माँ: एक गाथा

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ये कविता संसार की सारी माताओं की चरणों में कवि की सादर भेंट है. इस कविता में एक माँ के आत्मा की यात्रा स्वर्गलोक से ईह्लोक तक विभिन्न चरणों में दिखाई गई है . माँ के आत्मा की यात्रा इहलोक पर गर्भ में अवतरण के बाद शिशु , बच्ची , तरुणी , नव युवती , विवाहिता , माँ , सास और दादी के रूप में क्रमिक विकास , देहांत और अन्तत्त्वोगात्वा देहोपरांत तक दिखाई गई है। यद्दपि कवि जानता है कि माँ के विभिन्न पहलुओं को शब्दों में सीमित नहीं किया जा सकता, एक माँ का चरित्र इतना बड़ा होता है कि

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माँ:एक गाथा - भाग - 1

ये कविता संसार की सारी माताओं की चरणों में कवि की सादर भेंट है. इस कविता में एक के आत्मा की यात्रा स्वर्गलोक से ईह्लोक तक विभिन्न चरणों में दिखाई गई है . माँ के आत्मा की यात्रा इहलोक पर गर्भ में अवतरण के बाद शिशु , बच्ची , तरुणी , नव युवती , विवाहिता , माँ , सास और दादी के रूप में क्रमिक विकास , देहांत और अन्तत्त्वोगात्वा देहोपरांत तक दिखाई गई है। यद्दपि कवि जानता है कि माँ के विभिन्न पहलुओं को शब्दों में सीमित नहीं किया जा सकता, एक माँ का चरित्र इतना बड़ा होता है कि ...Read More

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माँ: एक गाथा - भाग - 2

ये माँ पे लिखा गया काव्य का दूसरा भाग है . पहले भाग में माँ की आत्मा का वर्णन लोक के ईह लोक तक , फिर गर्भधारण , तरुणी , नव विवाहिता से माँ बनने तक लिया गया है . प्रस्तुत है इस खण्ड काव्य का दूसरा भाग. इस भाग में माँ के आत्मा की यात्रा का वर्णन माँ बनने के पश्चात विभिन्न पहलुओं को दिखाते हुए किया गया है . इस भाग में ये दर्शाया गया है कि कैसे माँ अपने नन्हे शिशु को खुश रखने के लिए कैसे कैसे अनेक प्रयत्न करती है . जुगनू:माँ:एक गाथा:भाग:6 ...Read More

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माँ : एक गाथा - भाग - 3

ये माँ एक गाथा का तीसरा भाग है . इस भाग में माँ और शिशु के बीच छोटी छोटी को दर्शाया गया है . यदा कदा भूखी रह जाती,पर बच्चे की क्षुधा बुझाती ,पीड़ा हो पर है मुस्काती ,नहीं कभी बताती है,धरती पे माँ कहलाती है। शिशु मोर को जब भी मचले,दो हाथों से जुगनू पकड़े,थाली में पानी भर भर के,चाँद सजा कर लाती है,धरती पे माँ कहलाती है। तारों की बारात सजाती,बंदर मामा दूल्हे हाथी,मेंढ़क कौए संगी साथी,बातों में बात बनाती है,धरती पे माँ कहलाती है। छोले की कभी हो फरमाइस ,कभी रसगुल्ले की हो ख्वाहिश,दाल कचौड़ी ...Read More

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माँ: एक गाथा - भाग - 4

जब भी बालक निकले घर से,काजल दही टीका कर सर पे,अपनी सारी दुआओं को,चौखट तक छोड़ आती है,धरती पे कहलाती है।फिर ऐसा होता एक क्षण में,दुलारे को सज्ज कर रण में,खुद हीं लड़ जाने को तत्तपर,स्वयं छोड़ हीं आती है,धरती पे माँ कहलाती है।जब बालक युवा होता है ,और प्रेम में वो पड़ता है ,उसके बिन बोले हीं सब कुछ,बात समझ वो जाती है ,धरती पे माँ कहलाती है।बड़ी नाजों से रखती चूड़ियां,गुड्डे को ला देती गुड़िया,सोने चाँदी गहने सारे ,हाथ बहु दे जाती है,धरती पे माँ कहलाती है।जब बच्चा दुल्हन संग होता ,माता को सुख दुःख भी होता ...Read More

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माँ एक गाथा: भाग : 5

दादी की ममता है न्यारी ,पोतो को लगती है प्यारी ,लंगड़ लंगड़ के भी चल चल के ,पोते पोती हँसाती है ,धरती पे माँ कहलाती है। कितना बड़ा शिशु हो जाए ,फिर भी माँ का स्नेह वो पाए,तब तब वो बच्चा बन जाता,जब जब वो आ जाती है,धरती पे माँ कहलाती है। धीरे धीरे नजर खोती हैं ,ताकत भी तो क्षीण होती है ,होश बड़ी मुश्किल से रहता ,बिस्तर पर पड़ जाती है ,धरती पे माँ कहलाती है। दांतों से ना खा पाती है ,कानों से ना सुन पाती है ,लब्ज कभी भी साथ न देते ,मुश्किल से कह ...Read More