Description
6 बजे का अलार्म बजते ही रुचि उठ गयी और द्रोईंगरूम में आकर खिड़की के पर्दे हटाकर खिड़की खोल दी, ठंडी हवा का जोंका पूरे रूममें फेल गया, रुचि का मन करा की वही और थोड़ी देर खड़ी रहे और सुबह का मज़ा ले पर कहाँ?? वो सोचने लगी, अभी मयूर उठे उसेपहेले सुबह का नास्ता और उनका टिफ़िन दोनो बनाना था.शादी के 2 साल बीत गए थे रुचि की लाइफ़ मानो एक समान दोड रही थी, वही रफ़्तार से, सबकूछ जेसे कोई टाइमटेबल के हिसाब सेचल रहा था, वही सुबह का उठना नास्ता, टिफ़िन बनाना ,फिर घर सम्भालना फिर वही शाम को मयूर के आने के टाइम चाई बनाना फिरखाना बस यही चल रहा था.रुचि के दिन बस यूँही कट रहे थे, छुट्टी वाले दिन वो मयूर को कहेती चलो कही चलते हे, तो मयूर उसे कभीमना नहीं करता, दोनो बहार जाते ज़रूरी घर का समान लेते और होटेल में खाना खाते और वापस आ जाते बस, बहार जाने का जेसे एकरूटीन कर लिया था.पर थोड़े समय से रुचि बेचेन रहने लगी थी उसे ये टाइम टेबल वाली लाइफ़ नहीं पसंद आ रही थी हालाँकि उसे कोई दुःख नहीं था, मयूरउसकी हर इछ्छा को अपनी समजकर पूरा करता, कभी किसी भी बात पर वो बहस नहीं करता था, रुचि के घर वाले भी रुचि को कहाकरते की तुजे तो राम मिला हे राम,बड़ी नसीब वाली हे, रुचि को भी कोई शिकायत नहीं थी मयूर से. मयूर बहुत ही सीधासादा इंसान था, मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छी ख़ासी बड़ी पोस्ट पर था. मयूर ग्लेमरस से कोसों दूर था उसे सीधेसादे कपड़े ही पसंद आते, उसे दिखवा बिलकुल नहीं पसंद था, ज़्यादा बोलना, घूमना, पार्टी में जाना ये सब से दूर ही भागता रुचि के लिए कई बार कर लेता पर ये सब उसकेस्वभाव में ही नहीं था.रुचि उसे बिलकुल अलग थी उसे पार्टी में जाना, घूमना , नाचना गाना , अच्छा ड्रेस अप करना ये उसे बहुत पसंद था, वो उड़ना चाहती थीलाइफ़ के हर मज़े खुलके लेना चाहती थी,ढेरों बाते करना पसंद था उसे, जो लाइफ़ अभी वो जी रही थी उसे बिलकुल अलग ही लाइफ़ की कामना की थी रुचि ने उसे लगता था कही पर गलती कर ली हे क्या वापस जाकर उसे सुधारा जा सकता हे ? यही बार बार सोचती रहेती वो?बचपन से ही वो बड़ी तेज रही थी चाहे वो खेलकूद हो या पढ़ाई हो, हर बात पर आगे रहेती, घर में किसिकी मजाल नहीं थी उसे कोई बातमें जीते,जब कोई इसे कहता की रुचि ज़रा संभल जा थोड़ा कम बोला कर,ससुराल में ये सब नहीं चलता तब रुचि उसे फ़टाक से जवाबदेती, में ऐसा ससुराल पसंद करूँगी की सब मेरे ही मर्ज़ी से चले.जब घर में रुचि की शादी की बात चल पड़ी तब एक से एक बढ़कर रिस्ते आए, रुचि उन सभी को ना करती गयी, फिर बड़ी महेनत से दादी और पापा के समजाने पर वो राज़ी हो गयी दादी की पसंदगी वाले लड़के को देखने के लिए, उस वक्त उसे दूसरा भी रिश्ता आयाथा, लड़का बड़ा खूबसूरत था, अच्छा कमाता था उसकी तस्वीर से लगता था की वो बिलकुल रुचि ज़ेसा हे उसके कपड़े पहनने का तरीक़ा, उसकी हेर स्टएल सब रुचि को भा गयी थी पर जाने क्यूँ दादी उसे अपनी पसंद के लड़के पर ही ज़ोर देती थी, जबकि वो तस्वीरमें ही बिलकुल गोंचू सा दिखता था,दादी और रुचि में बहस सी छिड़ गयी थी आख़िरकार लंबी बहस और जाने माने ख़ानदान का हवाला दिया गया फिर क्या? रुचि को अपनी पसंदगी मयूर पर उतार नी पड़ी थी.इस बीच उसने अपने सबसे अच्छे फ़्रेंड की राय ली थी जिसे वो बचपन से ही सबकूछ बताती आयी थी, उसे वो घंटो बाते करती थी अपनी कोई भी बात हो कुछ भी करना हो वो उसे पूछे बिना नहीं करती थी. रुचि अपने हाथ में दोनो लड़कों की तस्वीर लेकर सीधे अपने उस फ़्रेंड के पास गयी, कृष्ण की मूर्ति के सामने रखकर बोली, क्यों री कृष्ण यू कबतक मुस्कराता रेहेगा चल बता कोन अच्छा हे मेरे लि? देख में अपनी आँखे बंद करके तस्वीर उठती हूँ तू ही बताना वो कोन होगा, अपनी आँखे बंद करके उसने एक तस्वीर उठा ली जो मयूर की थी, रुचि यही करती हमेंशा उसे कुछ पूछना हो या राय लेनी हो तो वो कृष्ण के सामने रखती फिर आँखे बंद करके ले लेती उसे वो कृष्ण का जवाब ही मानती.हम्म, तो तुम और दादी मिले हुए हो दोनो चाहते हो की यही लड़का मेरे लिए ठीक हे, ठीक हे कृष्ण अगर तू चाहता हे तो यही सही पर बाद में देखना कुछ गड़बड़ी नहीं होनी चाहिए बता देती हूँ हाँ, तुजे ही ध्यान रखना पड़ेगा, कहते मयूर को शादी के लिए मंज़ूरी दे दी. लेकिन शादी के थोड़े समय के बाद रुचि को कुछ कमी सी लगने लगी,वो अपनी और अपनी सहेलीओ की शादी की तस्वीरे तुलना करने लगी, उसे दुःख होने लगा की सारी सहेलियाँ हनीमून में दूसरे देश में गयी और वो कही नहीं जा पायी उन लोगों की गलेमर से भरी तस्वीरें देख दुखी हो जाती और कृष्ण को उसका ज़िम्मेदार समजती, बार बार कृष्ण को कहेती तूने मुजे धोखा दिया. * * * * *द्रोईंगरूम से किचन में जाते वक्त उसने मयूर को आवाज़ लगायीउठ जाओ मयूर 7 बजने को हे,देर हो जाएगी.फिर अपने रोज़ के काम में जुट गयी,नाह धोकर रोज़ की तरह अपने कृष्ण की मूर्ति के सामने आ कर खड़ी हो गयी दो हाथ जोड़कर बोली,आज बाद में तेरी सेवा पूजा करती हूँ बड़ी देर हो गयी हे कृष्ण, देखना ये सब तेरा ही किया कराया हे अब थोड़ी देर रुक जा, किचन में जाते ही जेसे सारे बर्तनो पर अपनी नाराज़गी निकल ने लगी ज़ोर ज़ोर से बर्तन पटकने लगी, और बड़बड़ाने लगी क्या ये भी कोई लाइफ़ हे ??उठो काम करो सो जाओ फिर उठो और काम करो, कोने में से आवाज़ आयी,क्यू ?इतना ग़ुस्सा क्यू आ रहा हे ?बढ़िया लाइफ़ तो हे तेरी.रुचि ने आवाज़ की और देखा, और बोली अच्छा अब तू भी आ गया मेरी हालत पर हसने के लिए तुजे बोला ना बाद में तेरी सेवा पूजा करती हूँ, वेसे तूने भी तो ज़ोर दिया था नामयूर से ही शादी करूँ, देख रहा हे ना। केसी एक रफ़्तार वाली लाइफ़ हे मेरी, धोका दिया ना तूने मुजे कृष्ण??कृष्ण - हाँ तो अच्छा ही तो हे मयूर तुजे कितना मान देता हे, तेरी किसी भी बात को नहीं टालता, तेरे हर सुख दुःख में सच्चा साथी बनकर खड़ा होता हे और क्या चाहिए??रुचि- तू जानता हे कृष्ण ये मेरी लाइफ़ नहीं थी, मयूर मेरी कल्पना के राजकुमार ज़ेसा नहीं हे, मयूर की लाइफ़ एक ही पटरी पर धीरे से चलने वाली गाड़ी के समान हे, वो बिलकुल भी रोमेंटिक नहीं.कृष्ण- कभी कभी हम अपनी इच्छा को पूरी करने के लिए ग़लत राह पकड़ लेते हे, और में ये नहीं होने देना चाहता था, मूँज पर भरोसा कर मयूर ही तेरे लिए सबसे अच्छा जीवन साथी हे, लोगों के दिखावे पर मत जा.रुचि- केसे जियूँ ? कृष्ण ये मेरी लाइफ़ हो ही नहीं सकती मुजे वही जो दूसरा लड़का था उसे ही पसंद करना चाहिए था, मेने गलती कर दी मुजे तेरी और दादी की बातों में नहीं आना चाहिए था पर अब क्या वापस तो जा नहीं सकते ऐसे ही लाइफ़ काटनी पड़ेगी और इसके लिए तुजे में कभी माफ़ नहीं करूँगी.अचानक मयूर के किचन में आने से रुचि बात करते रुक गयी.मयूर - किसे बातें हो रही थी ?? रुचि- किसिसे नहीं बस यूँही, कहते रुचि नास्ता टेबल लगाने लगी, रुचि को यूँ उखड़ा हुआ देख मयूर ने कहाँ आज शाम मूवी के लिए चलते हे और हाँ खाना भी बाहर ही खाएँगे.रुचि को थोड़ा अच्छा लगा फिर वही सोच आगे बढ़ी, शायद कृष्ण ठीक ही कहते हे मयूर अच्छा ही तो हे, में ही उलटासीधा सोच लेती हूँ. मयूर को टिफ़िन पकड़ाकर उसे ऑफ़िस के लिए रवाना कर फिर रुचि सीधे कृष्ण के पास आकर अपनी सेवा पूजा कर ने लगी.कृष्ण- देखा मेने कहा था ना मयूर ही ठीक हे तुम्हारे लिए.रुचि - हाँ कृष्ण तुम बिलकुल सही हो.पूरा दिन क्या पेहनु तो अच्छा लगेगा ये सोचने में निकाल दिया, फिर मयूर की ही दी ड्रेस पहनके रेडी हो कर मयूर का इंतज़ार कर रहीथी, समय भी काफ़ी हो गया था पर मयूर नहीं आ रहा था थोड़ी बेचेन हो कर कृष्ण के पास चली गयी,रुचि - देखा अब तक मयूर का पता नहीं..कृष्ण- धीरज धरो आ जाएगा कोई काम निकल आया होगा.रुचि - हाँ तुम तो उसकी ही तरफ़ दारी करोगे, एसा क्या काम हो सकता हे भला? मूवी का प्रोग्राम तो उसने ही बनाया था ना?तभी फ़ोन की घंटी बजी, रुचि ने दोड़कर द्रोईंग रूम में रखे फ़ोन को उठा लिया फ़ोन मयूर का ही था.मयूर - रुचि मुजे पता हे आज हमें मूवी के लिए जाना था पर क्या करूँ? बोस को कल ही दिल्ही जाना हे तो आज कि आज मिटिंग रखी हे शायद देर भी हो जाए तुम खाना खाकर सो जाना, मूवी के लिए किसी और दिन चलेंगे, सॉरी रुचि जानता हूँ तुम समजोगी.रुचि - ठीक हे, पर हो सके तो जल्दी आना कहकर सामने से मयूर को सुने बिना ही फ़ोन लगभग पटक दिया.बहुत ग़ुस्सा आ रहा था रुचिको, ये पहेली बार नहीं हुआ था कई बार प्रोग्राम केन्सल करने पड़े थे, ज़रा सी नाराज़ हो कर फिर रुचि अपनी काम में लग जाती थी, पर आज नहीं कर पायी वो सीधे ही कृष्ण के पास चली गयी.रुचि- बस अब नहीं कृष्ण तूने ही मेरा जीवन बिगाड़ा में नहीं रह पा रही अब तुजे ही करना पड़ेगा कहकर वो फुट फुट कर रोने लगी.कृष्ण- सब्र कर रुचि तू जो कर रही हे वो तेरे लिए ठीक नहीं होता हे ऐसा, अगली बार चले जाना. रुचि - बात मूवी की नहीं कृष्ण में अपनी गलती सुधारना चाहती हूँ मुजे वही लड़का पसंद करना चाहिए था, तू कुछ भी कर मुजे वापस अपने अतीत में ले जा कृष्ण एक मोका दे मुजे. कृष्ण - ये नहीं हो सकता रुचि, ये ब्रमाँड़ के नियमो के ख़िलाफ़ हे.रुचि - कृष्ण तेरे लिए कुछ भी मुश्किल नहीं तू सब नियमो के परे हे एक बार मेरी बात मान ले.रुचि जेसे ज़िद पर अड़ गयी वो बस कुछ नहीं समजना चाहती थी वो अपने अतीत में जाके उसी लड़के से शादी करना चाहती थी जो पसंद होते हुए भी दादी के कहने पर मना करदिया था, वो भूल लगती थी उसे जिसे वो सुधारना चाहती थी.बड़ी लंबी बहस के बाद कृष्ण ने हार मान ली भक्त के आगे कृष्ण की एक ना चली.अब रुचि उसी मोड़ पर थी जहां उसे दो लड़कों में से एक को चुनना था, और इस बार उसने दादी की ज़िद नहीं चलने दी और वो दूसरा लड़का यानी परिमल से शादी कर ली.रुचि जेसे अब आसमान में उड़ने लगी थी, परिमल बिलकुल उसके सपनो के राजकुमार ज़ेसा था, उसके कपड़े, उसकी हेर स्टाइल सब उसे अच्छा लगता था, परिमल रोमेंटिक था , रुचि की तरह घूमना फिरना , नाचना गाना, मूवी देखना सब उसे अच्छा लगता था, शादी के बाद रुचि को हनी मून के लिए सिंगापोर भी ले गया, रुचि को लगा जेसे उसने सब कुछ पा लिया हो इस बीच वो अपने प्यारे दोस्त कृष्ण से भी कम बातें करने लगी.सिंगपोर में वो एक दिन बहुत घुमी, अच्छा डिनर किया, परिमल ने उसे बहुत महँगी घड़ी भी गिफ़्ट की, उसे लगा उसने वो लाइफ़ पा ली हेजो उसे चाहिए थी उसने कृष्ण को जा कर धन्यवाद कहा, और बोली,रुचि - देखा कृष्ण यही लाइफ़ मुजे चाहिए थी तुम ग़लत थे. कृष्ण - रुचि हर चमकता हुआ सोना नहीं होता ज़रा सम्भालना, कही चोट ना खा बेठों.रुचि - एसा नहीं होगा कृष्ण और चोट लगी भी तो तुम हो ना मेरे लिए?कृष्ण - हाँ में तो होता ही हूँ अपने भक्तों के लिए.दूसरे दिन परिमल ये कहके चला गया की वो अपनी कम्पनी का थोड़ा सा काम निपटाकर आ जाएगा पर शाम से रात बीत गयी परिमल का कोई अतापता ही नहीं था, अनजाने देश में रुचि घबरा रही थी पर क्या कर सकती थी यूँही इंतज़ार में उसने रात जागते काट ली अगली सुबह परिमल आया वो भी नशे में डूबा हुआ, बड़ी मुश्किल से उसे बेड पर लेटाया,पूरा दिन परिमल सोता रहा और रुचि परेशान सी रही, परिमल ने फिर माफ़ी माँग ली थी पर बात नहीं भूल पायी थी रुचि.सिंगापोर से वापस आने के बाद उसकी लाइफ़ चल पड़ी थी रोज़ पार्टी में जाना, परिमल का यूँ पार्टी में ज़्यादा पी लेना फिर माफ़ी माँगना बस रोज़ का हो चुका था, घर में बस परिमल की ही चलती वो जब चाहे तब ही बाहर जाना, रुचि का मन हो ना हो पर परिमल की बात माननी पड़ती थी धीरे धीरे रुचि को एहसास होने लगा की परिमल सिर्फ़ अपने बारे में सोचता हे उसे किसी और से कोई मतलब ही नहीं बात बात पर वो रुचि को टोक देता हे रुचि का कोई मानसम्मान नहीं रखता, रुचि को अपनी गलती का एहसास होने लगा, वो सीधे कृष्ण के पास चली गयी.कृष्ण- आ गयी मुजे पता था तू आएगी अब बता क्या करना हे??रुचि - कृष्ण सच में, में कितनी ना समज हूँ , मेरे शोख़ ने मुजे बिलकुल अंधा कर दिया था, में देख ही नहीं पायी की, इंसान की ख़ूबसूरती उसके कपडे,हेरस्टाइल, या कोई ग्लेमर में नहीं होती, पर उसके दिल में होती हे, मयूर ही मेरा सबसे सच्चा जीवन साथी था कृष्ण, में अपनी लाइफ़ में वापस जाना चाहती हूँ कृष्ण.कृष्ण - तू अपनी ही लाइफ़ में हे उठ जा और दरवाज़ा खोल मयूर कब से घंटी बजा रहा हे.रुचि एकदम नींद से जागी उसे समज ही नहीं आया की क्या हुआ? क्या वो सच में अतीत में जाके और एक लाइफ़ जी के आयी?? फिर कृष्ण की और देखा कृष्ण रुचि के सामने मंद मंद मुस्कुरा रहे थे रुचि सबकूछ समज गयी.रुचि - वाह रे कृष्ण तेरी माया, पर तू रुक तुजे बाद में देखती हूँ. कहकर वो दरवाज़ा खोलने दोड पड़ी जेसे उसके पर निकल आए, ख़ुशी और शूकून के साथ उसने दरवाज़ा खोला और मयूर को ऐसे देख रही मानो पहेली बार देख रही हो.मयूर- बड़ी देर लगा दी दरवाज़ा खोलने पर,सो रही थी? कहके मयूर ने रुचि को बाँहों में जकड़ लिया उसका माथा चूमके बोला, सॉरी रुचि आज का प्रोग्राम केन्सल करना पड़ा.रुचि - कोई बात नहीं अगली बार चलेंगे, कहके मयूर को ऐसे गले लगाया की कभी छोड़ना ही ना चाहती हो, दूर कोने में खड़े कृष्ण मंदमंद मुस्कुरा रहे थे उसके सामने देख रुचि मन ही मन में बोली thank you krishna.