सुबह पढ़ने के लिए पेपर उठाया तो नज़र शहर में एक नए फाइव स्टार होटल के खुलने के विज्ञापन पर ठहर गई। पेपर के पहले पूरे पेज़ पर एक बेहद खूबसूरत युवती की नमस्ते की मुद्रा में बहुत ही प्रभावशाली फोटो थी। और होटल के ग्रुप का नाम छोटा सा एकदम नीचे दिया गया था। पहला पेज़ खोलते ही अंदर पूरे पेज पर होटल के सबसे ऊपरी मंजिल का दृश्य था। पंद्रहवीं मंजिल पर स्वीमिंग पूल का। फ़ोटो ऐसे एंगिल से ली गई थी कि वहां से नीचे अंबेडकर पार्क का विहंगम दृश्य बहुत लुभावना लग रहा था। अंग्रेजी और हिंदी के बेहद प्रतिष्ठित अखबारों में छपे इस विज्ञापन ने सुबह-सुबह कुछ देर तो एक अजीब सी खुशी, प्रसन्न्ता दी, कि हमारा शहर कहां से कहां पहुंच गया है।
Full Novel
शकबू की गुस्ताखियां - 1
सुबह पढ़ने के लिए पेपर उठाया तो नज़र शहर में एक नए फाइव स्टार होटल के खुलने के विज्ञापन ठहर गई। पेपर के पहले पूरे पेज़ पर एक बेहद खूबसूरत युवती की नमस्ते की मुद्रा में बहुत ही प्रभावशाली फोटो थी। और होटल के ग्रुप का नाम छोटा सा एकदम नीचे दिया गया था। पहला पेज़ खोलते ही अंदर पूरे पेज पर होटल के सबसे ऊपरी मंजिल का दृश्य था। पंद्रहवीं मंजिल पर स्वीमिंग पूल का। फ़ोटो ऐसे एंगिल से ली गई थी कि वहां से नीचे अंबेडकर पार्क का विहंगम दृश्य बहुत लुभावना लग रहा था। अंग्रेजी और हिंदी के बेहद प्रतिष्ठित अखबारों में छपे इस विज्ञापन ने सुबह-सुबह कुछ देर तो एक अजीब सी खुशी, प्रसन्न्ता दी, कि हमारा शहर कहां से कहां पहुंच गया है। ...Read More
शकबू की गुस्ताखियां - 2
शकबू के गम को शाहीन ने कुछ ही दिनों में अपनी सेवा, हुस्न, प्यार से खत्म सा कर दिया। अंदाजा मुझे शकबू के आने वाले फ़ोन से होता। वह शाजिया की बात तो कहने भर को करता और शाहीन के गुणगान से थकता ही नहीं। मैं मन ही मन कहता वाह रे हुस्न, आंखों पर पल में कैसे पर्दा डाल देता है। शाजिया जो पचास साल साथ रही उसको भुलाने में पचास दिन भी नहीं लगे। ...Read More
शकबू की गुस्ताखियां - 3
जैसे-जैसे हिंदुस्तान की आजादी करीब आती गई। जिन्ना का दो राष्ट्र का सिद्धांत जोर पकड़ता गया। जल्द ही यह हो गया कि विभाजन होकर रहेगा। अब शकबू के परिवार ने फिर निर्णय लिया कि जहां वह है वह हिस्सा पाकिस्तान में जाएगा यह तय है। और हालात जैसे हैं, उससे यह भी तय है कि बड़े पैमाने पर हिंसा होगी तो क्यों ना यह स्थान समय रहते ही छोड़ दिया जाए? ...Read More