कहानी "रंगभूमि" के पहले अध्याय में, प्रेमचंद ने अमीरों और गरीबों के बीच की सामाजिक विषमताओं को दर्शाया है। शहर अमीरों का निवास स्थान है, जबकि उसके आसपास गरीबों की बस्तियाँ हैं, जैसे बनारस के पाँड़ेपुर में। यहाँ एक अंधा चमार सूरदास रहता है, जिसे लोग पहचानते हैं। सूरदास एक सरल और कमजोर व्यक्ति है, जो हर दिन भीख मांगने के लिए सड़क पर बैठता है और राहगीरों के लिए शुभकामनाएँ देता है। सूरदास की उपस्थिति और उसकी दुआएँ उसके जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। वह गरीबों के बीच अपनी स्थिति को स्वीकारता है और अपनी दरिद्रता पर चिंता नहीं करता। वह रोज़ की दिनचर्या में व्यस्त रहता है, जिसमें सुबह से शाम तक राहगीरों को आशीर्वाद देना शामिल है। कहानी में दिखाया गया है कि कैसे सूरदास का जीवन उसकी अंधता के बावजूद अर्थपूर्ण है, क्योंकि वह अपनी सूक्ष्म दृष्टि से समाज की वास्तविकता को समझता है। इस अध्याय में सामाजिक न्याय और मानवता की गहरी समझ को उजागर किया गया है, जो प्रेमचंद की लेखनी की विशेषता है।
रंगभूमि - संपूर्ण
by Munshi Premchand
in
Hindi Fiction Stories
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Description
कथा सम्राट प्रेमचंद (1880-1936) का पूरा साहित्य, भारत के आम जनमानस की गाथा है। विषय, मानवीय भावना और समय के अनंत विस्तार तक जाती इनकी रचनाएँ इतिहास की सीमाओं को तोड़ती हैं, और कालजयी कृतियों में गिनी जाती हैं। रंगभूमि (1924-1925) उपन्यास ऐसी ही कृति है। नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मध्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है। परतंत्र भारत की सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक समस्याओं के बीच राष्ट्रीयता की भावना से परिपूर्ण यह उपन्यास लेखक के राष्ट्रीय दृष्टिकोण को बहुत ऊँचा उठाता है। देश की नवीन आवश्यकताओं, आशाओं की पूर्ति के लिए संकीर्णता और वासनाओं से ऊपर उठकर निःस्वार्थ भाव से देश सेवा की आवश्यकता उन दिनों सिद्दत से महसूस की जा रही थी। रंगभूमि की पूरी कथा इन्हीं भावनाओं और विचारों में विचरती है। कथानायक सूरदास का पूरा जीवनक्रम, यहाँ तक कि उसकी मृत्यु भी, राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की छवि लगती है। सूरदास की मृत्यु भी समाज को एक नई संगठन-शक्ति दे गई। विविध स्वभाव, वर्ग, जाति, पेशा एवं आय वित्त के लोग अपने-अपने जीवन की क्रीड़ा इस रंगभूमि में किये जा रहे हैं। और लेखक की सहानुभूति सूरदास के पक्ष में बनती जा रही है। पूरी कथा गाँधी दर्शन, निष्काम कर्म और सत्य के अवलंबन को रेखांकित करती है। यह संग्रहणीय पुस्तक कई अर्थों में भारतीय साहित्य की धरोहर है।
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