..... तो एक ठहरी जिद के तहत सुरजू ने निर्णय लिया और गांव में मुनादी पिटा दी.... भूकंप आ गया गांव में.....! गोया सुरजू ने पृथ्वी तल पर घुस कर धीरे से खिसका दी हो प्लेट...., गांव के बाशिन्दों की पचतत्वांे की काया थर थर कांपने लगी, प्रत्येक को स्थिर रखना नामुमकिन लगने लगा खुद को.....
Full Novel
सुरजू छोरा - 1
..... तो एक ठहरी जिद के तहत सुरजू ने निर्णय लिया और गांव में मुनादी पिटा दी.... भूकंप आ गया में.....! गोया सुरजू ने पृथ्वी तल पर घुस कर धीरे से खिसका दी हो प्लेट...., गांव के बाशिन्दों की पचतत्वांे की काया थर थर कांपने लगी, प्रत्येक को स्थिर रखना नामुमकिन लगने लगा खुद को..... ...Read More
सुरजू छोरा - 2
आकाश छूने की कोशिश में है कमबख्त! ‘‘पवित्रा उन विस्फारित आँखों को देख रही है। ‘‘माँ, मुझे बुखार क्यों नी लाटे ने एक रात पूछ ही लिया था बचपन में, वह एक ठण्डी शाम थी, जब गांव में बर्फीली हवा चलने से कई बच्चे और बड़े बीमार हो रहे थे। पवित्रा उन घरों में सेवा करने जाती स्त्रियाँ पूछती’’ तेरा सुरजू तो ठीक है न...? ‘‘उन्हें विश्वास ही नहीं होता जब गांवों में बीमारी, महामारी सी फैली हो, एक अकेला सुरजू कैसे अछूता रहा सकता है। ...Read More
सुरजू छोरा - 3
तो घूमते हुए समय के पहिये के साथ उदय होने लगा था सूरजू का सूरज..., उसे बाजार में उतरना अपनी कला को लेकर इसके लिये पूंजी की जरूरत थी, मां ने बकरियों की टोली बेचकर जुगाड़ किया और सुरजू बन गया ‘‘कजरी बुटीक’’ का मालिक। गहरी साजिश! सुरजू का चेहरा जलता अंगारा जैसे हो गया। कजरी, सुरजू के चेहरे पर आग देखकर बर्फ का फोहा रखती.... ...Read More
सुरजू छोरा - 4
दो साल पहले का दृश्य धुंध के बीच से उगने लगा... पुजारी के चेहरे पर एक और चेहरा लगा जो बाहर वाले को अपना कुरूप दिखने नहीं देता, उस समय एक पूरी रात उन्हें नींद नहीं आई बार-बार करवट बदलते और सिटकनी खोलकर बाहर बरामदे में खड़े रहते उनकी दृष्टि सामने पड़नी हुई ऊँचे टीले पर सुरजू का मिनी बंगला ठहरा, जिसके आगे चमकता सौ वाट की रोशनी में एक नया नाम ‘‘सूरज प्रकाश’’ पुजारी की आँखें चुंधियाने लगी छाती के बीच काले बादलों की कड़कड़ाहट ‘‘शाले..... पैंतीस वर्ष देश की राजधानी में गजिटेड होने के बावजूद गांव में ऐसा घर नहीं बना पाये ये हाथी पांव वाला दर्जी इसकी औकात तो देखो..... ...Read More