दीप शिखा

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जो अपने ख्यालों को ही जीवन समझ लेता है उसका जीवन भी एकविचार ही बन कर रह जाता है उसमें कोई स्वाद या पूर्णता कहाँ से आएगी? संसार में आकर भी इस संसार को अपने से अलग समझें तो पूर्णता कैसेआयेगी ? इस लड़की के मन में आने वाले कुछ विचारों के भावी संकेत इसपत्र में है। एक अजीब ख्याली जिंदगी के लिए ही फड़फड़ा रही है क्या ? संसार को पीठ दिखाना क्या एक नव यौवना के विषय में एक बिना अर्थवाला ख्याल नहीं? भला ये भी कोई सारगर्भित बात हो सकती है ?

Full Novel

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दीप शिखा - 1

जो अपने ख्यालों को ही जीवन समझ लेता है उसका जीवन भी एकविचार ही बन कर रह जाता है कोई स्वाद या पूर्णता कहाँ से आएगी? संसार में आकर भी इस संसार को अपने से अलग समझें तो पूर्णता कैसेआयेगी ? इस लड़की के मन में आने वाले कुछ विचारों के भावी संकेत इसपत्र में है। एक अजीब ख्याली जिंदगी के लिए ही फड़फड़ा रही है क्या ? संसार को पीठ दिखाना क्या एक नव यौवना के विषय में एक बिना अर्थवाला ख्याल नहीं? भला ये भी कोई सारगर्भित बात हो सकती है ? ...Read More

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दीप शिखा - 2

बहुत साल पहले कहीं पढ़ी एक कविता उसके मरने के बाद उनको याद आई। वह उनके अन्दर आत्मध्वनि बन लगी नीले आकाश की रात मन की याद फूल जैसे खिली है कौन मेरे मन के अन्दर बसी हुई जाने कौन? ...Read More

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दीप शिखा - 3

गीता आ गई। पूरा घर एक ही क्षण में प्रसन्नता व खुशियों से भर गया। घर के अन्दर घुसते उत्साह से उछलते हुए अम्मा! चिल्लाते हुए भागकर आकर उसके गले मिली तो बुढ़िया का हृदय खुशियों से भर गया। हे भगवान चलो मेरी बच्ची पहले जैसी ही है! मेरा डर बेकार था। बड़े शान्ति से दीर्घ श्वास छोड़ते हुए स्नेह प्यार से अपने कठोर अंगुलियों से उसके कोमल चेहरे को सहलाने लगी। एक महीना ही हुआ था उससे अलग होकर कई युग बीत गए ऐसा लग रहा था! ‘‘आजा मेरी रानी बिटिया! तेरे बिना मेरा घर सूना हो गया था। ...Read More

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दीप शिखा - 4

“मैं शादी नहीं करूंगी !” यामिनी चिल्लाई कौन सी लड़की ऐसा नहीं कहती ? यह तो एक विरोध है, मन पर पर्दा डालने वाला, एक झूठ है, इसके लिए इतना सोचने की जरूरत नहीं अचानक से इसके जीवन की दिशा बदल जाएगी नए-नए रिश्तों से जुड़ना पड़ेगा ऐसे में इसका यह सोच नए परिवेश में कैसे रहेगा ? मन हमेशा स्थिर नहीं होता डर दूर होते ही रिश्ते की मिठास, उसकी पूर्णता को वह महसूस करेगी ऐसा ही सोच पेरुंदेवी पति से कहने लगी “अभी ऐसे ही बोलेगी कल ही शादी के बाद दो दिन आकर अपने साथ रहने को कहेंगे तो बोलेगी ‘वे ऐसा, वो वैसा बहाने बनाकर वहाँ से नहीं आएगी आप देखना ” ...Read More

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दीप शिखा - 5

उसके बाद जो भी हुआ सब विपरीत ही हुआ शहर के दूसरे कोने में रहने वाले उसके के घर एक अच्छा दिन देखकर उसे छोड़ आए “बच्ची वहां पता नहीं कैसे रहेगी !” ऐसे बोलते हुए सारनाथन हॉल में बने झूले पर बैठे उस समय झूला वहीं लगा था हॉल की दीवार पर कुछ चित्र लगे थे उसमें से कुछ पेरुंदेवी ने कपड़े व चमकीली पन्नियों से बनाऐ थे और रवि वर्मा के बनाए चित्र भी टंगे थे ...Read More

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दीप शिखा - 6

एक दिन रामेशन आया ‘उसकी तबियत ठीक नहीं है ऐसा लगता है उसका इस तरह चिल्लाना, रोना, डॉक्टर हिस्टीरिया बोल रहे हैं....... उसका चेहरा कुम्हलाया हुआ था कितनी आशा थी कैसे कैसे सपने देखे थे कि प्यारी पत्नी हो, प्यारे बच्चे हों ! प्रेम शांति से गृहस्थ जीवन चले दोनों आँखों से एक दृष्टि जैसे पति-पत्नी कष्ट में सुख में मिलकर रहें बीज जैसे पेड़ होता है वैसे ही धीरे-धीरे आगे बढ़कर परिपक्व होकर दोनों अधेड़ अवस्था में पहुंचेंगे ऐसा सोचा और अपेक्षा की इसमें कोई गलती की क्या ? हर समय घृणा, विरोध.... उसके बच्चे को यामिनी एक बीमारी जैसे देख रही थी । उसमें प्रेम, प्यार मिठास था ही नहीं कितना दुर्भाग्य है उसका ’ ...Read More

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दीप शिखा - 7

उसकी स्थिती जब ज्यादा बिगड़ती गई तो फिर आखिर में उसे मनोरोग अस्पताल में भर्ती कर चिकित्सा करवानी पड़ी पेरुंदेवी पूरे समय बुदबुदाती रही सुबह शाम विधि के विधान को सोच रोती रही बच्ची गीता यदि उसके पास नहीं होती तो उसका कमजोर शरीर ये दुख सहन नहीं कर पाता बच्ची पर पेरूंदेवी का विशेष प्रेम उमड़ता रहा बिना कोई हिचकिचाहट के बच्ची की माँ जैसे ही उसने प्यार दिया उसकी देखरेख करने के हर छोटे-बड़े काम को उसने बड़े ही उत्साह के साथ किया भले ही उसे परेशानी हो पर बच्चे को नहीं हो इसका ध्यान रखती थी हर बात में वह सोचती उसकी माँ होती तो ऐसा करती मुझे भी ऐसा ही करना चाहिए ऐसा वह तन, मन, धन से करती उसके लालन-पालन में कोई कमी नहीं छोडी उसकी माँ होती तो क्या करती ऐसा सोच वह भी वही करती और जितना उसका ख्याल रखती उतना ही उसका प्यार बच्चे से बढ़ता जाता ...Read More

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दीप शिखा - 8

बुढिया ने सिर ऊपर उठाया, अगल-बगल सब निराश, कुम्हलाए चेहरे ऐसे लगा सांत्वना देने की कोशिश कर रहे हों प्रेम व सहानुभूति से गीता ने उसके कंधे को पकड़ रखा था “अम्मा ! आपको कुछ हो गया है क्या ? आप इतना थकी और निराश क्यों लग रही हो ?” पेरुंदेवी कुछ न बोली जीवन में जो कठिनाईयां आई उसमें से बच निकलने की ही तड़प और दर्द है ये । “अम्मा ! अम्मा बोलो माँ !” “बोलने को कुछ भी नहीं गीता ? पता नहीं एक हफ्ते से मुझे बहुत थकावट लग रही है ” ...Read More

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दीप शिखा - 9

“मुझे मुक्ति दो ” यामिनी बोली चंद्रमा की चाँदनी में पिता और पुत्री दोनों खड़े थे पूर्णमासी की रात आकाश में चंद्र अपनी सोलह कलाओं के साथ मौजूद था उस प्रकाश में जो चमक थी काली यामिनी पर पड़ कर उसके सांवले रंग कोऔर चमका रही थी सामान्य दृष्टि से अलग खोई हुई उसकी आँखें अब हमेशा भ्रमित रहने लगी थीं अकेली छोड़ो तो अपने को खत्म करने दौड़ती वह बाहर फटी-फटी आँखों से देख रही थी उस समय उसके अंदर क्या हो रहा था कौन जाने ? पहले भी वह इस तरह फटी-फटी आँखों से देखती हुई बैठी रहती थी ...Read More

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दीप शिखा - 10 - Last Part

गीता के चेहरे को तीनों घूर कर देख रहे थे रामेशन तो सिर्फ अपने प्रश्न के उत्तर लिए उसको देख रहा था लेकिन पेरुंदेवी, आने वाले शब्दों में जो तूफान होगा उसे सोच पहले से ही डरी हुई थी अत: उसका गला सूखने लगा और वह दयनीय दृष्टि से उसे देख रही थी सारनाथन जी उत्सुकता से बेचैन थे एक क्षण में ही सारी पुरानी यादें मस्तिष्क में घूम गईं, उनकी रोमावली खड़ी हो गई उन तीनों की भावनाएँ, इच्छाएँ और मन के अंदर की बात सब एक साथ बाहर आने को है तीनों की दृष्टि उसके ऊपर ही है ये जब गीता ने महसूस किया तो थोड़ी देर पहले उसमें जो हिम्मत और शांति उसमें थी वह गायब हो गई वह बेचैन हो उठी, मैं जो बोलने वाली हूँ उसे ये लोग किस तरह लेगें ? इस डर ने उसे घेर लिया ...Read More