The Download Link has been successfully sent to your Mobile Number. Please Download the App.
@annadapatni1943
22
41.1k
187.7k
लेखन का प्रारंभ मैंने सोलह वर्ष की आयु में एक फ़्रेंच उपन्यासकार आंद्रे जीद के अंग्रेज़ी रूपांतरित उपन्यास ‘टू सिंफनीज़’ के हिंदी अनुवाद से किया था जो ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’ में ‘प्रेम और प्रकाश’ नाम से धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुआ । बाद में यह पुस्तक रूप में छपा ।इसकी प्रेरणा मुझे मेरे पिता जी, लब्धप्रतिष्ठित साहित्यकार श्रद्धेय पद्मश्री यशपाल जी जैन से मिली । 19 वर्ष की आयु में विवाह के पश्चात 40 वर्ष मध्य प्रदेश की औद्योगिक नगरी नागदा में रही । वहाँ की स्थानीय प्रतिभा को साथ लेकर एक पत्रिका ‘सर्जना’ का कई वर्ष तक प्रकाशन किया । इसकी पहली प्रति का विमोचन आदरणीय मोरारजी देसाई के कर कमलों द्वारा हुआ ।सामाजिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक गतिविधियों में निरंतर सक्रिय रही । मैंने दिल्ली के इंद्रप्रस्थ कॉलेज से बी.ए हिंदी ऑनर्स किया । विवाह के 26 वर्ष पश्चात सितार में खैरागढ़ वि. विद्यालय से एम ए की डिग्री प्राप्त की । 1998 में दक्षिण अमेरिका में सूरीनाम में तुलसीदास जी की 500 वीं जन्मशताब्दी के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह में मुझे उस काल की एेतिहासिक परिस्थितियों पर व्याख्यान देने का अवसर मिला । आकाशवाणी इंदौर से कई वर्षों तक महिला कार्यक्रम में मेरी अनेक वार्ताएँ प्रसारित हो चुकी है. फिर 2001 में दिल्ली आकर बसी । बाबूजी का देहांत हो चुका था, उनकी पहली पुण्यतिथि का आयोजन आदरणीय कमलेश्वर जी, डॉ. वेदप्रताप वैदिक, डॉ. हिमांशु जोशी, श्री गोविंद व्यास आदि के सान्निध्य में हुआ । बाबूजी की दूसरी पुण्य तिथि पर बाबूजी के सुविचारों का संकलन ‘अंतर्दृष्टि ‘ का लोकार्पण उपराष्ट्रपति भवन में महामहिम उपराष्ट्रपति आदरणीय श्री भैरोसिंह जी शेखावत के कर कमलों द्वारा हुआ । बाबूजी की जन्मशताब्दी पर श्रद्धांजलि स्वरूप मेरी पुस्तक ‘ पूर्णाहुति’ का लोकार्पण हिंदी भवन में सुलभ इंटरनेशनल के तत्वावधान में डॉ. विंदेश्वर पाठक ,डॉ. वेदप्रताप वैदिक एवं डॉ हिमांशु जोशी की गरिमामयी उपस्थिति में संपन्न हुआ । वर्ष 1987 से विदेशभ्रमण जो प्रारंभ हुआ तो निरंतर चल रहा है । 2014 में कुछ समय मुंबई में रहने का अवसर मिला और बहुत अवकाश भी । फलस्वरूप लेखन कार्य में ख़ूब संलग्न रही । हिंदी साहित्य की विभिन्न पत्रिकाओं से संपर्क साधने में संकोच करती रही अत: सामने नहीं आ पाई । तब ‘प्रतिलिपि’ ने एक मंच दिया ।मेरा लेखन अबाध गति से चलने लगा , 51 रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं और निरंतर प्रकाशित हो रहीं हैं ।मैं इसके लिए प्रिय वीणा वत्सल सिंह ,श्री रणजीत सिंह जी और ‘प्रतिलिपि’ की समस्त टीम की हृदय से बहुत आभारी हूँ । मेरे संस्मरणों को ‘लोकगंगा’ में स्थान देने के लिए बहुगुणा जी की बहुत आभारी हूँ । ‘मातृभारती’ के सी ई ओ श्री महेंद्र शर्मा जी तथा नीलिमा शर्मा जी का आभार, मेरी कहानियाँ निरंतर प्रकाशित करने के लिए । वर्ष 2014 से अधिकतर अमेरिका में रह रही थी। अब सिंगापुर भी जुड़ गया है अत: आधा आधा समय दोनों में बँट गया है । नए परिवेश से जुड़े अनेक विषय मुझे और अधिक लिखने को प्रेरित करते रहेंगे, ऐसी आशा करती हूँ ।
Continue log in with
By clicking Log In, you agree to Matrubharti "Terms of Use" and "Privacy Policy"
Verification
Download App
Get a link to download app
Copyright © 2024, Matrubharti Technologies Pvt. Ltd. All Rights Reserved.
Please enable javascript on your browser