बहुत पुरानी बात है। धारा नगरी मे ने उसे मार डाला और स्वयं राजा बन बैठा। उसका राज्य दिनोंदिन बढ़ता गया और वह सारे जम्बूद्वीप का राजा बन बैठा। एक दिन उसके मन में आया कि उसे घूमकर सैर करनी चाहिए और जिन देशों के नाम उसने सुने हैं, उन्हें देखना चाहिए। सो वह गद्दी अपने छोटे भाई भर्तृहरि को सौंपकर, योगी बन कर, राज्य से निकल पड़ा।
Full Novel
बेताल पच्चीसी - 1
बहुत पुरानी बात है। धारा नगरी मे ने उसे मार डाला और स्वयं राजा बन बैठा। उसका राज्य दिनोंदिन गया और वह सारे जम्बूद्वीप का राजा बन बैठा। एक दिन उसके मन में आया कि उसे घूमकर सैर करनी चाहिए और जिन देशों के नाम उसने सुने हैं, उन्हें देखना चाहिए। सो वह गद्दी अपने छोटे भाई भर्तृहरि को सौंपकर, योगी बन कर, राज्य से निकल पड़ा। ...Read More
बेताल पच्चीसी - 2
यमुना के किनारे धर्मस्थान नामक एक नगर था। उस नगर में गणाधिप नाम का राजा राज करता था। उसी केशव नाम का एक ब्राह्मण भी रहता था। ब्राह्मण यमुना के तट पर जप-तप किया करता था। उसकी एक पुत्री थी, जिसका नाम मालती था। वह बड़ी रूपवती थी। जब वह ब्याह के योग्य हुई तो उसके माता, पिता और भाई को चिन्ता हुई। संयोग से एक दिन जब ब्राह्मण अपने किसी यजमान की बारात में गया था और भाई पढ़ने गया था, तभी उनके घर में एक ब्राह्मण का लड़का आया। लड़की की माँ ने उसके रूप और गुणों को देखकर उससे कहा कि मैं तुमसे अपनी लडकी का ब्याह करूँगी। होनहार की बात कि उधर ब्राह्मण पिता को भी एक दूसरा लड़का मिल गया और उसने उस लड़के को भी यही वचन दे दिया। उधर ब्राह्मण का लड़का जहाँ पढ़ने गया था, वहाँ वह एक लड़के से यही वादा कर आया। ...Read More
बेताल पच्चीसी - 3
वर्धमान नगर में रूपसेन नाम का राजा राज करता था। एक दिन उसके यहाँ वीरवर नाम का एक राजपूत के लिए आया। राजा ने उससे पूछा कि उसे ख़र्च के लिए क्या चाहिए तो उसने जवाब दिया, हज़ार तोले सोना। सुनकर सबको बड़ा आश्चर्य हुआ। राजा ने पूछा, “तुम्हारे साथ कौन-कौन है?” उसने जवाब दिया, “मेरी स्त्री, बेटा और बेटी।” राजा को और भी अचम्भा हुआ। आख़िर चार जने इतने धन का क्या करेंगे? फिर भी उसने उसकी बात मान ली। ...Read More
बेताल पच्चीसी - 4
भोगवती नाम की एक नगरी थी। उसमें राजा रूपसेन राज करता था। उसके पास चिन्तामणि नाम का एक तोता एक दिन राजा ने उससे पूछा, “हमारा ब्याह किसके साथ होगा?” तोते ने कहा, “मगध देश के राजा की बेटी चन्द्रावती के साथ होगा।” राजा ने ज्योतिषी को बुलाकर पूछा तो उसने भी यही कहा। उधर मगध देश की राज-कन्या के पास एक मैना थी। उसका नाम था मदन मञ्जरी। एक दिन राज-कन्या ने उससे पूछा कि मेरा विवाह किसके साथ होगा तो उसने कह दिया कि भोगवती नगर के राजा रूपसेन के साथ। इसके बाद दोनों को विवाह हो गया। रानी के साथ उसकी मैना भी आ गयी। राजा-रानी ने तोता-मैना का ब्याह करके उन्हें एक पिंजड़े में रख दिया। ...Read More
बेताल पच्चीसी - 5
उज्जैन में महाबल नाम का एक राजा रहता था। उसके हरिदास नाम का एक दूत था जिसके महादेवी नाम बड़ी सुन्दर कन्या थी। जब वह विवाह योग्य हुई तो हरिदास को बहुत चिन्ता होने लगी। इसी बीच राजा ने उसे एक दूसरे राजा के पास भेजा। कई दिन चलकर हरिदास वहाँ पहुँचा। राजा ने उसे बड़ी अच्छी तरह से रखा। एक दिन एक ब्राह्मण हरिदास के पास आया। बोला, “तुम अपनी लड़की मुझे दे दो।” हरिदास ने कहाँ, “मैं अपनी लड़की उसे दूँगा, जिसमें सब गुण होंगे।” ब्राह्मण ने कहा, “मेरे पास एक ऐसा रथ है, जिस पर बैठकर जहाँ चाहो, घड़ी-भर में पहुँच जाओगे।” हरिदास बोला, “ठीक है। सबेरे उसे ले आना।” ...Read More
बेताल पच्चीसी - 6
धर्मपुर नाम की एक नगरी थी। उसमें धर्मशील नाम को राजा राज करता था। उसके अन्धक नाम का दीवान एक दिन दीवान ने कहा, “महाराज, एक मन्दिर बनवाकर देवी को बिठाकर पूजा की जाए तो बड़ा पुण्य मिलेगा। राजा ने ऐसा ही किया। एक दिन देवी ने प्रसन्न होकर उससे वर माँगने को कहा। राजा के कोई सन्तान नहीं थी। उसने देवी से पुत्र माँगा। देवी बोली, अच्छी बात है, तेरे बड़ा प्रतापी पुत्र प्राप्त होगा। कुछ दिन बाद राजा के एक लड़का हुआ। सारे नगर में बड़ी खुशी मनायी गयी। ...Read More
बेताल पच्चीसी - 7
मिथलावती नाम की एक नगरी थी। उसमें गुणधिप नाम का राजा राज करता था। उसकी सेवा करने के लिए देश से एक राजकुमार आया। वह बराबर कोशिश करता रहा, लेकिन राजा से उनकी भेंट न हुई। जो कुछ वह अपने साथ लाया था, वह सब बराबर हो गया। ...Read More
बेताल पच्चीसी - 8
अंग देश के एक गाँव मे एक धनी ब्राह्मण रहता था। उसके तीन पुत्र थे। एक बार ब्राह्मण ने यज्ञ करना चाहा। उसके लिए एक कछुए की जरूरत हुई। उसने तीनों भाइयों को कछुआ लाने को कहा। वे तीनों समुद्र पर पहुँचे। वहाँ उन्हें एक कछुआ मिल गया। बड़े ने कहा, मैं भोजनचंग हूँ, इसलिए कछुए को नहीं छुऊँगा। मझला बोला, मैं नारीचंग हूँ, मैं नहीं ले जाऊँगा। सबसे छोटा बोल, मैं शैयाचंग हूँ, सो मैं नहीं ले जाऊँगा। वे तीनों इस बहस में पड़ गये कि उनमें कौन बढ़कर है। जब वे आपस में इसका फैसला न कर सके तो राजा के पास पहुँचे। राजा ने कहा, आप लोग रुकें। मैं तीनों की अलग-अलग जाँच करूँगा। ...Read More
बेताल पच्चीसी - 9
चम्मापुर नाम का एक नगर था, जिसमें चम्पकेश्वर नाम का राजा राज करता था। उसके सुलोचना नाम की रानी और त्रिभुवनसुन्दरी नाम की लड़की। राजकुमारी यथा नाम तथा गुण थी। जब वह बड़ी हुई तो उसका रूप और निखर गया। राजा और रानी को उसके विवाह की चिन्ता हुई। चारों ओर इसकी खबर फैल गयी। बहुत-से राजाओं ने अपनी-अपनी तस्वीरें बनवाकर भेंजी, पर राजकुमारी ने किसी को भी पसन्द न किया। राजा ने कहा, बेटी, कहो तो स्वयम्वर करूँ? लेकिन वह राजी नहीं हुई। आख़िर राजा ने तय किया कि वह उसका विवाह उस आदमी के साथ करेगा, जो रूप, बल और ज्ञान, इन तीनों में बढ़ा-चढ़ा होगा। ...Read More
बेताल पच्चीसी - 10
मदनपुर नगर में वीरवर नाम का राजा राज करता था। उसके राज्य में एक वैश्य था, जिसका नाम हिरण्यदत्त उसके मदनसेना नाम की एक कन्या थी। एक दिन मदनसेना अपनी सखियों के साथ बाग़ में गयी। वहाँ संयोग से सोमदत्त नामक सेठ का लड़का धर्मदत्त अपने मित्र के साथ आया हुआ था। वह मदनसेना को देखते ही उससे प्रेम करने लगा। घर लौटकर वह सारी रात उसके लिए बैचेन रहा। अगले दिन वह फिर बाग़ में गया। मदनसेना वहाँ अकेली बैठी थी। उसके पास जाकर उसने कहा, तुम मुझसे प्यार नहीं करोगी तो मैं प्राण दे दूँगा। ...Read More
बेताल पच्चीसी - 11
गौड़ देश में वर्धमान नाम का एक नगर था, जिसमें गुणशेखर नाम का राजा राज करता था। उसके अभयचन्द्र का दीवान था। उस दीवान के समझाने से राजा ने अपने राज्य में शिव और विष्णु की पूजा, गोदान, भूदान, पिण्डदान आदि सब बन्द कर दिये। नगर में डोंडी पिटवा दी कि जो कोई ये काम करेगा, उसका सबकुछ छीनकर उसे नगर से निकाल दिया जायेगा। ...Read More
बेताल पच्चीसी - 12
किसी ज़माने में अंगदेश मे यशकेतु नाम का राजा था। उसके दीर्घदर्शी नाम का बड़ा ही चतुर दीवान था। बड़ा विलासी था। राज्य का सारा बोझ दीवान पर डालकर वह भोग में पड़ गया। दीवान को बहुत दु:ख हुआ। उसने देखा कि राजा के साथ सब जगह उसकी निन्दा होती है। इसलिए वह तीरथ का बहाना करके चल पड़ा। चलते-चलते रास्ते में उसे एक शिव-मन्दिर मिला। उसी समय निछिदत्त नाम का एक सौदागर वहाँ आया और दीवान के पूछने पर उसने बताया कि वह सुवर्णद्वीप में व्यापार करने जा रहा है। दीवान भी उसके साथ हो लिया। ...Read More
बेताल पच्चीसी - 13
बनारस में देवस्वामी नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उसके हरिदास नाम का पुत्र था। हरिदास की बड़ी सुन्दर थी। नाम था लावण्यवती। एक दिन वे महल के ऊपर छत पर सो रहे थे कि आधी रात के समय एक गंधर्व-कुमार आकाश में घूमता हुआ उधर से निकला। वह लावण्यवती के रूप पर मुग्ध होकर उसे उड़ाकर ले गया। जागने पर हरिदास ने देखा कि उसकी स्त्री नही है तो उसे बड़ा दुख हुआ और वह मरने के लिए तैयार हो गया। लोगों के समझाने पर वह मान तो गया लेकिन यह सोचकर कि तीरथ करने से शायद पाप दूर हो जाय और स्त्री मिल जाय, वह घर से निकल पड़ा। ...Read More
बेताल पच्चीसी - 14
अयोध्या नगरी में वीरकेतु नाम का राजा राज करता था। उसके राज्य में रत्नदत्त नाम का एक साहूकार था, रत्नवती नाम की एक लड़की थी। वह सुन्दर थी। वह पुरुष के भेस में रहा करती थी और किसी से भी ब्याह नहीं करना चाहती थी। उसका पिता बड़ा दु:खी था। इसी बीच नगर में खूब चोरियाँ होने लगी। प्रजा दु:खी हो गयी। कोशिश करने पर भी जब चोर पकड़ में न आया तो राजा स्वयं उसे पकड़ने के लिए निकला। एक दिन रात को जब राजा भेष बदलकर घूम रहा था तो उसे परकोटे के पास एक आदमी दिखाई दिया। राजा चुपचाप उसके पीछे चल दिया। चोर ने कहा, तब तो तुम मेरे साथी हो। आओ, मेरे घर चलो। ...Read More
बेताल पच्चीसी - 15
नेपाल देश में शिवपुरी नामक नगर मे यशकेतु नामक राजा राज करता था। उसके चन्द्रप्रभा नाम की रानी और नाम की लड़की थी। जब राजकुमारी बड़ी हुई तो एक दिन वसन्त उत्सव देखने बाग़ में गयी। वहाँ एक ब्राह्मण का लड़का आया हुआ था। दोनों ने एक-दूसरे को देखा और प्रेम करने लगे। इसी बीच एक पागल हाथी वहाँ दौड़ता हुआ आया। ब्राह्मण का लड़का राजकुमारी को उठाकर दूर ले गया और हाथी से बचा दिया। शशिप्रभा महल में चली गयी पर ब्राह्मण के लड़के के लिए व्याकुल रहने लगी। ...Read More
बेताल पच्चीसी - 16
हिमाचल पर्वत पर गंधर्वों का एक नगर था, जिसमें जीमूतकेतु नामक राजा राज करता था। उसके एक लड़का था, नाम जीमूतवाहन था। बाप-बेटे दोनों भले थे। धर्म-कर्म मे लगे रहते थे। इससे प्रजा के लोग बहुत स्वच्छन्द हो गये और एक दिन उन्होंने राजा के महल को घेर लिया। राजकुमार ने यह देखा तो पिता से कहा कि आप चिन्ता न करें। मैं सबको मार भगाऊँगा। राजा बोला, नहीं, ऐसा मत करो। युधिष्ठिर भी महाभारत करके पछताये थे। ...Read More
बेताल पच्चीसी - 17
चन्द्रशेखर नगर में रत्नदत्त नाम का एक सेठ रहता था। उसके एक लड़की थी। उसका नाम था उन्मादिनी। जब बड़ी हुई तो रत्नदत्त ने राजा के पास जाकर कहा कि आप चाहें तो उससे ब्याह कर लीजिए। राजा ने तीन दासियों को लड़की को देख आने को कहा। उन्होंने उन्मादिनी को देखा तो उसके रुप पर मुग्ध हो गयीं, लेकिन उन्होंने यह सोचकर कि राजा उसके वश में हो जायेगा, आकर कह दिया कि वह तो कुलक्षिणी है राजा ने सेठ से इन्कार कर दिया। ...Read More
बेताल पच्चीसी - 18
उज्जैन नगरी में महासेन नाम का राजा राज करता था। उसके राज्य में वासुदेव शर्मा नाम का एक ब्राह्मण था, जिसके गुणाकर नाम का बेटा था। गुणाकर बड़ा जुआरी था। वह अपने पिता का सारा धन जुए में हार गया। ब्राह्मण ने उसे घर से निकाल दिया। वह दूसरे नगर में पहुँचा। वहाँ उसे एक योगी मिला। उसे हैरान देखकर उसने कारण पूछा तो उसने सब बता दिया। योगी ने कहा, लो, पहले कुछ खा लो। गुणाकर ने जवाब दिया, मैं ब्राह्मण का बेटा हूँ। आपकी भिक्षा कैसे खा सकता हूँ? ...Read More
बेताल पच्चीसी - 19
वक्रोलक नामक नगर में सूर्यप्रभ नाम का राजा राज करता था। उसके कोई सन्तान न थी। उसी समय में दूसरी नगरी में धनपाल नाम का एक साहूकार रहता था। उसकी स्त्री का नाम हिरण्यवती था और उसके धनवती नाम की एक पुत्री थी। जब धनवती बड़ी हुई तो धनपाल मर गया और उसके नाते-रिश्तेदारों ने उसका धन ले लिया। हिरण्यवती अपनी लड़की को लेकर रात के समय नगर छोड़कर चल दी। रास्ते में उसे एक चोर सूली पर लटकता हुआ मिला। वह मरा नहीं था। उसने हिरण्यवती को देखकर अपना परिचय दिया और कहा, मैं तुम्हें एक हज़ार अशर्फियाँ दूँगा। तुम अपनी लड़की का ब्याह मेरे साथ कर दो। ...Read More
बेताल पच्चीसी - 20
चित्रकूट नगर में एक राजा रहता था। एक दिन वह शिकार खेलने जंगल में गया। घूमते-घूमते वह रास्ता भूल और अकेला रह गया। थक कर वह एक पेड़ की छाया में लेटा कि उसे एक ऋषि-कन्या दिखाई दी। उसे देखकर राजा उस पर मोहित हो गया। थोड़ी देर में ऋषि स्वयं आ गये। ऋषि ने पूछा, तुम यहाँ कैसे आये हो? राजा ने कहा, मैं शिकार खेलने आया हूँ। ऋषि बोले, बेटा, तुम क्यों जीवों को मारकर पाप कमाते हो? ...Read More
बेताल पच्चीसी - 21
विशाला नाम की नगरी में पदमनाभ नाम का राजा राज करता था। उसी नगर में अर्थदत्त नाम का एक रहता था। अर्थदत्त के अनंगमंजरी नाम की एक सुन्दर कन्या थी। उसका विवाह साहूकार ने एक धनी साहूकार के पुत्र मणिवर्मा के साथ कर दिया। मणिवर्मा पत्नी को बहुत चाहता था, पर पत्नी उसे प्यार नहीं करती थी। एक बार मणिवर्मा कहीं गया। पीछे अनंगमंजरी की राजपुरोहित के लड़के कमलाकर पर निगाह पड़ी तो वह उसे चाहने लगी। पुरोहित का लड़का भी लड़की को चाहने लगा। अनंगमंजरी ने महल के बाग़ मे जाकर चंडीदेवी को प्रणाम कर कहा, यदि मुझे इस जन्म में कमलाकर पति के रूप में न मिले तो अगले जन्म में मिले। ...Read More
बेताल पच्चीसी - 22
कुसुमपुर नगर में एक राजा राज्य करता था। उसके नगर में एक ब्राह्मण था, जिसके चार बेटे थे। लड़कों सयाने होने पर ब्राह्मण मर गया और ब्राह्मणी उसके साथ सती हो गयी। उनके रिश्तेदारों ने उनका धन छीन लिया। वे चारों भाई नाना के यहाँ चले गये। लेकिन कुछ दिन बाद वहाँ भी उनके साथ बुरा व्यवहार होने लगा। तब सबने मिलकर सोचा कि कोई विद्या सीखनी चाहिए। यह सोच करके चारों चार दिशाओं में चल दिये। ...Read More
बेताल पच्चीसी - 23
कलिंग देश में शोभावती नाम का एक नगर है। उसमें राजा प्रद्युम्न राज करता था। उसी नगरी में एक रहता था, जिसके देवसोम नाम का बड़ा ही योग्य पुत्र था। जब देवसोम सोलह बरस का हुआ और सारी विद्याएँ सीख चुका तो एक दिन दुर्भाग्य से वह मर गया। बूढ़े माँ-बाप बड़े दु:खी हुए। चारों ओर शोक छा गया। जब लोग उसे लेकर श्मशान में पहुँचे तो रोने-पीटने की आवाज़ सुनकर एक योगी अपनी कुटिया में से निकलकर आया। पहले तो वह खूब ज़ोर से रोया, फिर खूब हँसा, फिर योग-बल से अपना शरीर छोड़ कर उस लड़के के शरीर में घुस गया। लड़का उठ खड़ा हुआ। उसे जीता देखकर सब बड़े खुश हुए। ...Read More
बेताल पच्चीसी - 24
किसी नगर में मांडलिक नाम का राजा राज करता था। उसकी पत्नी का नाम चडवती था। वह मालव देश राजा की लड़की थी। उसके लावण्यवती नाम की एक कन्या थी। जब वह विवाह के योग्य हुई तो राजा के भाई-बन्धुओं ने उसका राज्य छीन लिया और उसे देश-निकाला दे दिया। राजा रानी और कन्या को साथ लेकर मालव देश को चल दिया। रात को वे एक वन में ठहरे। पहले दिन चलकर भीलों की नगरी में पहुँचे। राजा ने रानी और बेटी से कहा कि तुम लोग वन में छिप जाओ, नहीं तो भील तुम्हें परेशान करेंगे। वे दोनों वन में चली गयीं। इसके बाद भीलों ने राजा पर हमला किया। राजा ने मुकाबला किया, पर अन्त में वह मारा गया। भील चले गये। ...Read More
बेताल पच्चीसी - 25
योगी राजा को और मुर्दे को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। बोला, हे राजन्! तुमने यह कठिन काम करके साथ बड़ा उपकार किया है। तुम सचमुच सारे राजाओं में श्रेष्ठ हो। इतना कहकर उसने मुर्दे को उसके कंधे से उतार लिया और उसे स्नान कराकर फूलों की मालाओं से सजाकर रख दिया। फिर मंत्र-बल से बेताल का आवाहन करके उसकी पूजा की। पूजा के बाद उसने राजा से कहा, हे राजन्! तुम शीश झुकाकर इसे प्रणाम करो। राजा को बेताल की बात याद आ गयी। उसने कहा, मैं राजा हूँ, मैंने कभी किसी को सिर नहीं झुकाया। आप पहले सिर झुकाकर बता दीजिए। योगी ने जैसे ही सिर झुकाया, राजा ने तलवार से उसका सिर काट दिया। बेताल बड़ा खुश हुआ। बोला, राजन्, यह योगी विद्याधरों का स्वामी बनना चाहता था। अब तुम बनोगे। मैंने तुम्हें बहुत हैरान किया है। तुम जो चाहो सो माँग लो। ...Read More