किशोर उपन्यास ‘खुशियों की आहट’ का सार यह कहानी है एक किशोर छात्र, मोहित,की। मोहित के मम्मी-पापा नौकरी करते हैं। पापा नौकरी करने के साथ - साथ बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाते हैं। मम्मी को कविताएँ लिखने का शौक है और उनका बहुत- सा समय कवि सम्मेलनों आदि में कटता है। और बड़ा फ्लैट व और बड़ी गाड़ियां खरीदने के लिए पापा सप्ताह के सातों दिन ट्यूशनों में ही व्यस्त रहते हैं। मम्मी-पापा इतने व्यस्त हैं कि मोहित के लिए उनके पास समय हनहीं होता। यहां तक कि मोहित की पढ़ाई में भी वे दोनों कोई खास मदद नही कर पाते। मोहित का ध्यान घर की पूर्णकालिक नौकरानी, शांतिबाई, रखती है। मोहित पढ़ाई मे पिछड़ जाता है। मम्मी-पापा एक-दूसरे पर इसके लिए दोष लगाते हैं। शांतिबाई उन्हे समझाती है कि उनके लिए मोहित के वास्ते समय देना जरूरी है। मम्मी-पापा बात समझ जाते हैं। मोहित को लगने लगता है कि उसके जीवन में ख़ुशियों की महक आने वाली है।
Full Novel
खुशियों की आहट - 1
'मोहित, उठो. देखो कितना दिन चढ़ आया है.' शांतिबाई की आवाज़ कानों में पड़ी, तो मोहित ने ज़रा-सी आँखें देखा - वाकई दिन काफ़ी चढ़ आया था. मगर बिस्तर छोड़ने का उसका मन कर नहीं रहा था. आज महीने का दूसरा शनिवार था और मोहित की स्कूल की छुट्टी थी. मोहित ने करवट बदली और आँखें बन्द किए-किए बिस्तर पर लेटा रहा. 'आज स्कूल की छुट्टी है, तभी तो इस वक्त तक वह आराम से बिस्तर में लेटा है, वरना अब तक तो वह तैयार होकर स्कूल भी पहुँच चुका होता. उठने में पाँच मिनट की भी देर हो जाए, तो मम्मी-पापा उसे जबरदस्ती उठाए बगैर नहीं रहते! मोहित सोच रहा था. ...Read More
खुशियों की आहट - 2
मोहित की नींद खुली तो शाम के पाँच बज रहे थे. दोपहर को लंच में सैंडविच खाकर वह कुछ आराम करने के लिए बिस्तर पर लेटा था. उसके बाद कब उसे नींद आ गई, उसे पता ही नहीं चला. नींद खुलने पर मोहित कुछ देर तो बिस्तर में पड़ा रहा. ड्राइंगरूम से टी.वी. की आवाज़ आ रही थी. शांतिबाई टी.वी. देख रही होगी - उसने सोचा. ...Read More
खुशियों की आहट - 3
अगली सुबह मोहित की नींद अपने आप ही खुल गई. उसने खिड़की से बाहर की ओर देखा. आसमान में हल्का-हल्का अंधेरा था. आज इतवार का दिन था, इसलिए मम्मी-पापा की ऑफिस की छुट्टी थी. तभी उसे याद आया कि मम्मी ने तो उसे कल बताया था कि पापा शनिवार और इतवार को पूरा दिन कोचिंग कॉलेज में पढ़ाने जाया करेंगे. 'इसका मतलब आज भी पापा सुबह के गए हुए रात को काफ़ी देर से वापिस आएंगे.' अचानक यह बात उसके दिमाग़ में आई. यह सोचते ही उसका मन न जाने कैसा-कैसा-सा हो आया. ...Read More
खुशियों की आहट - 4
'खाना लगा दूँ मोहित?' मोहित अपना होमवर्क करने में व्यस्त था, जब उसे शांतिबाई की आवाज़ सुनाई दी. 'हाँ, लगा मोहित ने कहा और फिर अपनी स्कूल कॉपी में लिखने लगा. 'आज छुट्टी के दिन भी अकेले ही खाना खाना पड़ेगा.' यही बात मोहित के मन में बार-बार आ रही थी. वैसे अकेले खाना खाना उसके लिए कोई नई बात नहीं थी. ऐसा तो उसके साथ अक्सर होता रहता था. ...Read More
खुशियों की आहट - 5
मोहित का अंदाज़ा ग़लत निकला. चाय-नाश्ते के बाद मोहित ने कुमुद आंटी को अपनी कविताएँ सुनाईं. फिर मम्मी कपड़े नए सिरे से तैयार होने में लग गईं. मोहित ने उनके कमरे में जाकर उनसे पूछा, 'आप फिर से जा रही हो मम्मी कहीं?' 'हाँ, बेटे. ये कुमुद आंटी आई हैं न, इन्हें डिनर करवाने ले जा रही हूँ.' मम्मी ने लिपस्टिक लगाते-लगाते कहा. ...Read More
खुशियों की आहट - 6
दोपहर बाद मोहित स्कूल से वापिस आया तो उसका मुँह उतरा हुआ था. उसका मैथ्स का टैस्ट कुछ ख़ास नहीं हुआ था. दो-तीन प्रश्न तो वही आए थे, जो उसे मुश्किल लग रहे थे और जो वह सुबह पापा से समझ नहीं पाया था. रह-रहकर उसके दिमाग़ में यही बात आ रही थी कि अगर पापा ने उसे वे सवाल शनिवार या रविवार को समझा दिए होते तो उसका टैस्ट काफी अच्छा हुआ होता. पर पापा तो इन दोनों दिनों में कोचिंग कॉलेज में दूसरे बच्चों को पढ़ा रहे थे. ...Read More
खुशियों की आहट - 7
अगले दिन शाम के छह बजे के आसपास मोहित क्रिकेट खेलने जाने के लिए तैयार हो ही रहा था दरवाज़े की घंटी बजी. कुछ पल बाद दरवाज़ा खोलने की आवाज़ आई. 'कौन हो सकता है?' मोहित के मन में सवाल उभरा. तभी उसे पापा की आवाज़ सुनाई दी. 'पापा! इस समय!' वह चौंक पड़ा. अपने कमरे से बाहर निकलकर वह ड्राइंगरुम में आया. सिर्फ़ पापा ही नहीं मम्मी भी थीं. पापा ने एक डिब्बा पकड़ा हुआ था. मोहित उन दोनों की तरफ़ बढ़ने लगा. ...Read More
खुशियों की आहट - 8
कनॉट प्लेस से घर वापिस आते हुए वे रास्ते भर चुप ही रहे, क्योंकि पापा तेज़ी से गाड़ी चला थे. कनॉट प्लेस में खाना खाते, खरीद्दारी करते और इधर-उधर घूमते हुए काफ़ी समय निकल गया था. इस कारण पापा को ट्यूशन पढ़ाने जाने के लिए कुछ देर हो गई थी. जैसे ही वे लोग घर के पास पहुँचे, पापा ने मम्मी और मोहित को गाड़ी से उतारा और ख़ुद वहीं से ट्यूशन के लिए चले गए. ...Read More
खुशियों की आहट - 9
अगले दिन शनिवार था. स्कूल से वापिस आते हुए मोहित सोच रहा था मैथ्स का टैस्ट तो उसका अच्छा हुआ था, पर हिन्दी के टैस्ट में अच्छे नम्बर लाने ही हैं. पिछले सोमवार को हुए मैथ्स के टैस्ट के नम्बर उसे आज पता चल गए थे. दस में से सिर्फ़ पाँच अंक ही आए थे उसके. 'मम्मी-पापा को कैसे बता पाएगा वह कि इतने कम माक्र्स (अंक) आए हैं इस बार'- यही बात उसके मन में बार-बार आ रही थी. 'मगर कुछ भी हो, हिन्दी के टैस्ट के लिए वह बहुत मेहनत करेगा और अच्छे मार्क्स लेकर ही दिखाएगा.' ...Read More
खुशियों की आहट - 10
तभी पापा भी नहाकर आ गए. मम्मी को देखकर बोले, 'आ गईं तुम? बड़ी देर लग गई.' 'हाँ, एक तो शुरू ही देर से हुआ. लड़के वाले देर से आए थे. इसलिए डिनर भी देर से शुरू हुआ.' मम्मी ने जवाब दिया. फिर जैसे अचानक कुछ याद आ गया हो, 'अरे, आपको पता है मिसेज़ खन्ना की गाड़ी ड्राइवर चलाकर लाया था.' ...Read More
खुशियों की आहट - 11
'उठो बेटू, खाना खा लो.' मोहित की नींद मम्मी के इन शब्दों से खुली. मम्मी उसका कंधा झिंझोड़कर उसे रही थीं. मोहित बिस्तर से उठ बैठा और मम्मी से कहने लगा, 'पढ़ते-पढ़ते थक गया था मम्मी. थोड़ा आराम करने लेटा तो नींद ही आ गई.' 'कोई बात नहीं बेटू, चलो खाना खा लो.' मम्मी ने पुचकारते-से स्वर में कहा. ...Read More
खुशियों की आहट - 12
समय इसी तरह बीतता रहा. मोहित के पापा की ज़िन्दगी इसी तरह दफ्तर, ट्यूशनों और कोचिंग कॉलेज के आसपास रही. मम्मी इसी तरह दफ्तर की नौकरी के साथ कविताओं और कवि सम्मेलनों की दुनिया में मगन रही. गाड़ी का ड्राइवर रख लिया गया. उसकी तनख़्वाह का इन्तज़ाम करने के लिए पापा एक और ट्यूशन पढ़ाने लगे और रात को साढ़े नौ बजे के बदले साढ़े दस बजे घर लौटने लगे. ...Read More