इस कहानी में श्रीकांत अपने जीवन की एक कठिन अवस्था का सामना कर रहा है। वह अपने खाने-पहरने की चिंता से मुक्त है, क्योंकि उसकी पत्नी राजलक्ष्मी ने इस विषय में चिंता करना छोड़ दिया है। श्रीकांत का जीवन अब उद्देश्यहीन और कर्महीन हो गया है, और उसे लगता है कि उसकी उम्र अपने ही हाथों से बर्बाद हो रही है। वह अपनी स्थिति के बारे में चिंतन करता है और सोचता है कि उसका और राजलक्ष्मी का संबंध क्या है, क्योंकि वह लोक में उसका अपना है लेकिन परलोक में वह पराया है। वह अपने पुराने मित्रों और खासतौर पर अभया की यादों में खोया रहता है। उसे लगता है कि पुराने समय की यादें और उनका सुख-दुख उसे अभी भी जकड़े हुए हैं। उसकी बेचैनी और अकेलेपन का अनुभव उसके जीवन के खालीपन को और बढ़ा देता है। कहानी में उसके जीवन की निराशा और संबंधों की जटिलता को दर्शाया गया है, जो उसके मन में गहरे भावनात्मक संघर्ष उत्पन्न करती है।
श्रीकांत - भाग 13
by Sarat Chandra Chattopadhyay
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Hindi Fiction Stories
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Description
मनुष्य की परलोक की चिन्ता में शायद पराई चिन्ता के लिए कोई स्थान नहीं। नहीं तो, मेरे खाने-पहरने की चिन्ता राजलक्ष्मी छोड़ बैठी, इतना बड़ा आश्चर्य संसार में और क्या हो सकता है? इस गंगामाटी में आए ही कितने दिन हुए होंगे, इन्हीं कुछ दिनों में सहसा वह कितनी दूर हट गयी! अब मेरे खाने के बारे में पूछने आता है रसोइया और मुझे खिलाने बैठता है रतन। एक हिसाब से तो जान बची, पहले की सी जिद्दा-जिद्दी अब नहीं होती। कमजोरी की हालत में अब ग्यारह बजे के भीतर न खाने से बुखार नहीं आता।
मेरी सारी जिन्दगी घूमने में ही बीती है। इस घुमक्कड़ जीवन के तीसरे पहर में खड़े होकर, उसके एक अध्याापक को सुनाते हुए, आज मुझे न जाने कितनी बातें याद आ रह...
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