Intzaar - 2 book and story is written by Yk Pandya in English . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Intzaar - 2 is also popular in Short Stories in English and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story. इंतज़ार भाग-२ by Yk Pandya in English Short Stories 2 1.1k Downloads 4.1k Views Writen by Yk Pandya Category Short Stories Read Full Story Download on Mobile Description हैदराबाद जाने वाली ट्रेन में बेठी रुचि की ख़ुशी नहीं समाती थी बार बार पारुल को पूछती ये ट्रेन चल क्यू नहीं रही? तूने हॉस्पिटल फ़ोनकरके बता दिया था की हम आ रहे हे?पारुल - हाँ बाबा कितनी बार पूछेगी सब बता दिया हे और ट्रेन भी समय से ही हे पगली होती जा रही हे तू तोरुचि - क्यू ना हो पगली मेरे प्यार को लाने जा रही हूँ..और धीरे से ट्रेन चल पड़ी धीरे धीरे ट्रेन प्लेटफ़ोर्म छोड़ रही थी सबकूछ पीछे छूटताजा रहा था वेसे ही रुचि भी पीछे की और चली जा रही थी उसे याद आया वो दिन जब वो नीरव को पहेली बार मिली थी.तब रुचि ७ वि कक्षा में थी दोपहर का समय था और स्कूल में लंचटाइम था रुचि अपनी सहेलीओ के साथ खेल रही थी तब अचानकउसकी नज़र स्कूल के गेट पर पड़ी एक बड़ी रुआब दार चाल से अपनी गर्दन ऊँची रखके एक स्त्री चली आ रही थी पिंक सारी, आँखो परचश्मा,अपने लंबे बाल पीछे की और जुड़े में बांध रखे थे, हाथ में कुछ किताबें और काँधे पर लम्बा पर्स और साथ में चिपकूँ बालों वालामोटी फ़्रेम का चश्मा वाला एक लड़का चला आ रहा था रुचि उस रुआबदार स्त्री को देखती ही रह गयी तभी स्कूल का लंच टाइम ख़त्महोने की घंटी बजी और सब अपने अपने क्लास में जाने लगे रुचि भी उस लेडी को देखती अपने क्लास में चली गयी थोड़ी ही देर मेंप्रकाश सर उस चिपकूँ बाल वाले लड़के को लेकर रुचि के क्लास में आए.प्रकाश सर- बच्चों ये आपका नया दोस्त नीरव हे आज से ये आपकी क्लास में पढ़ेगा बहुत ही होनहार लड़का हे पिछली क्लास में अपनेस्कूल में अव्वल नम्बर पर आया था आशा करता हूँ आप सभी उसे अपना दोस्त मानेंगे और नोट्स देकर उसकी मदद करेंगे कहकर वोरुचि की और मुड़े कहा रुचि तुम इसे अपने पास बिठाओ और अपने नोट्स भी देना.रुचि को बिलकुल अच्छा नहीं लगा क्यूँकि उसने आते ही पारुल की जगह ले ली पर क्या करती प्रकाश सर का हुक्म जो था मुँह बनाकरउसने नीरव को बेठने की जगह दी और पारुल पीछे की बेंच पर चली गयी.जेसे ही प्रकाश सर चले गए रुचि बड़े ग़ुस्से से नीरव की औरदेखा.रुचि ने एक लाइन सी बना ली और नीरव को जेसे धमकी ही दे दी ख़बरदार अगर इस लाइन के आगे आए तो. नीरव सच ही मेंपढ़ाई में रुचि से तेज था उसने आते ही क्लास में नम्बर १ की जगह ले ली थी जो रुचि को और ही ग़ुस्सा दिलाती और नीरव उसे अपनीदोस्त ही समजता. धीरे धीर लड़ते जगड़ते दो साल बीत गए पर रुचि बात बात पे नीरव के साथ जगड लेती, हर उस बात का ध्यान रखतीकी कहा उसे हराया जा सकता हे,नीरव को हराना उसे हर बात पर एक होड़ सी लगा लेना उसकी आदत बन चूकी थी, एक दिन भी अगरनीरव स्कूल नहीं आता तो वो दिन रुचि को बेचेन कर जाता, यही होता हे कब इंसान को किसी की आदत लग जाती हे वो पता ही नहींचलता. जब साल के आख़िरी दिन चल रहे थे तब वोलिबोल के खेल में रुचि अपने क्लास की लड़कियों की टीम से चुनी गयी और नीरवलड़कों की टीम से. तब से रुचि ने ये ठान रखी थी की वो नीरव को किसी भी क़ीमत पर हराएगी. खेल अच्छा ही जा रहा था १.१ पर चलरहा था बस अब एक ही पोईंट करना था रुचि को और सामने से बोल आने पर एक और पूरी तरह जुकी पर बोल को हाथ लगा नहीं औरगिर पड़ी. सब लड़के हसने लगे एक तो मैच हार गयी और ऊपर से गिर भी गयी, पारुल उसे खड़े होने के लिए कबसे चिल्ला रही थी रुचिखड़ी होने ही लगी थी तब उसका ध्यान गया की उसकी स्कर्ट के लॉक टूट चुके हे वो खड़ी हो ही नहीं पायी जाने नीरव ये बात केसे जानगया था वो दोड़कर रुचि के पास आया और उसके अपना जेकेट देकर बोला इसे कमर पर बाँध लो. रुचि उसे एकटक देखती ही रह गयीथी. जेकेट कमर पर बांध कर वो खड़ी हो गयी मैच ओवर हो चूकी थी पर रुचि उधर ही खड़ी बस नीरव को देख रही थी जो कबका जाचुका था कुछ नहीं समज आया रुचि को क्या हो गया. जेसे कोई होस ही नहीं रहा कोई आवाज़ सुन ही नहीं पायी बस दिल और दिमाग़में एक ही आवाज़ गूँज रही थी नीरव...पहेली बार रुचि को नीरव से हारने से ग़ुस्सा नहीं आया, बल्के अपने आप में ही हंस दी.पारुल कब उसके पास आयी और उसको खिंचती ले गयी पता ही नहीं चला.पारुल- अरे कहा ध्यान हे तेरा हार गए हम मैच..रुचि- हाँ सच में हार गयी..उस दिन के बाद रुचि का नीरव के प्रति काफ़ी बदलाव आ गया अब वो नीरव से अच्छे से बात करने लगी थी,उसका इंतज़ार करने लगीसामने से ही बुक दे दिया करती थी.पारुल जेसे समज चूकी थी. स्कूल जाते समय कब वो अपनी सायकिल नीरव के घर तरफ़ मोड़ लेतीउसका उसे खुद ध्यान नहीं रहता था. पारुल - क्या बात हे आज कल नीरव पे बड़ी महेरबानी हो रही तू?रुचि- हाँ समज में नहीं आ रहा क्यू अचानक नीरव अच्छा लगने लगा हे.. पारुल - बहन ये प्यार वाले लक्षण हे रोग लग चुका हे अब तू तो गयी और दोनो ज़ोर से हंस पड़ी.नीरव को भी रुचि का बदला हुआ रूप समज में आ रहा था, वो भी किसी ना किसी बहाने उससे बात करने का मोका ढूँढ ही लेता था. समय बीत गया और १२ क्लास में दोनो आ चुके थे साथ में स्कूल का आख़िरी दिन भी रुचि ने ठान ली थी आज वो नीरव को ज़रूरबताएगी अपने दिल का हाल और वो बड़ी हिम्मत करके उसके पास गयी वो कुछ बोले उससे पहेले ही नीरव ने अपने दिल का हाल बतादिया था. दोनो अब स्कूल के बहार भी मिलने लगे लगे थे ज़्यादा से ज़्यादा समय साथ में बिताने लगे थे.ये बात ना जाने कहा से नीरव कीमाँ तक पहोच गयी. वो बड़े ग़ुस्से से नीरव का इंतज़ार कर रही थी.नीरव के आते ही उनका ग़ुस्सा टूट पड़ा.वशुधा - कहा थे तुम ?? कहा भटक रहे हो ? में देख रही हूँ आजकल तुम्हारा ध्यान पढ़ाई लिखाई से हटकर दूसरी चीज़ों में लग चुका हे. पर खबर दार आगे बढ़ने की कोई ज़रूरत नहीं. अब तुम अपनी नानी के यहाँ जा रहे हो अपना समान पेक करो. नीरव बचपन से माँ केआगे कभी नहीं बोल पाया था, उसे याद था पापा के चले जाने के बाद माँ जेसे पथ्थर सी हो गयी थी. वो जानता था की किस तरहमुश्किल हालात में माँ ने उसे बड़ा किया था पर जाने से पहेले वो एक बार रुचि को ज़रूर मिलना चाहता था. सुबह जब वो नानी के यहाँ निकलने लगा तब उसने मिलने आए अपने फ़्रेंड के हाथ रुचि को लेटर भिजवा दिया था बस एक बार उसेमिलना चाहता था उसकी नज़र रुचि को ही ढूँढ रही ट्रेन के निकलने समय हो चुका था तभी दूर से रुचि भागती हुई आती दिखी पर माँ कीहाजरी में नीरव रुचि को मिल ही नहीं पाया बस दूर से ही हाथ से बाय बोल दिया. वशुधा की नज़र रुचि पर पड़ चूकी थी. एक नज़र ग़ुस्सेसे रुचि पर डाली और आगे बढ़ गयी. रुचि समज गयी की रातों रात क्या हो गया. बस भीगी आँखे लिए नीरव को जाते देख रही थी. हफ़्ता भर बीत चुका था रुचि का माँ किसी भी चीज़ में नहीं लगता था , यूँही उदास बेठी थी तब अचानक पारुल की आवाज़ ने उसे चोंकादिया. पारुल - क्या कहा खोयी हे ? इतनी उदास सी क्यू हे मेरे पास हे तेरी इस उदासी का इलाज.. हाथ में लेटर लहराते हुए बोली.रुचि कीजान में जेसे जान आ गयी उसने जपट कर लेटर छिन लिया, नीरव का लेटर पढ़ कर वो जेसे आसमान में उडने लगी पूरे तीन साल इसीतरह पारुल के घर नीरव के लेटर आते रहे.पर आज जो ख़त आया था उसे पढ़ कर रुचि जेसे सुन्न सी रह गयी.नीरव पर शादी का दबावडाला गया था नीरव चाहता था कि वो घर से ही निकल जाए, पर रुचि ये नहीं चाहती थी. अपने माँ - बाबा को लेकर गयी थी नीरव के घरपर वशुधा ने साफ़ माना कर दिया था बहुत समजाया था सरोज बहन ने पर नीरव की माँ नहीं मानी थी आख़िर नीरव को भी तो माँ कीज़िद्द के आगे जूकना पड़ा था. नीरव को शादी करनी पड़ी आक बार मिला भी था रुचि को पर रुचि ने साफ़ मना कर दिया जानती थीरुचि की नीरव की माँ का नीरव के सिवा और कोई नहीं था इस दुनिया में उसने नीरव से वचन भी लिया था की अब नहीं मिलेंगे ताकीआने वाली नीरव की दुल्हन को कोई दुःख ना हो तब से लेकर आज तक रुचि ने नीरव को देखा था ना बात की थी.जटके के साथ ट्रेन रुकी साथ में रुचि की यादें भी.रुचि - आ गया हैदराबाद पारुल उठ जा.रुचि भागी भागी सी हॉस्पिटल पहोच गयी जहां नर्स उनिके इंतज़ार में थी. बताए गए कमरे में रुचि ने देखा अंशु खेल रहा था रुचि नेदोड़कर उसे उठा लिया वही आँखें वही चेहरा रुचि देखते ही बोल पड़ी नीरव.... Novels इंतज़ार गाँधीनगर के वो छोटे से घर में आज चहल पहल ज़्यादा थी घर को पूरी तरह सेफूलों और रोशनी से सजाया गया था, घर सारा महेमानो से भर गया था कहीबातें चल रही तो क... 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