पल जो यूँ गुज़रे

(242)
  • 200k
  • 29
  • 88k

अपना आखिरी पीरियड लगाने के बाद जैसे ही निर्मल ने डिपार्टमेंट से बाहर कदम बढ़ाये कि उसका सामना बेमौसम की बारिश की हल्की—हल्की बूँदों से हुआ। इसकी परवाह किये बिना कि हॉस्टल तक पहुँचते—पहुँचते भीग जायेगा, वह वहाँ से चल पड़ा। हॉस्टल तक चाहे रास्ता अधिक न था, किन्तु बूँदाबाँदी एकाएक तेज़ बौछारों में बदल गयी। रास्ते में रुक तो सकता था, किन्तु सर्दी की बरसात कितनी देर तक चले, कुछ कहा नहीं जा सकता, यही सोचकर निर्मल बिना रुके चलता रहा और इस प्रकार हॉस्टल के पोर्च तक पहुँचते—पहुँचते वह पूरी तरह भीग गया। फरवरी के अन्तिम दिनों में सामान्यतः मौसम इतना ठंडा नहीं रहता, किन्तु बरसात की वजह से ठंडक बढ़ गयी थी।

Full Novel

1

पल जो यूँ गुज़रे - 1

अपना आखिरी पीरियड लगाने के बाद जैसे ही निर्मल ने डिपार्टमेंट से बाहर कदम बढ़ाये कि उसका सामना बेमौसम बारिश की हल्की—हल्की बूँदों से हुआ। इसकी परवाह किये बिना कि हॉस्टल तक पहुँचते—पहुँचते भीग जायेगा, वह वहाँ से चल पड़ा। हॉस्टल तक चाहे रास्ता अधिक न था, किन्तु बूँदाबाँदी एकाएक तेज़ बौछारों में बदल गयी। रास्ते में रुक तो सकता था, किन्तु सर्दी की बरसात कितनी देर तक चले, कुछ कहा नहीं जा सकता, यही सोचकर निर्मल बिना रुके चलता रहा और इस प्रकार हॉस्टल के पोर्च तक पहुँचते—पहुँचते वह पूरी तरह भीग गया। फरवरी के अन्तिम दिनों में सामान्यतः मौसम इतना ठंडा नहीं रहता, किन्तु बरसात की वजह से ठंडक बढ़ गयी थी। ...Read More

2

पल जो यूँ गुज़रे - 2

चार दिन के अवकाश के पश्चात्‌ निर्मल ने कोचग क्लास लगाई थी। जब क्लास समाप्त हुई और निर्मल अपने की ओर मुड़ने लगा तो जाह्नवी ने उसे रोकते हुए उलाहने के स्वर में पूछा — ‘निर्मल, बिना बताये कहाँ गायब हो गये थे इतने दिन?' ...Read More

3

पल जो यूँ गुज़रे - 3

रविवार आम दिनों जैसा दिन। खुला आसमान, सुबह से ही चमकती ध्ूप। फर्क सिर्फ इतना कि आज कोचग क्लास में का कोई झंझट नहीं था, फिर भी जल्दी तैयार होना था। प्रिय साथी के साथ सारा दिन बिताने का प्रथम स्वप्निल अवसर। अपने प्रतिदिन के रूटीन के अनुसार निर्मल उठा और स्नानादि से निवृत होकर तैयार हो ही रहा था कि उसके बरसाती वाले कमरे के दरवाज़े पर दस्तक हुई। ...Read More

4

पल जो यूँ गुज़रे - 4

इकतीस जुलाई को निर्मल ने कोचग कोर्स बीच में ही छोड़कर वापस चण्डीगढ़ जाना था, बल्कि यह कहना अध्कि होगा कि निर्मल ने कोर्स के लिये इकतीस जुलाई तक के लिये ही फीस दी हुई थी, क्योंकि इसके पश्चात्‌ एल.एल.बी. तृतीय वर्ष की कक्षाएँ आरम्भ होनी थी। जाह्नवी ने पूरा कोर्स समाप्त होने तक यानी सितम्बर अन्त तक दिल्ली रहना था, क्योंकि वह एम.ए. फाइनल की परीक्षा देकर आई थी। ...Read More

5

पल जो यूँ गुज़रे - 5

जिस दिन निर्मल घर वापस आया, दोपहर में सोने के बाद माँ को कहकर जितेन्द्र से मिलने के लिये लगा तो सावित्री ने उसे बताया — ‘मैं बन्टु के साथ जाकर जितेन्द्र की बहू को मुँह दिखाई का शगुन दे आई थी। अब तो तूने कल चण्डीगढ़ जाना है, जब अगली बार आयेगा तो उनको खाने पर बुला लेंगे। और हाँ, जल्दी वापस आ जाना, क्योंकि तेरे पापा दुकान से आने के बाद तेरे साथ कुछ सलाह—मशविरा करना चाहते हैं।' ...Read More

6

पल जो यूँ गुज़रे - 6

अगस्त का दूसरा सप्ताह चल रहा था। एक दिन निर्मल जब क्लासिज़ लगाकर हॉस्टल पहुँचा तो कमरे में उसे में आया एक बन्द लिफाफा मिला। लिफाफे पर प्रेशक का नाम—पता न होने के बावजूद अपने नाम—पते की हस्तलिपि देखकर उसे समझते देर नहीं लगी कि पत्र जाह्नवी का है। यह पहला पत्र था जो जाह्नवी ने लिखा था। पत्र के साथ था नोट्‌स का पुलदा। ...Read More

7

पल जो यूँ गुज़रे - 7

आठ अक्तूबर की शाम निर्मल मेस से चाय पीकर कमरे की ओर जा रहा था कि हॉस्टल के चपड़ासी ने बताया कि जाह्नवी नाम की लड़की उससे मिलने आई है और कॉमन रूम में बैठी है। यह सुनते ही उसके पैरों ने गति पकड़ ली। निर्मल को देखते ही जाह्नवी ने उठते हुए ‘हैलो' कहा। जवाब में निर्मल ने ‘हाउ आर यू' कहा। ‘आय एम फाइन, एण्ड यू?' ‘आय एम ऑलसो फाइन। कब आई?' ...Read More

8

पल जो यूँ गुज़रे - 8

निर्मल का अन्तिम पेपर पच्चीस को हो गया, किन्तु जाह्नवी का आखिरी पेपर इकतीस अक्तूबर को था। निर्मल अपने पेपर के बाद सिरसा जाना चाहता था, क्योंकि उसे सिरसा से आये हुए लगभग तीन महीने हो गये थे। किन्तु जाह्नवी का अन्तिम पेपर अभी बाकी था, सो उसने सिरसा जाने का कार्यक्रम स्थगित कर दिया। दीवाली में पन्द्रह—बीस दिन रह गये थे। उसने सोचा, बार—बार जाने की बजाय दीवाली पर चार—पाँच दिन घर लगा आऊँगा। तदनुसार उसने पत्र लिखकर घरवालों को सूचित कर दिया और अपने पेपर अच्छे होने की भी सूचना दे दी। ...Read More

9

पल जो यूँ गुज़रे - 9

क्योंकि निर्मल ने पत्र द्वारा पहले ही सूचित किया हुआ था कि मैं दीवाली से चार दिन पूर्व आऊँगा, कुछ तो दीवाली के कारण और कुछ उसके आने की खुशी में घर में त्योहार जैसा माहौल बना हुआ था। एक तो वह तीन महीने पश्चात्‌ घर आया था, दूसरे आईएएस के लिये उसके पेपर बहुत अच्छे हुए थे। सब को आशा थी कि अब तो बहुत जल्दी ही भाग्य परिवर्तन होने वाला है। सावित्री ने उसके आने की खुशी में माल—पूड़े तथा खीर बनाई थी। दीवाली सिर पर थी, इसलिये गुड़ की और नमकीन मठियाँ भी बना रखी थीं। जब उसने घर पहुँचकर दादी और माँ के चरण—स्पर्श किये तो दोनों ने उसे बहुत आशीर्वाद दिये। दादी उसे अपने सीने से लगाकर बहुत देर तक उसके सिर पर हाथ फेरती रही। ...Read More

10

पल जो यूँ गुज़रे - 10

जब निर्मल चण्डीगढ़ आया तो हॉस्टल में कई लड़कों ने उससे पूछा, अरे भई, इतने दिन कहाँ रहे? उस दादी के देहान्त का समाचार देने पर सभी ने औपचारिक शोक जताया। डिपार्टमेंट में भी उसके करीबी दोस्तों ने इतने दिन की उसकी अनुपस्थिति के बारे में पूछा। शाम होने के करीब उसने जाह्नवी को पत्र लिखना आरम्भ किया। सम्बोधन कई बार लिखा, काटा। उसको समझ नहीं आ रहा था कि सम्बोधन में क्या लिखे? जाह्नवी के घर के पते पर यह उसका प्रथम पत्र जाना था, इसलिये सम्बोधन को लेकर उसका मन दुविधग्रस्त था। इससे पहले जो पत्र उसने जाह्नवी को लिखे थे, वे तब लिखे थे जब वह दिल्ली में थी। अन्ततः उसने लिखाः ...Read More

11

पल जो यूँ गुज़रे - 11

पन्द्रह—बीस दिन बाद की बात है। निर्मल जब डिपार्टमेंट से हॉस्टल पहुँचा तो उसे कमला का पत्र मिला। कमला ने में लिखा था कि शिमला से सेबों की एक पेटी पार्सल से आई थी। माँ और पापा के पूछने पर मुझे बताना पड़ा कि आप तथा आपकी मित्र जो शिमला में रहती है तथा जिनका अपना सेबों का बाग है, ने दिल्ली में इकट्ठे कोचग ली थी। माँ और पापा को यह जानकर बहुत खुशी हुई कि तुम्हारी मित्र ने भी आईएएस के पेपर दिये हैं। उन्होंने उसकी कामयाबी के लिये शुभकामनाएँ दी हैं। ...Read More

12

पल जो यूँ गुज़रे - 12

तेईस दिसम्बर को दस बजे वाली बस से वह शिमला पहुँच गया। जाह्नवी अपने ड्राईवर गोपाल के साथ बस पर प्रतीक्षारत मिली। निर्मल को देखते ही उसे कुछ इस तरह की तृप्ति का अहसास हुआ जैसे मरुस्थल में भटके मुसाफिर को जल दिखने पर होता है। लंच करते समय श्रद्धा ने कहा — ‘निर्मल, आज कितने दिनों बाद जाह्नवी के चेहरे पर खुशी के चिह्न दिखे हैं, नहीं तो ये उदास चेहरा लिये अपने स्टडी—रूम में सारा दिन किताबों में ही उलझी रहती थी। ...Read More

13

पल जो यूँ गुज़रे - 13

जब निर्मल सिरसा पहुँचा तो रात हो गयी थी। सर्दियों की रात। कृष्ण पक्ष की द्वादश और कोहरे का रिक्शा पर आते हुए तीव्र शीत लहर उसकी हडि्‌डयों को चीरती हुई बह रही थी। स्ट्रीट—लाईट्‌स भी जैसे कृपण हो गयी थीं अपनी रोशनी देने में। गली में घुप्प अँधेरा था, कोई भी दिखाई नहीं दे रहा था, लेकिन घर पहुँचा तो सब घर पर थे। परमानन्द भी दुकान बन्द करके घर आ चुका था। रिक्शावाला जब सेब की पेटी निर्मल के साथ घर के अन्दर रखने गया तो कमला ही सामने मिली। सेब की पेटी देखकर बोली — ‘नमस्ते भाई।.....अरे वाह, एक और पेटी सेब, सीधे बाग से!' ...Read More

14

पल जो यूँ गुज़रे - 14

कुछ वर्ष पूर्व तक सर्दी का मौसम होता था तो सर्दी ही होती थी। तापमान में दो—चार डिग्री का तो सामान्य बात होती थी, जिसका कारण होता था, दूर—पास के क्षेत्रों में बरसात का हो जाना अथवा उत्तर दिशा की ठंडी हवाओं का रुख परिवर्तन। किन्तु एक—दो वर्षों से सर्दी का मौसम निरन्तर सिकुड़ता जा रहा था। जनवरी के तीसरे सप्ताह की बात है। एक दिन प्रातः निर्मल उठा तो उसे लगा, यह अचानक इतनी गर्मी कैसे? कमरे में जैसे दम घुटता—सा लगा। ...Read More

15

पल जो यूँ गुज़रे - 15

दिल्ली जाने से दो दिन पहले जब निर्मल ने बीस दिन के अवकाश का प्रार्थना—पत्र डिपार्टमेंट के ऑफिस में तो क्लर्क ने उसे एचओडी (विभागाध्यक्ष) से मिलकर अपना प्रार्थना—पत्र स्वयं स्वीकृत करवाने के लिये कहा। जब वह एचओडी के ऑफिस में गया और उसने अपना प्रार्थना—पत्र उनके समक्ष रखा तो एक नज़र डालने के बाद एचओडी ने कहा — ‘मि. निर्मल, कांग्रेचुलेशन्ज़ इन एडवांस। विश यू बेस्ट ऑफ लक्क फॉर द इन्टरव्यू। हैज ऐनी अदर ब्वाय फ्रॉम लॉ क्वालीपफाइड?' ...Read More

16

पल जो यूँ गुज़रे - 16

जाह्नवी के इन्टरव्यू की तिथि से चार दिन पूर्व की बात है। मुँह—अँधेरे निर्मल की नींद खुल गयी। कारण को लगातार तीन—चार बहुत जोर की छींकें आर्इं। निर्मल ने गद्दे से उठते हुए बेड के नज़दीक जाकर पूछा — ‘क्या हुआ जाह्नवी, तबीयत ठीक नहीं है क्या?' ‘सॉरी निर्मल, तुम्हारी नींद डिस्टर्ब कर दी।' ‘सॉरी वाली कोई बात नहीं', कहने के साथ ही उसने जाह्नवी के माथे पर हाथ रखा। माथा थोड़ा—सा गर्म था। ‘तुम्हें तो बुखार लगता है?' ...Read More

17

पल जो यूँ गुज़रे - 17

दोनों के इन्टरव्यू आशानुरूप ही नहीं, अपेक्षा से कहीं बेहतर सम्प हुए। दोनों अति प्रसन्न थे। शाम को विकास घर जाना था। यूपीएससी से लौटते हुए जाह्नवी ने कहा — ‘निर्मल, विकास भाई साहब की पाँच—छः साल की बेटी है और दो—एक साल का बेटा है। बच्चों के लिये कुछ खरीद लें, बच्चों को अच्छा लगेगा।' ‘बच्चों के लिये जो तुम्हें अच्छा लगे, ले लो। एक डिब्बा मिठाई का भी ले चलते हैं। बंगाली मार्किट चलते हैं। वहाँ कुछ खा—पी भी लेंगे और जो लेना है, ले भी लेंगे। विकास जी के घर तो शाम को ही चलना होगा?' ...Read More

18

पल जो यूँ गुज़रे - 18

जाह्नवी को दिल्ली से लौटे दो—तीन दिन हो गये थे। वह गुमसुम रहती थी। सारा—सारा दिन कमरे में बाहर ओर खुलने वाले दरवाज़े के समीप कुर्सी पर बैठी वृक्षों के बीच से दिखते आकाश के बदलते रंगों को निहारती रहती। 130 डिग्री के कोण से झरती सूर्य—रश्मियों के प्रकाश में तैरते अणुकणों पर टकटकी लगाये रहती। कभी मीरा की पदावली तो कभी महादेवी वर्मा की कविताएँ उठा लेती और उनमें खो जाती। कोई बात करता तो ‘हाँ—ना' से अधिक न बोलती। ...Read More

19

पल जो यूँ गुज़रे - 19

अनुराग ने निर्मल को सूचित किया कि मैं रविवार को आऊँगा। तदनुसार अनुराग शिमला से प्रातः पाँच बजे अपने को लेकर चल पड़ा। रास्ते में एक—आध बार रुककर भी वे दोपहर के खाने से पूर्व सिरसा पहुँच गये। निर्मल के पापा ने यथाशक्ति अतिथि—सत्कार की प्रत्येक तैयारी की हुई थी। सावित्री और कमला ने दो दिन लगकर ऊपर से नीचे तक सारे घर की सफाई की थी। ...Read More

20

पल जो यूँ गुज़रे - 20

रविवार को जब अनुराग वापस शिमला पहुँचा तो रात के ग्यारह बजने वाले थे। घर में श्रद्धा और जाह्नवी रही थीं, क्योंकि निर्मल ने टेलिफोन पर सूचित कर दिया था कि अनुराग सिरसा से तीन बजे के लगभग चला था। निर्मल ने चाहे अपनी ओर से जाह्नवी को सारी बातें बता दी थीं, फिर भी वह तथा उसकी भाभी अनुराग की जुबानी सुनने को उत्सुक थीं। अनुराग ने आते ही सबसे पहले जाह्नवी का, और फिर श्रद्धा का मुँह मीठा करवाया। तदुपरान्त सावित्री द्वारा दी गयी सोने की ‘लड़ी' पहनाते हुए बताया कि यह निर्मल की पड़दादी के समय की लड़ी है। ...Read More

21

पल जो यूँ गुज़रे - 21

अन्ततः मई के द्वितीय सप्ताह की एक खुशनुमा प्रातः ऐसी आई जब शिमला स्थित सभी प्रमुख समाचारपत्रों के सम्वाददाता कैमरामैन के साथ मशोबरा के ‘मधु—स्मृति विला' के परिसर में प्रतीक्षारत थे, इस घर की बेटी — जाह्नवी का इन्टरव्यू लेने व उसका फोटो खींचने के लिये, जिसने न केवल यूपीएससी की परीक्षा पास की थी बल्कि राज्य की प्रथम महिला आईएएस अधिकारी बनने का गौरव हासिल किया था, और वह घर के अन्दर खुशी के मारे नर्वस अवस्था में तैयार हो रही थी। अनुराग ने बहादुर को लॉन में कुर्सियाँ लगाने को कहा। जैसे ही जाह्नवी को रिज़ल्ट का पता चला, उसने निर्मल से बात करने के लिये कॉल बुक करवाई और स्वयं प्रेस वालों के सामने आने के लिये तैयार होने लगी। तैयार होकर वह अनुराग के साथ बाहर आई। सभी उपस्थित प्रेस वालों ने उठकर अभिवादन किया तथा बधाई दी। ...Read More

22

पल जो यूँ गुज़रे - 22

तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार निर्मल का परिवार, कुल सात लोग — परमानन्द, सावित्री, जितेन्द्र, सुनन्दा, कमला, बन्टु तथा निर्मल रविवार शाम को शिमला पहुँच गये। अनुराग ने इनके रुकने तथा सगाई की रस्म के लिये मॉल रोड पर एक होटल में प्रबन्ध किया हुआ था। अनुराग श्रद्धा, जाह्नवी, मीनू तथा अपने एक सेवादार और पंडित जी के साथ पहले से ही उपस्थित था। अनुराग और श्रद्धा ने उनके आगमन पर यथोचित स्वागत—सत्कार किया। निर्मल ने सबका एक—दूसरे सेे परिचय करवाया। श्रद्धा सुनन्दा और कमला को जाह्नवी के कमरे में छोड़ आई। ...Read More

23

पल जो यूँ गुज़रे - 23

यूपीएससी द्वारा अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के लिये चयनित उम्मीदवारों को पुलिस वेरीफिकेशन के पश्चात्‌ डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनॅल एण्ड रिफॉर्मस द्वारा नियुक्ति के ऑफर लेटर जारी किये जाते हैं। तदुपरान्त मेडिकल परीक्षण की रिपोर्ट के आधार पर उन्हें प्रशासनिक अकादमी मसूरी में प्रवेष मिलता है। सर्वप्रथम निर्मल और जाह्नवी अगस्त के पहले सप्ताह ‘सैंडविच' कोर्स प्रथम फेज के लिये मसूरी गये जहाँ अन्य सभी चयनित उम्मीदवारों के साथ उन्होंने एक साथ पन्द्रह सप्ताह की टे्रनग ली। प्रथम फेज में मुख्यतः थीॲरी ही होती है, जिसमें व्यक्तित्व विकास एवं नेतृत्व—क्षमता को तराशने सम्बन्धी व्याख्यान देने के लिये प्रबुद्ध विद्वानों की ‘फैक्लटी' होती है तथा समय—समय पर बाहर से विषय—विशेषज्ञों को भी आमन्त्रित किया जाता है। ...Read More

24

पल जो यूँ गुज़रे - 24

भारत भि—भि ऋतुओं का देश है। जुलाई—अगस्त—सितम्बर का समय मुख्यतः वर्षा ऋतु कहलाता है। इस कालखण्ड में प्रकृति एक जहाँ अपने अनन्त खज़ाने से जल बरसाकर धरा की प्यास बुझाती है और लहलहाती फसलों के रूप में धन—धान्य का वरदान देती है, वहीं कभी—कभी प्राकृतिक आपदाओं के रूप में प्रकट त्रासद परिस्थितियाँ जनमानस को कभी न भूलने वाले घाव भी दे जाती है। यही कालखण्ड था जब देश के विभाजन स्वरूप निर्मल का परिवार अपना घरबार छोड़, अपनी जड़ों से उजड़ने के लिये विवश हुआ था। और ठीक पच्चीस वर्ष पश्चात्‌ उसके परिवार को एकबार फिर प्रकृति की असहनीय मार झेलनी पड़ी। ...Read More

25

पल जो यूँ गुज़रे - 25

पन्द्रह हफ्ते पलक झपकते बीत गये। जाह्नवी की नियुक्ति सोलन डिस्ट्रिक्ट में बतौर अस्सिटेंट कमीशनर हुई। निर्मल को आगे ट्रेनग के लिये राष्ट्रीय पुलिस अकादमी, माउँफट आबू जाने का आदेश—पत्र मिला। एक सप्ताह के ज्वाइनग पीरियड में वे सिरसा आये। उनके आगमन पर घर—परिवार ही नहीं, सारे शहर में हर्षोल्लास था। कॉलेज में निर्मल और जाह्नवी के सम्मान में एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया। कॉलेज प्रांगण में उनसे स्मृति—वृक्ष लगवाये गये। ...Read More

26

पल जो यूँ गुज़रे - 26

उपायुक्त महोदय ने एक लिखित शिकायत जाह्नवी को इन्कवारी के लिये दी। शिकायत पढ़कर उसे हँसी आई कि शिकायतकर्त्ता इतना भी मालूम नहीं कि वह शिकायत में लिख क्या रहा है। हुआ यूँ कि दफ्तर के दो बाबुओं — महीपाल व अजय — के बीच किसी बात को लेकर तू—तू, मैं—मैं हो गयी। महीपाल ने अजय को कहा कि मैं तुझे ऐसा मज़ा छकाऊँगा कि तू भी याद रखेगा। ...Read More

27

पल जो यूँ गुज़रे - 27 - लास्ट पार्ट

जाह्नवी आ तो गयी रेस्ट हाउस, परन्तु रात की घटना या कहें कि दुर्घटना अभी भी उसके दिलो—दिमाग पर हुई होने के कारण, उसे इस जगह अब एक—एक पल बिताना भारी लग रहा था, फिर भी नहाना—धोना तो था ही और तैयार भी होना था। यह सब कुछ करने से पहले उसने ड्राईंग—रूम में जाकर टेलिफोन चैक किया, टेलिफोन काम कर रहा था। उसने अनुराग और डायरेक्टर पुलिस अकादमी, माऊँट आबू के नाम कॉल बुक करवाये। शिमला अनुराग से दो—तीन मिनट में ही बात हो गई, किन्तु माऊँट आबू की कॉल में समय लगता देख उसने चौकीदार को वहाँ बिठाया और स्वयं रूम में आकर तैयार होने लगी। ...Read More