कहा न कहा - 1 Arun Sabharwal द्वारा Moral Stories में हिंदी पीडीएफ

Kaha n Kaha by Arun Sabharwal in Hindi Novels
कहा न कहा (1) अब तक तो उसे आ जाना चाहिए था। दोपहर के बारह बजने वाले थे। घड़ी की सुई अपनी रफ्तार से बढ़ती जा रही थी। उसका तो नामोनिशान नहीं है। ऐसा तो...