पतीली से गिलास में चाय छान कर सबको थमा आई थी पर मुकेश कहीं नहीं दिख रहा था, वह उसको ढूँढ़ती हुई बाहर कोठरी की ओर चल दी, “बाबू !” आवाज लगाई उसने, कोठरी का किवाड़ उड़का था, धक्का दे कर भीतर आ गई.. अभी तक सो रहे थे बाबू “का जी ! आप अभी तक सो रहे हैं..चलिए उठिए..घाम माथे पर चढ़ गया है.. ” कुनमुना कर करवट बदल लिया उसने, .
Full Novel
और,, सिद्धार्थ बैरागी हो गया - 1
पतीली से गिलास में चाय छान कर सबको थमा आई थी पर मुकेश कहीं नहीं दिख रहा था, वह ढूँढ़ती हुई बाहर कोठरी की ओर चल दी, “बाबू !” आवाज लगाई उसने, कोठरी का किवाड़ उड़का था, धक्का दे कर भीतर आ गई.. अभी तक सो रहे थे बाबू “का जी ! आप अभी तक सो रहे हैं..चलिए उठिए..घाम माथे पर चढ़ गया है.. ” कुनमुना कर करवट बदल लिया उसने, . ...Read More
और,, सिद्धार्थ बैरागी हो गया - 2
ताप आज फिर बढ़ने लगा था..देह बथ रहा था पर आज कोई उसकी सुध लेने वाला नहीं था, वह थी करवट बदल कर सोने की कोशिश करती है बगीचे में सियार की हूँआ-हूँआ रात के सन्नाटे को चीरती हुयी दूर तक जा रही थी पर उसका मन आतीत के सफर से वापस आ चुका था, आँखें अब भी बह रहीं थीं ...Read More
और,, सिद्धार्थ बैरागी हो गया - 3
गद्बेरी का समय है सुन्दरी ढिबरी जला कर सभी कमरों में दिखाती हुई बाहर के चौखट के पास रख सूने आँखों से कोठरी की ओर देखती है मन आज कुछ व्याकुल सा है ना जने क्यों किसी भी कार्य में उनका जी नहीं लग रहा है इस भरे-पुरे घर में भी वह नितांत अकेलापन महसूस करती है इसी लिए वह अपने को घर के कार्यों में झोंके रहती है ताकि उसे अकेला पा कर उसके भीतर का सूनापन उन पर हावी ना हो जाय पर वह आज हावी हो रहा है और वह उसे रोक नहीं पा रहीं ...Read More
और,, सिद्धार्थ बैरागी हो गया - 4
सुन्दरी सम्मोहित सी अपलक स्वामी जी को निहार रही थी, उसे क्या हो रहा था ? स्वामी जी को कर मन और भी व्याकुल क्यों हो रहा था ? वह तो यहाँ पर मन की शान्ति के लिए आई थी पर यहाँ आ कर तो उसकी पीड़ा और भी बढ़ गई थी हे ईश्वर ! ये मुझे क्या हो रहा है ? स्वामी जी बैरागी हैं और मै भी तो वैधव्य का जीवन जी रही हूँ फिर ये मुझे क्या हो रहा है ? स्वामी जी की मुखाकृति कुछ जानी पहचानी, देखी हुई-सी क्यूँ लग रही है वह उनके चेहर से अपनी नज़रें हटा लेती है कि कहीं स्वामी जी ने अपनी आँखे खोल ली तो वह उसके मनोभाव समझ ना जाएँ ...Read More