ख़ब्त

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" विजय के बापू मैंने तो आपसे पहले ही कहा था, पर आपकी जिद्द के सामने मेरी चलती कहा है ? अब देख लिया ना, और जोड़ो सड़कछाप बिरादरी वालो से रिस्ता "..... " सुलोचना अपने कमरे में चली जाओ, वरना चिंगारी को हवा लगते वक्त नही लगता " ! " बस यही दिन देखना बाकी रह गया था, लीजिए और मार डालिये, और अपनी यह भी हसरत पूरी कर लीजिए " ! मेन बाजार पास जगमगाती पुस्तैनी हवेली, लोगो की 24 क्लॉक चहल पहल, मेंन बाजार में रोज अलग-अलग चेहरे, कदम अपनी मंजिल की तरफ बढ़ने को होते पर

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ख़ब्त - 1

" विजय के बापू मैंने तो आपसे पहले ही कहा था, पर आपकी जिद्द के सामने मेरी चलती कहा ? अब देख लिया ना, और जोड़ो सड़कछाप बिरादरी वालो से रिस्ता "..... " सुलोचना अपने कमरे में चली जाओ, वरना चिंगारी को हवा लगते वक्त नही लगता " ! " बस यही दिन देखना बाकी रह गया था, लीजिए और मार डालिये, और अपनी यह भी हसरत पूरी कर लीजिए " ! मेन बाजार पास जगमगाती पुस्तैनी हवेली, लोगो की 24 क्लॉक चहल पहल, मेंन बाजार में रोज अलग-अलग चेहरे, कदम अपनी मंजिल की तरफ बढ़ने को होते पर ...Read More

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ख़ब्त - 2

" आ जुबान रख, भरोसो कोनी के ? न मैं मुकरूँगा और ना मेरा विजया..." अरे, भानु कर दी छोटी बात, बिस्वास है तेरी जुबां पे, "" और मुझपे, " और दोनों खिलखिलाहट हसने लगते है " ! भानुप्रताप सिह ने अपने इकलौते बेटे विजय की सगाई पड़ोसी गाँव मे अपने बालपन के खास मित्र ईश्वर सिह के वहा तय कर रखी थी !सगाई, बिना किसी रीति-रिवाज ! बस बातो ही बातो में लगा और जुबान, " पहले जमाने की बात ही कुछ ओर थी, वैसे आज भी राजस्थान के ऐसे छोटे-मोटे गाँवो में नीम के पेड़, वट व्रक्ष की ...Read More