अदृश्य हमसफ़र

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ममता कुर्सी पर टेक लगाए ब्याह की गहमा गहमी मे खोई हुई थी। सब इधर उधर भाग रहे थे तैयारियों में जुटे हुए। लगभग 5 साल बाद मायके आना हुआ था उसका वह भी भतीजी की शादी के बहाने से। भाई ने सीधा कह दिया था उसे- देख ममता, कितने साल हो गए हम भाई बहनों को साथ बैठकर चाय पर गप्पें हाँके हुए। मुम्बई न हुई सात समंदर पार से भी दूर हो गई तुम। देखो, तुम नही आई तो ब्याह की तारीख आगे बढ़ा दूँगा।

Full Novel

1

अदृश्य हमसफ़र - 1

ममता कुर्सी पर टेक लगाए ब्याह की गहमा गहमी मे खोई हुई थी। सब इधर उधर भाग रहे थे में जुटे हुए। लगभग 5 साल बाद मायके आना हुआ था उसका वह भी भतीजी की शादी के बहाने से। भाई ने सीधा कह दिया था उसे- देख ममता, कितने साल हो गए हम भाई बहनों को साथ बैठकर चाय पर गप्पें हाँके हुए। मुम्बई न हुई सात समंदर पार से भी दूर हो गई तुम। देखो, तुम नही आई तो ब्याह की तारीख आगे बढ़ा दूँगा। ...Read More

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अदृश्य हमसफ़र - 2

आज उसे मनोहर जी की बहुत याद आ रही थी। 5 बरस पहले अचानक ह्र्दयगति रुकने के कारण मनोहर ममता को सदा के लिए छोड़कर चले गए थे। उनके जाने के एक महीने बाद रस्म निभाने की खातिर मायके आयी थी। ममता की दोनों भाभियों का रो रोकर बुरा हाल हो गया था। दोनो भाई न रो पाए और न चुप रह पाए। ममता उनकी मनस्थिति को बखूबी समझ पा रही थी। बड़ी भाभी कहती जा रही थी -- ममता ये सूनी मांग देखी नही जा रही। इतनी सजी धजी रहने वाली मेरी बन्नो का ये सादा रूप मेरी रूह को कचोट रहा है। ...Read More

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अदृश्य हमसफ़र - 3

ममता अतीत की सुनहरी यादों में गहरे तक डूबती जा रही थी कि ड्राइवर ने तन्द्रा भंग की। दीदी, आपका इंतजार करता हूँ। आप जाकर अनु बिटिया को ले आइये। ममता एक पल को गाड़ी की पिछली सीट पर टेक लगाए खुद को सम्भालती रही फिर गहरी सांस लेकर गाड़ी से उतर चली। कुछ पल में ही दुल्हन बनी अनुष्का उर्फ अनु का हाथ पकड़े उसके साथ चली आ रही थी। ममता रह रह कर उसे निहार रही थी आखिर कह उठी- ...Read More

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अदृश्य हमसफ़र - 4

कन्यादान की रस्म आरम्भ हो चुकी थी। ममता अमु के साथ बातों में अन्तस् की पीड़ा को भूल चुकी अमु के साथ घण्टों तोतली भाषा में बतियाना उसका सबसे पसंदीदा शगल था। ममता की बातों का सिलसिला टूटा जब बड़ी भाभी उसे अनु की बिदाई की रस्म के लिए बुलाने आयी। बड़ी भाभी- जिज्जी, चलिए न। अनु की विदाई का वक़्त हो चला है। उसकी नजरें आपको खोज रही हैं। ...Read More

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अदृश्य हमसफ़र - 5

ममता उठी और अनु दा को ढूंढने लगी। ढूंढते ढूंढते छत पर जा पहुंची। अनु दा वहीं आराम कुर्सी टेक लगाए तारों को एकटक देखे जा रहे थे। ममता- अनु दा, आप यहाँ अकेले क्यों बैठे हैं? अनु दा- बस यूं ही, अनुष्का की बिदाई देख नही पाता तो ऊपर आ गया। ममता- और ये एकटक तारों को क्यों घूरते जा रहे हैं? अनु दा- अपनी जगह तलाश रहा हूँ, बस कुछ दिन बाद मुझे भी तो इन्ही के संग रहना है। ममता बुरी तरह से तड़प उठी। मनोहर जी के जाने के बाद से उससे इस तरह की बातें सहन नही होती थी । ...Read More

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अदृश्य हमसफ़र - 6

अपने मृदुल और हँसमुख स्वभाव की वजह से अनुराग सभी घरवालों का दिल जीतता जा रहा था। पढ़ाई में तो था ही साथ ही किसी भी काम के लिए उनके पास न नही थी। ममता असहाय सी देखती रहती लेकिन कुछ न कर पाती। धीरे धीरे ममता में अनुराग के प्रति ईर्ष्या बढ़ती जा रही थी। दिन रात उधेड़ बुन में रहती, इस बला से कैसे छुटकारा पाया जाए। सभी को तो अपने मोह में बांध लिया इस पिद्दी से लड़के ने। ऊपर से बाबा का हुक्म कि अनुराग से इज्जत से बात किया करो। ...Read More

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अदृश्य हमसफ़र - 7

आज ममता की बारात आनी थी। सुबह सवेरे से ही गहमागहमी शुरू हो गयी थी। सभी के मन मे अफरा तफरी मची थी जैसे न जाने आज का दिन कैसे कटेगा। दोपहर होने को आयी थी लेकिन अभी तक तेल उतारने की रस्म नही हो पाई थी। बड़ी माँ ने शोर मचा दिया था-- कब तुम सब मुन्नी का तेल उतारोगी और कब ये तैयार होगी। बारात जब ड्योढ़ी पर आकर खड़ी हो जाएगी। ...Read More

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अदृश्य हमसफ़र - 8

बाबा की चीख सुनकर सभी घरवाले बाहर गली में निकल आये। अनुराग को गिरा देख कर सभी का मन हो उठा। क्या हुआ? कैसे हुआ? बाबा के मुंह से एक शब्द नही निकला। काका ने थोड़ी फुर्ती दिखाई और बड़े भैया और सूरज भैया से अनुराग को उठाकर अंदर लाने को कहा। ...Read More

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अदृश्य हमसफ़र - 9

अनुराग के मुंह से उनके मन की बात सुनकर बाबा को दुख के साथ बेहद गर्व भी महसूस हो था। उनका चयन गलत नही था। अनुराग सुशील और होनहार ही नही मर्यादा पालन के लिए किसी भी हद तक दर्द को सहने का सामर्थ्य रखते थे। बाबा ने गर्वीले अंदाज से अनुराग की पीठ थपथपाई। ...Read More

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अदृश्य हमसफ़र - 10

सुबह से ही घर में उत्सव का सा माहौल था। सभी साफ सफाई में जुटे हुए थे। माँ और ने चौका सम्भाल रखा था। बड़ी माँ पूरे घर में निरीक्षण करती घूम रही थी। बड़ी माँ( मुन्नी की दादी)- मुन्नी और जमाई बाबू पहली बार आ रहे हैं। बड़की बहू कोनो कमी न रह जाये। मीठा जरूर बना ले। छोटकी बहु, चावल जरूर बना लीजो। शगुन होवे है। खाने में पहले चावल और घी बूरा ही देना बाबू को। उसके बाद सब्जी रोटी। भूलना नही। अभी बताए दे रही हूं, मगज मा धर ले। ...Read More

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अदृश्य हमसफ़र - 11

जितनी देर भी ममता घर में थी बाबा ममता का सामना करने से बच रहे थे, उन्हें बखूबी अहसास कि जैसे ही ममता से नजरें मिलेगी वह पकड़े जाएंगे। घरवाले चूंकि अनुराग का सच नही जानते थे तो उन्हें ममता से नजरें चुराने की जरूरत ही नही पड़ रही थी। ...Read More

12

अदृश्य हमसफ़र - 12

दोनो के मध्य खूब वाद विवाद हुआ। बाबा ने हर तरह से अनुराग को समझाने की कोशिश की लेकिन की जिद के सामने उन्हें झुकना ही पड़ा। उनसे कमरे का सन्नाटा सहन नही हो रहा था तो वह लड़खड़ाते कदमों से धीरे धीरे अपने कमरे की तरफ जाने लगे। अचानक कुछ ज्यादा ही लड़खड़ाए और गिरने को हुए तो अनुराग कुछ सम्भले और दौड़कर बाबा को पकड़ लिया। अनुराग उनका हाथ पकड़ कर उनके साथ चलने लगा। ...Read More

13

अदृश्य हमसफ़र - 13

ममता तिलमिला उठी, कुछ कहना चाहा लेकिन जुबां जैसे तालू से चिपक गयी और कुछ पल के लिए सकते आ गयी। अनुराग से इस तरह के व्यवहार और इतनी उपेक्षा का अंदाजा भी नही था उसे। यद्धपि उसके जेहन से काफी हद तक अनु दा का भूत उतर चुका था लेकिन फिर भी कभी कभी यादों की लहरें उसके अन्तस् को भिगो जाती थी। रिश्ते की जड़ें बहुत गहरी थी भले ही उसमें जलन का मादा कुछ ज्यादा ही था। उसने कभी सपने में भी नही सोचा था कि उसका सबसे करीबी रिश्ता उससे इस कदर दूर हो जाएगा। ममता का मन मानने को तैयार नही था कि हर बार यही सयोंग होता है। वह दो बार मायके आयी और दोनो बार अनु दा काम के सिलसिले में बाहर होते हैं। जरूर कोई तो विशेष कारण है लेकिन क्या हो सकता है?. ...Read More

14

अदृश्य हमसफ़र - 14

ममता ने जैसे ही बाबा के कमरे में कदम रखा सभी चुप हो गए। बड़ी माँ, आरामकुर्सी पर बैठी और माँ, बाबा, काका और काकी सामने खड़े हुए थे। ममता से चुप नही रहा गया और कह उठी- क्या बात है? मेरे आते ही आप सभी चुप क्यों हो गए? ऐसी क्या बात है जो मुझसे छिपाना चाहते हैं। बाबा चेहरे पर जबरदस्ती की मुस्कुराहट लाते हुए बोले- अरे कुछ नही मुन्नी जरा हिसाब किताब की बातें हो रही थी, आ बैठ मेरा बच्चा। उठ गई तुम। ...Read More

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अदृश्य हमसफ़र - 15

अपने लिए पगली का सम्बोधन सुनकर ममता की भवें तन गई। नकली गुस्सा जाहिर करते हुए इठला उठी- दा, दादी बन चुकी हूँ मैं। आपको पगली दिखती हूँ। अनुराग मद्धम सी हंसी हँसकर कहने लगे- ये कहाँ लिखा है कि जो दादी बन जाती है वह पगली नही रहती। देखो न मुन्नी अभी भी तुम अपनी उम्र भूलकर मेरे सामने कैसे बच्चों की तरह इठलाने लगी हो। ...Read More

16

अदृश्य हमसफ़र - 16

अनुराग की चेतना जैसे लुप्त हो गयी थी। उन्होंने कभी ख्वाबों में भी ममता के इतने करीबी स्पर्श की नही थी। प्रेम तो किया उन्होंने लेकिन कभी भी अपनी मर्यादा को नही छोड़ पाये। आज जब भावातिरेक में ममता ने अनुराग को कस कर पकड़ा और उनकी गोदी में सिर रखकर रोने लगी तो उन्हें कुछ समझ ही नही आया कि क्या करें? ...Read More

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अदृश्य हमसफ़र - 17

ममता को अब भरी महफ़िल में भी तन्हाई का अहसास हो रहा था। मन उचाट हो चला था कि पहेली है यह। ब्याह में नही बुलाया था यह तो सुलझी भी नही थी कि एक और नई खड़ी हो गयी थी। क्या कारण हो सकता है कि देविका से किसी ने भी उसका परिचय नही कराया जबकि कितनी बार सभी से उसने पूछा भी था । उलझनें एक के बाद बढ़ती जा रही थी। सुलझाने के लिए सिर्फ एक ही सिरा नजर आ रहा था, अनु दा। ...Read More

18

अदृश्य हमसफ़र - 18

देविका ने एक गहरी सांस ली और कहना आरम्भ किया- जिस लड़की को अनुराग ने टूटकर चाहा, जिसे नजर में देखते ही अपना सब कुछ भूल बैठे थे, जो आज भी उनके मन प्राण पर कब्जा किये बैठी है वह आप हैं। हाँ उनकी मुंन्नी ही है। आज भी अगर वह मौत से लड़ रहे हैं तो इसीलिए कि कुछ अधूरी बातों को पूरा करना चाहते हैं। आपके सामने प्रायश्चित करना चाहते हैं कि यकायक आपके दूर जाने के उनके फैसले ने आपको जितने घाव दिए शायद कुछ मलहम लगा सके। आपसे माफी मांगे बिना तो उनको मुक्ति भी स्वीकार्य नही। देविका एक ही सांस में सब कुछ कह गयी और उसने गर्दन झुका ली। ...Read More

19

अदृश्य हमसफ़र - 19

ममता जो सोई तो उसे उठाने में भाभी को पसीने बहाने पड़ गए। लाजमी भी था, रुकी हुई नींद, के ब्याह की थकान ऊपर से अनुराग के जीवन से जुड़ी बातें सुनकर जो मानसिक संताप से घिर कर सोई तो उठ नही पा रही थी। आंखे मलते हुए धीरे धीरे उठ बैठी। उनींदी अवस्था में जमहाइयाँ लेते लेते 5 मिनट लगे उसे वर्तमान में आने में। ढंग से आंखे खुली तो सामने भाभी हाथ में पानी का गिलास लेकर खड़ी थी। उनकी बगल में देविका भी मंद मंद मुस्कुराती हुई खड़ी थी। ममता की नजर देविका के चेहरे पर ठहर गयी। ...Read More

20

अदृश्य हमसफ़र - 20

अनुराग ने एक पल सोचने के लिए लिया और फिर दूसरे पल में गहरी सांस लेकर ममता की तरफ ममता भावहीन चेहरा लिए बिना पलक झपके अनुराग को ही देख रही थी। अनुराग बस झेंप कर रह गए। अंततः बिना किसी लाग लपेट के सीधी बास्त कहने में ही भलाई दिखी। अनुराग- ममता, मैं एक लड़की से प्यार करता था। देविका को पहली रात ही बता दिया था मैंने। झूठ की बुनियाद पर रिश्ता शुरू नही करना चाहता था और न ही देविका को धोखे में रखना चाहता था लेकिन उस लड़की को भूलना मेरे लिए असाध्य था तो साथ ही यह भी कह दिया कि उसे नही भूल सकता। तभी देविका ने यह पेंटिंग बनाई थी। ...Read More

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अदृश्य हमसफ़र - 21

अनुराग से नजरें मिलते ही ममता झेंप सी गयी और नजरें झुका ली। कमरे में बस दोनो की सांसों सुरताल की ता ता थैया गूंज रही थी। एक सहज सुकून भरी शांति चारों तरफ व्याप्त थी। कमरें की औरा बेहद सकारात्मकता लिए हुए थी शायद देविका के सब्र, निष्ठा, विश्वास और पूजा पाठ का असर था। ममता अनुराग के मन की बात उसकी जुबान से सुनने की जुगत सोच रही थी और अनुराग अचानक से ममता के व्यवहार में आये बदलाव के विषय में सोचते जा रहे थे। ...Read More

22

अदृश्य हमसफ़र - 22

कमरे में गहन शांति का वास हो गया था। इतनी की सुई भी गिरती तो उसकी भी आवाज सुनाई ही अपनी अपनी मानसिक यायावरी में उलझते जा रहे थे। अनुराग अभी भी अपने मन की बातें कहने में स्वयं को असमर्थ महसूस कर रहे थे। जानते थे कि जीवन के बहुत कम दिन बचे हैं जिनमें से रोज एक एक दिन कम होता जा रहा है। भूमिका बनाने का समय नही है उनके पास और उन्ही बचे दिनों में सारी गांठे खोलनी हैं। ...Read More

23

अदृश्य हमसफ़र - 23

ममता अपनी असमंजस की स्थिति से उबरने के लिए जी जान से कोशिश करने लगी। कोशिशें ही कामयाब होती और अंततः ममता भी सफल हुई। गर्दन को एक हल्का सा झटका देकर विचारों के प्रबल प्रवाह से बाहर आई और अनुराग की तरफ देखकर मुस्कुराई। ...Read More

24

अदृश्य हमसफ़र - 24

अनुराग का चेहरा उतर गया। ममता की सभी बातों को हंसी में झटकने वाले अनुराग आज उसका किया मजाक सह पा रहे थे। बीमारी की वजह से शायद ह्रदय कुछ जरूरत से ज्यादा सवेंदनशील हो गया था। ममता एक पल में समझ गयी थी कि मजाक उल्टा पड़ चुका है। उसने जल्द से जल्द डिब्बा उठाया और अलमारी बन्द करके अनुराग के सामने आकर खड़ी हो गयी। ...Read More

25

अदृश्य हमसफ़र - 25

अनुराग ममता से नजरें मिलाने का साहस नही जुटा पा रहे थे लेकिन मजबूरी थी। ममता अपनी चुप्पी खत्म कर रही थी। धीरे धीरे गर्दन उठाकर अनुराग ने ममता की तरफ देखा। ममता निर्विकार भाव से अनुराग को ही देख रही थी। ममता के चेहरे पर कोई भाव न देख कर अनुराग को थोड़ा आश्चर्य हुआ। उनसे रहा नहीं गया और पूछ बैठे- मुंन्नी, ऐसे क्या चुपचाप मुझे घूरे जा रही हो? कुछ कहोगी नही? ...Read More

26

अदृश्य हमसफ़र - 26

ममता की बात सुनकर देविका ने हामी भरते हुए गर्दन भी हिला दी। अनुराग से रहा नही गया और पूछ मुंन्नी, यह क्या कानाफूसी चल रही है। मेरे खिलाफ क्या साजिश रची जा रही है? ह्म्म्म, बताओ तो। ममता और देविका दोनो ही अनुराग की बेचैनी पर खिलखिलाकर हंस पड़ी। ...Read More

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अदृश्य हमसफ़र - 27

दोनो ही काफी देर तक एक दूसरे के गले लगी खड़ी रही। अंततः ममता ने ही देविका को खुद अलग कर जाकर सोने को कहा। ममता- देविका जाकर सो जाओ। सुबह भी तो जल्दी उठने की आदत है तुम्हें। देखो नींद से आंखे भी बोझिल होने लगी हैं। ...Read More

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अदृश्य हमसफर - 28

चाय खत्म होते ही देविका ने ट्रे उठाकर उठाई और बिना कुछ कहे ही कमरे से चली गयी लेकिन पल बाद ही वापस आयी। देविका- जिज्जी, कैसे सब व्यवस्थित करोगे। आप मुझे बताइये न। ममता- देविका, मुझे 9 बजे हर हाल में घर से निकलना है। उससे पहले घरवालों से सुलझना बहुत भारी काम है। 5 बज गए है और समान भी पैक नही किया है अभी तक। मेरे तो हाथ पैर फूलने लगे हैं सच्ची। कैसे क्या करूँ? ...Read More

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अदृश्य हमसफ़र - 29

ममता के मन में शांति थी कि चलो कुछ ज्यादा हंगामा नहीं हुआ था। बड़े भैया के सामने बात तो चिल्लपों कुछ ज्यादा नही मची थी। व्यापार के बहाने ही सही उसे जाने की इजाजत तो मिली। दोनो भाभियाँ ममता के लिए नाश्ता बनाने की कहकर कमरे से चली गयी। उसने देविका को भी बाहर चलने का इशारा किया। देविका तो तुरन्त ही कमरे से बाहर निकल गयी लेकिन ममता ने काकी के कंधे पर सिर रख दिया। काकी ममता के सिर पर हाथ फिराने लगी। ...Read More

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अदृश्य हमसफ़र - 30 - अंतिम भाग

रास्ते भर भैया और ममता चुपचाप रहे। दोनो को कुछ सूझ ही नही रहा था कि बात करें भी क्या। बीच बीच में एक दूसरे की तरफ देखकर बस हल्के से मुस्कुरा देते थे। जैसे ही एयरपोर्ट पहुँचे बड़े भैया की नसीहतें शुरू हो गयी। देख ममता, अपना ध्यान रखना। मुझे उम्मीद ही नही यकीन है तुम सम्भाल ही लोगी। अगर फिर भी बात न बने तो मुझे फोन कर देना। दो दिन के लिए मैं मुम्बई चला आऊंगा। मोटी रकम है बच्चों को इस मामले से दूर ही रखना। ...Read More