इस कहानी में, कल्याणी की मानसिक पीड़ा को दर्शाया गया है, जो अपने पति की मृत्यु के बाद महसूस कर रही है। वह खुद को दोषी समझती है और उसके मन में यह विचार चलता है कि अगर उसने कठोर शब्द न कहे होते, तो उसके पति घर से नहीं जाते। इस दुख के बीच, निर्मला के विवाह की तैयारी का मुद्दा उठता है। कुछ लोग विवाह को स्थगित करने की सलाह देते हैं, लेकिन कल्याणी विवाह को रोकने के खिलाफ है और अपने पति की इच्छा को ध्यान में रखते हुए विवाह करने का निर्णय लेती है। वह भालचंद्र को पत्र लिखती है, जिसमें वह अनुरोध करती है कि उन्हें इस अनाथिनी पर दया करनी चाहिए। कल्याणी चाहती है कि विवाह की तैयारी बिना किसी समस्या के पूरी हो, इसलिए वह पुरोहित को पत्र देने के लिए भेजती है। कहानी में कल्याणी की भावनाएं और उसकी स्थिति को बारीकी से चित्रित किया गया है, जो उसके जीवन के दुखद पहलुओं को उजागर करती हैं।
निर्मला अध्याय 2
by Munshi Premchand
in
Hindi Fiction Stories
Four Stars
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Description
प्रेमचन्द का यह उपन्यास ‘‘निर्मला’’ छोटा होते हुए भी उनके प्रमुख उपन्यासों में गिना जाता है। इस उपन्यास में उन्होंने दहेज प्रथा तथा बेमेल विवाह की समस्या उठाई है और बहुसंख्यक मध्यमवर्गीय हिन्दू समाज के जीवन का बड़ा यथार्थवादी मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया है। पिता उदयभानु लाल की मृत्यु हो जाने पर माता कल्याणी दहेज न दे सकने के कारण अपनी पुत्री निर्मला का विवाह भालचन्द्र और रँगीली के पुत्र भुवन मोहन से न कर बूढ़े वकील तोताराम से कर देती है।
प्रेमचन्द का यह उपन्यास ‘‘निर्मला’’ छोटा होते हुए भी उनके प्रमुख उपन्यासों में गिना जाता है। इस उपन्यास में उन्होंने दहेज प्रथा तथा बेमेल विवाह की समस...
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