मन्नू की वह एक रात

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बरसों बाद अपनी छोटी बहन को पाकर मन्नू चाची फिर अपनी पोथी खोल बैठी थीं। छोटी बहन बिब्बो सवेरे ही बस से आई थी। आई क्या थी सच तो यह था कि बेटों-बहुओं की आए दिन की किच-किच से ऊब कर घर छोड़ आई थी। और बड़ी बहन के यहां इसलिए आई क्योंकि वह पिछले एक बरस से अकेली ही रह रही थी। वह थी तो बड़ी बहन से करीब पांच बरस छोटी मगर देखने में बड़ी बहन से दो-चार बरस बड़ी ही लगती थी। मन्नू जहां पैंसठ की उम्र में भी पचपन से ज़्यादा की नहीं दिखती थी वहीं वह करीब साठ की उम्र में ही पैंसठ की लगती थी। चलना फिरना दूभर था। सुलतानपुर से किसी परिचित कंडेक्टर की सहायता से जैसे तैसे आई थी। मिलते ही दोनों बहनें गले मिलीं और फ़फक पड़ीं। इसके पहले उन्हें किसी ने इस तरह भावुक होते और मिलते नहीं देखा था।

Full Novel

1

मन्नू की वह एक रात - 1

बरसों बाद अपनी छोटी बहन को पाकर मन्नू चाची फिर अपनी पोथी खोल बैठी थीं। छोटी बहन बिब्बो सवेरे बस से आई थी। आई क्या थी सच तो यह था कि बेटों-बहुओं की आए दिन की किच-किच से ऊब कर घर छोड़ आई थी। और बड़ी बहन के यहां इसलिए आई क्योंकि वह पिछले एक बरस से अकेली ही रह रही थी। वह थी तो बड़ी बहन से करीब पांच बरस छोटी मगर देखने में बड़ी बहन से दो-चार बरस बड़ी ही लगती थी। मन्नू जहां पैंसठ की उम्र में भी पचपन से ज़्यादा की नहीं दिखती थी वहीं वह करीब साठ की उम्र में ही पैंसठ की लगती थी। चलना फिरना दूभर था। सुलतानपुर से किसी परिचित कंडेक्टर की सहायता से जैसे तैसे आई थी। मिलते ही दोनों बहनें गले मिलीं और फ़फक पड़ीं। इसके पहले उन्हें किसी ने इस तरह भावुक होते और मिलते नहीं देखा था। ...Read More

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मन्नू की वह एक रात - 2

‘बिब्बो मेरी शादी कैसे हुई यह तो तुम्हें याद ही होगा ? पैरों की तीन अंगुलिया कटी होने के जब शादी होने में मुश्किल होने लगी तो बाबू जी परेशान हो उठे। ऊपर से दहेज की डिमांड उन्हें और भी तोड़ देती थी। धीरे-धीरे जब मैं तीस की हो गई तो वह हार मान बैठे और एक दिन मां से कहा, ...Read More

3

मन्नू की वह एक रात - 3

मुझे तुमसे बहुत शिकायत है मुन्नी वह मुझे मुन्नी ही कहती थीं। अचानक कही गई उनकी इस से मैं एकदम हक्का-बक्का हो गई, मैंने डर से थर-थराते हुए धीरे से कहा, ’अनजाने में कोई गलती हुई हो तो माफ कर दीजिए अम्मा जी।’ अब जाने में कुछ हो या अनजाने में यह तो तुम्हीं जानो। मैं तो नौ महीने में ही पोते को खिलाना चाहती थी। तुम से जाते समय कहा भी था मगर साल बीत गए पोता कौन कहे कान खुशखबरी भी सुनने को तरस गए। माना कि तुम लोग नए जमाने के हो। फैशन के दिवाने हो। मगर लड़का-बच्चा समय से हो जाएं तो ही अच्छा है। ...Read More

4

मन्नू की वह एक रात - 4

‘बिब्बो मैं बच्चे की चाहत में इतनी पगलाई हुई थी कि इनके जाने के बाद थोड़ी देर में ही हो गई। पहले सोचा कि पड़ोसन को साथ ले लूं लेकिन फिर सोचा नहीं इससे हमारी पर्सनल बातें मुहल्ले भर में फैल जाएंगी। चर्चा का विषय बन जाएंगी। यह सोच मैं अकेली ही चली गई बलरामपुर हॉस्पिटल की गाइनीकोलॉजिस्ट से चेकअप कराने। लेकिन वहां पता चला वह तो दो हफ़्ते के लिए देश से कहीं बाहर गई हैं। मुझे बड़ी निराशा हुई, गुस्सा भी आई कि यह डॉक्टर्स इतनी लंबी छुट्टी पर क्यों चली जाती हैं। ...Read More

5

मन्नू की वह एक रात - 5

‘जल्दी अंधेरा करो, जल्दी अंधेरा करो।’ हम कुछ नहीं समझ सके तो उसने खिड़की दरवाजे बंद करके पर्दे से ढक को कहा। मकान तो देख ही रही हो कि तीन तरफ दूसरे मकान बने हैं। रोशनी आने का रास्ता सिर्फ़ सामने से है। और सबसे पीछे कमरे में तो अंधेरा ऐसे हो जाता है मानो रात हो गई हो। हम पीछे वाले कमरे में ही थे। उसने हम दोनों को करीब बुलाया और फिर धीरे-धीरे अपनी मुट्ठी खोली तो उसकी हथेली पर उस अंधेरे में कुछ चमक रहा था। महक भी कुछ अजीब सी आ रही थी। वह महक दीपावली की न जाने क्यों याद दिला रही थी। फिर उसने कहा, ...Read More

6

मन्नू की वह एक रात - 6

'‘ले तेरी मंशा अब पूरी हो जाएगी। इसे अपने संतान उत्पन्न करने वाले स्थान पर सात बार आधा प्रवेश और निकालो फिर सारी बाधाएं दूर हो जाएंगी। नौ महीने में ही तेरी गोद में बच्चा किलकारी भरेगा।'’ मैं बाबा की बात का मतलब समझ न पाई और हक्का-बक्का देखती रही तो वह गरज उठा ‘'देवी के आदेशों का अपमान करेगी तो अगले और दस जन्मों तक निसंतान ही रहेगी।'’ ...Read More

7

मन्नू की वह एक रात - 7

‘मगर दीदी तुम ने तो घर में भाइयों से भी ज़्यादा पढ़ाई की है। बहुत तेज होने के कारण बाबूजी तुम्हें हॉस्टल में रह कर पढ़ने देने के लिए लखनऊ भेजने को तैयार हुए थे। उनके इस निर्णय से चाचा-चाची यहां तक कि मां भी मुझे लगता है पूरी तरह सहमत नहीं थीं। मुहल्ले में लोगों ने जो तरह-तरह की बातें कीं वह अलग। और शादी के बाद जीजा ने रोका न होता तो तुम पी0एच0डी0 पूरी कर लेती। इतना कुछ तुमने पढ़ा फिर तुम से कैसे अनर्थ हो गया। मैं सोचती हूं कि बहुत ज़्यादा पढ़ाई भी हमें भटका देती है।’ ...Read More

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मन्नू की वह एक रात - 8

‘सही कह रही हो तुम। घर-परिवार लड़कों-बच्चों में अपना सब कुछ बिसर जाता है। मगर ये मानती हूं तुम्हारी पर कोई ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ा है। इसलिए छत वाली घटना तुम्हीं बताओ मेरे दिमाग में तो बात एकदम नहीं आ रही है।’ ‘अच्छा तो याद कर वह जेठ की दोपहरी ...... । और सामने वाले घर का चबूतरा। जहां मुहल्ले के उद्दंड लड़के छाया के नीचे अ़क्सर बैठ कर ताश वगैरह खेलते रहते थे, या बैठ कर गप्पे मारा करते थे। आए दिन सब आपस में भिड़ भी जाते थे। उस समय तू यही कोई नवीं या दसवीं में रही होगी।’ ...Read More

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मन्नू की वह एक रात - 9

‘मगर वो ऐसा क्या कर रहा था?’ ‘बताती हूं , वह कुर्सी पर बैठा था। मेज पर कोर्स की किताब पड़ी थी। और ठीक उसी के ऊपर एक पतली सी छोटी सी किताब खुली पड़ी थी। चीनू ने कुर्सी थोड़ा पीछे खिसका रखी थी। उसने बनियान उतार दी थी। ट्रैक सूट टाइप का जो पजामा पहन रखा था वह उसकी जांघों से नीचे तक खिसका हुआ था। वह अपने आस-पास से एकदम बेखबर सिर थोड़ा सा ऊपर उठाए आंखें करीब बंद किए हुए था और दाहिने हाथ से पुरुष अंग को पकड़े तेजी से हाथ चला रहा था। उसकी हरकत देख कर मुझे बड़ी तेज गुस्सा आ गया और मैं इस स्थिति में बजाय चुपचाप वापस आने के एक दम से दरवाजा खोल कर अंदर पहुंच गई। ...Read More

10

मन्नू की वह एक रात - 10

‘पहली तो यही कि जब कपड़े चेंज करने का वक़्त आया तो कमरे में कोई सेपरेट जगह नहीं देख मैं और नंदिता अपने कपड़े लेकर बाथरूम की तरफ जाने लगे। तो काकी ने पूछा, '‘कहां जा रही हो?'’ हमने कहा ‘कपड़े चेंज करके आ रही हूं।’ '‘तो बाहर जाने की क्या ज़रूरत है?’' उसकी इस बात से मैं और नंदिता चुप-चाप उसे देखते रहे तो वह बोली, '‘यहीं क्यों नहीं चेंज करती। हम सब भी यहीं करते हैं। ये कमरा है, कोई चौराहा नहीं कि लोग तुम्हारी देख लेंगे।'’ तभी रुबाना बीच में बोली, ...Read More

11

मन्नू की वह एक रात - 11

‘अब यह तो मैं बहुत साफ-साफ समझा नहीं पाऊंगी। शायद वह छात्र रहते हुए यह सब कर रहा था। रुबाना वाली घटना भी मेरे छात्र जीवन की थी। इस समानता ने ही शायद एकदम से याद दिला दी रुबाना की।’ ‘तो चीनू की हरकत तुमने जीजा से नहीं बताई।’ ...Read More

12

मन्नू की वह एक रात - 12

मैं वास्तव में उसके कहने से पहले ही चुप हो जाने का निर्णय कर चुकी थी। क्यों कि मेरे में यह बात थी कि इन्हें अभी ऑफ़िस जाना है, फिर शाम को दो हफ़्तों के लिए बंबई। इसलिए यह वक़्त ऐसी बातों के लिए उचित नहीं है। मैंने यह सब करके गलत किया। यह बात दिमाग में आते ही मैं एकदम चुप हो गई। यह इसके बाद भी कुछ देर बड़बड़ाते रहे। फिर चले गए। ...Read More

13

मन्नू की वह एक रात - 13

यह सोचते-सोचते मुझे हर तरफ से ज़िंदगी में अंधेरा ही अंधेरा नजर आ रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे वह चुड़ैल मुझ पर हंस रही है कि देख तेरा आदमी मेरे तलवे चाट रहा है, छीन लिया मैंने उसे तुझसे, तू मूर्ख है, हारी हुई बेवकूफ औरत है। मैं बेड पर एक कोने में बैठी घुटने में सिर दिए यह सोचते-सोचते रोने लगी। भावनाओं में डूबती-उतराती मेरे रोने की आवाज़़ कब तेज होकर ऊपर चीनू तक पहुँचने लगी मैं जान नहीं पाई। पता मुझे तब चला जब वह आकर आगे खड़ा हो गया और चुप कराते हुए बोला, ...Read More

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मन्नू की वह एक रात - 14

उसका उत्तर सुन कर मैं फिर अपने कमरे में आ गई। आते ही मैंने तेज लाइट ऑफ कर दी नाइट लैंप ऑन कर दिया और बेड के पास आकर खड़ी हो गई। नजरें मेरी उस कम रोशनी में भी जमीन देख रही थीं। अपने पैरों के करीब ही। तभी चीनू कमरे में दाखिल हुआ। मैं सोच रही थी कि वह डरा सहमा संकोच में कुछ सिकुड़ा सा होगा। लेकिन नहीं ऐसा नहीं था उस पर कोई ख़ास फ़र्क नहीं था। ...Read More

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मन्नू की वह एक रात - 15

‘तो फिर क्या तुमने फिर अपने को सौंप दिया उस सुअर को।’ ‘बिब्बो और कोई रास्ता बचा था क्या मेरे भगवान! क्या यही सब सुनवाने के लिए जिंदा रखा है मुझे। अरे! तुम चाहती तो रास्ता ही रास्ता निकल आता। चाहने पर क्या नहीं हो सकता। अरे! इतनी कमजोर तो उस वक़्त नहीं रही होगी कि एक छोकरे से खुद को न बचा पाती। अरे! एक लात मार कर उस हरामजादे को बेड से कुत्ते की तरह बाहर कर सकती थी।’ ...Read More

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मन्नू की वह एक रात - 16

इसके बाद हमारी दो चार बातें और हुईं। लेकिन उन सारी बातों से मुझे पूरी उम्मीद हो गई थी आते ही मैं अपनी योजनानुसार बहुत कुछ कर सकुंगी। न जानें क्यों मेरे दिमाग में यह कूट-कूट भर गया था कि मैं कुछ ही हफ़्तों में प्रिग्नेंट हो जाऊंगी। अब एक-एक पल जहां मुझे एक-एक बरस लग रहा था। वहीं मैं हर संभव कोशिश कर रही थी कि गर्भवती हर हाल में हो जाऊं। कोई कसर कहीं बाकी न रह जाए। अब जब क़दम बढ़ा है, उठ ही गए हैं तो क्यों न उसका फायदा उठाया जाए। अपनी सूनी गोद को हरा-भरा किया जाए। फिर इससे किसी को नुकसान तो हो नहीं रहा है। हालांकि अब यह सब मुझे एक पागलपन से अधिक कुछ नहीं लग रहा।’ ...Read More

17

मन्नू की वह एक रात - 17

‘पलक-पांवड़े बिछाए जिसका इंतजार करती रही वह जब आया तो पहले की ही तरह फिर गाली, दुत्कार अपमान मिला।’ ‘पहले दिन में ?’ ‘हां ..... पहले ही दिन में। जब आए तो रात को मैंने सोचा कि लंबे सफर से आए हैं सो उनकी देवता की तरह खातिरदारी की। मगर उनका रूखा व्यवहार ज्यों का त्यों बना रहा। बंबई से फ़ोन पर ठीक से बात शायद उस कमीनी के सामने होने की वजह से कर ली थी। खैर रात मैंने यह सोच कर इनके बदन की खूब मालिश की कि लंबे सफर के कारण बहुत थक गए होंगे इससे इन्हें आराम मिलेगा। फिर बजाय मैं पहले की तरह दूसरे कमरे में जाने के इन्हीं के साथ लेट गई।’ ...Read More

18

मन्नू की वह एक रात - 18

ज़िया की इस बात से मैं सिहर उठी। कांप गई अंदर तक कि चीनू ने सब बता दिया है। मुझे ज़िया के सामने एकदम नंगी कर दिया है। मुझे अपनी नजरों के सामने फांसी का फंदा झूलता नजर आने लगा था। क्योंकि मैं यह ठाने बैठी थी कि अगर चीनू ने किसी को भी बताया तो मैं ज़िंदा नहीं रहूंगी। आत्महत्या कर लूँगी । मैं इस ऊहा-पोह के चलते कुछ क्षण तक कुछ न बोल पाई तो ज़िया फिर बोली, ...Read More

19

मन्नू की वह एक रात - 19

‘बताऊं क्यों नहीं, जब एक बार शुरू कर दिया है तो पूरा बता कर ही ठहर पाऊंगी। जैसे एक चीनू के सामने फैली तो बरसों फैलती ही रही।’ ‘क्या! बरसों।’ ‘हां यह सिलसिला फिर कई बरस चला। शुरू के कुछ महीने तो एक आस रहती थी कि शायद इस बार बीज उगेंगे, कोंपलें फूटेंगी। मगर धीर-धीरे यह आस समाप्त हो गई। हर महीने पीरिएड आकर मुझ को अंदर तक झकझोर देता। मेरे अंदर कुंठा भरती जा रही थी। और तब गांव की पंडिताइन चाची की बात याद आती जो वह अपनी बड़ी बहुरिया जिसके लाख दवादारू के बाद भी कोई बच्चा नहीं हुआ था, कोसती हुई कहती थीं कि ‘'अरे! ठूंठ मां कहूं फल लागत है।' या फिर 'रेहू मां कितनेऊ नीक बीज डारि देऊ ऊ भसम होइ जाई। अरे! जब बिजवै जरि जाई तो फसल कहां से उगिहे।'’ ...Read More

20

मन्नू की वह एक रात - 20

‘तब तो तुम दोनों के संबंध और भी ज़्यादा उन्मुक्त और निर्द्वंद्व हो गए होंगे।’ ‘हां ..... ।’ ‘तो जब वह दोनों का सहारा भी बन रहा था तब तो तुम्हारे लिए यह दोहरा फ़ायदा था कि कोई कभी शक भी न करता, तो फिर दूसरा लड़का क्यों गोद लिया।’ ‘एक तो मैं छोटा बच्चा गोद लेना चाहती थी। दूसरे चीनू से जो रिश्ता बन पड़ा था उसे देखते हुए यह संभव ही न था।’ ‘हां ये तो है। फिर ...... ?’ ...Read More

21

मन्नू की वह एक रात - 21

‘अच्छा जब तुमने बच्चे को गोद ले लिया तो उसके बाद चीनू से किस तरह पेश आई। जबकि तुम्हारे मुताबिक यदि वह जी-जान से न लगता तो तुम्हें बच्चा गोद मिल ही नहीं सकता था।’ ‘हां बिब्बो यह बात एकदम सच है। जिस तरह से तरह-तरह की अड़चनें आईं उससे यह क्या मैं भी खुद त्रस्त हो गई थी। हार मान बैठी थी। इन्होंने तो एक तरह से मुंह ही मोड़ लिया था। मगर वह न सिर्फ़ बराबर लगा रहा बल्कि हमें उत्साहित भी करता रहा। यह उसके प्रयास से ही संभव बन पड़ा।’ ...Read More

22

मन्नू की वह एक रात - 22

‘मगर बच्चा गोद लेकर संतान वाली तो हो ही गई थी। और आगे का भविष्य क्या है यह भी गई थी। मैं ऐसा नहीं कह रही कि तुम पति को भी संतान भाव में लेती। तुम उनके साथ जितना वासना का खेल-खेल सकती थी खेलती पर उस छोकरे के साथ तो नहीं। जबकि तुम बता रही हो कि बच्चा लेने के बाद तुम्हारा मन सेक्स की तरफ और मुड़ गया क्योंकि जीजा और तुम्हारे बीच कटुता तो खत्म हो गई थी लेकिन अब सेक्स के प्रति वो उतना उतावले नहीं थे जितना कि तुम। दूसरे अब बीच में बच्चा आ गया था और वह उसकी तरफ ज़्यादा खिंच गए थे। ...Read More

23

मन्नू की वह एक रात - 23

‘यह क्या फालतू बात कर रहे हो। मुझ बुढ़िया से शादी करोगे।’ इस पर वह बोला, ‘फालतू बात नहीं कर रहा जो कह रहा हूं सच कह रहा हूं। इतना कह कर उसने अपना सिर मेरी गोद में रख दिया। फिर रो पड़ा। उसके दोनों हाथ अब मेरी कमर के गिर्द लिपटे थे। उसके गर्म आंसू मेरे पेट को गीला किए जा रहे थे। मैं इस अप्रत्याशित घटना से एकदम हतप्रभ थी। मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी कि ये क्या हो रहा है। ये नई मुशीबत क्या है ? इस लड़के को क्या हो गया है ? पगला गया है, मुझ से शादी करने के लिए बोल रहा है। काफी सोचती-विचारती रही। वह मेरे पेट को गीला किए जा रहा था। ...Read More

24

मन्नू की वह एक रात - 24

मेरी यह दलील सुन कर चीनू एक बार फिर भड़क गया। बोला, '‘शादी-शादी-शादी, दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा। तुम में मेरी शादी नहीं बल्कि अब मुझ से भी जी भर जाने के कारण पीछा छुड़ाने में लगी हो। अब तुम्हारा मतलब निकल गया है तो मुझ से बचना चाहती हो।'’ ...Read More

25

मन्नू की वह एक रात - 25

'‘मैं ऐसी लड़की से ही शादी कर सकता हूं जो मेरे सामने जब आए तो मुझे ऐसा अहसास हो सामने तुम खड़ी हो। क्योंकि तुम्हारी जैसी जो होगी उसी के साथ मैं रह पाऊंगा।'’ ‘अरे! मुझ में ऐसे कौन से सुर्खाब के पर लगे हैं जो किसी और लड़की में नहीं हैं।’ ...Read More

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मन्नू की वह एक रात - 26 - लास्ट पार्ट

‘जब मैंने अंदर देखा तो जो कुछ दिखा अंदर उससे मैं एकदम गड्मड् हो गई। सीडी प्लेयर चल रहा एक बेहद उत्तेजक ब्लू फ़िल्म चल रही थी। और यह दोनों भी एकदम निर्वस्त्र थे। आपस में प्यार करते अजीब-अजीब सी हरकतें करते जा रहे थे। काफी कुछ वैसा ही कर रहे थे जैसा उस फ़िल्म में चल रहा था। दोनों में कोई संकोच नहीं था। बल्कि अनिकेत से ज़्यादा बहू बेशर्म बनी हुई थी। उसकी आक्रमकता के सामने मुझे अनिकेत कहीं ज़्यादा कमजोर दिखाई पड़ रहा था। दोनों सेक्स के प्रचंड तुफान से गुजर रहे थे। मैं हतप्रभ सी देख रही थी। ...Read More