घंटाभर चलकर बस रुकती है। मैं और राणा हैरान-से होकर उतरते हैं कि यह भला कौन-सी जगह हुई। बिल्कुल अनजान-सी। सोचते हैं कि कंडक्टर ने हमें सही जगह ही उतारा होगा। वह जानता था कि हमें बालमपुर जाना है। एक तरफ नहर बह रही थी और दूसरी तरह बारीक-सा कच्चा रास्ता, जिस पर सिर्फ़ एक वाहन ही निकल सकता था। यहाँ न किसी बस के रुकने के लिए अड्डा है, न ही कोई आदमी है और न आदमी का निशान। बियाबान की धूप। सब कुछ यूँ स्थिर, रूका हुआ मानो कभी हवा चली ही न हो। इतनी गरमी और ऊपर से हमारे पहने हुए वकीलों वाले काले कोट और नंगे सिर। नज़दीक कोई दरख़्त भी नहीं कि उसके नीचे खड़े हो सकें। मैं कहता हूँ -
Full Novel
दस दरवाज़े - 1
घंटाभर चलकर बस रुकती है। मैं और राणा हैरान-से होकर उतरते हैं कि यह भला कौन-सी जगह हुई। बिल्कुल सोचते हैं कि कंडक्टर ने हमें सही जगह ही उतारा होगा। वह जानता था कि हमें बालमपुर जाना है। एक तरफ नहर बह रही थी और दूसरी तरह बारीक-सा कच्चा रास्ता, जिस पर सिर्फ़ एक वाहन ही निकल सकता था। यहाँ न किसी बस के रुकने के लिए अड्डा है, न ही कोई आदमी है और न आदमी का निशान। बियाबान की धूप। सब कुछ यूँ स्थिर, रूका हुआ मानो कभी हवा चली ही न हो। इतनी गरमी और ऊपर से हमारे पहने हुए वकीलों वाले काले कोट और नंगे सिर। नज़दीक कोई दरख़्त भी नहीं कि उसके नीचे खड़े हो सकें। मैं कहता हूँ - ...Read More
दस दरवाज़े - 2
रेणुका देवी। एडवोकेट रेणुका देवी। इन्द्रेश शर्मा के साथ उसकी जूनियर बनकर कचेहरी में आती है। मेरी सीट इन्द्रेश के बिल्कुल बराबर है। शर्मा का मुंशी बलदेव बहुत तेज़ लड़का है। शर्मा का ही रिश्तेदार है। वह बताता है कि हमारे परिवार में जो कोई पढ़-लिख जाता है, वकील बन जाता है और जो नहीं पढ़ पाता, वह मुंशी। कचेहरी में इन शर्माओं का ज़ोर है। इन्द्रेश शर्मा चंडीगढ़ भी प्रैक्टिस करता है, तीन दिन चंडीगढ़ और दो दिन यहाँ। रेणुका देवी को उसका कोई परिचित उससे मिलवाता है। राजेश और रेणुका देवी इस शर्मा परिवार के ही किसी घर में किराये पर रहते हैं। ...Read More
दस दरवाज़े - 3
कचेहरी में मैं उससे दूर रहने की कोशिश करता हूँ। वह भी समझती है और बिना मतलब बात नहीं मेरे दोस्त उसका नाम लेकर मुझसे हल्के मजाक करते रहते हैं। उसका पति राजेश कभी कभार कचेहरी आ जाया करता है। यद्यपि वह शांत स्वभाव का व्यक्ति है, पर अक्सर अपने खानदान के बारे में बातें करने लगता है। अपने घर में होती रस्मों के विषय मे बताता रहता है और अपने गाँव आने के निमंत्रण देता रहता है। अपने परिवार के शेष सदस्यों से मिलने के भी। एक दिन कहता है - ...Read More
दस दरवाज़े - 4
स्ट्रैथम का इलाका है। शाम का झुटपुटा, ऊपर से कड़ाके की सर्दी। मैं रॉयल एस्टेट में से हाईंड हाउस खोज रहा हूँ। यही बताया है मागला ने कि हाईंड हाउस के बहत्तर नंबर फ्लैट में नसोरा रहती है। पच्चीस इमारतों की एस्टेट में से पहले तो हाईंड हाउस ढूँढ़ना ही कठिन पड़ता है। चारों ओर काले रंग के लड़के-लड़कियाँ मेरी अजनबी-सी कार की ओर घूर घूरकर देख रहे हैं। मेरी ओर इशारे-से करते हुए आपस में बात भी कर रहे हैं। ...Read More
दस दरवाज़े - 5
एक दिन नसोरा मुझसे कहती है - “तेरी बात सच है कि अकेले रहना बहुत कठिन होता है।“ “नसोरा, अगर कहे किसी लड़के को तुझसे मिलवाऊँ?“ “लवी, मुझे लड़कों की कमी नहीं, मेरे इर्दगिर्द बहुत लड़के हैं।“ “जिस लड़के की मैं बात कर रहा हूँ, वह उनसे अलग है। वो तुझे बहुत खुश रखेगा।“ ...Read More
दस दरवाज़े - 6
नसोरा को लेकर नवतेज तथा अन्य मित्र मुझ पर फब्तियाँ कसने लगते हैं, पर मैं उनकी परवाह नहीं करता। के साथ मेरी मित्रता चल निकलती है। अब हम अवकाश के दिन कहीं न कहीं घूमने चले जाया करते हैं। कई बार वह मेरे किराये के कमरे में भी आ जाया करती है। हम खुलकर एक-दूसरे से बात कर सकते हैं। वह अब मेरे इतना करीब हो चुकी है कि मोहन लाल वाली बात करना इस मित्रता के लिए अपमानजनक बात दिखाई देती है। ...Read More
दस दरवाज़े - 7
पैडिंग्टन के इलाके का ख़ास पब - ‘द ग्रे हाउंड’। मैं और ऐनिया एक तरफ बैठे पी रहे हैं। पास बियर है और ऐनिया के पास जूस ही है। मैं इस पब में पहले भी एक बार आ चुका हूँ, सैम के साथ। आज मैं सैम के साथ नहीं, सैम के लिए आया हूँ। सैम यहीं हर शाम बियर पीने आया करता है। ऐनिया की नीली आँखों पर नील पड़े हुए हैं और माथे पर भी चोटों के निशान हैं। जिस्म के अन्य हिस्सों पर भी। यह तीसरी बार है जब ऐनिया मुझे इस हालत में मिली है। ऐनिया सैम की हिंसा का लगातार शिकार हो रही है। ...Read More
दस दरवाज़े - 8
ऐनिया के साथ मेरी निकटता दिन-ब-दिन बढ़ने लगती है। हम बहुत-सी रातें एक साथ ही गुज़ारते हैं। वह आकर घर की सफाई कर जाती है। मेरे कपड़े धोकर प्रैस करके अल्मारी में टांग जाती है। मुझे उसका सरूर-सा रहने लगता है जिसे मैंने पहले कभी महसूस नहीं किया। जगीरो के साथ पाँच साल रहने से जो पत्नी-सुख मुझे मिला है, अब कुछ कुछ ऐनिया में से मिलने लगता है। हाँ, इस सुख का रूप कुछ भिन्न है। इस रिश्ते में न कोई मेरा-तेरा है, न ही कोई दावा है, फिर भी बहुत कुछ है। ...Read More
दस दरवाज़े - 9
मैं शराब की छोटी-सी दुकान खरीद लेता हूँ। यह लंदन के बिल्कुल उत्तर में है। घर से बीस मील पड़ जाती है। दुकान में सचमुच बहुत काम करना पड़ता है। सवेरे खोलकर रात देर से बंद करता हूँ। पंद्रह से भी अधिक घंटे रोज़ाना बन जाते हैं और आगे एक घंटा घर पहुँचने में लग जाता है। बमुश्किल सोने का समय मिलता है। ऐनिया का घर तो दुकान से और भी अधिक दूर पड़ता है। वह कभी-कभी आकर मेरी मदद कर दिया करती है, पर उसको कई बसें, गाड़ियाँ बदलकर पहुँचना पड़ता है। फिर उसको वेअन को स्कूल से भी लेना होता है। उसे अपने घर का काम भी करना होता है और मेरे घर का भी। ...Read More
दस दरवाज़े - 10
बैटरसी, लंदन का महत्वपूर्ण इलाका है। यहाँ बड़े-बड़े दफ़्तर है, स्टोर हैं और दुनिया के खूबसूरत फूलों वाला पॉर्क है। बैटरसी के इलाके की स्विंग रोड भी काफ़ी प्रसिद्ध है। यह एक तरफ दरिया थेम्स को आ लगती है, दूसरी तरफ लंदन की प्रमुख रोड ‘ए-23’ को। इस पर घरों के दो-दो फ्लैट बनाये हुए हैं। इनमें से बहुत से फ्लैट्स काउंसिल के हैं। कभी किसी समय फ्लैट्स काउंसिल के ही रहे होंगे, पर लोगों ने कुछ फ्लैट्स खरीदकर निजी बना लिए हैं। ...Read More
दस दरवाज़े - 11
एडविना - उम्र तीस-बत्तीस साल, कद लम्बा, शरीर पतला, पर बहुत कसा हुआ। चेहरे पर एक ख़ास तरह का नए फैशन के बनाए ब्लौंड केश, कंधों तक कटे हुए, दायीं ओर कुछ ऊँचे होते होते बायीं तरफ से कुछ लम्बे। केन्द्रीय लंदन के दफ़्तर में काम करने की वजह से वह आम तौर पर पुरुषों की तरह ट्राउज़र-सूट पहनती है या फिर जैकेट और स्कर्ट। गले में हमेशा बड़ा-सा बैग होता है। उसकी चाल में एक उतावलापन होता है जो कि लंदन के दैनिक यात्रियों में आम तौर पर देखने को मिलता है। ...Read More
दस दरवाज़े - 12
मेरे स्टोर के करीब ही एक पब है। पब जाने वाले सभी लोग मेरे ग्राहक भी हैं। छोटी-मोटी वस्तु आए ही रहते हैं। मैं कभी-कभी इस पब में जा बैठता हूँ। कई बार एडविना भी मेरे साथ होती है। पब के ऊपरी चैबारे में रहने के लिए पीटर नाम का एक व्यक्ति आ जाता है। पीटर फोटोग्राफर है। चैबारे में अपना स्टुडियो खोल लेता है। एक कमरे में स्टुडियो और एक कमरे में वह स्वयं रहता है। पब में बैठते ही मेरी उससे दोस्ती बढ़ने लगती है। ...Read More
दस दरवाज़े - 13
हैमस्टड का अमीर इलाका। मैं ‘मिडल्टन बिल्डर्ज़’ कंपनी की पिकअप चलाता रूकी-लेन पर घूम रहा हूँ, पर मुझे बावन नहीं मिल रहा। यहाँ मकान की मरम्मत चल रही है और मुझे इसके लिए माल डिलीवर करना है। इस रोड के अधिकांश घरों के नंबर नहीं हैं, सिर्फ़ नाम हैं। सड़क पर कोई व्यक्ति भी दिखलाई नहीं दे रहा जिससे मैं यह पता पूछ सकूँ। कुछ देर घूमने के बाद मुझे एक लड़की जाती हुई दिखाई देती है। मेरे मुँह से अनायास निकलता है, “चिंकी !“ चीने लोगों की पहचान उनकी चाल से ही हो जाती है। ...Read More
दस दरवाज़े - 14
ये दिन मेरे लिए बोरियत भरे हैं। काम मेरे पास कोई है नहीं। इंडिया जाना चाहता हूँ ताकि विवाह लूँ, पर मैंने ब्रिटिश नागरिकता के लिए आवेदन कर रखा है जिसके कारण मेरा पासपोर्ट होम-ऑफिस में पड़ा है। पूछताछ करने पर पता चलता है कि अभी कुछ महीने और लग जाएँगे। इतने समय के लिए मुझे ओनो जैसी लड़की का साथ ज़रूरी है। ...Read More
दस दरवाज़े - 15
उसके जन्मदिन पर मैं उसको उसके घर से लेने जाता हूँ। वह सचमुच चीनी ड्रैस पहनकर आती है। मैं तरफ देखता रह जाता हूँ। वह अपना पीले रंग का लम्बा गाउन संभालती कार में बैठते हुए कहती है - “मेरे समाज में अपने पति की आज्ञा का पालन करना बहुत आवश्यक है। जो तू कहेगा, वही करूँगी।” “थैक्यू ! ” ...Read More
दस दरवाज़े - 16
हमारे घर में पहला बच्चा होने वाला है। अंजू हर समय भयभीत-सी रहती है। उसको वहम है कि कोई ही न हो जाए। छोटी-सी तकलीफ़ को बड़ी बनाकर बताती है। एक दिन हम शॉपिंग से लौटते हुए टैंटलो एवेन्यू से गुज़र रहे हैं। वह अचानक कहने लगती है - “मुझे टॉयलेट जाना है।” “यहाँ तुझे टॉयलेट कहाँ ले जाऊँ? अब घर तक वेट कर, थोड़ी सी ओर।” “जी नहीं, जल्दी!” “यहाँ न खेत, न ईंख।” कहता हुआ मैं हँसता हूँ, परंतु वह रुआंसी हुई पड़ी है। ...Read More
दस दरवाज़े - 17
एक दिन करमजीत का फोन आता है - “कैसे भाई, लगाए जाता है?” “और अब क्या करूँ।” “कोई शिकायत तो नहीं?” “शिकायत तो नहीं, पर कब तक रहेगी ये?” “जब कोई शिकायत ही नहीं तो ये सवाल क्यों पूछ रहा है?” “फिर भी, अधिक दिन तो मैं नहीं रख सकता।” ...Read More
दस दरवाज़े - 18
ऊषा के जाने के बाद घर जैसे खाली खाली सा हो गया हो। इतना खाली तो यह पहली पत्नी के जाने के बाद भी नहीं हुआ था। ऊषा के गीत अचानक मेरे कानों मे गूँजने लगते हैं। उसका बनाया खाना मुझे याद आने लगता है। मेरा दिल होता है कि फोन करके उसका पता तो करूँ, पर फिर सोचता हूँ कि उसको अपनी ससुराल में टिकी रहने दूँ। तीसरे दिन उसका फोन आ जाता है। वह कहती है - ...Read More
दस दरवाज़े - 19
हम वैंबले की विक्टोरिया रोड पर खड़े हैं। मैं नक्शा खोलकर ट्रैवलर्ज़ कैम्प दीखने जैसी जगह खोज रहा हूँ। ने ही मुझे बता रखा है कि जिप्सियों को आज की सभ्य भाषा में ट्रैवलर्ज़ कहा जाता है - सफ़र पर रहने वाले लोग। जैकलीन कार से उतर कर पैदल चले जा रहे कुछ लोगों से पूछती है, पर किसी को कुछ नहीं पता। कुछ आगे जाकर बैशली रोड पर एक गली-सी नज़र आती है। जैकलीन कहती है - ...Read More
दस दरवाज़े - 20
जब भी वक्त मिलता है, रोजमरी बातें करने लग पड़ती है। मेरी पत्नी को तो मानो वह बातें करने लिए तलाशती ही रहती है। परंतु पत्नी की अंग्रेजी कुछ कमज़ोर है इसलिए वह झिझकती रहती है। रोजमरी वूलवर्थ में काम करती है। वे दोनों माँ-बेटी अकेली ही रहती हैं। माइको शुरु-शुरू में जब कभी वह लंदन से होकर गुज़रता था तो मिलने आ जाता था, परंतु अब बहुत वर्षों से रोजमरी उसको मुँह नहीं लगाती। जैकलीन भी रोजमरी की तरह बातूनी-सी है। दोनों में से कोई एक भी यदि राह में मिल जाए तो कुछ देर खड़ी होकर बातें किए बिना आगे नहीं बढ़ती। ...Read More
दस दरवाज़े - 21
जैकलीन के यहाँ से वापस लौटकर मैं एक नए जोश में हूँ। ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो खोया कुछ मिल गया हो। धीरे-धीरे मैं सोचने लगता हूँ कि बमुश्किल तो स्त्रियों के चक्कर से बाहर निकलकर एक अच्छा गृहस्थ जीवन व्यतीत करने लगा हूँ। मैं अपने घर में बहुत खुश हूँ। जैकलीन तो मेरे शांत जीवन में खलल डाल देगी। मैं सोचता हूँ कि जैकलीन से मुझे दूर ही रहना चाहिए। ...Read More
दस दरवाज़े - 22
फिर मैं डेविड और जैकलीन को प्रायः एकसाथ देखता हूँ। डेविड लगभग आए दिन जैकलीन के साथ उसके घर जाता है। एक दिन वह मुझे पब में मिल जाते हैं। मैं उन्हें बियर के गिलास भरवाकर देता हूँ। डेविड ऊँची आवाज़ में गाने लग पड़ता है। बियर के दो गिलास पीकर अजीब-सी आवाज़ें भी निकालने लगता है। जैकलीन उसको रोकती है। लोग हँस रहे हैं। मैं सोच रहा हूँ कि डेविड जैकलीन के योग्य नहीं है। मुझे बहुत ही अजीब-सा अनुभव हो रहा है। ...Read More
दस दरवाज़े - 23
मैं और आलिया अस्पताल जा रहे हैं। वह अचानक रोने लगती है। बिल्कुल बीती रात की तरह। फिर कार स्टेयरिंग पर हाथ रखते हुए बोलती है - “जोगी जी, प्लीज़, मेरी सुन लो, चलो वापस घर चलें।” “आलिया, पूरी रात हम इसी बात को लेकर कलपते रहे हैं। फैसला करके ही सोये थे।” “वह ठीक है, पर मेरा दिल नहीं मानता। मुझे ऊपर जाकर ईश्वर को भी जवाब देना है।” ...Read More
दस दरवाज़े - 24
उस रात मुझे सोई हुई आलिया की सांसें सुनाई देने लगती हैं। मैं हैरान हूँ कि मेरे कमरे और कमरे के मध्य टी.वी. वाला कमरा है। बारह फीट की यह दूरी उसकी सांसें सहजता से पार कर रही हैं। वह तो सोई पड़ी है, पर मुझे नींद नहीं आ रही। मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो रही है। एक रात मेरी नींद खुल जाती है। मैं घड़ी देखता हूँ। एक बजने को है। मुझे पता है कि अब मुझे नींद नहीं आएगी। मैं उठकर लाइट जला देता हूँ और किताब उठाकर पढ़ने लगता हूँ। कुछ देर बाद मेरे कमरे के दरवाज़े पर दस्तक होती है। आलिया अन्दर आती है। मैं पूछता हूँ - ...Read More
दस दरवाज़े - 25
उस दिन अस्पताल से लौटकर वह कई दिनों तक रोती रहती है। बड़ी कठिनाई से वह यह सब भूल है। धीरे-धीरे पहले वाली रौ में आने लगती है। मैं इंडिया जाता हूँ। हमीदा आलिया से बहुत दुःखी है। एक तो उसने पैसे भेजने बंद कर दिए हैं और दूसरा उनकी इच्छा के अनुसार विवाह भी नहीं करवा रही। वह मुझसे कहता है - ...Read More
दस दरवाज़े - 26
मेरा फोन घनघनाने लगता है। इंडिया का नंबर है। मैं चिंतित हो जाता हूँ। मन ही मन दुआ करता कि पिता ठीक हों। मेरा चचेरा भाई इकबाल उदास आवाज़ में बोलता है - “जल्दी आ जा भाई, ताया सीरियस है।” “क्या बात हो गई?” “कोई दौरा-सा पड़ गया है और आवाज़ बंद हो गई है। हम अस्पताल लेकर आए हुए हैं। डॉक्टर ज्यादा यकीन नहीं दिला रहा।” ...Read More
दस दरवाज़े - 27
मैं पिता से मिलने अस्पताल जाता हूँ। उनकी सेहत में सुधार हो रहा है। अब मीता अस्पताल नहीं जाती वहाँ रुकने वाले लड़के भी पता नहीं किधर उड़न-छू हो जाते हैं। गांव के एक निठल्ले-से लड़के को मैं अस्पताल में रहने के लिए पैसे देता हूँ। दसेक दिन बाद पिता अस्पताल से घर आ जाते हैं, पर अभी वह चलने-फिरने योग्य नहीं हैं। मीता उनकी सेवा में व्यस्त हो जाती है। मैं देखता हूँ कि वह काफ़ी काम कर रही है, पर साथ ही साथ कुछ दिखावा भी करने लगती है। ...Read More
दस दरवाज़े - 28
उससे अगले वर्ष मैं पिता को अपने साथ इंग्लैंड ले जाने के लिए जाता हूँ। मीता कहती है - “अब यहाँ नहीं होगा, हम भी माहिलपुर चले जाएँगे। वहाँ बच्चों के लिए स्कूल अच्छे हैं। और फिर अपना घर भी तो संभालना है। वह कस्बा भी रहने के लिए यहाँ से ठीक है।” “अगर वो जगह रहने के लिए ठीक थी तो पहले आए ही क्यों थे?” ...Read More
दस दरवाज़े - 29
मुझसे यह प्रश्न अक्सर पूछा जाता है कि मेरी पहली मुहब्बत कौन थी। मैं याद करने लग जाता हूँ कौन थी मेरी पहली मुहब्बत। ऐसा सोचते ही कितने ही प्रश्न मेरे सम्मुख आ खड़े होते हैं - मुहब्बत क्या होती है? क्या मुहब्बत होती भी है या यह सब फिल्मी बातें हैं? सोचते-सोचते जो बात सहज ही मेरे हाथ लगती है, वह यह है कि शारीरिक आकर्षण ही मुहब्बत होती है। मुझे मुहब्बत अथवा शारीरिक आकर्षण पहली बार तब महसूस हुआ होगा, जब मैंने अल्हड़ आयु में पैर रखते हुए किसी लड़की को देखा होगा। यारब! मुहब्बत का इतना बड़ा खजाना है मेरे पास। ऐसे तो मेरी तरह हर पुरुष इतना ही मालामाल होगा। ...Read More
दस दरवाज़े - 30
चार साल बाद मैं इंडिया आता हूँ। उनसे विशेष रूप से मिलने जाता हूँ। इस दौरान उन्होंने अपनी कोठी ली है। खुश हैं। प्रकाश की शराब पीने की आदत और अधिक बढ़ चुकी है। वह दिन रात रुपया-पैसा इकट्ठा करने के चक्कर में पड़ा हुआ है। नहर का नाका खोलने के बदले किसान उसकी जेबें भर रहे हैं। बंसी वैसे तो आदत के अनुसार बनी-संवरी रहती है पर उसकी आँखें खाली-सी है। मैं उससे पूछता हूँ - ...Read More
दस दरवाज़े - 31 - लास्ट प्रकरण
हम पूरी धूमधाम से बारात लेकर छोटे-से शहर लूटन में ज्ञान सिंह के घर प्रदीप को ब्याहने पहुँचते हैं। के सभी रिश्तेदार आते हैं। बारात में हमारे भी कुछ मित्र और रिश्तेदार जाते हैं। विवाह अच्छा हो जाता है। सभी खुश है, ख़ास तौर पर बाराती। दूसरी तरफ ज्ञान सिंह भी खूब सेवा करता है। मेरा खर्च तो काफ़ी हो जाता है, पर मैं इस बात से ही बहुत खुश हूँ कि सब कुछ ठीक ठाक पूरा हो गया है। मैं फोन करके प्रकाश और बंसी को बधाई देता हूँ। मुझे लगता है कि प्रदीप किसी बात पर खुश नहीं, पर वह कह कुछ नहीं रहा। ...Read More