आंखें साफ करती आस पास बैठे मुसाफिरों को देख रही थी। कोई ऊपर के बर्थ पर सोने की कोशिश में करवटे बदल रहा था, कोई सीट पर बैठा उँग रहा था तो कोई आपस मे बातें करने में मगन था। मेघना ने सब पर नज़र दौड़ाई। उसे लगा जैसे सब उसे ही घूर रहे है। उसके कुछ दूर पर 4-5 लड़के बैठे ज़ोर ज़ोर से हँसी ठिठोली कर रहे थे। एक दूसरे के हाथ पर हाथ मार कर अपनी दुनिया मे मस्त थे। मेघना की नज़र उन पर पड़ी तो उनमें से एक लड़के ने मेघना को देखा। उस लड़के ने बाकी लड़कों को इशारा किया तो सब ने मेघना की तरफ मुड़ कर देखा और फिर बातों में लग गए। सब की नज़रों के खोफ से वो कुछ और अपने अंदर सिमट गई। ट्रेन हल्की हल्की सीटी दे कर अपनी पूरी रफ्तार पकड़ चुकी थी। अब ट्रैन से नीचे उतरना ना मुमकिन था।
शादी के बाद पहली बाद मेघना अपने पति अमित के साथ अमित के मामा जी के यहां कानपुर जा रही थी। मामा जी ने बहुत प्रेम से बुलाया था दोनो को। अमित में ट्रेन का टिकट कल ही ऑनलाइन बुक कर दिया था। आज घर से निकले तो मेघना ने बताया कि वो पहली बार ट्रेन में बैठने जा रही है। जिस पर अमित खूब हँसा। “अरे बाप रे, ऐसा कैसे हो गया कि तुम कभी ट्रेन में नही बैठी” जिस पर मेघना बुरा मान गयी। “तो इसमें हँसने वाली क्या बात है, मैं वाकई नही बैठी ट्रैन में”
“अच्छा बाबा ठीक है, नाराज़ क्यों होती हो, आज बैठ जाना” अमित ने मुस्कुराते हुए अपनी नई नवेली बीवी को मनाया। स्टेशन पुहंच कर दोनों अपनी बूकिंग की हुई सीट्स पर बैठ गए और बातें करने लगे। तभी मेघना बोली “अमित फलों वाला रेपर तो मैं घर पर ही भूल गयी”
“अरे यार, ध्यान कहाँ था तुम्हरा” अमित कुछ गुस्से में बोला।
“आई एम सॉरी अमित” मेघना रुआ सी हो कर बोली।
“चलो कोई नही, मैं देखता हूँ यहां आस पास कुछ मिल जाये तो। ऐसे खाली हाथ जाना अच्छा नही लगता” इतना कह कर अमित उठने लगा।
“मैं भी चलती हुँ आपके साथ” मेघना बोली।
“नही यार, तुम यहीं बैठो, मैं दो मिनट में आया” अमित के कहने पर मेघना बैठी रही पर उसे अकेले बैठने में डर लग रहा था ओर उसका डर सच बन गया। अमित को गया 15 मिनट से ऊपर हो गए थे। तभी ट्रेन ने सिटी दी। सिटी के साथ हल्के हल्के चलने लगी तो मेघना की नजरें विंडो से बाहर अमित को खोजने लगी। मेघना ने फ़ौरन अपने बैग से मोबाइल निकाला कि अमित को फ़ोन कर सके पर उसकी बेटरी डेड थी। अमित के 2 साला भतीजे ने गेम खेल कर बेटरी खत्म कर दी थी। मेघना ने देखा और सोचा मामा जी के घर जा कर चार्ज कर लुंगी अभी तो कोई ज़रूरत नही मोबाइल की पर मोबाइल की कभी भी ज़रूरत पड़ सकती है उसे अब एहसास हुआ। मोबाइल की बेटरी डेड देख कर मेघना और डर गई। भाग कर ट्रेन के दरवाजे तक पुहंची पर ट्रेन ने धीरे धीरे रफ्तार पकड़नी शुरू कर दी थी जिस कारण उसकी नीचे उतरने की हिम्मत नही हो सकती। ट्रेन में पहली बार सफर करने के कारण व घबराहट में उसे चैन खींचने का भी ख्याल नही आया। बेचैन होती, रोती अपनी सीट पर आ कर बैठ गयी। यूँ अनजान अजनबियों पर भरोसा भी नही कर सकती थी इसलिए चुप बैठे सिसकती रही और ट्रेन शाम ढलते रात के साये में जा घुसी थी। 4 घंटे के सफर के बाद कानपुर आ गया था। ट्रेन अपने मुसाफिरों को रात के काले साये में अकेला छोड़ बाकी मुसाफिरों को उनकी मंज़िल पर पहुंचाने निकल चुकी थी। मेघना भी अपना बैग उठाये स्टेशन पर खड़ी थी। अब उसे कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या करे। अचानक खयाल आया उसके बैग में मामा जी के घर का एड्रेस पड़ा है। उसने जल्दी से बैग टटोला ओर एड्रेस वाला पर्चा निकाला तो उसकी सांस में सांस आयी।
स्टेशन से निकल कर अब उसे ऑटो वाले के पास जा कर बस मामा जी के एड्रेस पर पुहंचना था। उसे लगा अब सब मुश्किल आसान हो गयी और बस वो मामा जी के घर पुहंच ही चुकी है।
स्टेशन से निकली तो कोई ऑटो वाला उस एड्रेस पर जाने को तैयार नही था। सब दूर बता कर मना कर रहे थे “अरे मैडम इतनी रात को हम नही जायँगे इतनी दूर, आप कोई और ऑटो देख लो” ऑटो वाला ऐसा कह कर दूसरी सवारी बैठा कर चला गया। मेघना की बंधी हिम्मत टूटने लगी थी। गहरी होती रात, अकेली लड़की और अनजान शहर। इधर उधर ऑटो को देखती परेशान हो रही थी तभी उसकी नज़र सामने से आते उन्ही 4-5 लड़कों पर पड़ी जो बार बार उसे ट्रेन में देख रहे थे। मेघना की रही सही हिम्मत भी टूटने लगी। उन्हें सामने से आता देख एक पल में मेघना की आंखों में निर्भया, दामिनी जैसी गैंग रेप की खबरे चलने लगी जो अक्सर वो ज़ी न्यूज़ और आज तक पर देखती रहती थी। घबराहट में उसके हाथ से बैग छूट गया और उसमें भागना शुरू कर दिया। अब तो आस पास कोई ऑटो या रिक्शा भी नही दिख रहा था। एक्का दुक्का आदमी अपनी राह चल रहे थे पर उसकी कौन मदद करेगा.. शायद कोई भी नही। सब तमाशा देखते रहेंगे और कल वो भी किसी न्यूज़ चैनल पर दिखाई जा रही होगी। ऐसी ही है दुनिया। कोई किसी की मदद को नही आता पर तमाशा सब देखते हैं।
मेघना को भगता देख वो लड़के भी उसके पीछे भागे। “रुको, मैडम रोको” उन लड़कों में से एक ने आवाज़ लगाई। मेघना अनसुनी कर अपनी इज़्ज़त बचाती भागती रही। तभी अचानक साड़ी में पैर फंसा और वो गिर गयी। हाथ सीधे जा कर सड़क पर लगे और हथेलियाँ छिल गयीं। खुद को संभालती फिर उठी और भागने को तैयार थी पर जब तक वो लड़के वहां तक पुहंच चुके थे। तभी उनमे से एक ने मेघना का हाथ पकड़ लिया ताकि वो आगे न भाग सके।
“छोड़ो, छोडो मेरा हाथ, मुझे जाने दो” मेघना रोने लगी।
“क्यों भाग रही हो, हम तुम्हे खा जायँगे क्या” उनमे से एक लड़का गुस्से से चिल्लाया।
“तुम्हारा ये पैसों का पर्स गिर गया था ट्रेन में, वो देना था तुम्हे, तुम ट्रेन में बैठी रो रही थी तो हमें लगा मुसीबत में हो शायद” दूसरे लड़के ने कहा।
मेघना ने छोटा सा पैसों का पर्स ले लिया। घबराहट में मोबाइल निकलते वक्त शायद वहां गिर गया था।
“हर लड़का बुरा नही होता.. मैंने टीवी से सीखा है “अकेली लड़की मौका नही ज़िम्मेदारी होती है” गुस्से से चिल्लाने वाला लड़का अब नार्मल हो गया था।
मेघना अब भी रो रही थी पर दिल मे डर कुछ कम हो गया था। “कहाँ जाना है तुमको, इतनी रात को अकेली क्यों हो” पर्स देने वाले लड़के ने पूछा,साथ मे वो बैग भी थमाया जो डर से सड़क पर फेंक आयी थी। मेघना ने पूरी कहानी कह डाली और एड्रेस दिखा कर कहा “इस पाते पर जाना है”
एक लड़के ने मोबाइल निकला और Ola cabs को कॉल लगाई। 5 से 10 मिनट के अंदर कैब आ गयी। मेघना को कैब में बिठा कर बोला “मैडम पेमेंट कर दी है और अब डरने की ज़रूरत नही। ये आपको आपके पाते पर पुहंचा देंगे”
“थैंक यू” मेघना बस इतना ही कह पायी। उसे कुछ और कहने के लिए शब्द ही नही मिल रहे थे। कैब अपनी मंज़िल को चल दी थी। मेघना को लगा इंसानियत अभी भी बाकी है।
-खुशी सैफी