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★.. चैप्टर–03–मुहम्मद एक मानसिक रोगी (a)
नार्सीसिज्म के साथ अक्सर कई विकार पैदा होते हैं । इसी तरह चिकित्सीय भाषा में कहें तो टीएलई से पीड़ित मरीज में सामान्यतः अनेक मनोवैज्ञानिक रोग पाए जाते हैं । इस अध्याय में हम मुहम्मद के मनोविकारों को इस पहलू से जानने का प्रयास करेंगे । इस बात के तमाम संकेत हैं कि मुहम्मद ऑब्सेसिव-कम्पलसिव डिस्ऑर्डर से ग्रस्त था।
ऑम्मेप्तिव-कम्पलपग्तिव डिस्ऑरईर
कनाडा के मानसिक स्वास्थ्य एसोसिएशन के अनुसार, सनक और जिद भरे कई विकार (ऑब्सेसिवकम्पलसिव डिस्ऑर्डर-ओसीडी ) मनुष्यों में मानसिक परेशानी या चिंता पैदा करते हैं। यह चिकित्सीय विकारों का समूह होता है, जो इंसान के विचारों, व्यवहार, भावनाओं और संवेदना पर प्रभाव डालता है।
सामूहिक रूप से ये समस्याएं मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में सर्वाधिक पाई जाती हैं| ऐसा अनुमान है कि दस में हर एक व्यक्ति अपने जीवन में कभी न कभी इस तरह की समस्याओं की चपेट में आता ही है। इस समस्या से पीड़ित व्यक्ति के मन में ऊलजुलूल विचार आते हैं और वह उनमें उलझा रहता है । ये विचार उन व्यक्तियों को मजबूरी में उन ऊलजुलूल कार्यों को करने की ओर ले जाता है। कभी-कभी तो दिन में कई घंटों तक वह ऐसे सनक भरे कार्यों को करता रहता है। इस समस्या से पीड़ित व्यक्ति का गुमसुम रहना, दुखी रहना, हर बात में शक करना, अंधविश्वासी होना और रुढ़ियों को लेकर लकौर का फकीर होने की समस्या आम है । ये विकार तब होता है जब दुख या संताप लंबे समय तक बना रहे और व्यक्ति रुढ़ियों में इस कदर जकड़ा रहे कि वो उसके सामान्य जीवन पर असर डालने लगे।
ओसीडी तब होता है जब किसी के मन में दुख गहरे बैठ जाए और वह व्यक्ति कुछ खास हरकतों अथवा कर्मकांड के प्रति सनकी की तरह इतना आग्रही हो जाए कि इससे उसका जीवन प्रभावित होने लगे । यह कुछ ऐसा होता है, जैसे कि मान लीजिए मस्तिष्क विनाइल का बना हुआ रिकार्ड है तो जैसे यदि रिकार्ड पर खरोंच लग जाए तो रिकार्ड प्लेयर पर चलाने पर सूई एक जगह बार-बार अटक जाती है और गाने का कोई विशेष भाग बार-बार बजने लगता है।
किसी चीज के प्रति अनावश्यक रूप से आग्रही होने, तर्कहीन व निराधार भावों, विचारों, कल्पनाओं और संवेगों का लगातार बने रहना मनोविकार होता है । सामान्य ओसीडी आदतें अशुद्धता, संदेह और परेशान करने वाली यौनिक अथवा धार्मिक विचार के इर्दगिर्द घूमती हैं। अक्सर किसी व्यक्ति में भय, घृणा और संदेह अथवा कुछ खास गतिविधियों को लेकर ऐसी धारणा पाल लेने के कारण ऐसी सनक चढ़ जाती है कि व्यक्ति इन हरकतों को बार-बार करता है। ओसीडी से ग्रस्त लोग अपनी सनकी गतिविधियों को बारंबार और निश्चित तरीके से करके खुद को हल्का करने की कोशिश करते हैं। ओसीडी से पीड़ित बच्चों को कई और मनोविकारों की चपेट में आने की आशंका होती है। इन बच्चों में बात-बात पर डरने, समाज से दूर भागने की प्रवृत्ति, अवसाद, सीखने में कठिनाई महसूस करना, पेशियों में खिंचाव महसूस करने की समस्या, विघटनकारी व्यवहार और स्वयं को कुरूप मानने (काल्पनिक कुरूपता) जैसी समस्याएं आ सकती हैं |“
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह माना जा सकता है कि मुहम्मद उद्देग संबंधी मनोविकार से भी पीड़ित था। वजू कैसे करना है, कितनी बार नमाज पढ़नी है और किस तरह पढ़नी है, इन बातों को लेकर वह लकीर का फकीर था। उसने इसी के चलते छोटी-छोटी बातों जैसे चेहरा कैसे धोएं, नाक कैसे धोएं, कान व हाथ कैसे धोएं और किस क्रम में ये काम करें आदि के बारे में भी विस्तार से बताया है| हालांकि ये सारी बातें निरर्थक हैं, लेकिन उसके लिए ये बहुत महत्वपूर्ण थीं। मुहम्मद की इन बातों को जानकर यह समझना कठिन नहीं है कि वह ओसीडी से पीड़ित था । ओसीडी से पीड़ित व्यक्ति प्रतिरूप और संख्याओं को लेकर आग्रही होता है । ऐसे लोग सम संख्या अथवा विषम संख्या, दोनों में से किसी एक को प्राथमिकता देते हैं | मुहम्मद संख्या 3 को लेकर बड़ा आग्रही था। बहुत से ऐसे कर्मकांड हैं, जो मुसलमानों को तीन बार करना आवश्यक होता है। इसके पीछे कोई तार्किक कारण नहीं है, सिवाय इसके कि यह मुहम्मद की सुन्नत पर आधारित है।
मुसलमानों को नमाज पढ़ने से पहले निम्नलिखित चीजें करनी अनिवार्य होती हैं इस इरादे का ऐलान करो कि यह कार्य इबादत के मकसद से है।
पानी से तीन बार कुल्ला करो।
नाक के दोनों छिद्रों में तीन बार पानी डालकर साफ करो।
चेहरे को तीन बार धोओ।
दाहिनी बांह को तीन बार कोहनी तक और फिर बाई बांह को कोहनी तक तीन बार धोओ।
भीगे हाथ से पूरे सिर अथवा इसके किसी भाग को एक बार साफ करो।
तर्जनी उंगली से कान के भीतर के भाग को साफ करो और अंगूठे से बाहरी भाग को। यह भीगी उंगलियों से किया जाना चाहिए।
भीगे हाथों से गले के चारों ओर साफ करो।
दाहिने पांव से शुरू कर दोनों पांव को घुटनों तक तीन बार धोओ।
तीन बार धोने का क्या मतलब है ? सिर, गले या पांव को भीगे हाथों से पोंछने का क्या तर्क है ? पहले दाहिने हाथ को ही क्यों धोएं ? ये सब बेसिरपैर के मजहबी कर्मकांड हैं, जिसका स्वच्छता या आध्यात्मिकता से कोई लेनादेना नहीं है।
कर्मकांड को लेकर मुहम्मद की सनक आगे और स्पष्ट होगी। इन कर्मकांडों को तयम्मुम कहा जाता है। जब पानी उपलब्ध न हो अथवा किसी कारण से पानी का उपयोग नहीं किया जा सकता हो तो ऐसी स्थिति में तयम्मुम की व्यवस्था की गई । यह निम्न तरीके से किया जाता है:
दोनों हाथों को मिट्टी, बालू या पत्थर से हल्का सा रगड़ो। फिर दोनों हथेलियों को आपस में मिलाओ और फिर चेहरे को उसी तरीके से पोंछो जैसा कि वजू में किया जाता है।
दोनों हथेलियों को फिर रगड़ो और बाएं हाथ से दाहिने हाथ को कुहनी तक और दाहिने हाथ से बाएं हाथ को कुहनी तक पोंछो। ये नियम बेतुके हैं। इसी तरह से नमाज पढ़ते समय किए जाने वाला कियाम (खड़ा होना), सुजूद (सिर को जमीन से सटाना), रुकू (झुकना) और जलसा (बैठना) भी बेतुके नियम हैं | इस्लाम ऐसे नियमों से भरा पड़ा है जो प्रतिरूप और संख्या को लेकर मुहम्मद की सनकों को बयान करते हैं और इससे पता चलता है कि वह ओसीडी से ग्रस्त था। नीचे वे कर्मकांड दिए गए हैं, जिन्हें मुहम्मद की सुन्नत माना जाता है और मुसलमानों को इसका पालन पूरी बारीकी से करना होता है । हालांकि इन सबका कोई मतलब नहीं है, लेकिन चूंकि यह मुहम्मद से जुड़ा है, इसलिए इनका पालन न करना मुहम्मद की तौहीन मानी जाती है और ऐसा करना सजा का हकदार बनाता है, जबकि इसका अक्षरश: पालन करने को सबाब मिलने वाला माना जाता है।
फर्श पर बैठना और खाना फ़र्श पर बैठ कर खाना
दाहिने हाथ से खाना खाना जो सामने है, उसे एक किनारे से खाना
खाने से पहले जूते उतारना
खाते समय दोनों घुटनों को जमीन पर रखना अथवा एक घुटना ऊपर अथवा दोनों घुटने ऊपर रखना
खाते समय चुप नहीं रहना चाहिए।
तीन उंगलियों से खाना
बहुत गर्म खाना नहीं खाना।
खाने पर झपट्टा नहीं मारना।
खाने के बाद उंगलियां जरूर चाटना ।
मुसलमान को दायें हाथ से पीना चाहिए। बाएं हाथ से शैतान पीता है।
बैठकर पीना प्रत्येक घूंट को तीन सांस में पीना और फिर गिलास को मुंह से हटाना।
अपना बिस्तर खुद ठीक करना।
बिस्तर पर सोने से पहले तीन बार झटक कर धूल झाड़ना। दाहिनी ओर सोना।
दाहिनी हथेली दाहिने गाल के नीचे रखकर सोना।
सोते समय घुटनों को हल्के से मोड़ना।
काबा की तरफ सिर करके सोना।
सोने से पहले सूरा इखलास, सूरा फलक और सूरा नास तीन बार पढ़ना तथा इसके बाद तीन बार शरीर को झटकना।
जागने पर हथेलियों से चेहरे और आंखों को मलना।
जब भी कोई कपड़ा पहनना होता था तो रसूल्लाह (अल्लाह के पैगम्बर) हमेशा पहले कपड़ा दाहिने अंग से डालते थे।
जब कपड़ा उतारना होता था तो रसूल्लाह हमेशा पहले बाएं अंग से उतारना शुरू करते थे।
पुरुषों को पाजामा टखने के ऊपर पहनना चाहिए। महिलाओं को ध्यान रखना चाहिए कि उनका नीचे का वस्त्र टखने को ढंके।
मर्दों को पगड़ी पहननी चाहिए। औरतों को हमेशा सिर पर स्कार्फ डाले रहना चाहिए।
जूता पहनते समय पहले दायें पैर का जूता पहनना चाहिए और फिर बाएं ।
पहले बाएं पैर का जूता उतारना चाहिए और फिर दाएं।
शौचालय में जाते वक्त सिर ढंका होना चाहिए।
शौचालय में घुसने से पहले दुआ पढ़नी चाहिए।
शौचालय में पहले बायां पैर रखना चाहिए।
पेशाब हमेशा बैठकर करना चाहिए। खड़े होकर पेशाब कभी नहीं करना चाहिए।
शौचालय से बाहर आते समय पहले दाहिना पैर बाहर निकालना चाहिए ।
शौचालय में मुंह मक्का की तरफ नहीं होना चाहिए और न ही पीठ काबा की तरफ होना चाहिए।
शौचालय में बात नहीं करें।
पेशाब करते समय शरीर पर उसके छींटे नहीं पड़ने चाहिए। (इस ओर लापरवाह होने पर कब्र में सजा दी जाती है।)
दातुन (दांत साफ करने के लिए लकड़ी का ब्रश) का प्रयोग रसूल्लाह की बड़ी सुन्नत है ।
वजू करते समय जो दातुन करेगा और इसके बाद नमाज़ पढ़ेगा, उसे 70 गुना अधिक सबाब मिलता है |
जुमा के दिन गुस्ल (स््रान) करना चाहिए।
दाढ़ी रखनी चाहिए, जिसकी लंबाई एक मुट्ठी हो।
जूते बाएं हाथ में लेकर चलना चाहिए।
मस्जिद में पहले दायां पांव रखना चाहिए।
मस्जिद से निकलते समय पहले बायां पैर निकालना चाहिए।
आयशा ने एक जगह कहा है कि मुहम्मद मध्य रात्रि में उठ जाता था और कब्रिस्तान में इबादत करने चला जाता थाः
जब उस दिन अल्लाह के रसूल के साथ रात में सोने की मेरी बारी थी तो उन्होंने करवट बदली और अपना लबादा पहना और जूते उतारकर अपने पैरों के पास रख लिये | इसके बाद अपने शॉल के कोने को अपने बिस्तर पर फैलाया और तब तक पड़े रहे, जब तक कि उन्हें नहीं लगा कि मैं सो गई हूं। फिर धीरे से उन्होंने अपना लबादा उठाया, जूते पहने और दरवाजा खोलकर बाहर निकलकर धीरे से बंद कर दिया। मैंने अपना सिर ढंककर नकाब पहना और नाड़े को कसा, फिर उनके पीछे-पीछे गई । वह बकी (कब्रिस्तान) पहुंचे और वहां ठहरे, फिर काफी देर तक वहां खड़े रहे । इसके बाद उन्होंने अपने हाथ तीन बार उठाए और वापस लौटने लगे तो आयशा भी लौटने लगी। उन्होंने वापसी में अपने कदम तेज कर दिए और आयशा ने भी | वह दौड़ने लगे और मैं भी | वह घर पहुंचे और मैं भी | हालांकि मैं उनसे पहले घर पहुंची और बिस्तर पर सो गई । वह (पाक रसूल) घर के अंदर पहुंचे और कहा, “अरे आयशा, क्या हुआ, तुम हांफ क्यों रही हो ?' मैंने कहा, 'कुछ तो नहीं ।' वो बोले, 'तुम बताओ मुझे, नहीं तो मुझे अंतर्ज्ञान से पता चल ही जाएगा ।' मैंने कहा, ' अल्लाह के रसूल, मेरे पिता और मां आपके पास फिरौती के रूप में हैं। फिर उनको पूरी बात बता दी ।' उन्होंने कहा, ' क्या अंधेरे मुझे जो परछाई दिख रही थी, वह तुम्हारी थी ?' मैंने कहा, 'हां।' उन्होंने मेरी की छाती पर जोर का वार किया, जिससे मैं दर्द से छटपटा गई । उन्होंने कहा, ' तुम्हें क्या लगता है कि अल्लाह और उसके रसूल तुम्हारे साथ जुल्म करेंगे ?' मैंने कहा, "अल्लाह से कुछ नहीं छिपा है, वह सब जानता है ।' उन्होंने कहा, “जब तुमने मुझे देखा तो मेरे पास जिब्राईल आया था। उसी ने मुझे बुलाया था और यह बात वह तुमको जाहिर नहीं होने देना चाहता था। उसने पुकारा था, इसलिए मैं गया था और यह बात मैंने भी तुमसे छिपाई (क्योंकि वह तुम्हारे सामने प्रकट नहीं हुआ), क्योंकि तुम ने ठीक से कपड़े नहीं पहन रखे थे | मुझे लगा कि तुम सो गई हो और यह सोचकर मैं तुम्हें जगाना नहीं चाहता था कि तुम डर जाओगी ।' उसने (जिब्राईल ने) कहा, 'अल्लाह का हुक्म है कि कब्रिस्तान में जाओ और उन लोगों के गुनाहों के लिए माफी मांगो, जो वहां दफन हैं ।' मैंने कहा, “अल्लाह के रसूल, मैं उनके लिए दुआ कैसे मांगू (उनके लिए गुनाहों की माफी किस तरह से मांग सकती हूं) ? उन्होंने कहा, 'बोलो, इस कब्रिस्तान में दफन ईमान वाले मुसलमानों को अल्लाह शांति नसीब करे। और जो हमसे पहले चले गए और हमारे बाद जाएंगे, अल्लाह उन पर रहम करे और अल्लाह के फजल से हम सब उसमें शामिल हों /“
वह अल्लाह जरूर कोई पागल होगा जो अपने रसूल को आधी रात को कब्रिस्तान में जाकर मर चुके लोगों के लिए माफी मांगने का हुक्म देता है। क्या वह ऐसे विचित्र समय पर अपने रसूल को परेशान किए बिना उन्हें माफ नहीं कर सकता था? विडम्बना यह है कि मुहम्मद के साथियों ने उसके उन अजीबोगरीब व्यवहारों की गलत व्याख्या करते हुए इसे उसकी नेकनीयती का प्रमाण बताया, जबकि उसके ये व्यवहार साफ तौर पर उसके मनोविकृति (मनोरोग-पागलपन) को इंगित करते हैं।
एक हदीस में मुहम्मद अपने अनुयायियों को चेतावनी देते हुए कहता है कि भीगे हाथ से अपनी एड़ी पोंछकर 'दोजख की आग से खुद को बचाओ 7४ ऐसा नहीं था कि मुहम्मद ऐसा कहकर लोगों को स्वच्छता का संदेश दे रहा था, बल्कि यह उसकी रस्म निभाने (अतार्किक व बेसिरपैर के कर्मकांड) की सनक थी। उसने सोचा कि भीगे हाथ पैरों पर फिराने और यहां तक कि मोजे के ऊपर से फिराने भर से दोजख की आग से बचा जा सकता है । बुखारी में एक हदीस है, जिसमें कहा गया है कि मुहम्मद चमड़े के मोजे पहने होता था तो उसके ऊपर से ही भीगे हाथ से पोंछता था:
अल-मुगैरा बिन सुबा ने बताया: 'एक यात्रा के दौरान मैं अल्लाह के रसूल के साथ था तो वह शौच के लिए गए (और जब शौच कर लिया) तो मैंने पानी गिराया तो उन्होंने मजजन किया अर्थात अपना चेहरा धोया, बाजू धोए और फिर भीगा हाथ अपने सिर पर फिराया, फिर इसके बाद उसी भीगे हाथ से पैर में पहने चमड़े के दोनों मोज़ों को पोंछा ।?*
एक और हदीस में बुखारी हुमरान (उस्मान का गुलाम) का हवाला देते हुए कहता है:
मैंने देखा कि उस्मान बिन अफ्फान ने पानी का एक पीपा मांगा। जब पीपे उनके पास लाया गया तो उन्होंने अपने हाथों में पानी उड़ेला और तीन बार धोया। फिर दाहिना हाथ पीपा में डाला और मुंह में पानी लेकर कुल्ला किया, नाक के भीतर पानी डालकर साफ किया और फिर पानी उलीचकर मुंह धोया, तीन बार कुहनी तक बाहें धोयीं | इसके बाद उसने कहा, ' अल्लाह के रसूल ने कहा है कि यदि कोई मेरी तरह से वजू (मज्जन) करता है और दो वक्त की नमाज अदा करता है, तथा उस दौरान उस वक्त नमाज के अलावा और कुछ नहीं सोचता है तो उसके पुराने गुनाह माफ हो जाएंगे।' मैंने रसूल को कहते सुना था, 'यदि कोई मुकम्मल तरीके से वजू करता है और उसके बाद अनिवार्य सामूहिक रूप से नमाज अदा करता है तो अल्लाह उस नमाज और अगले नमाज के बीच किए गए गुनाहों का माफ कर देता है। और जब तक वह इस तरह नमाज अदा करता रहेगा, उसके गुनाह माफ होते रहेंगे।?*
यह कितना अतार्किक है। केवल ऑबसेस्सिव-कम्पलसिव डिस्आऑर्डर से ग्रस्त इंसान ही ऐसा सोच सकता है कि किसी के गुनाह महज कुछ निश्चित रस्म (रिचुअल्स) निभाने से माफ हो जाएंगे। मनोविकार व्यक्ति द्वारा बारबार दोहराए जाने वाले उन व्यवहारों अथवा मानसिक गतिविधियों से पहचाना जाता है, जो मनुष्य ऐसे नियमों के अनुसार करने को प्रेरित होता है, जिसका पालन कठोरता से किए जाने की बाध्यता हो । मनोविकार की पहचान उन व्यवहारों व मानसिक गतिविधियों द्वारा भी होती है, जिनका उद्देश्य जहन्नुम या इस प्रकार की काल्पनिक विपदा को टालने या कम करने अथवा किसी अनहोनी को रोकना होता है। इस्लाम निरर्थक नियम-कायदे और धार्मिक कर्मकांड से भरा हुआ है। वजू, गुस्ल (नहाना), अनिवार्य नमाज के नियम और हज व रोजा आदि अनिवार्य होना आदि इंगित करता है कि मुहम्मद के ऊपर धार्मिक रस्मों (कर्मकांडों) को लेकर जुनून सवार था। उसने यहां तक कहा कि शौच के बाद खुद को स्वच्छ करने के लिए कितने कंकड़ का प्रयोग किया जाना चाहिए। (उसके मुताबिक शौच के बाद स्वच्छ करने के लिए कंकड़ों की संख्या विषम होनी चाहिए। चार कंकड़ प्रयोग करने के बजाय तीन कंकड़ अधिक स्वच्छ करते हैं।)
एक हदीस में मुहम्मद कहता है, 'जब तुममें से कोई पेशाब करे तो उसे तीन बार अपने उस अंग से पेशाब निकालकर खाली करना चाहिए।' ईरान के अयातुल्ला ने फरमान दिया है कि लिंग को तीन बार झटक देने के बाद यह साफ हो जाता है और इसके बाद यदि पेशाब की बूंदें कपड़े पर गिर भी जाएं तो उस व्यक्ति की नमाज खारिज नहीं होती है।
Title: Maa – Naam Nahi, एहसास है
जब कोई नहीं समझता, तब माँ समझती है।
जब सब थक जाते हैं, तब माँ संभालती है।
उसकी थाली सबसे आख़िर में आती है,
पर दुआ सबसे पहले देती है।
कभी रोते हुए देखा है माँ को?
नहीं ना… क्योंकि वो हर आँसू को मुस्कान में छुपा लेती है।
माँ सिर्फ जन्म नहीं देती, वो हर दिन हमें इंसान बनाती है।
*सोचिए… क्या हमने कभी उसे “थैंक यू” कहा है बिना किसी वजह के?
✍️ Pawan, Ek Maa Ki Khamosh Kahani Se.
#Maa #Love #Emotional #Truth #Respect #Inspiration #RealHero
★.. चैप्टर– 02– मुहम्मद का व्यक्तिगत जीवन
मुहम्मद के बारे में हजारों की संख्या में छोटे-छोटे किस्से हैं | इनमें से अधिकांश किस्से मनगढ़ंत और झूठ पर आधारित हैं और बहुत सारे किस्से कमजोर व संदेहास्पद | हालांकि कुछ किस्से सही (प्रामाणिक) हदीस (मौखिक रिवायत) माने जाते हैं। सही हदीस पढ़ने पर मुहम्मद के बारे में ठोस तस्वीर सामने आती है, जिससे मुहम्मद के चरित्र और मनोवैज्ञानिक पहलू को समझा जा सकता है।
इससे मुहम्मद का चित्र एक नार्सिसिस्ट (आत्मकेंद्रित अहंकारी यानी स्वार्थी चरित्र) का उभरकर आता है। इस अध्याय में मैं नार्सिसिज्म पर प्रामाणिक स्रोतों के माध्यम से प्रकाश डालूंगा और फिर दिखाने का प्रयास करूंगा कि किस तरह मुहम्मद पर यह चरित्र सटीक बैठता है।
इस विषय पर विद्वानों और अनुसंधानकर्ताओं ने बहुत कम काम किया है। क्योंकि मुसलमान कुरान और मुहम्मद के जीवन के बारे में अनुसंधान करने की अनुमति न स्वयं को देते हैं और न दूसरों को | हालांकि उसके बारे में जो भी लिखा गया है, वो न केवल नार्सिसिज्म की परिभाषा से मिलता है, बल्कि आज मुसलमान दुनियाभर में जो विचित्र कार्य और आचरण कर रहे हैं, उसमें भी इसे देखा जा सकता है। इस तरह किसी व्यक्ति की व्यक्तित्व विकृति उसके अनुयायियों में विरासत के रूप में इस तरह समा गई है कि इस व्यक्ति का पागलपन करोड़ों अनुयायियों में न केवल फैल रहा है, बल्कि उसकी तरह इन्हें भी स्वकेंद्रित, विवेकहीन और खतरनाक बना रहा है।
मुहम्मद के मनोविज्ञान, उसके चरित्र के मूल तत्व क्रूरता और स्थितिजन्य नीति को समझकर जानने का प्रयास करते हैं कि मुसलमान इतने असहिष्णु, हिंसक और पागल क्यों हैं 2? वे हमलावर और अत्याचारी होते हुए भी वे खुद को पीड़ित के रूप में क्यों देखते हैं ? नाप्तिप्िज्म क्या है?
द डायग्रोस्टिक एंड स्टेटिस्टिकल मैनुअल आफ मेंटल डिस्ओऑर्डर (डीएसएम) 'नार्सिसिज्म को ऐसी व्यक्तित्व विकृति के रूप में परिभाषित करता है, जो एक प्रकार के आडम्बर, प्रशंसा की भूख और अधिकार के भाव के आसपास घूमता है इससे पीड़ित मनुष्य अक्सर स्वयं को आवश्यकता से अधिक महत्वपूर्ण समझता है और अपनी उपलब्धियों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करता है, अक्सर कोई न कोई फरमाइश करता है, किसी लायक न होने पर भी अपनी प्रशंसा व सराहना चाहता है।'”
डायग्रोस्टिक एंड स्टेटिस्टिकल मैनुअल (डीएसएम) के तीसरे (980) और चौथे संस्करण (994) और यूरोपियन आईसीडी-409 में इस समस्या को इसी तरह परिभाषित किया गया है:
आडम्बर (कल्पना या व्यवहार में) का व्याप्त प्रारूप, आत्मश्रुघधा अथवा चापलूसी की आवश्यकता और समानुभूति का अभाव, सामान्यतः वयस्कता की अवस्था आने की शुरुआती समय में और विभिन्न परिस्थितियों में उपस्थित रहने में | निम्नलिखित में से पांच (या जब कसौटी पर आवश्यक परखें:
महान महसूस करता है और स्वयं को महत्वपूर्ण समझता है (उदाहरण के लिए, अपनी उपलब्धियों को बढ़ाचढ़ाकर पेश करता है, झूठ को भी सच की तरह पेश करने में माहिर है, आनुपातिक उपलब्धि के बिना भी स्वयं को उत्कृष्ट के रूप में मान्यता चाहता है)
असीमित सफलता, नाम, रौब या सबसे ताकतवर होने, अतुलनीय बुद्धिमत्ता (प्रमस्तिष्कीय नार्सिसिस्ट), शारीरिक सौष्ठव या काम क्षमता (दैहिक नार्सिसिस्ट), आदर्श, चिरस्थायी, सबका हृदय जीतने वाले प्यार या करुणा की कल्पना में खोया रहता है।
आश्वस्त रहता है कि वह विशिष्ट है और ऊंचे दर्जे के विशिष्ट व अद्वितीय लोग (संस्थाएं) ही उसकी विशिष्टता समझ सकते हैं, केवल ऐसे ही लोगों से उसका संबंध होना चाहिए, केवल ऐसे ही लोगों से उसे जुड़ना चाहिए।
आवश्यकता से अधिक सराहना, चाटुकारिता, प्रमुखता और रौब चाहता है । ये सब नहीं मिलने पर दूसरों में भय उत्पन्न करना और कुख्यात होना चाहता है। (नार्सिस्टिक सप्लाई ) ।
अधिकारसम्पन्न समझता है | अपने साथ विशेष, अनुकूल वरीयता का व्यवहार चाहता है। अपनी अपेक्षाओं को स्वत: एवं शतप्रतिशत पूरा करने की मांग करता है।
पारस्परिक संबंधों में शोषक होता है। इसका अर्थ है, अपने काम दूसरों से कराना चाहता है।
समानुभूति का अभाव । दूसरों की भावनाओं व जरूरतों को महसूस करने की क्षमता का अभाव होना।
दूसरों से द्वेष रखता है और समझता है कि दूसरे लोग उससे ईर्ष्या करते हैं।
घमंडी होता है, अहंकारपूर्ण व्यवहार करता है । हताशा-निराशा की स्थिति में, या दूसरों द्वारा उसकी बात काटने पर अथवा चुनौती मिलने पर गुस्से क्रोध में आ जाता है ”
मुहम्मद में ये सभी लक्षण थे। अपने विचारों के अतिरिक्त वह अल्लाह का चापलूस पैगम्बर था और पैगम्बरों का प्रतीक चिह्न (5०७)) था। (कुरान.33:40) जिसका मतलब हुआ कि मुहम्मद के बाद अल्लाह किसी और को पैगम्बर नहीं बनाएगा। मुहम्मद स्वयं को खैर-उल-खल्क (ब्रह्मांड में सर्वोत्तम), “उत्कृष्ट मिसाल' मानता था। (कुरान.33:2 ) । वह स्पष्ट रूप से कहता है कि उसका दर्जा अन्य पैगम्बरों से ऊंचा है। (कुरान:2:253 ) । उसने स्वयं के “वरीय' होने (कुरान:7:55) और “दुनिया के लिए रहमत' (कुरान:2:407) के रूप में भेजे जाने का दावा किया। उसने दावा किया कि उसे 'प्रशस्त चौकी' पर जगह दी गई है और किसी अन्य को यह स्थान नहीं मिलेगा: अल्लाह के सिंहासन के बगल में दाहिनी ओर स्थित यह 'मध्यस्थ ' की चौकी है। (कुरान.7:79) । अन्य शब्दों में वह ऐसा व्यक्ति होगा, जो अल्लाह को सलाह देगा कि किसे जन्नत और किसे जहन्नुम भेजना है। अपने इस ऊंचे स्थान को लेकर मुहम्मद के कुछ ऐसे अहंकारोन्मादी दावे हैं, जो कुरान में दिए गए हैं।
नीचे लिखी दो आयतें मुहम्मद द्वारा केवल खुद को महत्व देने और आडम्बर को बयान करती हैं:
इसमें भी शक नहीं कि अल्लाह और उसके फरिश्ते पैगम्बर (मुहम्मद) पर दुआएं व रहमत (हमेशा) भेजते हैं। ऐ ईमानवालो ! तुम भी पैगम्बर के गुणगान करो और दुआएं दो। (कुरान, 33:56)
(मुसलमानो ) ! तुम लोग अल्लाह और उसके रसूल (मुहम्मद) पर ईमान लाओ और उसकी मदद करो और उसको बड़ा समझो और सुबह और शाम उसी की तस्बीह करो (कुरान. 48:9) |
मुहम्मद अपने आप पर इतना आत्ममुग्ध था कि उसने अपनी कठपुतली अल्लाह के मुंह से कहलवाया:
बेशक रसूल, तुम्हारे अख्लाक़ (चरित्र) बड़े आला दर्जे के हैं। (कुरान. 68:4)
तुम्हें (ईमान व हिदायत का) रौशन चिरागू बनाकर भेजा है। (कुरान. 33:46)
इब्ने-साद मुहम्मद के हवाले से कहता है:
अल्लाह ने दुनियाभर में अरब को चुना। अरबियों में उसने किनाना को चुना। किनाना में से भी कुरैश कबीले (मुहम्मद की जनजाति) को चुना। कुरैशों में से बनी हाशिम कुनबे को चुना और इस कुनबे से मुझे चुना ।”
नीचे हदीसों में मुहम्मद द्वारा अपने बारे में किए गए कुछ दावे दिए गए हैं:
- अल्लाह ने कायनात में जो चीज सबसे पहले रची, वह थी मेरी रूह।।“
- अल्लाह की बनाई हुई सभी चीजों में पहली चीज थी मेरा दिमाग”
- मैं अल्लाह से हूं और मुसलमान मुझसे हैं
- जिस तरह अल्लाह ने मुझे महान बनाया, उसी तरह उसने मुझे अख्लाक़ बख्शा [”
- ओ मुहम्मद, यदि यह दुनिया तुम्हारे लिए न होती तो मैं कायनात नहीं बनाता ।*
जरा मुहम्मद के इन शब्दों को जीसस द्वारा कही गई बातों से तुलना कीजिए । किसी ने जीसस को * श्रेष्ट स्वामी ' कहकर पुकारा तो वे बोले, “तुमने मुझे श्रेष्ठ क्यों कहा ? ईश्वर के अलावा कोई और श्रेष्ठ नहीं है ।?? एक मनोविकृत नार्सिसिस्ट ही वास्तविकता से दूर होकर यह दावा कर सकता है कि ब्रह्मांड उसके कारण बनाया गया है।
नार्सिसिस्ट जब भी अपने बारे में डींगें हांकता है तो वह विशिष्ट रूप से विनम्र होने का ढोंग करता है। अबू सईद अल-खुद्री ने लिखा है कि रसूल बोले: “मैं सम्पूर्ण मानव का नेता हूं और यह मैं बिना किसी गुरूर के कह रहा हूं।'
अल-तिरमिजी बताता है:
“रसूल ने कहा: “मैंने तुम्हारी बातें सुनीं और तुमने जो भी कहा, वो सच है। मैं खुद अल्लाह का प्यारा (हबीबुल्लाह) हूं और इस बात को कहने में मुझे कोई गुरूर नहीं है। कयामत के दिन मैं यशपताका (लिवा उलहम्द) लेकर आगे चलूंगा। मैं पहली इबादत करने वाला हूं और पहला ऐसा इंसान हूं, जिसकी इबादत अल्लाह ने कबूल की है| में ही वह पहला इंसान हूं, जो जन्नत के दरवाजे पर दस्तक देगा। अल्लाह मेरे लिए दरवाजा खोलेगा, फिर मैं अपनी कौम के लोगों के साथ जन्नत में प्रवेश करूंगा। मैं ही दुनिया का सबसे सम्मानित व्यक्ति हूं और मैं ही वह पहला और आखिरी व्यक्ति हूं, जो दुनिया में सबसे अधिक इज्जतदार है| ये सब मैं बिना किसी गुरूर के कह रहा हू । १700
नार्सिसिस्ट आत्मविश्वास से भरा हुआ और निपुण दिखता है । जबकि सच्चाई यह है कि ऐसा व्यक्ति (मनोविकृत नार्सिसिस्ट अधिकांशत: पुरुष होते हैं) आत्मसम्मान की कमी की समस्या से जूझ रहा होता है, और उसे अपनी नार्सिस्टिक भूख शांत करने के लिए दूसरों से अपनी वाहवाही और चापलूसी कराने की आवश्यकता पड़ती है।
डॉ. सैम वैकनिन मैलिग्रैंट सैल्फ-लव'” नामक पुस्तक के लेखक हैं | वो इस विषय के विशेषज्ञ माने जाते हैं। वो नार्सिसिस्ट के मस्तिष्क को समझते हैं और परिभाषित करते हैं | वैकनिन वर्णन करते हैं:
प्रत्येक व्यक्ति नार्सिसिस्ट होता है, कोई कम तो कोई अधिक। यह एक स्वस्थ परिघटना होती है। यह उत्तरजीविता में मददगार होती है। पर स्वस्थ नार्सिसिज्म और विकृत नार्सिसिज्म में फर्क होता है । विकृत नार्सिसिज्म की विशेषता यह होती है कि इससे पीड़ित इंसान में समानुभूति का पूर्णतः: अभाव होता है। ऐसा नार्सिसिस्ट दूसरों को वस्तु समझकर उनका शोषण करने की मानसिकता रखता है। वह दूसरों को अपनी सनक पूरी करने का साधन (नार्सिस्टिक सप्लाई ) बनाता है। वह स्वयं को विशिष्ट आदर व सम्मान प्राप्त करने का अधिकारी मानता है, क्योंकि ऐसा इंसान अपने भीतर कपोल-कल्पित आडम्बर पाले रहता है। विकृत नार्सिसिस्ट आत्म-भिन्ञ नहीं होता है। उसकी अनुभूति और भावनाएं विकृत होती हैं | ऐसा इंसान 'अस्पृश्यता', भावनात्मक प्रतिरोध और अपराजेयता का बोध रखते हुए स्वयं से भी और दूसरों से भी झूठ बोलता है। नार्सिसिस्ट के लिए हर चीज जीवन से बड़ी होती है। वह जितना विनप्र होता है, उतना ही आक्रामक भी | उसके वादे विचित्र, उसकी आलोचना हिंसक व अनिष्टसूचक, और उसकी उदारता मूर्खतापूर्ण होती है। नार्सिसिस्ट छद्म रूप धारण करने में माहिर होता है। वह दिलकश, प्रतिभाशाली अभिनेता, जादूगर और अपने परिवेश को उंगलियों पर नचाने वाला होता है। पहली मुलाकात में ऐसे व्यक्ति को पहचान पाना बेहद मुश्किल होता है |”
नाप््िप्मिस्ट संप्रदाय
नार्सिसिस्ट को प्रशंसकों की आवश्यकता होती है। वह अपने आसपास काल्पनिक दायरा बनाता है, जहां वह केंद्र बिंदु होता है । वह अपने प्रशंसकों और अनुयायियों को उस दायरे में इकट्ठा करता है, उन्हें पुरस्कृत करता है और अपनी चापलूसी के लिए उनको प्रोत्साहित करता है। जो व्यक्ति उसके इस कृत्रिम दायरे से बाहर होते हैं, उन्हें वह अपना दुश्मन मानता है। वैकनिन लिखते हैं:
नार्सिसिस्ट संप्रदाय के केंद्र में गुरु होता है। अन्य गुरुओं की तरह वह अपने शिष्यों, अपनी पत्नी, बच्चों, परिवार के सदस्यों, दोस्तों व सहकर्मियों से अपनी आज्ञा का सम्पूर्ण अनुपालन चाहता है। वह अनुयायियों से विशिष्ट व्यवहार व सम्मान प्राप्त करना अपना अधिकार मानता है। समझता है कि उसके अनुयायी उसे विशिष्ट समझकर व्यवहार करें और यह सम्मान प्राप्त करना उसका अधिकार है। वह अवज्ञा करने वालों और उससे दूर भागने वालों को दंड देता है। वह अनुशासन, अपनी शिक्षाओं के प्रति निष्ठा और सब पर एक लक्ष्य थोपता है। वास्तव में वह जितना कम निपुण होगा, उतना ही कठोर नियंत्रण और व्यापक ब्रेनवाशिंग करेगा।
विकृत नार्सिसिस्ट का नियंत्रण दुविधा, अनिश्चितता, अस्पष्टता और अपने परिवेश के दुरुपयोग पर आधारित होता है ।» उसकी हर समय बदलती सनक ही किसी बात को सही अथवा गलत, वांछनीय या अवांछनीय अथवा “क्या करना या क्या नहीं करना' को निर्धारित करती है। वही अपने अनुयायियों के अधिकार और सीमाएं तय करता है और जब इच्छा होती है तो इन्हें बदल देता है।
विकृत नार्सिसिस्ट माइक्रो मैनेजर होता है । वह अपने अनुयायियों के छोटे से छोटे कार्य या व्यवहार पर नियंत्रण रखता है| उसकी इच्छाओं और लक्ष्य पर नहीं चलने वाले को वह सख्त सजा देता है और सूचनाओं का दमन करता है। ऐसा नार्सिसिस्ट समर्थकों अथवा अनुयायियों की इच्छाओं या अनिच्छाओं का ध्यान नहीं रखता और न ही उनकी निजता और मर्यादा का सम्मान करता है। वह अपने समर्थकों की इच्छाओं की उपेक्षा करता है और उन्हें अपनी संतुष्टि का साधन या वस्तु मानता है। वह व्यक्तियों और परिस्थितियों दोनों पर अनिवार्य रूप से नियंत्रण करना चाहता है।
वह दूसरों की स्वायतत्ता एवं स्वतंत्रता को अस्वीकार करता है । वह चाहता है कि दोस्त अथवा परिवार के किसी सदस्य से मिलने जैसी मामूली बातों के लिए भी उससे अनुमति ली जाए। धीरे-धीरे वह अनुयायियों को उनके करीबी और प्रिय लोगों से अलग-थलग कर देता है, ताकि ये लोग उसके ऊपर भावनात्मक, यौनिक, वित्तीय व सामाजिक रूप से निर्भर होने को मजबूर हो जाएं।
वह संरक्षक व कृपा बरसाने वाले के रूप में अभिनय करते हुए बर्ताव करता है और अक्सर नसीहत देता रहता है। वह कभी अपने संप्रदाय के सदस्यों की मामूली गलतियों पर बरस पड़ता है तो कभी उनकी प्रतिभा, गुण व कौशल की झूठी तारीफ करने लगता है। उसकी इच्छाएं अव्यवहारिक होती हैं और इसलिए वह बाद में अपने दुर्व्यवहार को वैध करार देने लगता है ।'
मुहम्मद ने बड़ा झूठ गढ़ा कि उसके अनुयायी परम सत्य पर भरोसा करते हैं । खतरनाक बात यह है कि हिटलर के झूठ को सच मानने वालों की तरह ही इस्लाम के अनुयायी भी झूठ को सच मानने के लिए स्वेच्छा से तत्पर रहते हैं ।
पिछले अध्याय में हमने मुहम्मद का परिचय जाना | हमने देखा कि किस तरह उसने अपने अनुयायियों को उनके परिवारों से अलग-थलग कर दिया और उनके निजी जीवन तक पर नियंत्रण कर लिया। दुख इस बात का है कि १400 साल बीतने के बावजूद स्थिति बहुत नहीं बदली है। मुझे तमाम ऐसी हृदय विदारक घटनाएं सुनने को मिली हैं, जिसमें अभिभावकों ने बताया कि उनके पुत्र या पुत्री ने इस्लाम कबूल कर लिया है | मुसलमान इन बच्चों को घेरे रहते हैं और अभिभावकों से न मिलने की सलाह देते हैं।
विकृत नार्मिम्िस्ट का हेतु
विकृत नार्सिसिस्ट जानता है कि अपना प्रत्यक्ष महिमा मंडन कराना उल्टा पड़ सकता है और उसकी स्वीकार्यता खतरे में पड़ सकती है । इसलिए वह इसके बजाय अपने को उदारवादी, त्यागी पुरुष, ई श्वर, राष्ट्र अथवा मानवता की सेवा में रत होने का ढोंग करते हुए पेश करता है । उसके इस मुखौटे के पीछे सोची-समझी चतुराई होती है। ऐसा इंसान अपने अनुयायियों के समक्ष ऐसे महान व प्रतापी उद्देश्य रखता है, जिससे लगे कि वे इसके बिना नहीं रह सकते। वह खुद को क्रांतिकारी, परिवर्तन लाने वाला और आशा की किरण देने वाला नेता मानता है। प्रचार और तिकड़म के जरिए वह उस उद्देश्य को इतना महत्वपूर्ण बना देता है कि जो उस पर भरोसा करते हैं, उन्हें उस उद्देश्य के आगे अपना जीवन गौण लगने लगता है । इसी ब्रेनवाश में अनुयायी मरने और मारने पर उतारू हो जाते हैं। ऐसा नार्सिसिस्ट त्याग और बलिदान जैसी भावनाओं को प्रोत्साहित करता है । फिर इसके बाद वह खुद को इन उद्देश्यों की धुरी के रूप में प्रस्तुत करता है। यह उद्देश्य इसके इर्दगिर्द घूमता है । वह ऐसी तस्वीर पेश करता है, जैसे कि केवल वही उस उद्देश्य को पूरा कर सकता है और अपने अनुयायियों का नेतृत्व कर सकता है । इसलिए ऐसा व्यक्ति अपने समर्थकों के लिए दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण शख्सियत हो जाता है। एक ऐसी शख्सियत जिसके पास उनके मोक्ष व यश-पराक्रम की कुंजी है।
यह उद्देश्य असल में ऐसे नार्सिसिस्ट के निजी अरमानों को पूरा करने का साधन होता है । उदाहरण के रूप में, जोन्स ने गुयाना में उन 900 लोगों का नेतृत्व किया, जिन्होंने सामूहिक आत्महत्या कौ। इस इंसान ने लोगों को सामूहिक आत्महत्या के लिए उकसाते हुए सामाजिक न्याय का हेतु बताया और समर्थक उसे मसीहा मानते थे।
हिटलर ने आर्यों की सर्वोत्कृष्टता का उद्देश्य दिया था। उसने हालांकि अपना प्रत्यक्ष महिमा मंडन नहीं किया, बल्कि जर्मनी की श्रेष्ठता हासिल करने की बात कही । वह निस्संदेह अपरिहार्य प्रेरणाज्नोत था और अपने मकसद का फ्यूहरर था। इसी तरह स्टालिन ने साम्यवाद का उद्देश्य सामने रखा था और जो उसकी बातों से इत्तिफाक नहीं रखता था, उसे वह सर्वहारा के खिलाफ मानता था और कत्ल करवा देता था।
मुहम्मद ने अपने अनुयायियों से स्वयं की इबादत के लिए नहीं कहा। असल में उसने दावा किया कि वह केवल अल्लाह का संदेशवाहक अर्थात पैगम्बर है। फिर उसने होशियारी दिखाते हुए अपने अनुयायियों को कहा कि वे अल्लाह व उसके पैगम्बर के हुक्म को मानें। कुरान की एक आयत में उसने अपने कथित अल्लाह के जरिए कहलवाया:
ऐ रसूल ! तुमसे लोग पूछेंगे जंग से क्या आया और क्या गया ? उनसे कहो कि जंग का अनफ़ाल यानी मालेगनीमत अल्लाह और रसूल के लिए है। अल्लाह के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का अहसास करो। अपने बाहमी (आपसी ) मामलात की इस्लाह (ठीक) करो और अगर तुम सच्चे (ईमानदार) हो तो अल्लाह का और उसके रसूल का हुक्म मानो। (कुरान. 8:4)
चूंकि अल्लाह के लिए अरब के लोगों से ठगे और चुराए गए माल का कोई उपयोग नहीं था, इसलिए ये सारे माल उसके प्रतिनिधि (मुहम्मद) के हो गए। चूंकि कोई भी अल्लाह को न तो देख सकता है और न सुन सकता है, इसलिए सारी कर्तव्यपरायणता मुहम्मद के प्रति थी। मुहम्मद से ही लोगों को डरना चाहिए, क्योंकि वह दुनिया के सबसे भयानक ईश्वर का एकमात्र मध्यस्थ था। प्रभुत्व जमाने के लिए अल्लाह के नाम का बहाना मुहम्मद के लिए जरूरी था। क्या यह संभव था कि अल्लाह के भय के बिना मुहम्मद के अनुयायी अपनी जिंदगी कुर्बान कर देते, दूसरे लोगों और अपने परिजनों तक की हत्याएं कर देते, उनकी धन-संपत्ति लूट लेते और सबकुछ मुहम्मद को सौंप देते ? यह काल्पनिक अल्लाह और कुछ नहीं, बल्कि मुहम्मद की सनक और अपना प्रभुत्व स्थापित करने का औजार था। विडम्बना यह है कि मुहम्मद हमेशा और किसी को अल्लाह के बराबर नहीं मानने का उपदेश देता रहा और एक तरह से खुद ही अल्लाह का एक ऐसा जोड़ीदार बन बैठा कि उसे व्यवहारिक एवं तार्किक रूप से अल्लाह से अलग रखना असंभव हो गया।
ऐसे नार्सिसिस्टों को अपने अनुयायियों का इस्तेमाल करने के लिए किसी उद्देश्य की आवश्यकता होती है। जर्मनों ने युद्ध की शुरुआत हिटलर के लिए नहीं की थी। इन्होंने युद्ध उस हेतु के लिए शुरू किया था, जिसे हिटलर ने उनके दिमाग में भरा था।
डॉ. सैम वैकनिन लिखते हैं: नार्सिसिस्ट (आत्मपूजक) हर उस चीज का इस्तेमाल करते हैं जो उनकी मनोविकारी सनक पूरी करने में सहायक होता है । यदि ई श्वर, नस्ल, जाति, चर्च, विश्वास, संस्थागत धर्म आदि उनकी नार्सिस्टिक भूख को शांत करें तो वे धर्मपरायण बनने का ढोंग करते हैं और यदि इससे उसका मकसद हल न हो तो वे धर्म छोड़ देंगे।"०
इस्लाम प्रभुत्व जमाने का साधन था। मुहम्मद के बाद मुसलमानों के दूसरे नेताओं ने भी इस्लाम का उपयोग इसी तरह किया। मुसलमान इन नेताओं की स्वार्थ सिद्धि के साधन बन गए।
एक अमरीकी मुसलमान मिर्जा मलकम खान (83-908 ) ने अफगानी मुसलमान जमालुद्दीन अफगानी के साथ मिलकर इस्लामिक पुनर्जागरण (अन-नहज़ा) शुरू किया और उन्होंने एक कुटिल नारा दिया, जिसमें कहा: “मुसलमानों को कुरान की बातें बताइए, वे आपके लिए जान दे देंगे।!०
विकृत नार्मिग्तिस्ट की वश्तीयत
मरते समय भी मुहम्मद ने मुसलमानों से आगे बढ़ने और उसके जिहाद को जारी रखने का आह्वान किया था। चंगेज खान ने भी मरते समय अपने बेटों को ऐसा ही आदेश दिया था। उसने अपने बेटों से कहा कि पूरी दुनिया को अपने कब्जे में लेने की उसकी इच्छा थी, लेकिन अब वह यह नहीं कर पाएगा, इसलिए वे उसके इस सपने को पूरा करें। मुसलमानों की तरह मंगोल भी आतंक फैलाने वाले थे। किसी विकृत नार्सिसिस्ट के लिए फतह ही सबकुछ होता है। ऐसे लोगों के पास दिल नहीं होता है और दूसरों की जिंदगी उनके लिए मायने नहीं रखती।
5 साल की उम्र में हिटलर को अपने बांये हाथ में कुछ अजीब हरकत महसूस हुई | सामान्यतः: वह इसे छिपा लेता था, लेकिन रोग बढ़ गया तो वह दुनिया की नजरों से दूर हो गया । उसे अहसास हो गया कि उसकी मौत करीब है । अब वह अपने संकल्प में और दूढ़ हो गया तथा उसने नए सिरे से हमले और तेज कर दिए, जबकि वह जानता था कि उसकी सांसें बहुत कम बची हैं| विकृत नार्सिसिस्ट अर्थात आत्म-कामी अपने पीछे पूरा साम्राज्य छोड़कर जाना चाहते हैं ।
यह सोचना भूल है कि इस्लाम केवल एक धर्म है। इस्लाम का एक गुप्त पहलू यह है कि इसे उन मुस्लिम विद्वानों व दार्शनिकों द्वारा बाद में रचा गया, जिन्होंने मुहम्मद की बेतुकी बातों की गूढ़ व्याख्या को। मुहम्मद के अनुयायियों ने मजहब को अपनी रुचि के अनुसार ढाला और कालक्रम में इन व्याख्याओं पर प्राचीन होने की मुहर लग गई, जिससे इनकी विश्वसनीयता बन गई।
यदि इस्लाम एक धर्म है तो नाजीवाद, साम्यवाद, शैतानवाद, हैवन्स गेट, पीपुल्स टैम्पल, ब्रांच डेविडियन आदि भी धर्म की श्रेणी में आएंगे। किंतु यदि हम यह मानते हैं कि जीवन को शिक्षित बनाने, मानव के विकास की संभावनाएं बाहर लाने, आत्मोत्थान, आध्यात्मिकता का बीज बोने, सद्भावना बढ़ाने और मानवता को प्रकाशित करने को धर्म कहते हैं तो इस्लाम इस कसौटी पर पूरी तरह विफल होगा। इस पैमाने पर इस्लाम को न तो धर्म की श्रेणी में रखा जा सकता है और न ही इसे इस श्रेणी में रखा जाना चाहिए।
नार्सिम्तिस््ट ईवर बनना चाहते हैं
किसी नार्सिसिस्ट के लिए जो चीज सबसे महत्वपूर्ण होती है, वह है ताकत। वह नाम व सम्मान पाना चाहता है और उपेक्षा बिलकुल नहीं बर्दाश्त कर सकता है । ऐसे लोग मन ही मन अकेला और असुरक्षित भी महसूस करते हैं, इसीलिए वे खुद को क्रांतिकारी नेता, आशा जगाने वाली शख्सियत और महान उद्देश्यों के दूत के रूप में प्रस्तुत करते हैं । उनका उद्देश्य तो बस एक बहाना होता है । ऐसा करके वे समर्थकों को अपनी ओर आकर्षित करना चाहते हैं। ये लोग काल्पनिक ई श्वर और मिथ्या उद्देश्य गढ़ते हैं । जितना ही वे अपने फर्जी ईश्वर को महिमामंडित करते हैं, उतनी ही ताकत उनके पास आती जाती है | मुहम्मद के लिए अल्लाह एक सुविधाजनक औजार था। इस औजार के जरिए वह अपने अनुयायियों पर असीमित प्रभुत्व जमा सकता था और उनकी जिंदगी का मालिक बन सकता था।
केवल एक अल्लाह था, भयानक भी और उदार व रहम करने वाला भी । मुहम्मद उसका एकमात्र प्रतिनिधि था। इस हिकमत से मुहम्मद अल्लाह बन गया | हालांकि दावा किया गया कि अल्लाह का पैगाम मुहम्मद के माध्यम से दुनिया में आता है, पर सच्चाई यह थी कि कोई अल्लाह था ही नहीं, बल्कि यह मुहम्मद और उसकी सनक मात्र थी, जिसे संतुष्ट करना मुसलमानों से अपेक्षित था। वैकनिन इस पहलू को अपने लेख 'फॉर द लव ऑफ गॉडनार्सिसिस्ट एंड रिलीजन' में बखूबी समझूते हैं: ०
नार्सिसिस्ट सदा ई श्वर की तरह होना चाहता है, जो सर्वज्ञ, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान, सदा आदरणीय, चर्चा में बना रहने वाला और प्रेरणास्नोत हो। ईश्वर नार्सिसिस्ट का उन्मादभरा सपना होता है, उसकी परम आडम्बरपूर्ण कल्पना होती है। लेकिन ईश्वर उसके लिए कई और मायनों में सुविधाजनक होता है।
ऐसा व्यक्ति कभी प्रभावशाली व्यक्तियों की तारीफों के पुल बांधेगा तो कभी उन्हें नीचा दिखाएगा। शुरुआत में वह प्रभावशाली व्यक्तियों का (अक्सर हास्यास्प्रद् तरीके से) अनुकरण करेगा और उनकी हर बात की प्रशंसा करेगा, उनकी हर बात का बचाव करेगा । वह उनके बारे में कहेगा कि वे न तो गलत कर सकते हैं और न ही गलत हो सकते हैं। नार्सिसिस्ट उन शख्सियतों को जीवन से बड़ा, सम्पूर्ण, निर्विकार एवं बुद्धिमान मानेगा। पर ज्यों ही उसकी अव्यवहारिक व हवाहवाई आबकांक्षाएं हिलोर मारेंगी तो वह कुंठित होगा।
इसके बाद वह उन व्यक्तियों की निंदा करना शुरू कर देगा, जिन्हें अब तक अपना आदर्श मानता रहा है। ऐसा व्यक्ति जिन्हें अब तक महान बताता था, उन्हें अब वह सामान्य मनुष्य कहने लगेगा । अब उसकी नजर में वो शख्सियतें बहुत छोटी, कमजोर, गलतियां करने वाली, कायर, मूर्ख और मामूली हो जाती हैं । इस विकार से पीड़ित व्यक्ति तत्वदर्शी ईश्वर से संबंधों को लेकर भी इसी चक्र को अपनाता है। पर अक्सर, मोहभंग या ईश्वर की छवि को लेकर निराशा का भाव पैदा होने के बाद भी वह उसे चाहने और उसके अनुसरण का बहाना करता रहता है । वह इस धोखे को बनाए रखता है क्योंकि ईश्वर से निकटता दिखाने के बहाने वह एक विशेष प्रकार का रौबदाब हासिल करता है।
पुजारी, जनसमूहों के नेता, उपदेशक, धर्मप्रचारक, पंथों के मुखिया, राजनीतिज्ञ और बुद्धिजीवी ईश्वर के साथ अपनी कथित निकटता से विशेषाधिकार प्राप्त करते हैं । धार्मिक सत्ता का सहारा लेकर ऐसा व्यक्ति अपनी परपीड़क काम-वासना और स्त्री के प्रति द्वेषपूर्ण रवैये को खुलकर जायज ठहराने की हैसियत पा जाता है। जिस नार्सिसिस्ट के प्रभुत्व के पीछे धार्मिक सत्ता होती है, वह हमेशा आज्ञाकारी और सवाल न उठाने वाले गुलामों को अपने आसपास रखना चाहता है, ताकि वह उन पर अपनी सनकभरी और शैतानी इच्छाएं थोप सके।
नार्सिसिस्ट व्यक्ति निरापद व विशुद्ध धार्मिक भावनाओं को भी सांप्रदायिक कर्मकांड और विषैली महंतशाही में बदल डालता है। वह ऐसे लोगों को अपना शिकार बनाता है जो भोलेभाले हों । उसके अनुयायी बंधक जैसे हो जाते हैं।
धार्मिक सत्ता ऐसे व्यक्तियों की सनक पूरी करने की माध्यम बन जाती है। उसके सहधर्मी, उसके समूह के सदस्य, उसका गांव, उसका इलाका, उसके श्रोता, सबके सब उसकी पागलपंथी के रास्ते में सहायक बन जाते हैं। लोग उसकी आज्ञा का पालन करते हैं, उसकी नसीहत पर ध्यान देते हैं, उसके मत को स्वीकार करते हैं, उसके व्यक्तित्व की प्रशंसा करते हैं, उसकी विशिष्टताओं की सराहना करते हैं, उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं, उसका आदर करते हैं और उसे अपना आदर्श मानते हैं।
इसके अतिरिक्त किसी “बड़ी चीज' का हिस्सा होना नार्सिस्टिक रूप से सुखद होता है। ईश्वर का अंश होने का अर्थ उसके वैभव में डूबने जैसा होता है, उसकी ताकत व आशीर्वाद का अहसास करने जैसा होता है, उसकी संगत में रहने जैसा होता है-ये सब नार्सिस्टिक भूख को शांत करने के अच्छे स्रोत होते हैं | ऐसा व्यक्ति उस ई श्वर की आज्ञा का पालन करते हुए, उसके निर्देशों का अनुसरण करते हुए, उसको प्यार करते हुए, उसके प्रति समर्पित होते हुए, उससे संवाद करते हुए और उसकी आज्ञा का उल्लंघन करते हुए भी, ईश्वर बन जाता है। (ऐसे व्यक्ति के दुश्मन जितने बड़े होते हैं, वह स्वयं को उतना ही महान समझने लगता है।)
नार्सिसिस्ट के जीवन में अन्य बातों की तरह, ईश्वर को भी विपरीत नार्सिसिस्ट में रूपांतरित कर देता है। ईश्वर उसकी अजीबोगरीब हरकतें और इच्छाएं पूरी करने का स्रोत हो जाता है। ऐसा व्यक्ति दूसरों पर नियंत्रण और वशीकरण के लिए उस सर्वशक्तिमान व सर्वव्यापक सत्ता से व्यक्तिगत संबंध बनाता है। इस छद्म संबंध के माध्यम से वह स्थानापन्न रूप से ईश्वर बन जाता है । वह पहले ईश्वर का महिमामंडन करता है और फिर अपने आगे उसका महत्व कम कर देता है, फिर उसे अपशब्द कहने लगता है| यह पारंपरिक नार्सिस्टिक विशेषता है और ईश्वर भी स्वयं को इससे नहीं बचा सकते ।%
नार्सिसिस्ट स्वयं का प्रत्यक्ष प्रचार नहीं करते, बल्कि ये उदारता, दया और करुणा का मुखौटा लगाकर अपने काल्पनिक अल्लाह, विचार, धर्म अथवा उद्देश्य को आगे करते हैं, जबकि वास्तव में यह इन व्यक्तियों का छद्म वेश होता है| ऐसे लोग स्वयं को संदेश वाहक, साधारण व विनम्र और किसी ताकतवर अल्लाह अथवा किसी तथाकथित उद्देश्य के स्वघोषित अग्रदूत के रूप में प्रस्तुत करते हैं । पर इनकी ओर से यह स्पष्ट होता है कि मात्र ये ही उस उद्देश्य को जानते हैं और असंतोष या विरोध बिलकुल सहन नहीं करते।
नार्सिसिस्ट हृदयहीन होते हैं, पर मूर्ख नहीं । ये जानबूम कर आहत करते हैं। ये उस शक्ति बोध का आनंद लेते हैं, जो दूसरों को हानि पहुंचाकर मिलती है। ये ई श्वर होने का आनंद उठाते हैं और यह निर्धारित करते हैं कि किसे पुरस्कार देना है और किसे दंड, किसे जीने का हक है और किसे नहीं।
नार्सिसिज्म उन सभी लक्षणों की व्याख्या करता है, जो मुहम्मद में थे, जैसे कि उसकी क्रूरता, आडम्बर और अतिशयोक्ति भरे झूठे दावे, समर्पण करने वालों को प्रभावित करने तथा अपनी श्रेष्ठता स्थापित करने के लिए उदारता का ढोंग, आत्म अवबोधन, पागलपन व करिश्माई व्यक्तित्व आदि।
कैसे पैदा होती है नार्मिस्टिक प्रवृत्ति
वास्तविक या आभासी सामाजिक तिरस्कार के चलते जो बच्चा हीनभावना से ग्रस्त हो जाता है, वह अवचेतन ग्रंथि मैकेनिज्म के जरिए इससे लड़ने की कोशिश करता है। अग्रणी मनोवैज्ञानिक अल्फ्रेड एडलर ने इसे श्रेष्ठता मनोग्रंथि (सुपीरियॉरिटी कॉम्प्लेक्स) की संज्ञा दी है। इस ग्रंथि के पनपने पर नार्सिसिस्ट अपनी उपलब्धियों को अतिरंजित तरीके से पेश करने लगता है और जिसे अपने लिए खतरा समझता है, उसे नीचा दिखाने लगता है।
नार्सिस्टिक व्यक्तित्व विकार का जिम्मेदार दोषपूर्ण पालन-पोषण होता है । उदाहरण के लिए, जो अभिभावक बच्चे को अत्यधिक छूट दे देते हैं, उसकी हर मांग पूरी करने लगते हैं, बच्चे की झूठी प्रशंसा करने लगते हैं, उसमें पर्याप्त अनुशासन नहीं डाल पाते हैं, वे बच्चे के चरित्र निर्माण में उसी तरह बाधा पैदा कर रहे होते हैं, जैसे कि मारने-पीटने वाले, उपेक्षा करने वाले अथवा बच्चे के साथ अनाचार करने वाले अभिभावक। परिणाम यह होता है कि बच्चा वयस्कता की अवस्था के लिए खुद को तैयार नहीं कर पाता है। वह बच्चा जीवन के प्रति अव्यवहारिक दृष्टिकोण के साथ बड़ा होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो जो बच्चा पर्याप्त सहारा और प्रोत्साहन नहीं पाता है, उसमें इस तरह के विकार उत्पन्न होने के खतरे होते हैं।
पैदा होने के तुरंत बाद मुहम्मद को पालने के लिए दूसरे परिवार को दे दिया गया। क्या उसकी मां की रुचि उसमें कम थी ? क्या वजह थी कि वह अपनी मां की कब्र पर प्रार्थना करने नहीं गया, वह भी जब वह 60 साल से ऊपर का हो गया था ? क्या उसके मन में अपनी मां को लेकर अभी भी क्षोभ था?
हलीमा मुहम्मद को नहीं लेना चाहती थी, क्योंकि वह एक गरीब विधवा का अनाथ बच्चा था। क्या इसी वजह से हलीमा और उसके परिवार ने मुहम्मद के साथ ऐसा बर्ताव किया ? ऐसे में बच्चे क्रूर हो सकते हैं । उन दिनों अनाथ होना कलंक माना जाता था और तमाम इस्लामिक देशों में आज भी ऐसी ही स्थिति है। मुहम्मद के बचपन का परिवेश आत्मसम्मान जगाने के अनुकूल नहीं था।
स्ट्रैस रेस्पांस सिंड्रोम्स नामक पुस्तक के लेखक जोन मर्डी होर्वित्ज बताते हैं: “जब नार्सिस्टिक को संतुष्टि देने वाली सराहना, विशिष्ट व्यवहार, आ
🌸 मेरी प्यारी माँ 🌸
माँ वो धूप में छांव है,
ठंडी हवा की सांस है।
मेरे हर दुख की दवा है,
माँ ही तो मेरी सबसे खास है।
ये कविता मेरी माँ के लिए है – जो हर समय मेरी ताक़त बनी रहीं।
अगर आपको ये 4 लाइनें पसंद आएं, तो दिल से एक ❤️ जरूर छोड़ दीजिए।
आपकी मम्मी सबसे प्यारी है ना? 😊
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"अगर आपको एक और ज़िंदगी जीने का मौका मिले... तो क्या आप अपनी तक़दीर बदल पाएंगे?"
जब अलीज़ा, एक साधारण मुस्लिम लड़की, एक भयानक हादसे के बाद अपनी आँखें खोलती है — तो खुद को एक नॉवेल की दुनिया में पाती है। लेकिन वो नॉवेल की हीरोइन नहीं, बल्कि उस कहानी की विलेन होती है — एक ऐसी लड़की जिसे अंत में सब कुछ खोना होता है।
💔 इस नई दुनिया में, उसका हर कदम एक साज़िश है, हर रिश्ता एक इम्तिहान।
🔥 और फिर आता है केलन — उस कहानी का क्रूर और रहस्यमयी हीरो, जिसे अलीज़ा से नफ़रत करनी चाहिए… लेकिन उसकी आँखों में कुछ और ही जलता है।
क्या अलीज़ा अपनी किस्मत का लिखा बदल पाएगी?
क्या एक विलेन का दिल भी मोहब्बत के काबिल होता है?
या यह दूसरी ज़िंदगी भी उसे सिर्फ दर्द ही देगी?
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❤️ Enemies to Lovers
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🕊️ Strong Female Lead with Soft
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"औरत..."
चुप रहकर भी बहुत कुछ कह जाती है,
मुस्कुरा कर भी, हर ग़म सह जाती है।
हर दर्द को अपने आँचल में छुपा लेती है,
और फिर दुनिया को हँसकर वही प्यार दे देती है।
कभी माँ बनकर ममता की छाँव देती है,
कभी बहन बनकर दोस्ती निभा देती है।
वो बीवी के रूप में घर को सजाती है,
और बेटी बनकर रौशनी सी छा जाती है।
टूटती है… बिखरती है…
फिर भी हर सुबह खुद को समेट लेती है।
औरत… बस एक जिस्म नहीं,
वो रूह है — चलती हुई दुआ की तरह।
सिर्फ़ इज़्ज़त नहीं चाहिए समझ भी चाहिए।
क्योंकि वो खामोश है, कमज़ोर नहीं।
On the occasion of Guru Purnima, let's read more about Importance of Guru: https://dbf.adalaj.org/49jDOOFU
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*Bepanah Mohabbat ka Insaaf*
Gehra hai vo har rishta jo seene se lag gaya,
Kya thi kami jo hum bure kehlaaye?
Sharafat se chaha, jise sabne gunehgar kaha,
Humne to bepanah mohabbat ko sar aankhon par bithaya...
Na ek jhalak, na ek nigaah us beraham ki,
Na jaane kitne aansuon ka faisla khud ki chhati pe kiya,
Par usne to bas khamoshi ka libaas odh liya...
Kya vo khudgarz tha, jo kabhi tadpa nahi?
Kya vo pyaar tha, jo kabhi dikha nahi?
Bas kehta raha “Mehsoos hoga kabhi…”
Par kyun nahi hua?
Kyun hawaon mein udta gaya,
Aur meri rooh ko bas tadpa gaya…
_Mohiniwrites
മഴത്തുള്ളിയുടെ ആത്മരാഗം
ഞാനൊരു മഴത്തുള്ളി, ആകാശത്തിൻ്റെ മാറിലെ
ഒരു വെള്ളിമുത്തായി ഞാൻ പിറന്നു.
മേഘങ്ങളുടെ താരാട്ടിൽ, കാറ്റിന്റെ കൈകളിൽ,
ഒരു സ്വപ്നത്തിലെന്നപോലെ ഞാനുറങ്ങി,
വെയിലിന്റെ പൊൻകിരണങ്ങൾ മായും നേരം,
കാർമേഘം കറുത്തിരുണ്ട നേരം,
ഒരു യാത്രയ്ക്കായ് തയ്യാറായി ഞാൻ ഉണർന്നു,
ഭൂമിയാം അമ്മയെ പുൽകാൻ കൊതിച്ചു.
മരച്ചില്ലകളിലും പുൽക്കൊടികളിലും
ഒരു നേർത്ത സ്പർശനമായ് ഞാൻ ചേർന്നു.
ചെറിയ കുഞ്ഞു പൂക്കളിൽ ഒരു നനുത്ത ചുംബനമായ്,
അവരുടെ ദാഹം ശമിപ്പിച്ചു.
വഴിവക്കിലെ പൊടിപുരണ്ട ഇലകളിൽ,
ഞാനൊരു സ്നേഹത്തുള്ളിയായ് പെയ്തിറങ്ങി.
ഉണങ്ങിയ മണ്ണിൽ ഞാനലിഞ്ഞുചേർന്നു,
ജീവൻ്റെ തുടിപ്പുകൾക്ക് വഴിയൊരുക്കി.
ഒരു പുഴയുടെ ഭാഗമായ് ഞാൻ ഒഴുകി നീങ്ങി,
പാട്ടുംപാടി, കാടുകൾ കടന്നു.
പാടങ്ങളിലും പറമ്പുകളിലും ഞാൻ നിറഞ്ഞു,
കർഷകന്റെ മുഖത്ത് പുഞ്ചിരി വിടർത്തി.
ഒടുവിൽ, കടലിന്റെ വിശാലതയിൽ ഞാൻ ലയിച്ചു,
എന്റെ യാത്രയുടെ അവസാനതീരം.
വീണ്ടും ഞാൻ നീരാവിയായ്, ആകാശത്തേക്ക് ഉയർന്നു,
പുതിയൊരു യാത്രയ്ക്കായി കാത്തിരുന്നു.
✍️തൂലിക _തുമ്പിപ്പെണ്ണ്
🌕📿 गुरु पूर्णिमा – एक आत्मिक जागृति 📿🌕
कभी जीवन की राहों में
जब उत्तर नहीं मिलते थे,
एक आवाज़ थी — "धैर्य रखो, समझ आएगी..."
और वही आवाज़ थी मेरे गुरु की... 👣🕉️
किताबों से तो ज्ञान मिला,
मगर जीना मैंने उनसे सीखा,
हर चुप्पी के पीछे का मौन,
हर प्रश्न के पीछे का अर्थ...
उन्होंने ही समझाया। 📚💫
"गुरुजी नमस्ते" अब
व्हाट्सऐप पर भेज देते हैं लोग,
पर वो हाथ जोड़कर
चरण-स्पर्श करने का सुख,
अब कहाँ खो गया? 🙏📲
गुरु वो नहीं जो सिर्फ पढ़ा दें,
गुरु वो हैं जो
जीवन को दिशा दे दें,
जो मौन में भी
आपका हाथ थामे रहें... 🕯️🛤️
अब भी सूरज उगता है,
पर मन के भीतर अंधेरा सा क्यों है?
क्योंकि दीया जलाने वाला गुरु
अब हर जगह नहीं होता। 🌞🕯️
आज गुरु पूर्णिमा है...
आइए सिर्फ "शब्द" नहीं,
श्रद्धा अर्पित करें —
और उस आत्मिक संबंध को फिर से जगाएं...
🌸 गुरु पूर्णिमा की मंगलमय शुभकामनाएं! 🌸
✍️ डॉ. पंकज कुमार बर्मन, कटनी, मध्यप्रदेश
🌞🌞 गुरु पूर्णिमा की शुभ प्रभात 🌞🌞
🌕 जय गुरुदेव! 🌕
क्यों
ढूंढता है
हर राह में
तू रोशनी का सवाल,
जब
तेरी अंधेरी रातों में
गुरु बन कर
उजाले से मिलता है निहार...
गुरु
केवल नाम नहीं,
जीवन की साँसों में
प्रकाश की पहचान है।
हर सीख
एक दीप है,
हर दृष्टि
ज्ञान की जान है।
चल पड़
गुरु के बताए पथ पर,
विश्वास रख
उनकी हर बात पर,
क्योंकि
गुरु के चरणों में ही
मुक्ति का सार है...
🌸 गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं! 🌸
✨ जय श्रीराम ✨
✍️ डॉ. पंकज कुमार बर्मन, कटनी, मध्यप्रदेश
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