अथ सत्यहरिश्चन्द्र (मंगलाचरण) सत्यासक्त दयाल द्विज प्रिय अघ हर सुख कन्द। जनहित कमला तजन जय शिव नृप कवि हरिचन्द1 ।। 1 ।। (नान्दी के पीछे सूत्राधार2 आता है)
Full Novel
सत्य हरिश्चन्द्र - 1
अथ सत्यहरिश्चन्द्र (मंगलाचरण) सत्यासक्त दयाल द्विज प्रिय अघ हर सुख कन्द। जनहित कमला तजन जय शिव नृप कवि हरिचन्द1 ।। 1 ।। (नान्दी पीछे सूत्राधार2 आता है) ...Read More
सत्य हरिश्चन्द्र - 2
स्थान राजा हरिश्चन्द्र का राजभवन। रानी शैव्या1 बैठी हैं और एक सहेली2 बगल में खड़ी है। रा. : अरी? आज मैंने ऐसे सपने देखे हैं कि जब से सो के उठी हूं कलेजा कांप रहा है। भगवान् कुसल करे। स. : महाराज के पुन्य प्रताप से सब कुसल ही होगी आप कुछ चिन्ता न करें। भला क्या सपना देखा है मैं भी सुनूँ? रा. : महाराज को तो मैंने सारे अंग में भस्म लगाए देखा है और अपने को बाल खोले, और (आँखों में आँसू भर कर) रोहितास्व को देखा है कि उसे सांप काट गया है। ...Read More
सत्य हरिश्चन्द्र - 3
स्थान वाराणसी का बाहरी प्रान्त तालाब। (पाप1 आता है) पाप : (इधर उधर दौड़ता और हांफता हुआ) मरे रे मरे, रे जले, कहां जायं, सारी पृथ्वी तो हरिश्चन्द्र के पुन्य से ऐसी पवित्र हो रही है कि कहीं हम ठहर ही नहीं सकते। सुना है कि राजा हरिश्चन्द्र काशी गए हैं क्योंकि दक्षिणा के वास्ते विश्वामित्र ने कहा कि सारी पृथ्वी तो हमको तुमने दान दे दी है, इससे पृथ्वी में जितना धन है सब हमारा हो चुका और तुम पृथ्वी में कहीं भी अपने को बेचकर हमसे उरिन नहीं हो सकते। यह बात जब हरिश्चन्द्र ने सुनी तो बहुत ही घबड़ाए और सोच विचार कर कहा कि बहुत अच्छा महाराज हम काशी में अपना शरीर बेचेंगे क्योंकि शास्त्रों में लिखा है कि काशी पृथ्वी के बाहर शिव के त्रिशूल पर है। ...Read More
सत्य हरिश्चन्द्र - 4
स्थान: दक्षिण, स्मशान, नदी, पीपल का बड़ा पेड़, चिता, मुरदे, कौए, सियार, कुत्ते, हड्डी, इत्यादि। कम्मल ओढ़े और एक मोटा लट्ठ लिए हुए राजा हरिश्चन्द्र फिरते दिखाई पड़ते हैं। ह. : (लम्बी सांस लेकर) हाय! अब जन्म भर यही दुख भोगना पड़ेगा। जाति दास चंडाल की, घर घनघोर मसान। कफन खसोटी को करम, सबही एक समान ।। ...Read More