तक्सीम - 4 - अंतिम भाग Pragya Rohini द्वारा Moral Stories में हिंदी पीडीएफ

Taksim by Pragya Rohini in Hindi Novels
ये शहर भी अजीब हैं न अनोखे? लाख गाली दे दिया करें रोज मैं और तू इन्हें पर इनके बिना तेरे-मेरे जैसों का कोई गुजारा है बोल? कितने साल बीत गए हम दोनों को...