यह कहानी प्रेमचंद की "प्रेमा" का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसमें मुख्य पात्र पूर्णा अपने प्रेमी अमृतराय की भावनाओं और अपनी स्थिति को लेकर चिंतित है। पूर्णा रात के समय अकेले में यह सोचती है कि अमृतराय उससे क्या चाहते हैं, जबकि उसने पहले ही उन्हें बता दिया है कि वह उनकी मदद करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। फिर भी, अमृतराय का उसके प्रति प्रेम बढ़ता जा रहा है, जिससे वह भ्रमित और परेशान हो जाती है। पूर्णा अमृतराय की मोहक बातें और उनके प्रति बढ़ते प्रेम से प्रभावित है, लेकिन उसे डर है कि यह प्रेम उसके लिए खतरा बन सकता है। वह अपने दिल को समझाने की कोशिश करती है, लेकिन उसकी भावनाएं उसे परेशान करती हैं। जब वह सो जाती है, तो सुबह एक संदेश और एक कंगन उसके पास आता है, जिसमें अमृतराय ने अपने प्रेम का इज़हार किया है और उसे बताया है कि वह उससे विवाह करना चाहता है। अमृतराय का पत्र उसके प्रति सच्चे प्रेम की भावना को व्यक्त करता है और वह पूर्णा से अनुरोध करता है कि वह उसकी विनय मान ले। पूर्णा इस स्थिति में उलझी हुई है, क्योंकि वह प्यार और समाज के दबाव के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रही है। कहानी इस मनोवैज्ञानिक संघर्ष को दर्शाती है, जिसमें प्रेम, संकोच और सामाजिक मान्यताएं एक दूसरे से टकराती हैं।
प्रेमा - 8
by Munshi Premchand
in
Hindi Fiction Stories
Four Stars
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Description
प्रेमा प्रेमचंद का पहला उपन्यास था जो १९०७ में हिन्दी में प्रकाशित हुआ था। अध्याय 8 विषयसार - कुछ और बातचीत
संध्या का समय हैए डूबने वाले सूर्य की सुनहरी किरणें रंगीन शीशो की आड़ सेए एक अंग्रेजी ढ़ंग पर सजे हुए कमरे में झॉँक रही हैं जिससे सारा कमरा रंगीन हो रहा...
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