Best Poems in English, Hindi, Gujarati and Marathi Language

में और मेरे अहसास - 114

by Darshita Babubhai Shah

क़ायनात में दिलों से नफ़रतों को मिटाते चलो l प्यार मोहब्बत के धर धर दिये जलाते चलो ll ...

મારા કાવ્યો - ભાગ 18

by Snehal
  • 228

ધારાવાહિક:- મારા કાવ્યોભાગ:- 18રચયિતા:- શ્રીમતી સ્નેહલ રાજન જાનીહરિહરતિથિ આજની શ્રાવણ વદ આઠમ,ઉજવીશું સૌ 5251મો શ્રી કૃષ્ણ જન્મોત્સવ.સંયોગ કહે છે ...

शायराना फिज़ा... 3 - इत्तेफ़ाक

by Utpal Tomar
  • 624

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کاغذ

by Darshita Babubhai Shah
  • 414

زندگی کا کورا کاغذ پڑھ سکتے ہو تو پڑھ لو۔ اگر چند لمحوں کی میٹھی یادیں بھر سکتے ہو ...

সংক্ষিপ্ত রামচরিত্র

by Ashoke Ghosh
  • 753

মানবাশোক বিরচিত অথ রামকথা যদি থাকে গজানন, করিনু নমন, রামের মহিমা(?) আমি করিব বর্ণন ৷ ******** ...

मी आणि माझे अहसास - 99

by Darshita Babubhai Shah
  • 660

आयुष्याचा कोरा पेपर वाचता येत असेल तर वाचा. काही क्षणांच्या गोड आठवणी भरता आल्या तर भरून घ्या. मी ...

HAPPINESS - 103

by Darshita Babubhai Shah
  • 462

If you can read the blank paper of life, then read it. If you can fill it with ...

હું અને મારા અહસાસ - 107

by Darshita Babubhai Shah
  • 402

જીવનનો કોરો કાગળ વાંચી શકો તો વાંચજો. થોડી ક્ષણોની મીઠી યાદો ભરી શકો તો ભરો. હું મારી જાતને ...

में और मेरे अहसास - 113

by Darshita Babubhai Shah
  • 1.1k

जीवन के कोरे काग़ज़ को पढ़ सको तो पढ़ो l चंद लम्हों की मीठी यादे भर सको तो भरो ...

पिता : मेरे सच्चे दोस्त

by Dev Srivastava
  • 1.2k

आज की रात मैं,फिर से बहुत रोया हूं ।उस दिन को याद कर,अंदर से मैं टूटा हूं ।वो तुम्हारा ...

কবিতামঞ্জরী - কবির কবিতাগুচ্ছ

by Ashoke Ghosh
  • 3.2k

শ্রেষ্ঠ প্রাণী অশোক ঘোষ ধরণীর মাঝে যত প্রাণী আছে সবা হতে আমি শ্রেষ্ঠ, আমি আপনার মেধায় আপনি মোহিত ...

कृष्ण-अर्जुन संवाद

by Dev Srivastava
  • 1.4k

हमारा दृष्टिकोणअर्जुन था बैठा शीश झुका कर,गाण्डीव को फेंक इस कुरुक्षेत्र में ।नहीं लड़ना था उसको अपने,सगे संबंधियों के ...

मेरे सखा, मेरे राम

by Dev Srivastava
  • 873

बैठा था मैं आंखें मूंद,भजन करता अपने राम लला का ।विश्वास न हुआ इन आंखों पर,जब साक्षात चेहरा दिखा ...

प्रेम की परिभाषा : कृष्ण और राधा

by Dev Srivastava
  • 1.7k

*_प्रेम की परिभाषा : कृष्ण और राधा_*पहली बार जब राधा आई,गोकुल अपने पिता के संग ।नजर उनकी पड़ी कान्हा ...

कोहराम

by Dev Srivastava
  • 1.4k

सुबह हुई, सूरज उग आया ।रोते हुए उसने रात को बिताया ।आंखों के सामने उसके,अंधेरा अब था छाया ।क्या ...

जीवन सरिता नोन - ९ (अंतिम भाग)

by बेदराम प्रजापति "मनमस्त"
  • 1.1k

सप्तम अध्याय दूर हुआ भ्रम, जाग गई ज्‍यौं, अपने अस्‍त्र संभाले। तोड़ा कुड़ी का दर्रा- पाठा,तब आगे के पथ ...

जीवन सरिता नौन - ८

by बेदराम प्रजापति "मनमस्त"
  • 813

चतुर्थ अध्याय सरित तीर पर, बुर्ज बैठकर, जल प्रवाह की क्रीड़ा देखी। उठते थे बुलबुले, घुमड़ती , अन्‍तर मन ...

خواہشات کا سمندر

by Darshita Babubhai Shah
  • 972

خواہشوں کا سمندر دور دور تک پھیل گیا ہے۔ ایک خواہش نے زمین و آسمان کو چھو لیا ہے۔ ...

मी आणि माझे अहसास - 98

by Darshita Babubhai Shah
  • 1k

इच्छांचा सागर दूरवर पसरला आहे. एका इच्छेने पृथ्वी आणि स्वर्गाला स्पर्श केला आहे. एक सौंदर्यवती आहे जिने आज ...

जीवन सरिता नौन - ७

by बेदराम प्रजापति "मनमस्त"
  • 894

स्‍वीकारो इस पाबन जल को, मुझको यहां मिलाओ। खुशी हुआ तब सुनत मैंगरा, आओ भाई आओ।। चीनौरिया मिल, चला ...

HAPPINESS - 102

by Darshita Babubhai Shah
  • 540

The ocean of desires is spread far and wide. A desire has touched the earth and the sky. ...

लड़के कभी रोते नहीं

by Dev Srivastava
  • 4k

आया था मैं जब दुनिया में,मां बाप मेरे थे मुस्करा उठे ।इकलौता ऐसा दिन था जब रोता देख मुझे,वो ...

जीवन सरिता नौन - ६

by बेदराम प्रजापति "मनमस्त"
  • 966

नौं सौ रसियों की रसभीनी, मन अबनी सरसाई। गौरव बांटत दोनों कर, बनवार शहर पर आई।। अवध धाम बनवार ...

હું અને મારા અહસાસ - 106

by Darshita Babubhai Shah
  • 558

ઈચ્છાઓનો દરિયો દૂર દૂર સુધી ફેલાઈ ગયો છે. એક ઈચ્છા પૃથ્વી અને સ્વર્ગને સ્પર્શી ગઈ છે. એક સુંદરી ...

में और मेरे अहसास - 112

by Darshita Babubhai Shah
  • 1.3k

ख्वाइशों का समंदर बहुत दूर तक फेला हुआ हैं l एक आरज़ू ने ज़मीं से लेकर अर्श को छुआ ...

सक्स

by Nikunj Patel
  • 1.3k

एक छोटीसी कहानि है जो हमने कविता मे पिरोई है,कहानी उनपे है जो अपनों के लिए अपने घर से ...

जीवन सरिता नौन - ५

by बेदराम प्रजापति "मनमस्त"
  • 855

दूसरा अध्याय बांटत द्रव्‍य अपार, चल दई आगे गंगा माई। पर्वत काटत चली, गुप्‍त कहीं प्रकट दिखाई।। पर्वत अन्‍दर ...

जीवन सरिता नौन - ४

by बेदराम प्रजापति "मनमस्त"
  • 969

जड़ – जंगम, घबड़ाये भारी, हिल गए पर्वत सारे। त्राहि। त्राहि मच गई धरा पर, जन जीवन हिय हारे।। ...

जीवन सरिता नौन - ३

by बेदराम प्रजापति "मनमस्त"
  • 1k

प्रथम अध्‍याय पंचमहल और गिर्द स्‍थली, अब कब होगी गुल्‍जार। कई दिनौं से प्रकृति यहां की,करती रही विचवार।। विनपानी ...

जीवन सरिता नौंन - २

by बेदराम प्रजापति "मनमस्त"
  • 927

पूर्व से गभुआरे घन ने, करी गर्जना घोर। दिशा रौंदता ही आता था, तम का पकड़े छोर।। ग्राम मृतिका ...