Mummatiya - 7 in Hindi Fiction Stories by Dharm books and stories PDF | मम्मटिया - 7

The Author
Featured Books
Categories
Share

मम्मटिया - 7

मम्मटियाया

By

धर्मेन्द्र राजमंगल

कमला दानपुर गाँव पहुंच चुकी थी. दो दिन बाद ही कमला का भाई नन्ही को वहां छोड़कर चला गया. अब कमला पर चार बच्चों को पालने और पढ़ाने की जिम्मेदारी थी. नन्ही ने अपने घर आ पेट भर भर कर खाना शुरू कर दिया था. कभी कभी तो वो इतना खा जाती कि उसे खाते खाते ही उलटी होने लगती. कमला उसे अक्सर समझाती, “बेटा नन्ही थोडा थोडा खाया करो. खाना कहीं भगा तो नही जा रहा.”

नन्ही बड़ी मासूमियत से बोलती, “माँ अगर किसी दिन तुम भी नानी की तरह मुझे खाना देना बंद कर दो तो? कम से कम अभी पेट भर भर कर खाऊँगी तो कम से कम तब इतना मन तो नही चलेगा न.” नन्ही की बात सुन कमला उसे देखती ही रह जाती.

उस पर उस नन्ही लड़की नन्ही के सवाल का जबाब नही था. नन्ही कुछ ही दिनों में इतनी स्वस्थ हो गयी कि घर के सब लोग उसे 'मोटी' कहकर बुलाने लगे. रंगत भी साफ़ हो गयी. कद काठी भी बढ़ गया. पेट भर भोजन ने उसके शरीर को पूरी तरह बदल कर रख दिया.

कमला ने अब रात को सोने से पहले चारों बच्चों को अपने पास बिठा रामायण सुनाना शुरू कर दिया था. लोगों ने कमला को बताया था कि रोज रामायण पढने से घर का दलिद्दर(गरीबी) खत्म हो जायेगा. शाम को चारपाई पर बैठने के बाद रामायण पढ़ी जाने लगी. कमला और जीतू रामायण की चौपाई पढ़ते थे और बाकी के बच्चे बड़े रोमांचित हो सुनते थे. छोटू और श्याम हर चौपाई पर अपनी माँ से पूंछते, “माँ अब क्या हुआ?”

कमला चौपाई का अर्थ करके बताती, “अब रामजी ने रावण को मार दिया या अब लक्ष्मण जी ने मेघनाथ को मार दिया.” बच्चों में रामायण जोश भर देती और साथ ही कहानी का आनंद भी प्रदान करती थी. कभी कभी तो कमला बच्चों को डांट देती थी.

क्योंकि वे हर चौपाई पर पूंछते, “माँ अब क्या हुआ. क्या राम जी ने कोई और भी मार दिया क्या?” अब हर चौपाई में थोड़े ही न कुछ हो जाता था लेकिन बच्चों को तो पूरी कहानी जानने की उत्सुकता रहती थी.

रामायण पढने से गरीबी तो दूर न हुई लेकिन बच्चे बड़े धार्मिक हो गये. जीतू हिंदी में निपुण हो गया. छोटू को कहानियां पढने का शौक हो गया और श्याम तो दिन भर लक्ष्मण बना घूमता था. गरीबी तो दिनोदिन बढ़ रही थी लेकिन कमला इसे भगवान की परीक्षा मान सहती जा रही थी.

एक दिन रामायण पढ़ते पढ़ते ही जीतू ने अपनी माँ से कहा, “माँ क्यों न हम लोग अपने खेत को खुद बोयें और काटें. जब पट्टेदार हमें खेत का पट्टा देकर अपना मुनाफा कमाता है तो क्या खेत में कमाई नही होती होगी?”

कमला को जीतू की बात सही लगी लेकिन दो किलोमीटर दूर तक पैदल चलना और फिर खेती करना बहुत कठिन था. किन्तु गरीबी से उबरने का कोई और भी तरीका तो नही था. कमला ने जीतू की बात पर हाँ कर दी. इस बार खेती को पट्टे पर न उठाया गया.

सबसे पहले खेत की जुताई हुई और उसमें अरहर बोई गयी. अरहर की फसल भी बहुत अच्छी हुई थी. कमला अपने साथ जीतू को ले अरहर की गुड़ाई में लग गयी. भरी दोपहरी और तपती गर्मी में दोनों अरहर की गुड़ाई करते थे.

नन्ही एक दो दिन से बीमार चल रही थी. उससे चारपाई से उठा तक नही जा रहा था. उसे गर्मी का कोई ख़ास बुखार हो गया था लेकिन कमला उसे तंगी के चलते किसी डॉक्टर को दिखा न सकी. गाँव में ही थैला छाप डॉक्टर को दिखाया लेकिन कोई फायदा न हुआ. सर पर अरहर गुड़ाई को खड़ी थी. जिसके पौधे बड़े हो रहे थे. ज्यादा बड़े पौधों में गुड़ाई ठीक से हो ही नही पानी थी और ऊपर से नन्ही की बीमारी. कमला की समझ में न आता था कि वो क्या करे?

आज कमला नन्ही के सर पर ठंडी पट्टी रख रही थी. नन्ही को माँ के साथ से यह सब करवाना बहुत सुकून दे रहा था. कमला ने नन्ही से बड़े प्यार से पूंछा, “नन्ही अगर तू कहे तो मैं खेत पर अरहर की गुड़ाई करने चली जाऊं? अगर तू ठीक हो तो बता दे नही तो मैं आज न जाउंगी.” नन्ही का मन तो था कि माँ को अपने पास रोक ले लेकिन उसे माँ की मजबूरी भी पता थी. बोली, “नही माँ तुम चली जाओ. मैं ठीक हूँ लेकिन खेत से जल्दी आ जाना.”

कमला ने नन्ही की बात पर हाँ में सर हिला दिया. फिर जीतू को ले खेत की तरफ चल दी. जीतू भी ज्यादा बड़ा नही था. उसकी उम्र इस वक्त कोई बारह तेरह साल के आसपास थी लेकिन घर पर रह रहे अपने भाई बहिनों में सबसे बड़ा था.

इस कारण कमला उसे अपने साथ ले जाती थी. एक अकेली औरत दो किलोमीटर तक अकेली भी तो नही जा सकती थी. अपने बेटे के साथ जाते हुए उसे इतना डर नही लगता था. जबकि बेटा खुद माँ से अपनी रक्षा की उम्मीद करता था.

जोरदार गर्मी पड़ रही थी और दोपहर का वक्त था. घर पर नन्ही बीमार पड़ी थी. छोटू और श्याम घर पर उसकी देखभाल के लिए थे. दोपहर में अचानक नन्ही जोर जोर से रोने लगी. मोहल्ले के बच्चों ने छोटू को बताया कि नन्ही पर भूत है. सारे बच्चे नन्ही पर भूत समझ उसकी हंसी बनाते रहे और नन्ही जोर जोर से रोती रही. नन्ही ने धीरे धीरे रोना बंद कर दिया और सो गयी. बच्चे भी हँसना बंद कर अपने खेल में लग गये.

शाम को खेत से कमला और जीतू घर आये. कमला ने आते ही सबसे पहले नन्ही को देखा. वो जानना चाहती थी कि नन्ही की तबियत अब कैसी है. नन्ही गहरी नींद में सोयी हुई थी. कमला ने नन्ही के चेहरे पर अपना हाथ फिराया. नन्ही के चेहरे पर आंसुओं की लम्बी लम्बी लकीरें थीं. कमला जान गयी कि उसकी मासूम बच्ची आज खूब रोई है. कमला ने नन्ही को जगाना शुरू किया लेकिन नन्ही ने कोई आवाज न दी.

कमला का मन भय से भर गया. उसे अनहोनी की आशंका हो उठी. उसके कई बच्चे पहले इसी तरह इस दुनिया को छोड़ चले गए थे. कमला ने झकझोर कर नन्ही को उठाया लेकिन नन्ही तो जीवित ही नही थी. कमला की करुणामयी चीखों से गाँव दहल उठा. नन्ही मर चुकी थी. लोगों ने मिलकर नन्ही को गाँव के तालाब में दफना दिया क्योंकि परम्परा के अनुसार बच्चों को जलाया नही जाता था.

आज फिर से कमला का एक बच्चा कम हो गया था. नन्ही सी उम्र में नन्ही का इस तरह जाना कमला के लिए बहुत दुखद था. लगातार मौतों से जूझ रही एक औरत के लिए ये एक और दुःख था. कई दिनों तक कमला नन्ही को याद कर कर के रोती रही.

खेत में गुड़ाई को पड़ी अरहर और बेटी का मर जाना. कमला दो तीन दिन बाद ही खेतों पर अरहर की गुड़ाई के लिए निकल पड़ी. उसे अपने बाकी जिन्दा बच्चे बच्चों की भी फिकर थी. अरहर खराब होने से घर में खाने के लाले पड़ सकते थे.

***

फिर जब अरहर पक गयी तो कमला ने अपने बेटे के साथ उसे काट डाला. कटी पड़ी अरहर को कमला और जीतू ने समेट कर एक जगह कर दिया. जब अरहर की पिटाई हुई तो मालुम पड़ा कि जिस तरह की अरहर की फसल हुई थी उसमें उतना अरहर दाना नही निकला. अरहर की लडकी बहुत मोटी थी लेकिन दाना बहुत कम.

कुछ तो फली पकने के कारण खेत में ही बिखर गया था. कमला अरहर का दाना जब ले जब अनाज मण्डी में पहुची तो पता पड़ा इस बार अरहर के दाम बहुत कम हैं. कुछ बड़े किसान तो अरहर लौटा लौटा कर घर को ले गये थे.

जिससे जब अरहर महंगी हो तब बेच सकें लेकिन जो छोटे किसान थे वे फसल को अधिक समय तक घर में रोक नही सकते थे. उन्हीं में से एक कमला भी थी. कमला ने सस्ते में ही अरहर बेच दी. जब हाथ में पैसा आया तो पता पड़ा कि ठीक से लागत भी नही मिल पायी.

कमला ने घर आ निश्चय किया कि खेत को फिर से पट्टे पर उठा दिया जाय. कमला को इस फसल के मूल्य से अधिक तो पट्टे के रुपयों में ज्यादा फायदा होता था. ऊपर से दिन भर खेती में काम भी नही करना पड़ता था. कमला ने पहले कभी खेती की भी नही थी इस वजह से उसको पता ही न होता था कि किस समय क्या करना चाहिए. ऊपर से चार छोटे छोटे बच्चों को पालना फिर खेती करना. शायद ही किसी औरत के लिए ये आसान हो सकता था.

जीतू पडोस के गाँव के सरकारी स्कूल में पढता था लेकिन वो सिर्फ पांचवीं क्लास तक था. आगे की पढाई के लिए पांच किलोमीटर दूर एक स्कूल था. कमला ने खुद पैदल जा कर जीतू का उस स्कूल में एड्मिसन करा दिया.

जीतू की उम्र इतना पैदल चलने की नही थी लेकिन जाना तो पड़ता ही था. कमला अपने सपनों को साकार करना चाहती थी. जो उसके बच्चो की पढाई लिखाई से ही साकार हो सकते थे. कुछ दिन बाद छोटू का नाम भी उसी स्कूल में लिखवा दिया.

स्कूल की फ़ीस ज्यादा थी इसलिए दो बच्चों की फ़ीस कमला से नही दी जा रही थी. स्कूल वालों ने छोटू का नाम स्कूल के रजिस्टर से काट दिया था लेकिन कमला की गरीबी को देखते हुए छोटू को विना नाम लिखे ही क्लास में पढने दिया गया. दोनों बच्चे पैदल स्कूल जाते और मन लगाकर पढ़ते थे लेकिन घर की तंग हालत के चलते कभी पेन नही होता था तो कभी कॉपी नही होती थी परन्तु फिर भी पढाई न रुकी.

कमला ने खेत में जब अरहर की थी तो ट्रेक्टर वाले से आदिराज के खेत मेढ़ थोड़ी सी कट गयी थी लेकिन इस बात में कमला की तो कोई गलती थी ही नही. साथ ही इस बात से आदिराज का भी कोई नुकसान नही हुआ था लेकिन आदिराज काफी दिनों से कमला को बुरा भला सुनाने की ताक में घूम रहा था.

उसने इसी बात का बतंगड बना दिया. शाम का समय था. कमला चौका में बैठी रोटी बना रही थी. तीनों लडके उसे घेरे हुए बैठे खाने के लिए आपस में बहस कर रहे थे. एक दूसरे में इस बात की बहस थी कि सबसे पहली रोटी कौन खायेगा? गाँव में कहतें हैं कि पहली रोटी खाने वाला सबसे अधिक बुद्धिमान होता है लेकिन इन बच्चों को इस बात से ज्यादा अपनी भूख बुझाने की चिंता थी.

तभी कमला के घर के बाहर से आदिराज की जोरदार आवाज आने लगी. कमला चौका से उठी और दरवाजे के पीछे कान लगा आदिराज की बात सुनने लगी. आदिराज कमला और उसके मृतक पति का का नाम ले ले कर माँ बहिन की गंदी गंदी गालियाँ दे रहा था. वो कमला को बाहर निकल कर आने के लिए भी ललकार रहा था. सारा मोहल्ला और उसके लोग नपुंसक बने आदिराज की गालियों का आनंद ले रहे थे.

कमला ने डर के मारे अपना दरवाजा बंद कर लिया. झटपट चौका में गयी और चूल्हे में पानी डाल आग को बुझा दिया. बच्चे भी डरकर माँ से चिपक गये. कमला तीनों लडकों को ले चौका में ही बैठ रोने लगी. प्लेटों में रोटियों के टुकड़े अब भी पड़े थे लेकिन एक भी बच्चे का खाने का मन नही था. कमला को डर था कि कहीं आदिराज उसके घर में घुसकर उसे और उसके बच्चों को मारने न लगे क्योंकि कमला ने आदिराज और उसके भाई के हाथों अपने पति को भी पिटते हुए देखा था.

आदिराज बाहर बैठा अब भी चिल्ला चिल्ला कर कमला को गालियाँ दिए जा रहा था. कहता था कि या तो सुधर जा नही तो गाँव की मेहतरानी से चप्पल पड़वाऊंगा. घर से निकलना मुश्किल कर दूंगा. माँ बहिन की गालियाँ तो इतनी दीं कि लोगों ने अपने घरों की औरतों को घरों में जाने के लिए कह दिया लेकिन कोई भी आदिराज से यह न कह सका कि आप एक विधवा गरीब औरत को इतनी बुरी बुरी गालियाँ क्यों दे रहे हो?

सब की सोच थी कि आदिराज अमीर आदमी है. इससे बिगड़ कर क्या फायदा? कमला की तरफदारी करने से कुछ नही मिलेगा और फिर कौन सा अपने घर की किसी औरत को गालियाँ पड़ रही थीं. यही सोच सब लोग चुप रहे.

आदिराज घंटों खरी खोटी सुनाता रहा. कमला को बेइज्जत करने में उसने कोई कसर नही छोड़ी. जब मुंह थक गया तो चुप हो चला गया. शायद कमला की चुप्पी ने उसे उसी की नजरों में गिरा दिया था. लोग मन ही मन में आदिराज को नीच और कायर कह रहे थे. जो कि एक गरीब औरत को इतना भला बुरा कह गया था. जबकि वो औरत उसके चचेरे भाई की विधवा थी. कम से कम इस बात का तो खयाल उसे करना ही चाहिए था.

सब शांत हो चुका था. कमला ने अपने आंसू पोंछे फिर बच्चों को चुप किया और दोबारा चूल्हा जला दिया लेकिन एक भी बच्चे ने खाना न खाया. बच्चों को पता था कि आज माँ खाना नही खाएगी. बच्चे बड़े हो रहे थे और उनके लिए माँ के सिवा इस दुनिया में कोई नही था.

वो माँ की भावनाओं और उसके हर एक भाव से परिचित थे. माँ किस बात से कितनी दुखी होती है और किस बात से कितनी खुश उन्हें सब पता था. आज उनकी माँ के मरे हुए पति को गालियाँ पड़ी थीं. उनकी माँ को बुरी बुरी गालियाँ पड़ी थीं लेकिन वे तीनों लडके होते हुए भी कुछ न कर पाए थे.

उन्हें पता था माँ इस बात को सहने के बाद खाना न खा पायेगी. कमला ने आटा उठाकर रख दिया. जो आज कई सालों में पहली बार हुआ था. बच्चे विना भूख के भी एकाध रोटी शौक में खा लेते थे लेकिन आज तो भूख में भी उन्हें भूख नही थी.

छोटू माँ को दुखी देख गुस्से से भर उठा. उसके मन में आदिराज के प्रति अथाह क्रोध था. माँ से बोला, “माँ मैं बड़ा होकर डांकू बनूंगा और इस ताऊ को गोली मार दूंगा. फिर देखूंगा ये तुम्हें कैसे गाली देता है. तुम देख लेना...”

छोटू अपनी बात पूरी करता उससे पहले ही कमला का थप्पड़ उसके गालों से जा लगा. थप्पड़ इतना तेज था कि छोटू का मुंह सुन्न पड़ गया. वो माँ की तरफ अजीब नजरों से देखने लगा. उसे अपनी माँ से इस थप्पड़ की उम्मीद नही थी.

कमला भी अपने व्यवहार पर शर्मिदा हो गयी. वो अपने भूखे नंगे बच्चों को बहुत कम मारती थी. सोचती थी वैसे इन लोगों के लिए कुछ नही है ऊपर से मारपीट हो तो बच्चे किसी हालत के नही रहेंगे. कमला ने छोटू के एकदम अपने सीने से लगा लिया और भर्राए हुए गले से बोली, “बेटा आज के बाद ऐसा सोचना भी मत. मैं इतनी दुखी रहकर तुम लोगों को इसलिए नही पाल रही थी कि तुम लोग बड़े होकर चोर डांकू बनो.

मैं तो तुम लोगों को बहुत बड़ा आदमी बनते हुए देखना चाहती हूँ. तुम इन दुष्टों की बातों में आ अपना जीवन क्यों खराब करना चाहते हो? यही तो ये लोग चाहते हैं. तुम बड़े होकर इतना बड़ा काम करो कि ये लोग तुम्हें देख देख कर जल मरें.

न कि तुम कोई बुरा काम कर जिन्दगी भर जेल में सडो. मेरी मेहनत का फल मुझे तभी मिलेगा जब तुम कोई अच्छा काम करोगे. तुम्हारे स्वर्गीय पिता के अरमान तभी पूरे होंगे जब तुम ईमानदारी की जिन्दगी जीते हुए कुछ कर सकोगे. तुम्हें पढ़ाने के पीछे मेरा मकसद सिर्फ इतना ही है.”

रात हुई सब लोग बिना खाना खाए ही चारपाइयों पर जा लेटे. कमला ने रामायण निकाल ली लेकिन रामायण खोल कर जैसे ही पढनी शुरू की तो गला भर्रा गया और आँखें भर आई. भगवान को देख रोना आ गया था. रोज रामायण पढ़ी जा रही थी. पढ़ते पढ़ते सालों गुजर गये थे लेकिन भगवान दुखों को दूर करने का नाम नही लेता था.

ऊपर से कमला बृहस्पतिवार का व्रत भी रखती थी. लगता था जैसे भगवान होते ही नही हैं या फिर भगवान भी इंसान की तरह शोषण करने वाला हो गया है. जो रोज अपनी पूजा तो कराता है लेकिन उसका फल नही देता. कमला तो कुछ ज्यादा मांगना भी नही चाहती थी.

वो तो अपने दुखों को इतना हल्का करना चाहती थी जिससे उसके और उसके बच्चों की जिन्दगी आराम से कट सके. वो भगवान से सोना चांदी या राजाओं जैसी सुख सुविधा की मांग तो न करती थी लेकिन भगवान थे कि उन्हें यह सब समझ ही न आता था.

कमला ने आंसू पोंछे और रामायण बंद कर रख दी. जब दिल साथ न दे तो पूजा में भी मन नही लगता. ऊपर से भगवान भी न सुनता हो तो और ज्यादा. मिटटी के तेल का दीया टिमटिमा रहा था. कमला को आज इस दीये की धीमी रौशनी से भी परेशानी हो रही रही.

बच्चे दीया के उजाले में ही सोते थे. अँधेरे में उन्हें डर लगता इस लिए कमला उसे बुझा भी नही सकती थी लेकिन अपने सबसे छोटे बच्चे को सीने से लगाये सिसक जरुर रही थी. पता नही वो अपनी किस्मत पर रोती थी या फिर दुखों की सीमा को देख रोती थी. लेकिन उसका रोना आसपास पड़े तीनों बच्चे महसूस कर रहे थे.

अपने बड़े भाई के पास लेटा छोटू भी अपनी माँ के दुखों के बारे में सोच रहा था. उसने किसी किताब में कहानी सुनी थी कि भगवान को एक लडके ने चिट्ठी लिखी थी और भगवान ने उसे पैसा भेज दिया था. छोटू का भी मन करता था कि क्यों न वो भी भगवान को एक चिट्ठी लिखे.

जिसमे भगवान उसे पैसा न दें तो कम से कम उसका दुःख तो कम कर दें और भगवान के पास तो उसके पिता भी रहते थे. ऐसा उसकी माँ कमला उससे हमेशा कहा करती थी. हो सकता है भगवान उसके पिता को बहुत सारा पैसा दे कर उसके घर भेज दें?

छोटू ने चिट्ठी लिखने का मन तो बना लिया लेकिन उसके पास लिफाफा लाने के लिए पैसे नही थे. उस समय सादा चिट्टी का कार्ड पचास पैसे और लिफाफा दो रूपये का आता था. माँ के पास जब एक रूपये के सादा पेन के लिए पैसे कम पड़ जाते थे तो चिट्ठी लिखने के लिए दो रूपये कहाँ से दे सकती थी. लेकिन छोटू के दिमाग में तरकीब आ गयी थी. जिसे वो सोचते सोचते ही सो गया.

***